Ad Code

प्लेटो (PLATO) 428 ई-पू- 347 ई.पू , जीवन परिचय, अकादमी (Academy), प्लेटो की रचनाएं, राज्यशास्त्र से संबंधित पुस्तकें ,प्लेटो की अध्ययन पद्धति या अध्ययन शैली in Hindi

    प्लेटो (PLATO) 428 ई-पू- 347 ई.पू

    जीवन परिचय-

    • जन्म-

    • 428/27 ई.पू.

    • एथेंस के एक प्राचीन विशिष्ट कुलीन, किंतु गैर खुशहाल परिवार में|


    • पिता का नाम

    • एरिस्टोन/अरिस्तोन (Ariston) 

    • प्लेटो के पिता एथेंस के अंतिम राजा कार्ड्स के वंशज थे|

    • इनके पिता अरिस्तोन की वंशावली एथेंस के प्राचीन राजाओं से होती हुई पोसीदन (समुद्र के देवता) तक पहुंचती थी|


    • माता का नाम

    • परिक्टियनी

    • इसकी माता सुप्रसिद्ध कानूनवेता या स्मृतिकार सोलान के वंश में उत्पन्न हुई थी| 


    • वास्तविक नाम- 

    • अरिस्तोक्लीज 

    • अरिस्तोक्लीज का अर्थ था- सबसे अच्छा और प्रसिद्ध

    • लेकिन उनके सुंदर, सुडोल, पुष्ट शरीर व चौड़े कंधों के कारण इनके व्यायाम शिक्षक ने उनको प्लेटो (अफलातून) नाम दिया|


    Note-  प्लेटो प्लेटिस शब्द से आया है, जिसका अर्थ है- चौड़े और मजबूत कंधे 

    • प्लेटो शब्द का अर्थ है- चौड़ा-चपटा| 

    • प्लेटो का शुद्ध यूनानी उच्चारण- प्लातोन है, अरबी में इसे अफलातून उच्चारित किया जाता है| 


    • गुरु

    • सुकरात प्लेटो का गुरु था|

    • प्लेटो प्रारंभिक शिक्षा के बाद 20 वर्ष की अवस्था में सुकरात के पास गया तथा 8 वर्ष तक सुकरात से शिक्षा ग्रहण की|

    • प्लेटो ने सुकरात से प्रभावित होकर कवि बनने का विचार छोड़ दिया|


    • प्लेटो की पोटोने नामक बहन थी तथा एंडीमेंटस और ग्लूकोन दो भाई और एंटीफोन नामक अर्धभ्राता भी थे|

    • प्लेटो संगीत, गणित, कविता और वक्तृता के लिए जाने जाते थे| इन्होंने तीन युद्धों में भाग लिया और बहादुरी के लिए इनाम भी मिला| उन्होंने कभी विवाह नहीं किया|

    • कुलीन परिवार में उत्पन्न होने के बारे में प्लेटो ने स्वयं कहा है कि “मैं ईश्वर का धन्यवाद करना चाहता हूं कि मैं असभ्य, असंस्कृत गैर यूनान की बजाय यूनान में जन्मा, दास की बजाय नागरिक के रूप में, स्त्री के बजाय पुरुष के रूप में जन्मा, किंतु सबसे अच्छी बात कि मैं सुकरात के युग में जन्मा|”


    पेलोपोनेसियन युद्ध

    • प्लेटो का जब जन्म हुआ था उस समय लोकतांत्रिक एथेंसस्पार्टा के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था| यह युद्ध 28 वर्ष (431-404ई पू) चला था, जिसने एथेंस का पतन कर दिया|

    • Note- पेलोपोनेशियन वार पुस्तक थ्यूसिडाइस द्वारा लिखी गयी है|


    • 404 ईसा पूर्व एथेंस में प्लेटो के संबंधियों के नेतृत्व में एक कुलीनतंत्रीय क्रांति हुई| इसी समय प्लेटो ने राजनीति में सक्रिय भाग लिया, लेकिन एथेंस में जनतंत्र की पुनर्स्थापना, क्रिशियस (क्रिटियास) तथा चार्मीडीस की मृत्यु और सुकरात को मृत्युदंड दिए जाने के बाद वे राजनीति से अलग हट गए|

    • कुलीन वर्ग में उत्पन्न होने के कारण प्लेटो की स्वाभाविक इच्छा राजनीति में जाने की थी, लेकिन युवावस्था की दो घटनाओं के कारण इनका राजनीति से मोह भंग हो गया|


    • ये दो घटनाएं निम्न है-

    1. प्रथम घटना- तीस लोगों का शासन -

    • पेलोपोनेशियन युद्ध में पराजित एथेंस में लोकतंत्र की जगह 30 व्यक्तियों के कुलीनतंत्र की स्थापना हुई| यह कुलीनतंत्र स्पार्टा की कटपुतली था| इस सरकार में प्लेटो के दो रिश्तेदार परिक्टियनी का चाचा क्रिशियस (क्रिटियास) तथा भाई चार्मीडीस भी शामिल थे|

    • इस 30 लोगों के शासन ने प्लेटो के गुरु सुकरात पर युवकों को पथभ्रष्ट करने का आरोप लगाया|


    1. दूसरी घटना-

    • 30 लोगों के शासन के बाद एथेंस में वापस लोकतंत्र की स्थापना हुई| 

    • एथेंस की लोकतांत्रिक सरकार ने युवकों को राज्य के विरुद्ध भड़काने तथा कानूनों के उल्लंघन का सुकरात पर आरोप लगाकर जहर का प्याला देखकर मृत्युदंड दे दिया|


    • इन घटनाओं पर प्लेटो ने कहा है कि “राजनीति भले किसी भी रूप में क्यों न हो, बुरी होती है और स्वच्छ शासन के लिए उसका सही निर्देश अति आवश्यक है|” 


    • Note- आनाक्सागोरस (500 BC- 432 BC ) और प्रोतागोरस (481 BC - 411 BC) को भी एथेंस से बाहर जाने का आदेश दिया गया| 


    • सुकरात की मृत्यु (399 ई.पू) के समय पलेटो 28 वर्ष का था, सुकरात की मृत्यु के बाद उसके जीवन में मोड़ आया|

    • सुकरात की मृत्यु (399 ई.पू) के बाद प्लेटो ने एथेंस छोड़ दिया तथा विश्व भ्रमण पर निकल गये| 

    • एथेंस से भागकर प्लेटो निगारा चले गए, जहां प्रसिद्ध रेखागणितज्ञ यूक्लिड की शरण ली|

    • निगारा से वे मिस्र गए, जहां उन्होंने गणित और पुरोहितों की ऐतिहासिक परंपराओं का अध्ययन किया|

    • 395 ईसा पूर्व में एथेंस आये और अगले कुछ वर्षों तक कोरींथ नगर के लिए लड़ते रहे|

    • 387 ईसा पूर्व में वे पाइथागोरियन दार्शनिक, गणितज्ञ और राजनीतिक नेता आर्किटास के पास दक्षिणी इटली के तारास में गए|

    • प्लेटो पर सुकरात का सबसे अधिक प्रभाव था| इस संबंध में मैक्सी ने लिखा है कि “प्लेटो में सुकरात पुन: जीवित हो गया है|”

    • एथेंस छोड़ने के बाद प्लेटो 12 वर्ष तक यूनान के नगरों, मिस्र, इटली की यात्रा की तथा वहां की शासन पद्धतियों का अध्ययन किया वह फारस भी गया था| कुछ विद्वानों के अनुसार वह भारत में गंगा नदी के तट पर स्थित मगध में भी आया था तथा यहां वेदांत की शिक्षा ली|


    Note- विल दुरांत (Will Durant) ने अपनी पुस्तक ‘Story of philosophy 1926’ में लिखा है की प्लेटो ज्ञान की तलाश में गंगा नदी के तट तक भारत की यात्रा की और यहां पर वेदांत दर्शन का अध्ययन किया|


    • मगध की वर्ण व्यवस्था से पलेटो प्रभावित था, इसी के आधार पर उन्होंने न्याय का आधार कर्तव्य बताया है|

    • 387 ई.पू. में प्लेटो वापस एथेंस आ गये| एथेंस लौटने पर प्लेटो के मित्रों ने प्लेटो को एक मनोरंजन स्थल भेंट किया, जिसका नाम स्थानीय वीर अकादिमास या हेक़ादिमास के नाम से था तथा यहीं पर प्लेटो ने प्रसिद्ध शिक्षणालय अकादमी की स्थापना की|



    अकादमी (Academy)-

    • प्लेटो द्वारा स्थापित शिक्षणालय (386 ई.पू)

    • इसको यूरोप का प्रथम विश्वविद्यालय कहा जाता है|

    • एकेडमी शुरू में न्यूजेज और इसके नेता अपोलो की आराधना करने वाला एक धार्मिक दल था|

    • पाइथागोरियन स्कूल के समान एकेडमी में भी महिलाओं के प्रवेश की इजाजत थी|

    • अकादमी के प्रवेश द्वार पर लिखा था कि “गणित, रेखागणित के ज्ञान के बिना यहा कोई भी प्रवेश का अधिकारी नहीं है|” (मेडिस रगजिओमेट्रोस आइसीटो)

    • प्लेटो ने ‘अकादमी’ में गणित और ज्यामिति के अध्ययन पर अत्याधिक जोर दिया|

    • प्लेटो ने एकेडमी को भावी दार्शनिक शासकों के ट्रेनिंग स्कूल के रूप में देखा|

    • एकेडमी में लेक्चरो, सुकरातवादी डायलेक्टिक्स और समस्या हल करने वाली परिस्थिति निर्माण के जरिए शिक्षा दी जाती थी|


    • प्रोफेसर फॉस्टर ने कहा है कि “प्लेटो की अकादमी केवल बौद्धिक प्रशिक्षण का केंद्र मात्र नहीं थी, बल्कि यह यूनानी जीवन को सुधारने के लिए आवश्यक राजवैज्ञानिकों तथा शासकों के निर्माण की कार्यशाला थी|”


    • बार्कर- बार्कर ने प्लेटो द्वारा स्थापित अकादमी के दो लक्ष्य बताये है-

    1. प्रथम लक्ष्य- अकादमी विशुद्ध शोध का केंद्र थी|

    2. द्वितीय लक्ष्य- यह राजनीति व कला के प्रशिक्षण की पाठशाला थी, जहां विधायक तथा राजनेता तैयार करने में सहायता मिलती थी|


    • प्लेटो की अकादमी में पढ़ाये जाने वाले मुख्य विषय थे- गणित जिसमें गणन भी शामिल था, विकसित रेखागणित, खगोलशास्त्र, संगीत, कानून और दर्शन|

    • इनके अलावा राजनीति, तर्कशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, मानवशास्त्र आदि अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी|

    • Note- प्लेटो का विख्यात शिष्य अरस्तु इसी अकादमी की देन है|


    • 12 वर्षों के भ्रमण काल के दौरान प्लेटो पाइथागोरस के सिद्धांतों का ज्ञान पाने तथा दार्शनिकों का शासन देखने के लिए 387 ई.पू. इटली और सिसली गया| सिसली के सिराक्यूज राज्य में प्लेटो की भेंट दियोन (Dion) नामक अत्यंत सुसंस्कृत व्यक्ति तथा वहां के राजा दियोनिसियस प्रथम से हुई|

    • दियोनिसियस प्रथम दियोन की प्रेरणा से दार्शनिक शासक बनने को तैयार हो गया, लेकिन बाद में प्लेटो द्वारा उसके अन्याय और निरकुंश शासन की कड़ी आलोचना करने पर वह मुकर गया| 

    • दियोनिसियस प्रथम ने दियोन को निर्वासित कर दिया तथा पलेटो को दास के रूप में एजाइना के टापू पर बेच दिया| यहा से प्लेटो के पुराने मित्र अनीकैरिस ने प्लेटों को खरीदकर मुक्त कराया|

    • 367 ई.पू. में एक बार फिर दियोन के निमंत्रण पर प्लेटो सिराक्यूज गया| उनका उद्देश्य था कि स्वर्गीय राजा डायनोसियस के भतीजे और उत्तराधिकारी डायनोसियस द्वितीय को दार्शनिक राजा बनाना| लेकिन डायनोसियस ने प्लेटो के इस विचार का विरोध किया कि रेखागणित राज्य चलाने के शिल्प की कुंजी है, और फलस्वरुप प्लेटो को वापस लौटना पड़ा|

    • 361 ई.पू में दियोन के निमंत्रण तथा तारैंतम के शासक की प्रबल प्रेरणा से एक बार प्लेटो फिर से सिराक्यूज गये| लेकिन इस बार भी दार्शनिक शासक बनाने में असफल रहे|

    • 347 ई.पू 81 वर्ष की आयु में प्लेटो की मृत्यु हो गयी तथा दार्शनिकों को राजा और राजाओं को दार्शनिक बनाने वाला प्लेटो मृत्यु लोक में गमन कर गये|



    प्रमुख तथ्य-

    • प्लेटो को सबसे पहला व्यवस्थित राजनीतिक सिद्धांतकार माना जाता है|

    • प्लेटो राजनीतिक दर्शन, मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के प्रणेता माने जाते हैं|

    • प्लेटो दार्शनिक या नैतिक आदर्शवाद के प्रणेता माने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने इंद्रिय जनित भौतिक जगत से परे एक शाश्वत, सार्वभौमिक विश्व के विचार को ज्यादा वरीयता दी थी|

