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प्रतिनिधित्व के सिद्धांत (Theories Of Representation) In Hindi

 प्रतिनिधित्व के सिद्धांत (Theories Of Representation)

    • लोकतंत्र में जनता द्वारा शासन कार्यों में भाग लेने के आधार पर लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-

    1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र

    • ऐसी लोकतंत्रीय प्रणाली में संपूर्ण जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लेती है| 

    • प्रत्यक्ष लोकतंत्र प्राचीन राज्य व छोटे राज्यों में संभव है|


    1. अप्रत्यक्ष लोकतंत्र

    • आधुनिक बड़े राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र संभव नहीं है, अतः यहां अप्रत्यक्ष लोकतंत्र होता है| 

    • अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता प्रत्यक्ष रूप से तो शासन कार्यों में भाग नहीं लेती है, लेकिन अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन कार्यों में भाग लेती है| 

    • प्रतिनिधित्व जटिल, वृहद, बहुल समाजों में लोकतंत्र की सफलता का आधार है| 



    प्रतिनिधित्व का अर्थ-

    • सभी आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाएं यह दावा करती है, कि वे रूसो के शब्दों में “लोगों की इच्छा की उपज है|”

    • विशाल जनसंख्या व व्यापक मताधिकार होने के कारण प्रत्यक्ष तरीके से लोगों द्वारा सामूहिक तरीके से सरकार के कार्य निष्पादन करना संभव नहीं है, इसलिए इस दावे को प्रतिनिधित्व के कार्य रूप में परिणत किया जाता है| 

    • लॉर्ड एक्टन के अनुसार “प्रतिनिधित्व आधुनिक युग के महत्वपूर्ण अधिकार के रूप में आया है|”

    • प्रतिनिधित्व वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से समस्त नागरिकों या उनके किसी अंश की अभिवृत्तियों, अधिमान्यताओं, दृष्टिकोणों और इच्छाओं को उनके प्रतिनिधियों द्वारा सरकारी कार्य का रूप प्रदान किया जाता है| 

    • रॉबर्ट वॉन मोहल के अनुसार प्रतिनिधित्व वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से समस्त नागरिक या उनका कोई भाग सरकारी कार्य पर जो प्रभाव डालता है, वह उनकी संयुक्त इच्छा के अनुसार होता है और यह कार्य उन्ही में से थोड़े लोगों द्वारा किया जाता है, जो उनके प्रतिनिधि होते है|”

    • कर्टिस (Comparative government and politics) के अनुसार “प्रतिनिधित्व शब्द स्वाभाविक रूप में बहु-अर्थक है और इस कारण प्रतिनिधि सरकार के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं|” 


    सैमुअल बीयर का पंचमुखी वर्गीकरण-

    • प्रतिनिधित्व की अनेक अभिवृत्तियां पाई जाती हैं| इस संबंध में सैमुअल बीयर ने प्रतिनिधित्व के पांच प्रारूप बताए हैं-

    1. परंपरागत अनुदार दृष्टिकोण

    2. परंपरागत उदारवादी या कुलीनतंत्रीय दृष्टिकोण

    3. उदार दृष्टिकोण

    4. उग्र विचारधारा दृष्टिकोण

    5. आधुनिक अनुदार लोकतांत्रिक और आधुनिक समाजवादी लोकतांत्रिक दृष्टिकोण


    1. परंपरागत अनुदार दृष्टिकोण-

    • इसमें सामान्य कल्याण का प्रतिनिधित्व एक राजा या सरकार द्वारा होता है, जिसे राजनीतिक कार्यक्रम तैयार करने का कार्य सौंपा जाता है| 


    1. परंपरागत उदारवादी या कुलीनतंत्रीय दृष्टिकोण-

    • यह वर्ग विभेद वाले संतुलित संविधान के विचार पर आधारित है| 

    • इसमें तर्कशील और निर्णय करने वाले कुलीन व्यक्ति अपने निर्वाचकों के मार्गदर्शक या बाह्य आदेश के बिना स्वविवेक से सरकारी कार्यों के बारे में विचार करते हैं| 