    • राजनीतिक दर्शन के प्रणेता- प्लेटो

    • राजनीतिक विज्ञान के प्रणेता या पिता- अरस्तु 

    • आधुनिक राजनीतिक चिंतन का जनक- मैक्यावली

    • वैज्ञानिक राजनीति के पिता- थॉमस हॉब्स

    • उपभोक्तावाद के जनक- थॉमस हॉब्स

    • वैज्ञानिक व्यक्तिवाद के पिता- हर्बट स्पेंसर 

    • वैज्ञानिक समाजवाद के पिता- कार्ल मार्क्स

    • राजनीतिक सिद्धांतों के पुनरुत्थान के प्रणेता- जॉन रॉल्स 

    • समकालीन राजनीतिक सिद्धांतों के प्रणेता- जॉन रॉल्स 



    प्लेटो की रचनाएं-

    • प्लेटो के ग्रंथों की संख्या 36 या 38 के आसपास मानी जाती, लेकिन इसमें प्रमाणिक ग्रंथ केवल 28 हैं|

    • प्लेटो के सभी प्रमाणिक ग्रंथों का बर्नेट द्वारा संपादित यूनानी संस्करण का 2662 पृष्ठो में ऑक्सफोर्ड द्वारा प्रकाशन किया गया है|

    • प्लेटो के सभी ग्रंथ संवाद या वार्तालाप शैली में लिखे गये हैं|

    • प्लेटो ने संवाद शैली को ‘The Science Of Super Reality’ कहा है|

    • संवाद शैली में होने के कारण प्लेटो की रचनाओं को संवाद भी कहा गया है| 

    • प्लेटो की रचनाओं में अपोलोजी ऑफ सोक्रेट्स शामिल है|

    • प्लेटो की प्रमुख रचनाओं को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है


    1. प्रारंभिक जीवन की रचना- (1)  अपोलोजी  (2)  क्रीटो (3) लैचिस  (4) लाइसिस (5) चार्मीडिस

    (6) एंथेफ्रो (7) हिप्याज माइनर (8) हिप्याज मेजर (9) प्रोटोगोरस (10) जार्जियास  (11) इयोन


    1. बीच के जीवन की रचना- (1) मीनो (2) फेडो(फाइदो) (3)  रिपब्लिक (4) सिंपोजियम (5)  फेडरास (6) यूथीडीमस (7) मिनिएक्शनस  (8) क्रेटीलस 


    1. अंत की रचना- (1) पारमिनिडेस (2) सोफिस्ट (3) स्टेटसमैन (4) टाइमयस (5) थेटीरस (6) क्रिटियास (7) फ़ैलेबस  (8) द लॉज 


    Note- स्टेट्समैन व लॉज सुकरात के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त है|


    • अपोलोजी व क्रीटो- ये सुकरात के जीवन-मृत्यु, सुकरात के विचारों से संबंधित है तथा इसमें व्यक्ति तथा राज्य के बीच संबंधों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार-विमर्श किया गया है|


    Note- अपोलोजी का हिंदी अर्थ क्षमा प्रार्थना है| अपोलोजी का गांधीजी द्वारा गुजराती भाषा में सत्यवान/सत्यवीर नाम से अनुवाद किया है| अपोलोजी सुकरात के मुकदमे का काल्पनिक और व्यंग्यात्मक वर्णन है|


    • क्रीटो- इसमें राजनीतिक जिम्मेदारी और अधिकार के प्रश्न पर विचार किया गया है| 

    • एंथेफ्रो- इसमें देवी पवित्रता की सेवा को पवित्र कार्य माना गया है, जो आत्मा को ऊपर ले जाती है|

    • प्रोटोगोरस- इसमें सुकरात के विपरीत सोफिस्ट प्रोटोगोरस के विचार प्रस्तुत किए हैं| लेसर तथा ग्रेटर हिप्याज में भी यही विषय जारी रखा गया|

    • सैवंथ लेटर (Seventh letter)- यह प्लेटो की आत्मकथा है|

    • चार्मीडीस तथा लैचिस- इन पुस्तकों का संबंध आत्म-नियंत्रण एवं साहस जैसे गुणों से है|

    • मीनो तथा प्रोटोगोरस- इनमें ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है| मीनो में गुण की शिक्षा पर जोर दिया गया है|

    • मिनिएक्शनस- इसमें क्रेटिलस के स्वर्ण युग की आलोचना की गई है|

    • फ़ैलेबस- इसमें नैतिकता तथा स्वच्छ जीवन की विशेषताओं पर बल दिया गया है|

    • सिंपोजियम- यह प्रेम (इरोस) व सौंदर्य पर आधारित है| टेनियस अटलांटिक नामक काल्पनिक महादेश में जीवन की उत्पत्ति पर विचार किया गया| यहां ईश्वर को एक ऐसी बुद्धिमतापूर्ण और प्रभावशाली शक्ति माना गया, जो विश्व में व्यवस्था कायम करती है| 

    • जार्जियास- इसमें प्लेटो ने अपनी ही अंतरात्मा पर विश्वास करने पर बल दिया है|

    • फाइदो- इसमें सुकरात की मृत्यु का मार्मिक दृश्य है, साथ ही प्रत्यय का सिद्धांत, आत्मा व उसकी अनश्वरता की चर्चा है|

    • चारमीडीस/ चरमाइड्स- इसमें आत्मज्ञान का विचार है, अर्थात सुकरात के कथन- ‘अपने आप को जानो’ पर विचार किया गया है|

    • परमिनीडेस/ परामिनाइडिस- इनमें प्लेटो ने अपने सिद्धांत ‘Theory of idea’ का पुनर्मूल्यांकन किया है|


    Note- प्लेटो के राजशास्त्र से संबंधित विचारों का विवरण उनकी तीन कृतियों रिपब्लिक, स्टेट्समैन और लॉज में सुस्पष्ट मिलता है| इनके अलावा क्रीटो में भी राजनीतिक सिद्धांतो का वर्णन मिलता है|



    राज्यशास्त्र से संबंधित पुस्तकें

    1. रिपब्लिक-

    1. तीन आत्माएं व तीन वर्गों का सिद्धांत

    2. दार्शनिक राजा का शासन

    3. आदर्श राज्य

    4. परिवार व संपत्ति का साम्यवाद

    5. शिक्षा का सिद्धांत

    6. न्याय सिद्धांत 


    • रिपब्लिक नैतिकता, पराभौतिकी, दर्शन और राजनीति के क्षेत्रों में प्लेटो के विचारों का मिश्रण था|


    1. द स्टेट्समैन-

    • राज्यों का वर्गीकरण

    • प्लेटो ने स्टेट्समैन (राजमर्मज्ञ) की परिभाषा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की, जो बिना कानून के और बिना अपनी प्रजा की सहमति के शासन कर सकता था, क्योंकि वह जानता था कि उनके लिए सबसे अच्छा क्या है|

    • स्टेट्समैन को परंपराओं, रूढ़ियों तथा अलिखित दैवी नियमों का ज्ञान होता है, जिसके आधार पर वह शासन करता है|

    • लेकिन इसमें व्यक्तिगत तानाशाही के विपरीत कानून के शासन का पक्ष लिया गया| इसमें कहा गया कि जहां सार्वभौमिक कानून हो वहां एक या कुछ व्यक्तियों के निरंकुश शासन के बजाय सार्वभौम जनतंत्र बेहतर होता है|


    1. द लॉज-

    • इसमें मुख्य प्रवक्ता सुकरात नहीं है|

    • विधि के शासन का वर्णन 

    • नैश परिषद (नोक्टरल काउंसिल) का उल्लेख है|

    • यह प्लेटो की सबसे बड़ी रचना व अंतिम रचना थी|

    • इसके अनुसार मिश्रित सविधान सबसे अच्छा था, क्योंकि वह निरंकुशता और आजादी के चरम बिन्दुओ के बीच समन्वय स्थापित करता था| 


    Note- 

    • प्लेटो ने रिपब्लिक में शासक को गडरिये, जबकि स्टेट्समैन में शासक को चिकित्सक, नाविक, बुनकर की संज्ञा दी है|

    • रिपब्लिक में राज्य का शासन दार्शनिक राजा करता है, स्टेट्समैन में एक मिश्रित राज्य है जो राजमर्मज्ञों द्वारा चलाया जाता है, लाज में एक वास्तविक राज्य है जो नियमों और कानूनों द्वारा चलाया जाता है| 

    • रिपब्लिक के अनुसार दार्शनिक शासन में बुद्धि, साहस, संयम व न्याय के सदगुण है, स्टेट्समैन के अनुसार शासक को प्रथाओं, परंपराओं, रीति-रिवाजो तथा अलिखित दैवी नियमों का ज्ञान है, लॉज़ के अनुसार शासक को लिखित नियमों व कानुनों का ज्ञान है|


    Note- Republic को सामान्यतः यूटोपियन (काल्पनिक) पुस्तक कहा जाता है| 


    ये तीनों पुस्तक रिपब्लिक पुस्तक से प्रभावित हैं-

    1. Utopia- थामस मुर 

    2. The city of son- फ्रातोमारसो कंपनेला 

    3. The New Atlantis- फ्रांसिस बेकन 


    • भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने रिपब्लिक का रियासत के नाम से उर्दू में अनुवाद किया है|



    प्लेटो की पुस्तकों के पात्र-

    1. न्याय पर चर्चा करने वाले पात्र- सिफालस, पोलिमार्कस, थ्रेसिमेक्स, ग्लुकोन व एंडीमैटस

    2. आत्म ज्ञान को परिभाषित करने वाला पात्र- चारमाइड्स

    3. मित्रता के संबंध में चर्चा करने वाला पात्र- लाइसिस

    4. साहस का अर्थ बताने वाला पात्र - लिच्ज



    प्लेटो की अध्ययन पद्धति या अध्ययन शैली

    प्लेटो की निम्न अध्ययन पद्धतियां हैं-

    1. संवाद/ वार्तालाप/ द्वंदात्मक पद्धति (Dialectical method)-

    • इस पद्धति में प्रश्नोत्तर, आपसी तर्क-वितर्क, द्वंद, संवाद के माध्यम से सत्य की खोज की जाती है| प्लेटो ने सुकरात के माध्यम से प्रश्नोत्तर करके सत्य की खोज की है|

    • इसी द्वंदात्मक पद्धति का बाद में हीगल तथा कार्ल मार्क्स ने भी प्रयोग किया था|

    • प्लेटो ने इस शैली को अपने गुरु सुकरात से ग्रहण किया था|

    • प्लेटो ने द्वंदात्मक पद्धति का प्रयोग तीन उद्देश्यों से किया है- 

    1. सत्य की खोज हेतु 

    2. सत्य की अभिव्यक्ति व प्रचार हेतु

    3. सत्य की परिभाषा हेतु


    1. निगमनात्मक पद्धति (Deductive method)-

    • इस पद्धति को दार्शनिक पद्धति कहा जाता है| इस पद्धति में निष्कर्ष पहले ही निश्चित कर लिए जाते हैं और फिर उन्हें विशिष्ट तथ्यों से जोड़ा जाता है|

    • इस पद्धति में सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ा जाता है|

    • प्लेटो ने सुशासन के लिए कुछ सिद्धांतों को आधार रूप में स्वीकार किया और उनके आधार पर उसने रिपब्लिक में आदर्श राज्य का चित्रण किया है|

    • इसको रचनात्मक पद्धति भी कहते है, जिसमें नये विचारों की रचना होती है, जो बौद्धिक दृष्टि से सृजनात्मक है|

    • इसको मानकपरकवादी (Normative) पद्धति भी कहते हैं|


    1. सादृश्यात्मक (Analogy method) व ऐतिहासिक पद्धति -

    • ऐतिहासिक पद्धति में अपने सिद्धांतों की पुष्टि ऐतिहासिक दृष्टांतो तथा पौराणिक कथाओं से की जाती है|

    • प्लेटो ने अपने सिद्धांतों की पुष्टि प्रकृति या कलाओं के दृष्टांतो से की है|

    • प्लेटो ने राजनीति को कला माना है|

    • सादृश्यता को साम्यानुमान, अनुरूपता (Analogy) पद्धति भी कहते हैं|  

    • इसमें प्लेटो एक तत्व की दूसरे तत्व से समानता बताकर तर्क करता है|

    • जैसे-

    1. रखवाली कार्य में कुत्ता-कुत्तिया में भेद नहीं होता तो शासन कार्य में स्त्री पुरुष भेद क्यों?