    • जबकि हाउस ऑफ कॉमंस जैसी निर्वाचित संस्था सामान्यहितों का प्रतिनिधित्व करती है| 


    1. उदार दृष्टिकोण-

    • इसमें व्यक्तियों से बनी संसदीय संस्था द्वारा सामान्य कल्याण और जनहित का प्रतिनिधित्व किया जाता है| 

    • यद्यपि यह सब मध्यम वर्गीय प्रभुत्व के अधीन होता है| 

    • इसमें मताधिकार के लिए संपत्ति संबंधी योग्यता पर बल दिया जाता है| 


    1. उग्र विचारधारा दृष्टिकोण-

    • इसमें प्रतिनिधित्व लोगों की एकीकृत इच्छा पर आधारित होता है, जो सभी व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बांध देता है| 

    • लोगों की एकीकृत इच्छा को समाज में अंतिम सर्वोच्च सत्ता समझा जाता है और यह व्यवहार में बहुमत की इच्छा होती है| 

    • लोगों की एकीकृत इच्छा को प्रत्यक्ष रूप में या हितबद्ध समूहों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है| 


    1. आधुनिक अनुदार लोकतांत्रिक और आधुनिक समाजवादी लोकतांत्रिक दृष्टिकोण-

    • इसमें प्रतिनिधित्व अनुशासनबद्ध राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है, जिसका प्रकार्यात्मक गुटों से भी संबंध होता है| 

    • मतदाताओं को किसी एक दल का चुनाव करना पड़ता है| 


    A R बॉल का वर्गीकरण-

    • A R बॉल ने अपनी पुस्तक Modern Politics and Government 1971 में प्रतिनिधित्व से संबंधित सिद्धांतों को दो वर्गों में विभाजित किया है-

    1. उदार लोकतंत्रवादी प्रतिनिधित्व सिद्धांत

    2. समूहवादी-समाजवादी प्रतिनिधित्व सिद्धांत


    1. उदार लोकतंत्रवादी प्रतिनिधित्व सिद्धांत-

    • इसमें व्यक्तिगत अधिकारों, व्यक्ति की संपत्ति की रक्षा के लिए सरकार की शक्तियों को सीमित करने की आवश्यकता पर बल दिया जाता है| 

    • इसमें मतदान अधिकार की समानता होती है| 

    • प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर प्रतिनिधित्व होता है, न कि वर्गों, व्यवसायों, विशेष सामाजिक हितों के आधार पर| 

    • इसमें व्यक्ति को तर्कशील प्राणी माना जाता है तथा प्रतिनिधियों के चयन में भागीदारी का हकदार माना जाता है| 

    • इसमें सार्वजनिक व्यस्क मताधिकार, गुप्त मतदान पद्धति, स्वतंत्र निर्वाचन होता है| 


    1. समूहवादी-समाजवादी प्रतिनिधित्व सिद्धांत-

    • इसमें व्यक्ति के बजाय वर्ग पर अधिक बल दिया जाता है| 

    • इसमें लोकतंत्र का अभिप्राय सामाजिक समानता और आर्थिक शोषण का अभाव है और यह महत्वपूर्ण विचार प्रतिनिधित्व पर लागू होता है| 

    • इसमें एक दल का एकाधिकार होता है| 



    प्रतिनिधित्व के सिद्धांत-

    • L P बारदात ने अपनी पुस्तक Political Ideologies: There Origin and Impact 1989 में प्रतिनिधित्व के निम्न सिद्धांत बताए है-


    1. प्रतिनिधित्व का प्रतिक्रियावादी सिद्धांत-

    • प्रवर्तक- थॉमस हॉब्स और एलेक्जेंडर हैमिल्टन

    • यह सिद्धांत व्यवस्था और सत्ता की आवश्यकता पर बल देता है|

    • सत्ता के अधीन कार्यपालिका और विधायिका सार्वजनिक हित साधन करते हैं|

    • इस सिद्धांत में कार्यपालिका के लिए शक्तिशाली राजतंत्र या राष्ट्रपति को अधिक उपयुक्त माना जाता है|

    • इस सिद्धांत के अनुसार कार्यपालिका और संसद उच्च कोटि के ज्ञान और विवेक से संपन्न होती है| उन्हें लोकमत की ओर ध्यान तो देना चाहिए, परंतु उससे बंधना नहीं चाहिए|

    • जनसाधारण को राज्य का समर्थन करना चाहिए और सरकार की नीतियों को इस विश्वास के साथ सहर्ष स्वीकार करना चाहिए कि राजनीतिज्ञ लोक-हित के सर्वोत्तम व्याख्याकार और रक्षक है|


    आलोचना

    • इस सिद्धांत में सत्ताधारियो पर जनसाधारण के नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है|

    • बहुत से विचारक इसे अलोकतंत्रीय कहते हैं| 


    महत्व-

    • यह लोक-हित सरोकार रखते हुए शासक वर्ग को लोकहित का सर्वोत्तम रक्षक और साधक मानता है|


    1. प्रतिनिधित्व का संभ्रांतवर्गीय सिद्धांत-

    • प्रवर्तक- पैरेटो, मोस्का, मिश्चैल 

    • इस सिद्धांत के अनुसार चुने हुए योग्य व संभ्रात वर्ग का शासन ही सर्वोत्तम शासन है|

    • इसमें योग्यता तत्व पर महत्व दिया गया|


    1. प्रतिनिधित्व का रूढ़िवादी सिद्धांत-

    • प्रवर्तक- एडमंड बर्क और जेम्स मेडिसन 

    • यह सिद्धांत शासन पर सार्वजनिक नियंत्रण तो स्वीकार करता हैं, लेकिन शासन प्रक्रिया में जनसाधारण की सहभागिता को स्वीकार नहीं करता हैं|

    • इस सिद्धांत के अनुसार जनसाधारण को विशिष्ट वर्ग में से अपने शासको का चयन करना चाहिए|

    • लेकिन लोगों को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे अपने प्रतिनिधियों को कोई निर्देश दे सके|

    • परंतु यदि जनसाधारण अपने प्रतिनिधियों से संतुष्ट नहीं है तो वे अगले चुनाव में उन्हें हराकर, विशिष्ट वर्ग से ही नए प्रतिनिधि चुन सकते हैं|


    1. प्रतिनिधित्व का उदारवादी सिद्धांत-

    • प्रवर्तक- जॉन लॉक और थॉमस जैफर्सन

    • यह सिद्धांत समस्त गणतंत्रीय सिद्धांतों में सबसे अधिक लोकतंत्रीय है|

    • इस सिद्धांत के अनुसार सभी लोग समान है, इसलिए वे सब शासन करने के लिए समान रूप से समर्थ है|

    • प्रत्येक प्रतिनिधि को अपने निर्वाचको के संदेशवाहक के रूप में कार्य करना चाहिए, नीति निर्माता के रूप में नहीं|

    • सार्वजनिक अधिकारियों को उस ढंग से मत व्यक्त करना चाहिए, जैसा कि उनके निर्वाचक चाहते हैं|


    1. प्रतिनिधित्व का आमूल परिवर्तनवादी या क्रांतिकारी सिद्धांत

    • प्रवर्तक- ज्यां जाक रूसो और नव वामपंथी

    • इसमें लोकमत को सबसे ऊंचा स्थान दिया जाता है|

    • इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्यक्ष लोकतंत्र ही सच्चा लोकतंत्र है|

    • यह प्रतिनिधि शासन को अस्वीकार करता है| तथा यह मानता है कि लोग स्वयं अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने या उसका प्रतिनिधित्व करने में समर्थ होते हैं और कम से कम महत्वपूर्ण मामलों में तो उन्हें ऐसा ही करना चाहिए|

    • यह सिद्धांत विशुद्ध लोकतंत्र का समर्थन करता हैं|



    व्यवस्था की अनुक्रियाशीलता-

    • प्रतिनिधित्व के मामले पर व्यवस्था की अनुक्रियाशीलता (Responsiveness of the System) के विश्लेषण के माध्यम से भी अध्ययन किया गया है| 