    2. रिपब्लिक में वर्णित तीन वर्गों की साम्यता या तुलना निम्न प्रकार से की है-

    1. उत्पादक वर्ग की साम्यता मानव पशु व तांबा से की है|

    2. सैन्य वर्ग की साम्यता प्रहरी कुत्ता (Watchdog) व चांदी से की है|

    3. दार्शनिक शासक की साम्यता गडरिया (Shepherd) व स्वर्ण से की है| 


    • Note- जहां रिपब्लिक में निगमनात्मक पद्धति व साम्यानुमान पद्धति का ज्यादा प्रयोग है, वही स्टेट्समैन व लॉज में ऐतिहासिक पद्धति का|


    1. कल्पनावादी दार्शनिक पद्धति-

    • प्लेटो की अध्ययन पद्धति को कल्पनावादी दार्शनिक पद्धति भी कहा जाता है|

    • पाश्चात्य दार्शनिकों के कल्पनावादियों में प्लेटो का स्थान प्रथम व सर्वोच्च है|


    1. सोद्देश्यात्मक व विश्लेषणात्मक पद्धति (Teleology method)-

    • इसको कार्यकारण पद्धति भी कहते हैं|

    • प्लेटो का Theory of ideas या Theory of forms (विचारों/ आकार/ प्रत्ययों का सिद्धांत) सोद्देश्यात्मक पद्धति पर आधारित है|


    • नैटलशिप “प्लेटो की पद्धति को न तो आगमनात्मक पद्धति और न निगमनात्मक पद्धति कहा जा सकता है, यह तो एक प्रकार की रचनात्मक पद्धति है| इसमें सिद्धांत का निर्माण और उसका व्यवहार में प्रयोग साथ-साथ चलता है|”



    प्लेटो पर प्रभाव

    • प्लेटो पर सुकरात, पाइथागोरस, हेराक्लिट्स, पैरामिनाइडस का प्रभाव पड़ा है|

    • सुकरात का प्रभाव प्लेटों पर सर्वाधिक पड़ा है| प्लेटो के सभी संवादों में सुकरात नायक है (केवल लॉज को छोड़कर)

    • इसलिए मैक्सी ने लिखा है कि “प्लेटो के दिल और दिमाग ने अपने शिक्षक के विचारों और भावों को पूर्ण रूप से आत्मसात किया है|”


    • सुकरात का प्रभाव

    • सुकरात के प्रभाव से ही प्लेटो ने विश्व की आर्थिक व्याख्या के बजाय टेलियोलॉजिकल (सोद्देश्यात्मक) व्याख्या की है, और राजनीतिक प्रक्रियाओं को नैतिक सीमाओं के अंदर रखा है|


    • सुकरात का निम्न प्रभाव है-

    1. सद्गुण ही ज्ञान है (Virtue is Knowledge)-

    • सुकरात सद्गुण और ज्ञान को अभिन्न मानता है| उसी प्रकार प्लेटो की रिपब्लिक का केंद्रीय विचार भी यह है कि “सद्गुण ही ज्ञान है|” अर्थात सत्य अर्थात सद्गुण को ज्ञान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है|

    • “सद्गुण ही ज्ञान है और अप्रशिक्षित जीवन जीने लायक नहीं है” सुकरात के इस विचार को स्वीकार करते हुए प्लेटो ने तर्क दिया कि “गलत कार्यों की जड़े अज्ञानता में है, जबकि ज्ञान सही कार्य और खुशी की ओर ले जाता है|”


    1. सद्गुण का स्वरूप

    • सद्गुण के स्वरूप के संबंध में भी प्लेटो सुकरात से प्रभावित था| सद्गुण के लिए यूनानी शब्द अरैती (Arete) है, जिसका हिंदी में अर्थ है- ‘उत्कृष्टता’

    • सुकरात की तरह प्लेटो भी मानता है कि प्रत्येक वस्तु का सदगुण, वह गुण है, जिसके लिए उसका जन्म हुआ है| जैसे- चाकू का सद्गुण काटना है, शासक का सद्गुण शासन करना है|


    • प्लेटो के अनुसार सद्गुणी व्यक्ति के 4 गुण होने चाहिए-

    1. विवेक  (2) साहस (3) संयम (4) न्याय

    • यह चारों सद्गुण संयुक्त रूप से मानवीय सदगुण अथवा उत्कृष्टता (Goodness) का निर्माण करते हैं


    1. शासन (राजनीति) एक कला है-

    • सुकरात से प्रभावित होकर प्लेटो ने शासन संचालन को डॉक्टरी, नौ-चालन की भांति एक कला माना है|

    • प्लेटो के अनुसार जनता बीमार रोगी के समान होती है, शासक एक डॉक्टर के समान होता है| जिस प्रकार डॉक्टर को मरीज ठीक करने के लिए कड़वी दवाइयां देनी पड़ती हैं ठीक उसी तरह आवश्यकता पढ़ने पर शासक को भी कठोर एवं निर्दयतापूर्ण कदम उठाने पड़ते हैं| 


    1. सुकरात के दर्शन के आधार पर बिंदु-

    • सद्गुण ही ज्ञान है, अच्छाई का अर्थ विवेक है, शासन एक कला है, सभी राजनीतिज्ञों में शासन करने की क्षमता नहीं होती, पूर्ण शिक्षित ज्ञानी और गुणी व्यक्ति ही शासन तंत्र का सफल संचालन कर सकता है| प्लेटो ने सुकरात के इन सभी दार्शनिक सिद्धांतों को अपने चिंतन का आधार बनाया|


    1. प्लेटो की दार्शनिक पद्धति का आधार सुकरात का सत्ता सिद्धांत-

    • सुकरात के सत्ता सिद्धांत का अर्थ है कि यथार्थता (Reality) वस्तुओं के विचारों में निहित होती है, यथार्थाता पूर्ण स्थायी एवं अपरिवर्तनशील सत्ता है, जो इंद्रियों के अनुभव से प्राप्त होती है| प्लेटो ने इस विचार को अपने राजनीतिक चिंतन का केंद्र माना है|


    • बर्नेट “प्लेटो का दर्शन सुकरात के ज्ञान के जीवाणुओं का वह विकल्प है, जो प्लेटोनिक निष्कर्षों के रूप में रिपब्लिक में उद्भूत हुआ है|”

    • बार्कर “प्लेटो ने अपने सिद्धांतों का बीज सुकरात से ग्रहण किया है तथापि प्लेटो के सिद्धांत में उन बीजों का अंकुरण विभिन्न रूपों में हुआ है|” 

    • बार्कर “प्लेटो की रिपब्लिक सुकरात की मान्यताओं से तो आरंभ होती है, लेकिन उसकी समाप्ति प्लेटो के निष्कर्ष से होती है|”


    • पाइथागोरस का प्रभाव

    • प्लेटो ने पाइथागोरस से निम्न ग्रहण किया है-

    1. तीन वर्गों का सिद्धांत प्लेटो ने पाइथागोरस से ग्रहण किया है| पाइथागोरस ने राज्य में 3 वर्ग बताए है- बुद्धि प्रेमी, सम्मान प्रेमी, धन प्रेमी|

    2. दार्शनिक शासक का विचार

    3. पारलौकिक विश्व में विश्वास

    4. आत्मा की अमरता का सिद्धांत

    5. तर्क/ विवेकता का विचार

    6. गणित का महत्व

    7. स्त्री-पुरुष समानता का विचार

    8. आदर्श राज्य का विचार- पाइथागोरस ने एक सभा की स्थापना की थी, जिसके सदस्य विशेष धर्म और व्यवहार के नैतिक मानदंड से संबंधित थे| वास्तव में रिपब्लिक में प्लेटो का आदर्श राज्य इसी समाज के अनुरूप था| 


    • हेराक्लिट्स व पैरामिनाइडस-

    • प्लेटो के ‘Theory of Ideas’ (प्रत्ययो का सिद्धांत) पर इन दोनों का प्रभाव है|

    • हेराक्लिट्स से प्लेटो ने ग्रहण किया कि इंद्रियों को प्रभावित करने वाले इस विश्व में कुछ भी स्थाई नहीं है| वस्तुएं लगातार बदलती रहती हैं और नए रूप तथा आकर-प्रकार ग्रहण करती रहती है|

    • पैरामिनाइडस के अनुसार कुछ भी परिवर्तनशील नहीं था| पैरामिनाइडस ने इंद्रियों को प्रभावित करने वाली वस्तुओं के विचार को भ्रम बताया अर्थात इनका अस्तित्व ही नहीं था|



    प्लेटो का प्रत्यय/ आकार का सिद्धांत
    (Theory of ideas/ Form or Doctrine of Idea/ form)

    • प्लेटो के दर्शन का आधार उसका प्रत्यय/ विचार/ आकार का सिद्धांत है|

    • इस सिद्धांत को समझाने के लिए प्लेटो गुफा का रूपक या गुफा का दृष्टांत नामक मनगढ़त कथा का उपयोग करता है|

    • गुफा का रूपक का उल्लेख प्लेटो की रिपब्लिक पुस्तक में मिलता है|

    • इस रूपक कथा में सुकरात, प्लेटो के भाई ग्लॉकान को आत्मज्ञान के बारे में समझाता है|


    रूपक कथा- सुकरात ग्लॉकान से कहता है कि एक ऐसी गुफा की कल्पना करो, जो भूमि के अंदर बनी हो, जिसके द्वार से प्रकाश अंदर जाता हो| बचपन से ही इसमें कुछ मनुष्य को बेड़ियों से कैद कर दिया जाये, जो हिल-ढुल ना सके केवल सामने की दीवार ही देख सके| उन मनुष्यों की पीठ की तरफ गुफा का दरवाजा हो तथा दरवाजे पर एक रास्ता है जहां से विभिन्न मनुष्य, पशु आदि गुजरते हैं| जैसे ही मनुष्य या पशु रास्ते से गुजरता है तो बाहर के प्रकाश की वजह से उसकी परछाई दीवार पर बनती है|


    इस कथा से निम्न तथ्य स्पष्ट होते हैं-

    1. भीतरी आंखें (Inward Eyes)-

    • गुफा में कैद मनुष्य ने आज तक सिर्फ परछाई ही देखी है, अतः वे परछाइयों को ही सत्य मान लेते हैं|

    • लेकिन इनमें से किसी मनुष्य को मुक्त कर बाहर लाया जाए तो उसको वास्तविक सत्य का ज्ञान होता है और वह अब परछाई को नहीं वास्तविक वस्तुओं को देख रहा है|

    • अर्थात अब उसकी भीतरी आंखें खुल गयी हैं, उसको वास्तविक सत्य का ज्ञान हो गया है|


    1. आत्मा में परिवर्तन-

    • भीतरी आंखें खुलने से उस मुक्त मानव की आत्मा में परिवर्तन आ गया है| अब उसकी आत्मा प्रकाशवान हो गई है|

    • प्लेटो के लिए ज्ञान एक कल्पना का प्रतिनिधित्व करता है, जो दिखावे के विश्व से वास्तविक विश्व की ओर हमें ले जाता है| इस प्रक्रिया को ‘आत्मा का परिवर्तन’ बताया गया है|


    1. प्रतिच्छाया-

    • प्रत्येक मनुष्य उस बंदीग्रह (गुफा) के मनुष्य के समान है, जो नाशवान भौतिक जगत को सत्य मान बैठे है, इंद्रिय सुख को सर्वोच्च समझ रहे है| जबकि आत्मज्ञानी व सद्गुणी व्यक्ति के लिए इंद्रिय/ भौतिक जगत प्रतिच्छाया मात्र है| 


    • प्लेटो ने जगत के दो प्रकार बताए है

    1. विचार/ आकार/ प्रत्यय जगत/ बौद्धिक विश्व (Ideas/Form)- भारतीय दर्शन में इसे आत्मा कहते है| 

    2. भौतिक/ इंद्रिय जगत/ संवेदनाओ का विश्व 


    • प्लेटो के अनुसार भौतिक जगत, प्रत्ययो (ideas) की प्रतिच्छाया है| भौतिक जगत नाशवान है, जबकि प्रत्यय/ विचार का कभी नाश (समाप्त) नहीं होता है|

    • जब मनुष्य की भीतरी आंखें खुलेगी उसको वास्तविक ज्ञान प्राप्त होगा तो उसको भौतिक जगत झूठा व अस्थायी लगेगा| 

    • टीमियास ग्रंथ में प्लेटो बताते हैं कि संवेदनाओ के विश्व का निर्माण एक रचनाकार डेजी अर्ज करता है, जो विचारों की दुनिया और पदार्थ को साथ लाता है| 


    1. विभाजित रेखा-

    • भौतिक जगत व प्रत्यय जगत को अलग-अलग पहचानना|

    • ज्ञानी व सद्गुणी व्यक्ति भौतिक जगत व प्रत्यय जगत को अलग-अलग पहचान सकता है, उनके मध्य विभाजन रेखा खींच सकता है|


    1. सद्गुण ही ज्ञान है-

    • इस सिद्धांत का आधार “सदगुण ही ज्ञान है|”


    • गुफा के रूपक का सार यह है कि उत्पादक वर्ग गुफा में कैद मानव है, अतः शासन का कार्यभार ज्ञानवान दार्शनिक को संभालना चाहिए| अगर अज्ञानी व असद्गुणी मनुष्यों को सत्ता सौंप दी जाये तो वे सत्ता संघर्ष में पागल हो जाएंगे|

    • सुकरात ग्लाकॉन से कहता है कि “जिस राज्य में शासक, शासन करने को सर्वथा अनिच्छुक हो, वहां का शासन सदैव सर्वोत्तम होता है तथा जिस राज्य में शासक अत्यंत सत्तालोलुप होते है, वहां का शासन सबसे निकृष्ट होता है|”

    • हैडिगार के अनुसार “गुफा के प्रतीक के सहारे प्लेटो शिक्षा के सार और अस्तित्व के अर्थ को प्रस्तुत करते हैं|” 

    • प्लेटो ने अपने इस दर्शन द्वारा ग्रीक (यूनानी) दर्शन को चरम पर पहुंचा दिया, अतः उसे पूर्ण ग्रीक (Complete greek) कहा जाता है|


    • Note- प्लेटो ज्ञानार्जन के निम्न तरीके बताता है-

    1. मस्तिष्क के कार्य

    2. केव (गुफा) का उदाहरण

    3. विभाजन रेखा का उदाहरण

    4. रूपों या विचारों का सिद्धांत


    प्रत्यय सिद्धांत में सेब का दृष्टांत-

    • सेब कई प्रकार के होते है, सभी का विकास और क्षय विभिन्न रूपों में होता है|

    • लेकिन प्लेटो एक आदर्श सेब के कारकों को परिभाषित करता है और इन कारकों को प्लेटो ने सेब का वास्तविक रूप (Apple- ness) कहा है|

    • हम जिन सेबो को जानते है वह असली रूप की नकल है, इसलिए अपूर्ण और परिवर्तनशील है| इसलिए भौतिक दुनिया में आदर्श सेब जैसी कोई चीज नहीं है| आदर्श सेब तो विचार/ प्रत्यय जगत में है|



    प्लेटो की महानतम रचना- रिपब्लिक

    • रिपब्लिक प्लेटो की सभी रचनाओं में महानतम व सर्वश्रेष्ठ कृति है|

    • रिपब्लिक की रचना प्लेटो ने 40 वर्ष की अवस्था में अपने विचार परिपक्व व प्रोढ़ होने पर की थी| 

    • आकार की दृष्टि से रिपब्लिक प्लेटो के सभी ग्रंथों में दूसरा सबसे बड़ा ग्रंथ है, जबकि सबसे बड़ा ग्रंथ द लॉज है|