    गेरहार्ड लोवनबर्ग और किम-

    • पुस्तक- Comparing the Representativeness of Parliaments 1978

    • इन्होंने प्रतिनिधित्व के अनुक्रियाशील पक्षों पर अधिक बल दिया है| 

    • इनके अनुसार संसद के सदस्यों के लाभपूर्ण दृष्टिकोण से अनुक्रियाशीलता में निम्नलिखित शामिल है-

    1. संघटकों (निर्वाचको) का संकल्पनीकरण

    2. संचार के विभिन्न माध्यमों का उपयोग


    हेंज युलू और D कॉर्प्स-

    • पुस्तक- The Puzzle of Representation 1977 

    • इन्होंने अनुक्रियाशीलता के चार संभव संघटक बताएं है-

    1. नीति अनुक्रियाशीलता

    2. सेवा अनुक्रियाशीलता

    3. विनियोजन अनुक्रियाशीलता

    4. प्रतीकात्मक अनुक्रियाशीलता



    प्रतिनिधियों की भूमिका: विधायी अधिदेश का सिद्धांत-

    • इसमें यह देखा जाता है कि शासक और शासितों के बीच क्या उपयुक्त संबंध होने चाहिए?

    • अर्थात प्रतिनिधि के उपयुक्त कार्य या भूमिका क्या होनी चाहिए?

    • इसके संबंध में अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग विचार है| 


    गार्नर के अनुसार प्रतिनिधि की भूमिका-

    • पुस्तक- Political Science and government 1952

    • उनके अनुसार प्रतिनिधि की निम्न भूमिका है-

    1. प्रतिनिधि जिस निर्वाचन क्षेत्र से चुना जाता है, उसका सहायक, दूत या प्रवक्ता समझा जाता है| 

    2. उसे पूरे राज्य का प्रतिनिधि समझा जाता है| 

    3. उसे राजनीतिक दल का प्रवक्ता समझ जाता है| 


    जॉन वाहल्के के अनुसार प्रतिनिधि की भूमिका-

    • पुस्तक- The Legislative System 1962

    • उनके अनुसार प्रतिनिधि की निम्न भूमिका है-

    1. न्यासी-सहायक की भूमिका

    2. सुविधाकारक-तटस्थ की भूमिका

    3. जिला-राज्य या देश भूमिका


    1. न्यासी-सहायक की भूमिका (Trustee- Deputy role)-

    • प्रतिनिधि अपने आपको निर्वाचकों का प्रतिनिधि समझ सकता है तथा उनके निर्देशों को स्वीकार करने के लिए तैयार हो सकता है| 

    • अथवा प्रतिनिधि अपने विवेक के अनुसार अपने निर्वाचकों की सलाह के बिना भी कार्य कर सकता है| 


    1. सुविधाकारक-तटस्थ की भूमिका (Facilitator-neutral Role)-

    • प्रतिनिधि विभिन्न हित समूहों से परामर्श करता है और अपने निर्वाचकों के लिए कुछ सेवाओं को निष्पादित करता है| 


    1. जिला-राज्य या देश भूमिका (District state or Country role)-

    • प्रतिनिधि यह तय करता है कि उसके कार्यों में क्षेत्र के हितों अथवा समस्त देश के हितों को प्राथमिकता मिले| 


    जोसेफ ला पालोम्बरा के अनुसार विधायकों की भूमिका-

    • पुस्तक- Politics Within Nation 1974

    • जोसेफ ला पालोम्बरा ने विधायकों की निम्न भूमिका बतायी है-

    1. कर्मकांडी

    2. अवसरवादी

    3. भंच

    4. दलाल

    5. आविष्कारक


    1. कर्मकांडी-

    • यह बहुत ही उत्तम कोटि का विधि निर्माता होता है| 

    • यह नियमित रूप से सदनों के अधिवेशनो में और उसकी समितियों में भाग लेता है और कार्य विधियों का बड़े ध्यान से अध्ययन करता है| 


    1. अवसरवादी-

    • यह विधि निर्माण में कोई रुचि नहीं रखता है, बल्कि अन्य उद्देश्यों के लिए अपनी हैसियत को उठाने का प्रयास करता है| 


    1. भंच-

    • यह हितों की मुखरता, मांगो के संप्रेषण और उसके निर्वाचकों तथा सामान्य मतदाताओं की अपेक्षाओं का ध्यान रखता है| 


    1. दलाल-

    • यह विरोधी हितों को एक करना चाहता है| 


    1. आविष्कारक-

    • यह सार्वजनिक नीतियों का सृजन करता है| 


    J D बार्बर के अनुसार-

    • इन्होंने विधायकों को चार वर्गों में बांटा है-

    1. विधि निर्माता

    2. दर्शक

    3. विज्ञापनकर्ता

    4. अनिच्छुक


    1. विधि निर्माता-

    • ये विधायी प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तथा फिर से चुने जाने की इच्छा रखते हैं| 


    1. दर्शक-

    • ये फिर से चुने जाने की इच्छा तो रखते हैं, लेकिन विधायी कार्य में रुचि कम लेते है| 

    • ये मतदाताओं, पार्टी और निर्वाचन क्षेत्र के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखना चाहते हैं| 


    1. विज्ञापनकर्ता-

    • ये एक राजनीतिज्ञ और हैसियत वाले व्यक्ति के रूप में अपनी छवि तैयार करना चाहते हैं| 


    1. अनिच्छुक-

    • ये ऐसी भूमिका निभाते हैं, जिसके कारण यह कहा जाता है की विधायी संस्थाओ का ह्रास हो रहा है| 



    प्रतिनिधित्व के प्रतिमान या मॉडल-


    1. न्यासिता प्रतिमान (Trusteeship Model)-

    • समर्थक- एडमंड बर्क व जे एस मिल

    • इस प्रतिमान के अनुसार प्रतिनिधि निर्वाचितो के हितों के न्यासी होते हैं|

    • एडमंड बर्क के अनुसार प्रतिनिधि वे है, जिन्हें समुदाय के सामान्य और दीर्घकालिक हितों को सुरक्षित करने के लिए संसद में भेजा जाता है|

    • एडमंड बर्क ने प्रतिनिधित्व को नैतिक कर्तव्य माना है और कहा है कि समाज के शिक्षित और बुद्धिमान लोगों को अशिक्षित और बुद्धिहीन लोगों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए|

    • एडमंड बर्क निर्वाचितो को प्रतिनिधि (Delegate) नहीं मानता है, बल्कि न्यासी मानता है|

    • जे एस मिल ने भारित मतदान का समर्थन किया है अर्थात डिग्री धारकों के मत मूल्य को चार या पांच, कुशल या प्रबंधकीय श्रमिक के मत मूल्य को दो या तीन तथा साधारण श्रमिक के मत मूल्य को एक मानने का समर्थन किया है| 


    1. प्रतिनिधान प्रतिमान (Delegation Model)-

    • समर्थक- थॉमस पेन

    • इस प्रतिमान के अनुसार प्रतिनिधि को आम लोगों के निर्देश के अनुसार कार्य करना चाहिए, न कि अपने निर्णय और इच्छा के अनुसार|

    • थॉमस पेन के अनुसार प्रतिनिधि को अपने मतदाताओं से निरंतर परस्पर विनिमय करते रहना चाहिए|

    • थॉमस पेन ने अपनी पुस्तक कॉमन सेंस 1776 में लिखा है कि निर्वाचितो को कभी भी निर्वाचको से अलग अपनी रुचि नहीं बनानी चाहिए|


    1. जनादेश प्रतिमान (Mandate Model)-

    • समर्थक- एंड्रयू हेवुड 

    • इस प्रतिमान के अनुसार वोट व्यक्ति को नहीं, बल्कि दलों को दिए जाते हैं| 

    • इस प्रतिमान के अनुसार जो राजनीतिक दल निर्वाचन में लोकप्रिय जनादेश प्राप्त करेगा, वह दल सत्ता संचालन में भूमिका निभाएगा