    • प्लेटो ने Republic को यूनानी भाषा में Politea (मूल नाम) नाम दिया था, जिसका तात्पर्य है राज्य की शासन व्यवस्था एवं सविधान|

    • रिपब्लिक का हिंदी पर्याय गणराज्य होता है| लेकिन यहा ध्यान देने की यह बात है कि Republic में राज्य की आदर्श व्यवस्था का उल्लेख है न कि उसके लैटिन नाम रिपब्लिक से सूचित होने वाले गणराज्यों की व्यवस्था का|

    • प्लेटो का यह ग्रंथ विचारों की विविधता एवं संवाद शैली की दृष्टि से अनुपम कृति है, इसमें प्लेटो की नाटकीय शैली, कवित्व और कल्पना की उड़ान का अपूर्व रूप देखने को मिलता है|

    • रिपब्लिक का उपशीर्षक ‘कनसर्निंग ऑफ जस्टिस’ या न्याय प्रबंध है|

    • इसमें राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, अध्यात्मिक, शैक्षणिक आदि समस्याओं की विवेचना की गई है|

    • Republic पुस्तक में प्लेटो के ‘न्याय सिद्धांत’, ‘शिक्षा सिद्धांत’, ‘साम्यवाद सिद्धांत’, ‘आदर्श राज्य’, ‘दार्शनिक शासक’, ‘राज्यों के उत्थान व पतन की चक्रात्मक व्याख्या’, ‘मानव के कर्मानुसार सामाजिक व राजनीतिक स्थिति का’, इतिहास के दर्शन का वर्णन है|

    • रिपब्लिक का केंद्रीय विषय न्याय व अच्छे मनुष्य और अच्छे जीवन की समस्याओं पर विचार करना है|


    • विल डयूरैन्ट/दुरांतो “इस ग्रंथ में प्लेटो ने आध्यात्मिक शास्त्र, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र, राजनीति शास्त्र और कला आदि सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है|”

    • बेंजामिन जावेट “प्लेटो का समस्त चिंतन और रचनाएं रिपब्लिक के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं|” 

    • सेबाइन “रिपब्लिक का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है| यह किसी एक प्रकार का शोध प्रबंध नहीं है और न ही यह राजनीति, नीति शास्त्र, अर्थशास्त्र या मनोविज्ञान इसमें से किसी एक का अंग है| इसमें सब कुछ है, इसमें कला, शिक्षा और दर्शन को भी स्थान दिया गया है| Republic की विषय वस्तु इतनी व्यापक है कि वह संपूर्ण मानव जीवन पर विचार करती है|”

    • बार्कर- बार्कर रिपब्लिक को व्यक्ति के समग्र जीवन का दर्शन कहते हैं|

    • बेंजामिन जावेट “प्लेटो समाज के यथार्थ रूप की समीक्षा करता है तथा उसकी रचना का आधार गहरी व्यावहारिक सूझ-बूझ है|”

    • बार्कर “यह कहना आसान है कि रिपब्लिक काल्पनिक है, बादलों में एक नगर है, सूर्यास्त के दृश्य के समान है, जो सांय एक घंटे के लिए रहता है तथा तत्पश्चात अंधकार में विलीन हो जाता है| परंतु रिपब्लिक कहीं का कोई नगर नहीं है, यह यथार्थ परिस्थितियों पर आधारित है, यह वास्तविक जीवन को मोड़ने या कम से कम उसे प्रभावित करने के लिए है|”

    • रूसो “रिपब्लिक राजनीति शास्त्र का ग्रंथ न होकर शिक्षा शास्त्र पर लिखा गया एक सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है|”

    • हजरत महल “सब पुस्तकालय जला दो, क्योंकि इसमें सबका ज्ञान आ गया है|”


    • रिपब्लिक में कुल 10 अध्याय या 10 बुक हैं, जिनको विषय-वस्तु की दृष्टि से 5 खंडों में विभाजित किया जा सकता है-

    1. Book- 1 - इसमें मानव जीवन, न्याय की प्रकृति, नैतिकता के अर्थ समझाएं गए हैं|

    2. Book- 2 से 4- इसमें ‘राज्य के संगठन, शिक्षा पद्धति, आदर्श मानव समाज की रूपरेखा, मानव स्वभाव के तीन तत्वों तथा मानव समाज के तीनों वर्गों का समाज में स्थान’ का वर्णन है|

    3. Book- 5 से 7- इस भाग का मुख्य विषय दर्शन है|

    4. Book- 8 से 9- इसमें मनुष्यों तथा राज्य के विकृत हो जाने पर जो अव्यवस्था उत्पन्न होती है, उस पर विचार व्यक्त किए गए हैं|

    5. Book- 10- इसके दो भाग हैं

    1. एक में दर्शन से कला का संबंध बताया है|

    2. दूसरे भाग में आत्मा की क्षमता पर विचार-विमर्श मिलता है|


    रिपब्लिक की रचना के उद्देश्य-

    • प्लेटो के द्वारा रिपब्लिक की रचना करने के निम्न उद्देश्य हैं-


    1. सोफिस्ट विचारको द्वारा प्रतिपादित आत्मतृप्ति के सिद्धांत को गलत और झूठा सिद्ध करना-

    • जिसे भ्रष्टाचारी राजतंत्र व जनतंत्र दोनों प्रकार के राज्यों ने अपना लिया था|

    • प्लेटो ने इस निरकुंश व्यक्तिवाद का विरोध किया तथा उसके स्थान पर राज्य के जैविक रूप का प्रतिपादन किया| 

    • प्लेटो एक ऐसा राज्य स्थापित करना चाहते थे जहां अमीर, गरीब का व गरीब, अमीर का शोषण ना कर सके| 

    • जैसा कि बार्कर ने लिखा है कि “प्लेटो के राजदर्शन का लक्ष्य एक ऐसे सुदृढ़ और निष्पक्ष शासन की स्थापना करना था जिसमें न अमीर, गरीब पर और न गरीब, अमीर पर शासन कर सके, वरन जो दोनों के ऊपर हो या कम से कम जिसमें दोनों संयुक्त रूप से भागीदार हो|”

    • राज्य के जैविक रूप का अर्थ है कि व्यक्ति राज्य में रहकर ही विकास कर सकता है, राज्य और व्यक्ति में कोई अंतर्विरोध नहीं है, राज्य और व्यक्ति में वही संबंध होता है जैसा कि शरीर के अंगो का शरीर के साथ|


    1. हिंसात्मक व्यक्तिवादी प्रवृत्ति तथा अज्ञान से उद्भूत ग्रहवाद का विरोध करना-

    • जिसके द्वारा धनिकतंत्र में अमीर तथा जनतंत्र में गरीब अन्य वर्गों का शोषण कर रहा था|


    1. तत्कालीन ग्रीक (यूनान) में प्रचलित लॉटरी द्वारा नियुक्ति की व्यवस्था का उन्मूलन करना-

    • इस व्यवस्था में विभिन्न पदों पर नियुक्तियां लॉटरी के द्वारा की जाती थी तथा प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक पद के योग्य समझा जाता था| 

    • इस व्यवस्था के कारण एथेंस का जनतंत्र अयोग्य व्यक्तियों के हाथों की कठपुतली बन गया था| 

    • प्लेटो ने इस प्रकार के जनतंत्र को अयोग्य व मूर्खों का शासन कहा है| 

    • प्लेटो के अनुसार शासन एक कला है जिसके लिए योग्यता और प्रशिक्षण का होना अनिवार्य है, जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार कार्य करता है| इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्लेटो ने रिपब्लिक में दो साधन बताएं हैं (1) विशेषीकरण  (2) एकीकरण


    1. विशेषीकरण- राज्य की जनसंख्या का योग्यता के आधार पर तीन वर्गों में विभाजन- (a) उत्पादक वर्ग  (b) सैनिक वर्ग  (c) शासक वर्ग

    2. एकीकरण- तीनों के कार्यों में समन्वय करना


    1. तत्कालीन यूनानी नगर राज्यों में विद्यमान कुशासन का अंत करना-

    • तत्कालीन यूनानी नगर-राज्यों में शासक वर्ग द्वारा शासन शक्ति का प्रयोग अपने स्वार्थ की पूर्ति में करने के कारण शासक व शासितो में निरंतर संघर्ष चलता रहता है, जिसे क्रॉसमैन ने वर्ग संघर्ष कहा है|


    • उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि रिपब्लिक तत्कालीन नगर-राज्यों में विद्यमान त्रुटियों को दूर करने के उद्देश्य से लिखी गयी थी|


    • नैटलशिप “रिपब्लिक को एक दार्शनिक रचना नहीं मानना चाहिए, वरन इसे राजनीतिज्ञ तथा सामाजिक सुधार की एक पुस्तक समझना चाहिए|”




    रिपब्लिक में न्याय सिद्धांत
    (Theory of Justice in Republic)


    • प्लेटो के आदर्श राज्य के चार प्रमुख गुण हैं- बुद्धि, साहस, अनुशासन और न्याय| 

    • न्याय का सिद्धांत प्लेटो के राजनीतिक चिंतन का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है|

    • प्लेटो के ग्रंथ Republic का दूसरा नाम Concerning of Justice है, जिसका अर्थ है ‘न्याय से संबंधित’|

    • ग्रीक (यूनानी) भाषा में न्याय का पर्यायवाची शब्द Dikaiosyne (डिकायोसिनी) है, जिसका अर्थ है ‘न्याय प्रबंध’|

    • प्लेटो की न्याय की अवधारणा आधुनिक न्याय की तरह कानूनी नहीं है, बल्कि नैतिक है| प्लेटो के अनुसार न्याय Righteousness (नैतिकता या धार्मिकता) है|

    • प्लेटो के अनुसार न्याय अच्छाई का विचार (Form of the good) है|

    • न्याय का सिद्धांत या सही व्यवहार या नैतिकता रिपब्लिक का केंद्रीय प्रश्न है| प्लेटो के अनुसार न्याय एक ऐसी औषधि है, जो समाज से अशांति, अव्यवस्था, कर्तव्य विमुखता तथा बुद्धिहीनता आदि व्याधियों को (जो एक आदर्श समाज के स्वास्थ्य के लिए घातक है) को दूर करती है|

    • प्लेटो ने जिस आदर्श राज्य की रूपरेखा तैयार की, उसका प्रमुख आधार न्याय ही है|

    • प्लेटो अपने आदर्श राज्य को एक ऐसे न्याय के सिद्धांत पर आधारित करना चाहता था, जो राज्य को एकता प्रदान करें, नागरिकों को घोर व्यक्तिवाद के प्रभाव से बचाएं, कार्यों के विशिष्टीकरण द्वारा असक्षमता को दूर करें तथा राज्य को स्थिरता प्रदान करें|

    • प्लेटो के न्याय सिद्धांत का उद्देश्य उन सभी न्याय की झूठे विचारों को समाप्त करना था, जिन्हें सोफिस्टो ने फैला रखा था तथा सच्ची न्याय की धारणा को प्रतिष्ठित करना था|

    • बार्कर “चाहे प्लेटो सोफिस्ट वर्ग की धारणाओं का विरोध कर रहा हो या समाज की विद्यमान व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयत्नशील हो, न्याय प्लेटो के विचार का मूलाधार रहा है|”

    • ईबनस्टीन “प्लेटो के न्याय संबंधी विवेचन में उसके राजनीतिक दर्शन के समस्त तत्व शामिल हैं|”

    • गैटल “न्याय की धारणा प्लेटो के राजनीति दर्शन की पराकाष्ठा है|”

    • बार्कर “प्लेटो का न्याय एक कानूनी विषय नहीं है, न ही कानूनी अधिकार व कर्तव्यों की बाहरी योजना से संबंधित है| यह कानून के क्षेत्र में नहीं आता है, अपितु इसका संबंध सामाजिक नैतिकता से है|”

    • रिपब्लिक का आरंभ व अंत न्याय के वास्तविक स्वरूप की मीमांसा से होता है|

    • प्लेटो न्याय की स्थापना हेतु आदर्श राज्य की व्यवस्था करता है, साम्यवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है तथा नई शिक्षा व्यवस्था द्वारा ज्ञानी, विशेषज्ञ, सुशिक्षित दार्शनिक शासक के निर्माण करने की चर्चा करता है|


    प्लेटो के न्याय व आधुनिक न्याय में अंतर है, जिसके संबंध में कुछ विद्वानों के मत निम्न है-

    • सेबाइन “रिपब्लिक में राज्य के सिद्धांत की पराकाष्ठा न्याय सम्बन्धी सिद्धांत में है| न्याय वह सूत्र है जो राज्य को बांधे रखता है|” 

    • M.B फोस्टर “न्याय शब्द ग्रीक शब्द डिकायोसिनी (dikaiosyne) का अनुवाद है| इस डिकायोसिनी शब्द का क्षेत्र अंग्रेजी के न्याय (Justice) शब्द से अधिक व्यापक है| प्लेटो के लिए न्याय का अर्थ नैतिकता है| यह न्याय का रचनाप्रकल्पमुलक सिद्धांत है|”


    • प्लेटो ने अपने ग्रंथ रिपब्लिक में न्याय के बारे में इतना विस्तृत विवेचन किया है कि रिपब्लिक में अनेक शाखाओं का समावेश हो गया|

    • विल दुरांतो/डयूरेंट ने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ फिलॉसोफी’(1926) में लिखा है कि “रिपब्लिक अपने आप में पूर्ण प्रबंध है, जिसे प्लेटो ने एक ग्रंथ का रूप दे दिया है| इसमें हमें उनकी तत्वमीमांसा, ईश्वरमीमांसा, नीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, कला सिद्धांत के एक साथ दर्शन होते हैं|”


    • न्याय को परिभाषित करते हुए प्लेटो लिखता है कि “प्रत्येक व्यक्ति को वह उपलब्ध होना चाहिए, जो उसको प्राप्य है|” अर्थात व्यक्ति को उसकी योग्यता व क्षमता के अनुसार प्राप्त होना चाहिए|


    • प्लेटो न्याय की अवधारणा का प्रतिपादन करने से पहले अपने समय प्रचालित न्याय से संबंधित 3 सिद्धांतों का खंडन करता है|

    • प्लेटो निम्न तीन न्याय सिद्धांतों का खंडन करता है-

    1. न्याय का परंपरावादी सिद्धांत

    2. न्याय का उग्रवादी सिद्धांत

    3. न्याय का व्यवहारवादी सिद्धांत

    •  ये तीनों सिद्धांत सोफिस्ट को देन थे| अर्थात प्लेटो सोफीस्टो का विरोधी था| 


    सोफीस्ट कौन? 