    1. प्रतिरूप प्रतिमान (Resemblance Model)-

    • समर्थक- बहुसंस्कृतिवादी व समूह सिद्धांतकार

    • यह सिद्धांत प्रतिनिधित्व के तरीके पर कम और जिस समूह से वे आते हैं, उनके हितों के प्रतिनिधित्व से संबंधित है|

    • यह इस विचार पर आधारित है कि सरकार वृहद् समाज के विभिन्न समूहों से गठित होनी चाहिए, इसलिए इसे सूक्ष्म जगत प्रतिनिधित्व भी कहा जाता है| 



    प्रतिनिधित्व के प्रकार-

    1. प्रादेशिक प्रतिनिधित्व

    2. समानुपातिक प्रतिनिधित्व

    3. अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व

    4. प्रकार्यात्मक प्रतिनिधित्व


    1. प्रादेशिक प्रतिनिधित्व-

    • प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के अंतर्गत निर्वाचन करवाने के लिए उस क्षेत्र को कई निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है, जिनको प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं|

    • प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य अथवा एक से अधिक सदस्यों को चुना जाता है|

    • प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के दो प्रकार हैं-

    1. एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र- इस प्रकार के एक निर्वाचित क्षेत्र से एक ही सदस्य चुना जाता है|

    2. बहु सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र- इसमें एक निर्वाचन क्षेत्र से एक से अधिक सदस्य चुने जाते हैं| 


    1. समानुपातिक प्रतिनिधित्व-

    • इस प्रतिनिधित्व में मतदाताओं के प्रत्येक वर्ग को उनके मतों के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाता है|

    • समानुपातिक प्रतिनिधित्व को लागू करने के लिए दो प्रकार की निर्वाचन प्रणालियां है-

    1. एकल हस्तांतरण मत पद्धति-  

    • इस मत पद्धति का सबसे पहले विकास 1793 में डेनिश मंत्री कॉल आंद्रे ने किया, जिसे परिष्कृत रूप में 1851 में इंग्लैंड में टॉमस हेयर ने प्रस्तुत किया| इस कारण इसको हेयर पद्धति भी कहा जाता है| 

    • इस मत पद्धति के अंतर्गत मतदाता वरीयता क्रम में मतदान करता है तथा चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को मतों का निश्चित कोटा प्राप्त करना पड़ता है| 

    • यदि उम्मीदवार को प्रथम वरीयता में कोटा प्राप्त नहीं होता है, तो दूसरी वरीयता के वोटों की गणना की जाती है और यह गणना तब तक चलती है, जब तक कि निश्चित कोटा प्राप्त नहीं हो जाए| 

    • आयरिश गणराज्य तथा माल्टा के राष्ट्रीय चुनाव में इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है|


    1. सूची प्रणाली

    • इसमें मतदाता को विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की सूची दी जाती है और वह अपने मतपत्र पर उनमें से किसी एक सूची पर निशान लगा देता है| 

    • उम्मीदवारों का चुनाव इस आधार पर होता है कि सूची में उनका क्रम क्या था और प्रत्येक दल को कितने वोट मिले हैं| 


    1. अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व- 

    • सामान्यत लोकतंत्र का अर्थ है बहुमत का शासन, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों को दबा दिया जाए|

    • जे एस मिल ने लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने का समर्थन किया है|

    • समानुपातिक मत प्रणाली में अल्पसंख्यकों को सामान्यतः प्रतिनिधित्व मिल जाता है| 


    • अल्पसंख्यकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए निम्न तरीके अपनाए जाते है-

    1. दूसरा मत पद्धति- 

    • इस पद्धति में सफल उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत अर्थात 50% से ज्यादा मत प्राप्त करने जरूरी है| 

    • यदि कोई भीउम्मीदवार पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं करता है, तो निर्वाचन रद्द कर दिया जाता है और केवल दो ही उम्मीदवारों में (जिन्होंने चुनाव में सबसे ज्यादा मत प्राप्त किए हैं) के मध्य चुनाव करवाया जाता है| 


    1. विकल्प मत पद्धति-

    • इसे प्रासंगिक या आकस्मिक या अधिमानित मत पद्धति भी कहा जाता है| 

    • यहां एकल हस्तांतरणीय मत पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है| 