    • 500 ई. पूर्व जब एथेंस में लोकतंत्र (पेराक्लीज़ द्वारा) की स्थापना हुई, तब वहां विचार-स्वतंत्रता के कारण सोफिस्ट विचारक पैदा हुए|

    • सोफिस्ट भ्रमणशील शिक्षक थे, जिन्हें आधे पत्रकार, आधे प्रोफेसर व विचारक कहा जाता था|

    • ये गैर यूनानी थे, जिन्हें मेटिक्स कहा जाता था| यूनानी स्वयं को हेलेनिक कहते थे|

    • सोफिस्ट सुकरातवादी परंपरा का विरोधी स्कूल था| 

    • इन्हें सामान्यत: जनतंत्र और सामाजिक परिवर्तन का संस्थापक माना गया है| 

    • सोफिस्ट प्रोफेसर धन के बदले एथेंस के युवाओं को वाकपटुता व तर्क विद्या सिखाते थे|

    • प्रोटागोरस, जार्जियास व थ्रेसिमेक्स आदि प्रसिद्ध सोफिस्ट है|

    • सोफिस्ट व्यक्तिवादी, मानवतावादी, भौतिकवादी, शंकावादी, अनिश्वरवादी व सापेक्षवादी थे|

    • सोफिस्ट राज्य को एक कृत्रिम संस्था मानते हैं|

    • ये कानून व न्याय को राज्य की देन मानते है|


    • Note- 

    • प्लेटो इनके न्याय को न्याय नहीं मानता है, बल्कि राय व विश्वास मानता है|

    • प्लेटो के मत में “सोफिस्ट बिकनेलायक आध्यात्मिक सामानों के शिक्षक हैं|”

    • प्लेटो ने सोफिस्टो के द्वारा परम सत्य की पूर्ण उपेक्षा तथा फीस लेकर ज्ञान देने के तरीके की आलोचना की|

    • प्लेटो ने सोफिस्टो की वक्तृता और बौद्धिक कवायत के लिए आलोचना की| प्लेटो के मत में सोफिस्ट छात्रों को तर्कों के जरिए नहीं, बल्कि बोले जाने वाले शब्दों की ताकत से जीवन की सलाह देते हैं|



    1. न्याय का परंपरावादी सिद्धांत (Traditional Theory of Justice)-


    • न्याय की चर्चा एक संपन्न और कुलीन व्यक्ति सेफालस के घर होती है, जिसमें सुकरात प्रमुख वक्ता है, जो प्लेटों के विचारों का प्रतिनिधि है| इसके अलावा इस चर्चा में पोलीमार्कस, थ्रेसिमेक्स, ग्लॉकान, एडीमेंटस भी भाग लेते हैं| 

    • इसकी शुरुआत अच्छाई का विचार समझने की कोशिश से होती है और यह दर्शाता है कि संपूर्ण आत्मा कैसे विकसित होती है|

    • इसकी शुरुआत सुकरात और सेफालस के बीच वृद्धावस्था और स्वास्थ्य संबंधी विवाद से शुरू होती है| (वृद्ध और खुशहाल)

    • सेफालस कहता है कि धन अपने में खुशी नहीं देता, बल्कि वह सुविधाएं हासिल करता है, जिससे जीवन आसान बनता है इससे अच्छा और नैतिक रूप से सही जीवन विकसित होता है| 


    • न्याय के परंपरावादी सिद्धांत का वृद्ध व्यापारी सेफाल्स तथा उसके पुत्र पोलीमार्कस द्वारा प्रतिपादन किया गया है|

    • सेफाल्स के अनुसार न्याय- सेफाल्स व्यापारी वर्ग की प्राचीन परंपरागत नैतिकता का प्रतिनिधि था| इसके अनुसार न्याय “सत्य बोलना एवं अपना कर्ज चुकाना है|”

    • अर्थात अपने संकल्प तथा वचन को पूरा करना, अपने वक्तव्यो व कर्तव्यों का पालन करना तथा देवताओं व मनुष्यों के प्रति अपने ऋण को चुकाना, जिससे जो कुछ लिया है उसको वापस लौटाना न्याय है|

    • पोलीमार्कस के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति को वह देना जो उसके लिए उचित है तथा मित्र के साथ भलाई तथा शत्रु के साथ बुराई करना ही सच्चा न्याय हैं|”

    • अर्थात न्याय एक कला है जो भलाई एवं बुराई करने की दो विरोधी क्षमताएं रखती हैं|


    • प्लेटो द्वारा परंपरावादी सिद्धांत का खंडन

    1. न्याय एक कला नहीं है क्योंकि न्याय सिर्फ भलाई ही करता है, बुराई नहीं| ना ही कला की तरह न्याय का अर्जन किया जा सकता है| न्याय तो आत्मा का गुण है|

    2. मित्र एवं शत्रु को पहचानना कठिन है|

    3. न्याय किसी व्यक्ति से जो लिया है उसको वापस लौटाना भी नहीं है क्योंकि पागल व्यक्ति होने पर उसको हथियार लौटाना न्याय नहीं है|

    4. शत्रु के साथ बुराई करने पर वह और बुरा हो जाता है अतः यह भी न्याय नहीं है|

    5. न्याय का परंपरावादी सिद्धांत व्यक्तिवादी है जबकि न्याय सामाजिक, व्यष्टिवादी है|

    6. परंपरावादी सिद्धांत के अनुसार न्याय देश-काल एवं परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है जबकि सच्चा न्याय तो सार्वदेशिक एवं सर्वकालिक होता है|


    1. न्याय का उग्रवादी सिद्धांत- 

    • अन्य नाम- आमूल परिवर्तनवादी सिद्धांत, क्रांतिकारी सिद्धांत

    • प्रतिपादक- थ्रेसिमेक्स


    • थ्रेसिमेक्स के अनुसार-

    1. “न्याय शक्तिशाली का हित है|” अर्थात जिसकी लाठी, उसकी भैंस और राजा करे सो न्याय

    2. “अन्याय न्याय से अच्छा है|”


    1. इसके अनुसार विभिन्न प्रकार की सरकारें (जनतंत्री, कुलीनतंत्री, आततायीतंत्री) आदि जो कानून बनाती है उसका लक्ष्य स्वयं का हितसाधन होता है| सरकार इन कानूनों को न्याय की संज्ञा दे देती है तथा जो इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं उसे अन्यायी व अपराधी घोषित करके दंडित करती है| अतः ‘न्याय शक्तिशाली का हित है|’

    2. प्रत्येक व्यक्ति अपना हित चाहता है लेकिन न्याय का मतलब शक्तिशाली का हित है अतः न्यायी व्यक्ति को सुख नहीं मिल सकता है| इसके बजाय अन्यायी व्यक्ति ही अपने हित की पूर्ति कर सकता है| अतः ‘अन्याय करना न्याय से बेहतर है|’


    • प्लेटो द्वारा उग्रवादी सिद्धांत का खंडन-      

    1. सुकरात कहता है कि शासक भी गलती कर सकते हैं और हो सकता है कि वह अपने हित न पहचान पाए और अपने हितों के विरुद्ध कानून का निर्माण करें| 

    2. प्लेटो के अनुसार शासन एक कला है तथा शासक ‘कलाकार’ होता है| कला का उद्देश्य पदार्थों के दोषो को दूर करना है न कि कलाकार की स्वार्थसिद्धि करना| इस तरह न्याय शक्तिशाली का हित नहीं होता है| आदर्श शासक जनकल्याण के लिए कानून बनाता है, न कि अपने स्वार्थसिद्धि के लिए|

    3. अन्याय न्याय से बेहतर है प्लेटो इसको भी स्वीकार नहीं करते है| प्लेटो के अनुसार न्यायी व्यक्ति अन्यायी व्यक्ति की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान, शक्तिशाली एवं सुखी होता है|

    4. प्लेटो के अनुसार थ्रेसिमेक्स का सिद्धांत व्यक्तिवादी विचारधारा पर आधारित है, जबकि न्याय व्यक्ति कि नही समष्टि की वस्तु है|


    Note- थ्रेसिमेक्स का यह सिद्धांत कुछ अंशों में हॉब्स और स्पिनोजा की न्याय संबंधी अवधारणा से मिलता है तथा मार्क्स के सिद्धांत से समानता रखता है|


    • फोस्टर “थ्रेसिमेक्स का न्याय का यह सिद्धांत मार्क्स के दर्शन के अंतर्गत पुनर्जीवित हुआ है|”


    1. न्याय का व्यवहारवादी सिद्धांत– 

    • अन्य नाम- यथार्थवादी सिद्धांत, कार्य-कारण सिद्धांत, अनुबंधवादी सिद्धांत

    • प्रतिपादक- ग्लॉकान व एडीमेंटस या अडायमेंटस (ये दोनों प्लेटों के भाई थे|)


    इनके अनुसार “न्याय भय का शिशु है, तथा कमजोर (दुर्बल वर्ग) की आवश्यकता है|”


    • ग्लॉकान कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वार्थी होता है तथा अपना हित चाहता है, लेकिन दुर्बल वर्ग जिसका बहुमत है वह अधिक कष्ट उठाता है अतः उन्होंने आपस में समझौता किया कि न तो स्वयं अन्याय करेंगे तथा न ही किसी को करने देंगे| इससे कानूनों का जन्म होता है|

    • ग्लॉकान की यह धारणा हॉब्स के सामाजिक समझौते की अवधारणा से मिलती है|

    • न्याय निर्बल की शक्तिशाली से रक्षा करता है अतः ग्लॉकान कहता है कि न्याय कमजोर की आवश्यकता है|

    • न्याय कानून द्वारा स्थापित किया जाता है तथा कानून का पालन दंड के डर से किया जाता है, अतः ग्लॉकान के अनुसार न्याय भय का शिशु है|


    Note- ग्लॉकान न्याय को कृत्रिम मानता है तथा निर्बल व्यक्ति को न्याय को जन्म देने वाला मानता है|


    • बार्कर “थ्रेसिमेक्स न्याय को बलशाली एवं शक्तिशाली व्यक्तियों का हित बताता है| ग्लॉकान उसे भय की भावना में स्थापित कर दुर्बलो के लाभ के लिए एक आवश्यक स्थिति मानता है, लेकिन दोनों ही न्याय को कृत्रिम, परंपरागत मानते है|”


    • प्लेटो द्वारा न्याय के व्यवहारवादी सिद्धांत का खंडन-

    1. न्याय कोई बाहरी तथा कृत्रिम वस्तु नहीं है, जो किसी संविदा से जन्म लेती हो| यह तो एक प्राकृतिक वस्तु है, जो आत्मा का एक आंतरिक गुण है|

    2. न्याय सार्वभौमिक तत्व है जो सबल एवं निर्बल दोनों के लिए है, केवल निर्बल के लिए नहीं|

    3. न्याय का पालन लोग डर से नहीं करते, जबकि स्वस्थ व अच्छे सामाजिक जीवन की प्राप्ति के लिए करते है|


    प्लेटो के अनुसार न्याय-

    • इस प्रकार प्लेटो न्याय के तीनों सिद्धांतों का खंडन करके रिपब्लिक में न्याय को सुकरात के माध्यम से समझाता है|

    • सुकरात के शब्दों में “न्याय प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में रहता है और यदि वह अपने कर्तव्य उचित ढंग से करता है तो उसका आचरण स्वयं उनकी न्यायप्रियता का परिचायक है|”

    • प्लेटो “न्याय मानव आत्मा की उचित व्यवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है| न्याय राज्य की प्राण वायु है|”

    • फॉस्टर “जिसे हम नैतिकता कहते हैं, वही प्लेटों के लिए न्याय हैं|”

    • बार्कर “नागरिक की स्वधर्म चेतना तथा सामाजिक जीवन में उसकी अभिव्यंजना ही राज्य का न्याय है|”

    • बार्कर “न्याय का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उस कर्तव्य का पालन करना, जो उसके प्रकृतिस्थ गुणो एवं सामाजिक स्थिति के अनुकूल है|”

    • कैटलिन “मेरा स्थान और उसके कर्तव्य यही न्याय है|”

    • क्वायरे “प्रत्येक नागरिक को उसके अनुकूल भूमिका और कार्य देना ही न्याय है|”

    • फॉस्टर “इन्होंने प्लेटों के सामाजिक न्याय के विचार को वास्तुकला की संज्ञा दी है|” या न्याय को ‘रचना प्रकल्पमुलक सिद्धांत’ (आर्किटेकटियन थ्योरी) कहा है|”

    • वोलिन “प्लेटो प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने राजनीतिक समाज को अलग-अलग भूमिकाओं की व्यवस्था माना है|”

    • सेबाइन “न्याय समाज का एकता सूत्र है, यह उन व्यक्तियों के परस्पर तालमेल का नाम है, जिनमें से प्रत्येक ने अपनी प्रकृति और शिक्षा-दीक्षा के अनुसार अपने कर्तव्य को चुन लिया है|” यह व्यक्तिगत धर्म भी है ,सामाजिक धर्म भी है|”


    • प्लेटो ने न्याय को दो रूपों में बांटा है-

    1.  व्यक्तिगत न्याय

    2.  सामाजिक न्याय


    1. व्यक्तिगत न्याय- 

    • इसको तीन आत्मा का सिद्धांत या आत्मा की तीन प्रवृत्तियों का सिद्धांत या Form of Triangle या त्रिभुज का विचार भी कहते है| प्लेटो ने व्यक्ति की आत्मा में तीन प्रवृत्तियों का निवास माना है-

    1. ज्ञान/ विवेक /बुद्धि (Wisdom)

    2. साहस (Courage)

    3. संयम (Temperance)


    • जब आत्मा की ये तीनों प्रवृतियां व्यक्ति में उचित अनुपात में रहती है, तो व्यक्तिगत न्याय की पालना होती है अर्थात इन तीनों प्रवृत्तियों में संतुलन, समन्वय, सामंजस्य का होना ही व्यक्तिगत न्याय है|

    • बार्कर के शब्दों में “व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रत्येक भाग अपने-अपने कार्यों का उचित संपादन करें|”


    1. सामाजिक न्याय या राज्य का न्याय-

    • प्लेटो के अनुसार राज्य (समाज) व्यक्ति का वृहद रूप होता है, तथा प्लेटो व्यक्ति को राज्य की चेतना के लिए आवश्यक तत्व मानता है|

    • सामाजिक न्याय के संबंध में प्लेटो का तीन वर्गों का सिद्धांत है| इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में इन तीनों तत्वों में एक तत्व की प्रधानता होती है| प्रधान तत्व या प्रवृत्ति के आधार पर समाज में तीन वर्गों की स्थापना होती है तथा प्रत्येक वर्ग का अपना विशेष कार्य होता है 


    वर्ग

    प्रधान तत्व

      कार्य

    उत्पादक  वर्ग

    बुभुक्षा/ क्षुधा/ वासना/ संयम 

    उत्पादन करना

    सैनिक वर्ग

    साहस

    रक्षा करना

    दार्शनिक वर्ग

    ज्ञान/ बुद्धि/ विवेक

    शासन कार्य करना



    • प्रत्येक वर्ग द्वारा अपना-अपना कार्य करना तथा दूसरे वर्ग के कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करना सामाजिक न्याय होता है| (कार्य विशिष्टीकरण व अहस्तक्षेप) 

    • समाज या राज्य के संदर्भ में न्याय का अर्थ यह होगा कि उत्पादक वर्ग को सैनिक वर्ग से संरक्षण प्राप्त हो और दार्शनिक वर्ग से मार्गदर्शन प्राप्त हो|

    • सेबाइन ने अपनी पुस्तक राजनीतिक सिद्धांत का इतिहास (A History of political theory) 1937 में लिखा है कि “प्लेटो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना-अपना हक दिलाना न्याय है|”

    • C.L वेपर इसे उपयुक्त प्रावधान (उत्पादक वर्ग), उपयुक्त संरक्षण (सैनिक वर्ग), उपयुक्त नेतृत्व (दार्शनिक वर्ग) का नाम देता है|


    • समुदायवादी विचारक मैंकेटायर का विचार है कि न्यायपूर्ण व्यक्ति व न्यायपूर्ण राज्य खुशहाल क्यों है? इस संदर्भ में प्लेटो ने तीन तर्क दिए है-

    1. न्यायपूर्ण व्यक्ति अपनी इच्छाएं सीमित रखता है|

    2. सिर्फ दार्शनिक ही तर्क व इच्छा से जनित सुखों में अंतर कर सकता है|

    3. बुद्धि से जनित खुशियां ही सच्ची होती है|


    • जावेट “न्याय व्यक्तिगत जीवन के उस प्रकार का नाम है, जहां आत्मा का हर अंग अपना स्वयं का कार्य करता है, राज्य का वह जीवन है जहां प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक वर्ग अपने विशिष्ट कार्यों को संपन्न करता है|”

    • निसबेट (Nisbet) “प्लेटो के लिए समस्या (जो दो हजार साल बाद रूसो के लिए भी थी) यह थी कि व्यक्ति की निरपेक्ष आजादी के साथ राज्य के निरपेक्ष न्याय का समन्वय कैसे किया जाय|”


    प्लेटो के न्याय सिद्धांत की विशेषताएं-

    1. प्लेटो का न्याय आत्मा का आंतरिक गुण या प्राकृतिक या आंतरिक तत्व है, न कि तीनों न्याय सिद्धांतों की तरह बाह्य या कृत्रिम|

    2. प्लेटो की न्याय संबंधी धारणा वैधानिक नहीं है बल्कि नैतिक और सर्वव्यापी है|

    3. प्लेटो का न्याय संतुलनकारी धारणा है|

    4. प्लेटो का न्याय सिद्धांत अहस्तक्षेप सिद्धांत पर आधारित है|

    5. प्लेटो का न्याय सिद्धांत कार्य विशेषीकरण पर आधारित है|

    6. प्लेटो का न्याय आदर्श राज्य की आधारशिला है तथा आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना दार्शनिक राजा द्वारा की गई है|

    7. प्लेटो का न्याय सिद्धांत अति व्यक्तिवाद का विरोधी है|

    8. सावयव एकता/ प्राकृतिक एकता- प्लेटो के न्याय सिद्धांत में व्यक्ति व राज्य में कोई विरोध नहीं है| इसमें व्यक्ति राज्य के लिए है, राज्य के प्रति व्यक्ति के कर्तव्य ही है, अधिकार नहीं, राज्य एक साध्य है व्यक्ति साधन| जैसा कि प्लेटो ने लिखा है कि “नागरिकों में कर्तव्य भावना ही राज्य का न्याय सिद्धांत है|”

    9. न्याय प्राप्ति का माध्यम शिक्षा है|

    10. प्लेटो का सामाजिक न्याय एकता का सिद्धांत है, अर्थात तीनों वर्गों में एकता की स्थापना करना|

    11. प्लेटो का न्याय सिद्धांत मनोवैज्ञानिक तत्व के लिए है|


    Note- प्लेटो उत्पादक वर्ग को ‘Class of Iron and Brass’ कहता है| 

    प्लेटो के न्याय सिद्धांत की आलोचना-

    1. प्लेटो का न्याय आधुनिक न्याय की तरह वैधानिक धारणा का न होना| जैसा कि बार्कर लिखता है कि “प्लेटो का न्याय वस्तुतः न्याय नहीं है, वह केवल मनुष्यों को अपने कर्तव्यों तक सीमित करने वाली भावना मात्रा है, कोई ठोस कानून नहीं है|” विलियम बायड के शब्दों में “उसने नैतिक कर्तव्य और वैधानिक दायित्व के बीच की सीमा को भी भुला दिया है|”

    2. प्लेटो का न्याय सिद्धांत अव्यवहारिक है|

    3. प्लेटो का न्याय व्यक्ति को पूर्णतया राज्य के अधीन करके व्यक्ति को निष्क्रिय तथा सीमित कर देता है|

    4. अरस्तु “प्लेटो का न्याय अत्यधिक एकीकरण एवं अत्याधिक पृथक्करण के बीच समावेश करने के प्रयत्न में पेचीदा सिद्धांत बन गया है|”

    5. प्रोफेसर सेबाइन “प्लेटो की न्याय कल्पना जड़, आत्मपरक, निष्क्रिय, अनैतिक, अव्यावहारिक एवं अविश्वसनीय है|”

    6. दार्शनिक वर्ग को अत्यंत शक्ति प्रदान करना अनुचित है, क्योंकि इससे वे निरंकुश बन जाते है|

    7. न्याय का सिद्धांत प्लेटों को फासीवादी और अधिनायकवादी ही बना देता है|

    8. झेनोफोन तथा जॉन बोवले “प्लेटो का न्याय सिद्धांत अप्रजातांत्रिक है|”

    9. अधिकारों एवं दंड की व्यवस्था का न होना- प्लेटो तीनों वर्गों के केवल कर्तव्यों की ही बात करता है, अधिकारों की नहीं| साथ ही यदि कोई वर्ग दूसरे वर्ग के कार्यों में हस्तक्षेप करें तो क्या दंड होगा इसकी व्यवस्था नहीं करता है|

    10. कार्ल पापर प्लेटो के न्याय सिद्धांत को सर्वासत्ताधिकारवाद का जन्मदाता कहता है तथा परिवर्तन और सुधार का विरोधी कहता है|


    • कार्ल पापर के शब्दों में “प्लेटो के न्याय की परिभाषा के पीछे मौलिक रूप से सर्वसत्ताधिकारीवादी वर्ग शासक की मांग एवं उसे कार्यान्वित करने के उसके निर्णय छिपे हुए है|”


    • इन सब आलोचनाओं के होते हुए भी प्लेटो न्याय सिद्धांत के माध्यम से समाज में एकता की स्थापना करता है|

    • बार्कर “न्याय रिपब्लिक की आधारशिला है और रिपब्लिक न्याय की मूल अवधारणा का संस्थागत स्वरूप है|



    प्लेटो के समर्थक विद्वान- 


    समर्थक

    पुस्तक

    G.C फिल्ड

    प्लेटो एंड हिज कंटम्प्रोरेरीज

    डोनाल्ड बी. लेविंसन

    इन डिफेंस ऑफ प्लेटो

    जॉन वाइल्ड

    प्लेटोज मॉडर्न एनीमीज एंड द थ्योरी ऑफ नेचुरल लॉ

    A.E टेलर

    द मैन एंड हिज वर्क

    अर्नेस्ट बार्कर

    ग्रीक पोलिटिकल थ्योरी

    R.L नैटलशिप 

    लेक्चर्स ऑन द रिपब्लिक ऑफ प्लेटो




    प्लेटो की विरोधी विद्वान-

    विरोधी

    पुस्तक

    R.H.S क्रॉसमैन 

    प्लेटो टुडे

    C. M ब्रोवरा

    एनशिएंट ग्रीक लिटरेचर 

    W फिट्स

    द प्लेटोनिक लीजेंड

    B. फासिंगटन 

    साइंस ऑफ पॉलिटिक्स इन द एनशिएंट वर्ल्ड

    A.D विन्स्पर

    द जेनेसिस ऑफ प्लेटोज थॉट

    कार्ल पॉपर

    द ओपन सोसाइटी एंड इट्स एनीमीज


    तीन वर्ग व तीन आत्माओं के सिद्धांतों की आलोचना-

    • अंबेडकर “प्लेटो के तीन वर्गों का वर्गीकरण भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था व जाति व्यवस्था की तरह श्रेणीकरण, ऊंच-नीच, शोषण को बढ़ावा देता है|”

    • सेबाइन “प्लेटो का वर्गीकरण प्राचीन भारत के कठोर जातीय वर्गीकरण से मिलता जुलता था, लेकिन प्लेटों के वर्ग, जातियां नहीं थी क्योंकि उनकी सदस्यता उत्तराधिकार में नहीं मिलती थी|”


    न्याय- आंगिक व रचना प्रकल्पमुलक सिद्धांत

    • M.B फॉस्टर ने अपनी पुस्तक Master of Political Thought- Plato to Machiavelli में प्लेटों के न्याय सिद्धांत को रचनाप्रकल्पमुलक बताया है|

    • आंगिक (Organic) जिस प्रकार शरीर के सभी अंग आपस में जुड़े रहते हैं, उसी प्रकार सभी सद्गुण भी आपस में जुड़े रहते हैं और न्याय उन्हें जोड़ने का कार्य करता है|


    • रचना प्रकल्पमुलक (Architectonic)- न्याय एक वास्तुकार की तरह होता है जो विवेक, साहस, संयम के मध्य उचित समन्वय व संतुलन बनाए रखता है|

    • इस प्रकार न्याय समन्वयकारी व नियंत्रणकारी है|




     प्लेटो का शिक्षा सिद्धांत-
    (Plato's Theory of Education)


    • प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था का उल्लेख ‘रिपब्लिक’ पुस्तक में मिलता है|

    • प्लेटो के दर्शन का सार तत्व तत्कालीन यूनानी व्यवस्था में सुधार लाना था| इसके लिए प्लेटो न्याय पर आधारित आदर्श समाज की स्थापना करता है|


    • प्लेटो आदर्श राज्य की स्थापना के दो प्रमुख साधन बताता है-

    1. शिक्षा           (2) साम्यवाद


    • प्लेटो ने अपने ग्रंथ रिपब्लिक में शिक्षा पर इतने विस्तार से लिखा है कि रूसो ने इसे शिक्षा पर लिखा गया ग्रंथ तथा शिक्षा की सर्वोत्कृष्ट कृति कहा है| रूसो की पुस्तक एमाइल शिक्षा संबंधी प्लेटों के सुझाव के प्रति एक प्रतिक्रिया थी| 

    • नेटलशिप के अनुसार प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत में श्रम विभाजन और समन्वित सहयोग के सूत्र बताए गए| 

    • रूसो “रिपब्लिक केवल राजनीतिशास्त्र पर लिखी गई पुस्तक मात्र ही नहीं है, बल्कि शिक्षा पर लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है जो पहले कभी भी नहीं लिखा गया|”

    • फ्रीडलैंड “रिपब्लिक में कानून निर्माण के मुद्दे को शिक्षा मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया है|”

    • जैगर “प्लेटो के लिए शिक्षा कभी न हल होने वाला प्रश्नों का हल था|”

    • क्लोस्के “रिपब्लिक में शिक्षा को नैतिक सुधार प्राप्त करने का साधन माना गया है|”

    • बार्कर “प्लेटो की शिक्षा प्रणाली उसके न्याय सिद्धांत का तार्किक परिणाम है|”

    • सेबाइन “प्लेटो ने राजनेताओं के मार्ग से बाधाओं को हटाने के लिए साम्यवाद को चाहे जितना ही महत्व क्यों न दिया हो, लेकिन उसका मुख्य जोर साम्यवाद पर नहीं, बल्कि शिक्षा पर है|”