    1. सीमित मत पद्धति-

    • इस पद्धति में एक बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम तीन स्थान होने चाहिए| 

    • मतदाताओं को स्थानों की संख्या से कम मत प्रदान किए जाने चाहिए अर्थात तीन सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता को दो मत देने का अधिकार होना चाहिए| 

    • मतदाता को किसी उम्मीदवार को एक से अधिक मत देने की इजाजत नहीं होनी चाहिए| 

     

    1. एक मत पद्धति-

    • यह मत पद्धति बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में चलती है, जिसमें प्रत्येक मतदाता को एक मत देने का हक होता है| 

    • उम्मीदवार को मतों की बहुसंख्या के आधार पर चुना जाता है| 


    1. प्रवासी प्रणाली-

    • इसमें मतदाता बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में एक उम्मीदवार के लिए अपना मत दे सकता है| 

    • उम्मीदवार के जीतने के लिए मतों की न्यूनतम संख्या निश्चित कर दी जाती है, जो उम्मीदवार न्यूनतम मत प्राप्त कर लेता है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है| 


    1. संचयी मत पद्धति-

    • इसे एकत्रित मत पद्धति भी कहते हैं| 

    • इस पद्धति में प्रत्येक मतदाता को स्थानो की संख्या के बराबर मत प्रदान किया जाता है| 

    • मतदाता अपना मत अलग-अलग उम्मीदवारों को दे सकता है या सभी मत एक ही उम्मीदवार को दे सकता है| 


    1. मतभार-

    • इस पद्धति में अल्पसंख्यकों को एक से अधिक मत देने का अधिकार होता है, ताकि बहुसंख्यकों के बराबर मत अधिकार प्राप्त हो जाए| 

    • जैसे कि भारत में स्वतंत्रता पूर्वकाल में मुसलमान व सिखों को दो मत देने का अधिकार था| 


    1. स्थानो का आरक्षण-

    • इसमें अल्पसंख्यकों के लिए स्थान आरक्षित किए जाते हैं या राज्याध्यक्ष द्वारा नामित किये जाते है| 

    • जैसे भारत में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए स्थान आरक्षित किए गए है| 


    समवर्ती बहुमत-

    • अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाले इस सिद्धांत का विकास जॉन सी केलहान के द्वारा किया गया

    • इसके अनुसार कोई भी निर्णय तभी मान्य होना चाहिए, जब उससे प्रभावित होने वाले सभी मुख्य- मुख्य वर्ग-हितों की सहमति प्राप्त कर ली गई हो|

    • यदि देश की सरकार अपने संख्यात्मक बहुमत के आधार पर कोई निर्णय करना चाहती हो तो उस निर्णय से प्रभावित अल्पमत को उसे रोक सकने का निषेधाधिकार प्राप्त होना चाहिए|


    1. प्रकार्यात्मक प्रतिनिधित्व-

    • इस सिद्धांत के अनुसार प्रतिनिधित्व का आधार व्यवसायिक संगठन होने चाहिए|

    • इस सिद्धांत के अनुसार सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक समूहों को राष्ट्रीय विधानसभा में स्थान दिया जाए, क्योंकि इनके अपने विशेष हित होते हैं|

    • मुख्य प्रवर्तक- G D H कॉल

    • अन्य प्रवर्तक- डुग्वी (गिल्ड सोशलिस्ट विचारक), सिडनी वेब और ब्रिटिश वेब (फेबियनवादी विचारक)

    • डुग्वी के अनुसार “विभिन्न गुटों को को प्रतिनिधित्व प्रदान करके जनइच्छा को उपयुक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जा सकती है|”

    • सिडनी वेब और ब्रिटिश वेब के अनुसार “ब्रिटेन के समाजवादी राष्ट्रमंडल के लिए एक नया संविधान बनाया जाना चाहिए, जिसका आधार प्रक्रियात्मक प्रतिनिधित्व हो|

    • G D H कॉल के अनुसार “सच्चा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व प्रकार्यात्मक प्रतिनिधित्व है|”

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