    • प्लेटो के अनुसार शिक्षा “शिक्षा मानसिक व्याधि को दूर करने का मानसिक उपचार है|”

    • प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य के एक आधार स्तंभ के रूप में शिक्षा को स्वीकार किया है, तथा रिपब्लिक की चार पुस्तकों (Book - 2,3,6,7) में शिक्षा प्रणाली का वर्णन किया है| 


    Note- ‘प्लेटो ने शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया माना है|’


    • प्लेटो ने राज्य नियंत्रित व राज्य द्वारा प्रदत शिक्षा पर बल दिया है|

    • प्लेटो के अनुसार राज्य का सबसे पहला और महत्वपूर्ण कर्तव्य शिक्षा देना है|

    • प्लेटो के अनुसार राज्य पहला और सबसे ऊंचा शिक्षण संस्थान है|


    • प्लेटो के समय दो शिक्षण पद्धतियां प्रचलित थी-

    1. एथेंस की शिक्षा पद्धति

    2. स्पार्टा की शिक्षा पद्धति


    1. एथेंस की शिक्षा पद्धति- 

    • एथेंस की शिक्षा व्यक्तिगत व्यवसाय व परिवार का उत्तरदायित्व था| राज्य के द्वारा सार्वजनिक शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी|

    • यहां सोफिस्ट तथा आइसोक्रेटस चिंतकों द्वारा शिक्षा का कार्य व्यक्तिगत आधार पर तथा धन के बदले किया जाता था|

    • एथेंस की शिक्षा में बौद्धिक व दार्शनिक शिक्षा पर बल दिया जाता था|


    • प्लेटो के अनुसार राज्य द्वारा शिक्षा न देना इस शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है|


    1. स्पार्टा की शिक्षा पद्धति-

    • स्पार्टा में शिक्षा राज्यधीन थी| 7 वर्ष की आयु में ही बालक राज्य को सौंप दिए जाते थे, राज्य उनकी प्रतिभा, योग्यता तथा अभिरुचि के अनुसार शिक्षा देता था|

    • स्पार्टा में शिक्षा का स्वरूप सैनिक था, जिसका एकमात्र उद्देश्य था अच्छे लड़ाकू रक्षक पैदा करना|

    • स्पार्टा में स्त्री-पुरुष दोनों को समान रूप से शिक्षा दी जाती थी|

    • स्पार्टा की शिक्षा व्यवस्था शारीरिक व सैनिक शिक्षा पर विशेष बल देती है|

    • प्लेटो पर स्पार्टा की शिक्षा व्यवस्था का गहरा प्रभाव पड़ा था इसलिए बार्कर ने कहा है कि “रिपब्लिक में वर्णित शिक्षा व्यवस्था का प्रेरणा स्रोत और आदर्श स्पार्टा था|”


    प्लेटो की शिक्षा योजना-

    • प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना में एथेंस व स्पार्टा दोनों की शिक्षा प्रणालियों के गुणों को समन्वित किया है तथा दोनों के दोषों को समाप्त करने का प्रयत्न किया है|

    • प्लेटो ने एथेंस की बौद्धिक शिक्षा के साथ स्पार्टा की संयमित शारीरिक शिक्षा को जोड़ा है तथा शिक्षा को व्यक्ति तथा राष्ट्र दोनों के विकास का साधन माना है|

    • प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना में एथेंस से शिक्षा का व्यक्तिगत पहलु तथा स्पार्टा से सामाजिक पहलू अपनाया है| 


    • प्लेटो ने दो प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की है-

    1. सैद्धांतिक शिक्षा         

    2. व्यवहारिक शिक्षा


    1. सैद्धांतिक शिक्षा को भी दो भागों में बांटा है   

    (1) प्रारंभिक शिक्षा   (2) उच्च शिक्षा 


    1. प्रारंभिक शिक्षा- (20 वर्ष की आयु तक)

    • प्रारंभिक शिक्षा संरक्षक वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य थी|

    • प्रारंभिक शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों में सामाजिकता का विकास करना, भावनाओं के परिमार्जन से चरित्र निर्माण करना तथा सैनिक वर्ग के नागरिकों का निर्माण करना|

    • क्लोस्के “प्रारंभिक शिक्षा का संबंध विवेक व साहस के साझे प्रयासो से वासना का नियंत्रण करना है|”

    • प्रारंभिक शिक्षा में प्लेटो संगीत एवं व्यायाम की शिक्षा को शामिल करता है| जिनको यूनानी भाषा में प्लेटो ने मौशिकी (Mousiki) और जिमनास्टिक कहा है|

    • मौशिकी (Mousiki) में संगीत और साहित्य दोनों शामिल है| 

    • जिमनास्टिक में व्यायाम के साथ आहारशास्त्र और चिकित्साशास्त्र भी शामिल है|  

    • प्लेटो “सर्वश्रेष्ठ शिक्षा आत्मा के लिए संगीत और शरीर के लिए व्यायाम है|”

    • बार्कर “प्लेटो की प्रारंभिक शिक्षा प्रमुख रूप से सामाजिक प्रशिक्षण है| इसका उद्देश्य नागरिकों के एक वर्ग को सैनिक कार्यों के समुचित संपादन के लिए तैयार करना है|”

    • प्लेटो व्यायाम शिक्षा में व्यायाम के साथ-साथ आहारशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र को भी शामिल करता है|

    • नैटलशिप “शारीरिक प्रशिक्षण में खुराक का सादापन अत्यंत महत्वपूर्ण वस्तु है|”


    • संगीत शिक्षा में प्लेटो साहित्य, गीत, नृत्य, मूर्ति, चित्र, कविता पाठ व सभी ललित कलाए सम्मिलित करता है|

    • संगीत शिक्षा पर बल देते हुए प्लेटो कहता है कि “मुझे एक देश के लिए उचित प्रकार के गीत लिखने दो, किसी व्यक्ति को उस देश के लिए कानून बनाने की आवश्यकता नहीं होगी|”

    • बार्कर “संगीत मन के सामान्य प्रशिक्षण का मार्ग है|”

    • फोस्टर “यूनानी भाषा में संगीत शब्द का अंग्रेजी के संगीत शब्द से विस्तृत अर्थ है| इसमें काव्य, गायन, नृत्य शामिल थे|”

    • डेनियल ओ कोनेल “मुझे राष्ट्रीय गीत लिखने दो| मैं इस बात की परवाह नहीं करता कि कौन कानून बनाता है|”

    • प्लेटो ने संरक्षक वर्ग में आवश्यक गुणों के विकास के लिए चरित्र पर गलत प्रभाव डालने वाले साहित्यक अंशो पर एवं कलाकृतियों पर राज्य द्वारा कठोर प्रतिबंध लगाने की व्यवस्था की है|

    • प्लेटो ने लिडियन और आयोनियन संगीत हारमनी पर रोक लगाने की मांग की, क्योंकि वह दुख और आलस्य की भावनाओं को जन्म देते थे|

    • प्लेटो ने सिर्फ डोरियन और फ्राइजियन संगीत को इजाजत दी, क्योंकि उनसे साहस और नम्रता की भावनाएं पैदा होती थी|

    • उन्होंने होमर और हेसोइड पर भी रोक लगा दी, क्योंकि ये कभी-कभी देवताओं को भी गलत व्यवहार करते दिखाते थे| 


    • प्लेटो ने प्रारंभिक शिक्षा को तीन भागों में बांटा है-

    1. 6 वर्ष तक शिक्षा- नैतिक व धार्मिक शिक्षा

    2. 6- 18 वर्ष तक की शिक्षा- व्यायाम व संगीत की शिक्षा

    3. 18- 20 वर्ष तक की शिक्षा- कठोर सैनिक शिक्षा


    • सेबाइन “प्लेटो ने प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत काव्य तथा साहित्य के उच्च रूपों को सम्मिलित किया है”| 


    1. उच्च शिक्षा (20- 35 वर्ष तक)

    • 20 वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा के बाद एक बौद्धिक एवं क्रियात्मक परीक्षा की व्यवस्था की गई, जो विद्यार्थी इस परीक्षा में योग्य व बुद्धिमान प्रमाणित होंगे उनके लिए इस उच्च शिक्षा की व्यवस्था थी|

    • प्रोफेसर सेबाइन “उच्च स्तरीय शिक्षा योजना नि:संदेह रिपब्लिक का अत्यंत मौलिक तथा अत्यंत विशिष्ट प्रस्ताव है|” 

    • उच्च शिक्षा का आधार वर्ग था, यह शिक्षा दार्शनिक शासक बनने वाले के लिए थी|

                       

    Note- जहां प्रारंभिक शिक्षा का आधार आयु था (अर्थात 20 वर्ष के सभी संरक्षक बच्चे) वहीं उच्च शिक्षा का आधार वर्ग था (केवल दार्शनिक वर्ग के लिए|


    • उच्च शिक्षा का उद्देश्य विज्ञान और ज्ञान द्वारा बुद्धि का परिष्कार करना तथा विवेक की सृष्टि करना तथा दिव्य दृष्टि को जन्म देना|


    • प्लेटो की उच्च शिक्षा को भी दो भागों में बांटा गया है-

    1. 20 -30 वर्ष की आयु की शिक्षा (Quadrivium)-

    • यह शिक्षा केवल उन्ही कुशाग्र बुद्धि युवक-युवतियों को दी जाएगी, जो भविष्य में आदर्श शासक बन सकने की प्रतिभा रखते हो|

    • इस दौरान शिक्षा व्यवस्था में प्लेटो चतुष्य कला (Quadrivium) अर्थात 1 गणित, रेखागणित व अंकगणित, 2 ज्योतिष व तर्कशास्त्र, 3 खगोलशास्त्र 4 संगीत व नीतिशास्त्र की शिक्षा पर बल देते, क्योंकि ये विषय दर्शन के अध्ययन के लिए उचित भूमिका है|


    1. 30 से 35 वर्ष तक की शिक्षा (Trivium)-

    • 20 से 30 वर्ष की शिक्षा पूर्ण करने के बाद एक क्रियात्मक परीक्षा होगी तथा इस परीक्षा में उत्तीर्ण विद्यार्थी को 35 वर्ष आयु तक त्रिकला (Trivium) अर्थात 1 द्वन्द्ववाद या वाक्पटुता (Rhetoric), 2 पराभौतिकी तर्क (Logic ) और 3 दर्शन (Dialectics) की शिक्षा दी जाएगी, जिसमें दर्शनशास्त्र के अध्ययन पर विशेष जोर दिया गया है|

    • क्योंकि द्वन्द्ववाद ही वह साधन है, जिसके द्वारा विशुद्ध तत्व का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है|


    1. व्यवहारिक शिक्षा (35 से 50 वर्ष तक)-

    • प्लेटो ने 35 से 50 वर्ष तक की सैद्धांतिक शिक्षा की जगह व्यवहारिक शिक्षा की व्यवस्था की है|

    • 35 वर्ष तक की शिक्षा देने के बाद भी प्लेटो संरक्षको को अपूर्ण मानता है कि अभी तक उन्हें कोरी बौद्धिक शिक्षा मिली है, उन्हें संसार का क्रियात्मक अनुभव नहीं है|

    • प्लेटो के अनुसार जो हर प्रकार से श्रेष्ठ सिद्ध हो वह आगे (50 वर्ष आयु तक) संसार का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करें| 

    • इस प्रकार जो व्यक्ति 50 वर्ष की उम्र तक हर अग्नि परीक्षा में खरे उतरेंगे, वहीं दार्शनिक राजा बनेंगे और राज्य का शासन भार संभालेंगे|


    प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत की विशेषताएं-

    1. प्लेटो ने अपनी शिक्षा व्यवस्था में एथेंस की बौद्धिक शिक्षा तथा स्पार्टा की संयमित शारीरिक शिक्षा का समायोजन किया है|

    2. प्लेटो ने स्पार्टा की तरह स्त्री व पुरुष दोनों के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था की है| प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में योग्यता व क्षमता के आधार पर स्त्री-पुरुष को समान रूप से प्रत्येक पद का अधिकारी माना है| 

    3. प्लेटो राज्य द्वारा नियंत्रित तथा अनिवार्य शिक्षा का समर्थन करता है| 

    • सेबाइन “प्लेटो ने रिपब्लिक में राज्य नियंत्रित अनिवार्य शिक्षा की योजना प्रस्तुत की है| उसकी यह योजना एथेंस की शिक्षा प्रणाली से बहुत आगे बढ़ कर थी|”

    1. प्लेटो की शिक्षा योजना का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास था, अर्थात व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक तथा आत्मिक विकास करना|

    2. प्लेटो की शिक्षा का मुख्य लक्ष्य दार्शनिक शासक तैयार करना था तथा सैनिकों को रक्षा के लिए तैयार करना था| 

    • सेबाइन “प्लेटो शिक्षा के माध्यम से ऐसे शासकों का निर्माण करना चाहता था, जिससे उनका राज्य विद्वानों, संतों का राज्य हो जाय|”

    1. प्लेटो का शिक्षा क्रम दीर्घकालीन था तथा शिक्षा अनवरत प्रक्रिया थी|

    2. प्लेटो की शिक्षा का उद्देश्य शरीर तथा मस्तिष्क दोनों का विकास करना था|

    3. प्लेटो की शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा देने वाले परिवारों को समाप्त करना था|

    4. प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना के अंतर्गत धर्म और नैतिकता को उचित स्थान दिया है|

    5. प्लेटो ने शासन को एक कला मानकर सुशासन हेतु शासकों के शिक्षण पर बल दिया है|

    6. प्लेटोवादी शिक्षा व्यवस्था में स्वभाव और प्रशिक्षण मिलकर मानव चरित्र का निर्माण करते है| 


    • मैक्सी “प्लेटो की शिक्षा योजना अनेक दृष्टियो से स्पष्टतया आधुनिक लगती है|” 


    Note- स्त्री-पुरुष की समान शिक्षा के संबंध में प्लेटो पाइथागोरस से प्रभावित था तथा राजनीति व शासन में महिलाओं की भागीदारी से संबंध में वह एरिस्टोफेन्स से प्रभावित था|  एरिस्टोफेन्स ने ‘पार्लियामेंट में स्त्रियां’ पुस्तक में स्त्रियों की शासकीय भागीदारी का समर्थन किया|


    प्लेटो की शिक्षा योजना की आलोचना-

    1. प्लेटो की शिक्षा योजना संकीर्ण थी, क्योंकि उत्पादक वर्ग (शिल्पी) की शिक्षा की कोई विशेष व्यवस्था नहीं करता है|

    • जेलर “स्वयं अभिजात वर्ग का व्यक्ति होने के कारण प्लेटो शिल्पियों से घृणा करता था|”

    • सेबाइन “प्लेटो उत्पादक वर्ग की शिक्षा के संबंध में कहीं विचार नहीं करता है, वह यह भी नहीं बताता कि उत्पादक वर्ग को प्राथमिक शिक्षा भी देनी है या नहीं|


    1. यह अप्रजातांत्रिक शिक्षा थी, क्योंकि सभी वर्गों के लिए नहीं थी|

    2. प्लेटो अपने पाठ्यक्रम में गणित को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है तथा साहित्य की तुलनात्मक दृष्टि से उपेक्षा करता है|

    3. प्लेटो कवि तथा कलाकारों पर राज्य का प्रतिबंध लगाता है| प्लेटो कहता है कि “भूतकाल के कवियों की रचनाओं के आपत्तिजनक अंशो को हटा दिया जाय तथा भविष्य के कवियों पर भी राज्य के शासक प्रतिबंध लगा दे|”

    4. प्लेटो की शिक्षा योजना का कार्यक्रम लंबा है|

    5. प्लेटो की शिक्षा योजना व्यक्ति की सोच व स्वायत्तता पर प्रतिबंध लगाकर वैयक्तिक विकास का बलिदान कर देती है|

    • पॉपर “प्लेटो की शिक्षा का उद्देश्य आत्म समीक्षा करना एवं समीक्षात्मक विचारों को जगाना नहीं है, अपितु मत शिक्षण (Indoctrination) है  अर्थात मस्तिष्क एवं आत्मा को एक ऐसे सांचे में ढालना है कि वे स्वतंत्र रूप से कुछ करने के योग्य न हो सके|”


    1. प्लेटो की शिक्षा योजना में विरोधाभास है कि एक ओर तो आदर्श राज्य की स्थापना के लिए पहली शर्त है उचित शिक्षा और दूसरी और उचित शिक्षा की व्यवस्था आदर्श राज्य स्थापना के पश्चात ही प्रारंभ होती है|

    2. प्लेटो की शिक्षा योजना में अधिनायकतंत्र के बीज है| अल्फ्रेड हार्नले “प्लेटो के शिक्षा सिद्धांत में अधिनायक तंत्र के बीज निहित है|”


    • इन सब आलोचनाओं के होने पर भी प्लेटो की शिक्षा का महत्व है|

    • जावेट “प्लेटो पहला लेखक है जो स्पष्ट रूप से कहता है कि शिक्षा का क्रम आजीवन चलना चाहिए| इसके अन्य शैक्षिक विचारों की अपेक्षा यह विचार आधुनिक जीवन में प्रयोग किए जाने की मांग करता है|”

    • एबनस्टीन ने प्लेटो की शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन करते लिखा है कि “यद्यपि प्रजातांत्रिक प्रणाली प्लेटो की कुलीन वर्गीय राजनीतिज्ञ शासकों के प्रशिक्षण की योजना को अस्वीकार करती रहेगी, फिर भी यह सार्वजनिक सेवकों के प्रशिक्षण की संभावना और वांछनीयता को अधिक सहानुभूतिपूर्ण ढंग से देखती रहेगी|”



    प्लेटो का साम्यवाद का सिद्धांत 
    (Plato Theory of Communism)


    • प्लेटो ने साम्यवाद सिद्धांत का वर्णन रिपब्लिक में किया है|

    • आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना के लिए प्लेटो ने शिक्षा योजना के साथ-साथ साम्यवाद का सिद्धांत दिया है|

    • शिक्षा मानसिक रोग का मानसिक इलाज है, जबकि साम्यवाद मानसिक रोग का भौतिक इलाज है|

    • शिक्षा योजना जहां सकारात्मक साधन है वही साम्यवाद नकारात्मक साधन है|

    • प्लेटो का साम्यवाद का सिद्धांत उसकी शिक्षा सिद्धांत का पूरक है|

    • नैटलशिप “प्लेटो का साम्यवाद शिक्षा द्वारा उत्पन्न की हुई विचारधारा को प्रभावी बनाने वाला, उसे नव जीवन व शक्ति प्रदान करने वाला अनुपूरक यंत्र है|”

    • हैकर “प्लेटोवादी आदर्श राज्य की विशेषताएं थी- वर्ग, साम्यवाद, नागरिकता, नियंत्रण, संतोष, सहमति

    • प्लेटो का साम्यवाद केवल संरक्षक वर्ग (सैनिक वर्ग व दार्शनिक वर्ग) के लिए ही है| यह उत्पादक वर्ग के लिए नहीं है| अर्थात यह अल्पसंख्यक वर्ग के लिए है|

    • साम्यवाद का उद्देश्य संरक्षक वर्ग (सैनिक वर्ग व शासक वर्ग) को बाह्य आकर्षण कंचन व कामिनी (संपत्ति व परिवार) से दूर रखना है, ताकि ये उनके मार्ग में बाधा न बन सके|


    प्लेटो की साम्यवादी विचारधारा के स्रोत-

    • प्लेटो की साम्यवादी विचारधारा पूर्णतया नवीन तथा मौलिक नहीं थी|

    • इनके पहले साम्यवाद के निम्न उदाहरण मिलते हैं-

    1. स्पार्टा में स्त्रियों तथा 7 वर्ष की आयु में बालकों को राज्य को सोंप दिया जाता था| 

    2. क्रिट नामक नगर में सहकारी खेती की व्यवस्था की थी|

    3. एथेंस में भी राज्य का व्यक्तिगत संपत्ति पर नियंत्रण था|

    4. पाइथागोरस का मत था कि “मित्रों की संपत्ति पर सबका समान रूप से अधिकार है|”

    5. प्लेटो से पूर्व युरोपाइड्ज ने अपनी रचना ‘प्रोटेसिलास’ में स्त्रियों के साम्यवाद का समर्थन किया है|


    प्लेटो के साम्यवाद के रूप-

    • प्लेटो ने साम्यवादी योजना को दो भागों में बांटा है-

    1. संपत्ति का साम्यवाद       

    2. परिवार अथवा स्त्रियों का साम्यवाद


    1. संपत्ति का साम्यवाद-

    • प्लेटो अभिभावक/ संरक्षक वर्ग (शासक और सैनिक) के लिए संपत्ति का निषेध करता है, क्योंकि निजी संपत्ति इनको पथभ्रष्ट कर सकती है|

    • संपत्ति का साम्यवाद उत्पादक वर्ग के लिए नहीं है, क्योंकि प्लेटो राजनीति से आर्थिक शक्ति को अलग करता है|

    • संरक्षक वर्ग के पास निजी संपत्ति, निजी घर, सोना-चांदी व इसके आभूषण नहीं होने चाहिए तथा अभिभावक वर्ग को शिविरों में रहना चाहिए|


    Note- प्लेटो के संपत्ति के साम्यवाद का उद्देश्य राजनीतिक है न कि आधुनिक साम्यवाद की तरह आर्थिक समानता है|

    • सेबाइन “प्लेटो के संपत्ति के साम्यवाद का उद्देश्य मात्र राजनीतिक था तथा सरकार के ऊपर धन के भयानक प्रभाव का प्लेटों को इतना दृढ़ विश्वास था कि उसे दूर करने के लिए उसे स्वयं संपत्ति का ही विनाश करना पड़ा|”

    • प्लेटो का साम्यवाद स्पार्टा व क्रिट की पद्धतियों से मिलता था| इस संदर्भ में प्रोफेसर बार्कर का कहना है कि “स्पार्टा तथा क्रिट की परिस्थितियों में तथा प्लेटो के संपत्ति विषयक विचारों में बहुत गहरा साम्य है|”

    • फॉस्टर “प्लेटो के संरक्षक वर्ग को सामूहिक रूप से संपत्ति का स्वामित्व ग्रहण करना नहीं, वरन इसका त्याग करना है|”


    1. परिवार अथवा स्त्रियों का साम्यवाद

    • प्लेटो ने अभिभावक वर्ग के लिए निजी संपत्ति के निषेध के साथ-साथ निजी परिवार का भी निषेध किया है|

    • प्लेटो का मत है कि परिवार का मोह, धन के मोह से अधिक प्रबल होता है| 

    • सेबाइन “संपत्ति की भांति प्लेटो विवाह का उन्मूलन भी करता है|”


    प्लेटो के परिवार साम्यवाद योजना के उद्देश्य-

    1. संरक्षक वर्ग को परिवारिक मोह से मुक्त रखना|

    2. राज्य में एकता स्थापित करने हेतु-

    • बार्कर “इसके (परिवार के) उन्मूलन का दिन, राज्य की एकता के उद्घाटन का दिन होगा| व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और दोनों के लिए न्याय का दिन होगा|”


    1. नारियों की मुक्ति तथा समानाधिकार- 

    • प्लेटो “परिवार एक ऐसा स्थान है जहां मनुष्य की प्रतिभा का हनन होता है तथा पत्नी की मानसिक शक्ति चौके-चूल्हे में बर्बाद हो जाती है|”


    1. श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति-

    • उत्तम संतान पाने के लिए प्लेटो ने संतानोत्पत्ति की आयु निश्चित की है- स्त्रियां 20 से 40 वर्ष की आयु में तथा पुरुष 25 से 55 वर्ष की आयु में राष्ट्र के लिए संतान पैदा करेंगे| 


    1. विवाह संस्था में सुधार-

    • क्रासमैन ने विवाह संस्था की समाप्ति को स्त्रियों के लिए अधिकारों की प्राप्ति की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम माना है|

    • फिटे ने विवाह संस्था की समाप्ति का उद्देश्य कुछ खास नस्ल (Stock Breeder) पैदा करना तथा सामाजिक अच्छाई की प्लेटों की योजना को कम्युनिस्ट रूप में ‘लोहे के घेरे में बंद व्यवस्था’ (Ironclad System) कहा है| 


    प्लेटो के शब्दों में साम्यवादी योजना-

    • “संरक्षक स्त्री-पुरुष में कोई भी अपना निजी घर (परिवार) नहीं बनाएगा| कोई भी किसी के साथ व्यक्तिगत रूप से सहवास नहीं करेगा| शासक स्त्रियां सब शासक पुरुषों की समान रूप से पत्नियां होंगी, इनकी संताने भी समान रूप से सबकी होंगी और दार्शनिक शासक को छोड़ न तो माता-पिता अपनी संतान को जान सकेगा और न संतान माता-पिता को|” 

    • प्लेटो के अनुसार स्थायी विवाह न करके केवल सुंदर स्वस्थ और बलशाली व्यक्ति ही राज्य की आवश्यकतानुसार संतान उत्पादन के लिए सहवास कर सकेंगे तथा इनसे उत्पन्न संतान राज्य द्वारा पाली जाएगी|

    • बच्चों की देखभाल राज्य द्वारा निर्मित शहर के एक अलग हिस्से में प्रशासित नर्सों द्वारा की जाती थी| जिसे प्लेटो यूजेनिक्स कहता है| यहां निम्नतर गुण वाले व अपंग बच्चों को चुपचाप गुप्त रूप से समाप्त कर दिया जाएगा|

    • प्लेटो ने माता और पुत्र, पिता और पुत्री के बीच योन संबंधों पर पाबंदी लगा दी थी|


    प्लेटो के साम्यवाद की विशेषताएं-

    1. प्लेटो का साम्यवाद एक साध्य न होकर न्याय पर आधारित आदर्श राज्य की स्थापना का एक साधन है|

    2. प्लेटो के साम्यवाद का चरम लक्ष्य आध्यात्मिक उत्कर्ष है|

    3. प्लेटो का साम्यवाद राज्य का हित साधन है, न कि संबंधित वर्ग का|

    4. यह उत्पादक वर्ग के लिए नहीं है|

    5. प्लेटो का साम्यवाद मनोवैज्ञानिक आधार पर आधारित है, जिसका उद्देश्य मानव को पथभ्रष्ट की ओर ले जाने वाली बाह्य संस्थाओं, भौतिक सुखों का निषेध करना है|


    प्लेटों के साम्यवाद की आलोचना- 

    1. अरस्तु “प्लेटो का साम्यवाद अध्यात्मिक बुराइयों का भौतिक निदान है, जिसके परिणाम आशानुकूल नहीं हो सकते हैं|” अरस्तु के मत में आध्यात्मिक/ नैतिक बुराइयों का नैतिक निदान होना चाहिए| 

    2. प्लेटो परिवार साम्यवाद की योजना में स्त्री-पुरुष के आधारभूत अंतर को दृष्टि में नहीं रखता है|

    • जैसा कि बार्कर ने भी लिखा है कि “स्त्री की प्रकृति में लिंग ही एकमात्र तथ्य नहीं है केवल जिसमें वह पुरुष से भिन्न है, अपितु वह तो उसके समस्त जीवन को प्रभावित करता है|”

    1. प्लेटो का साम्यवाद अमनोवैज्ञानिक व अव्यवहारिक है क्योंकि यह पति-पत्नी के संबंध की पवित्रता को भुला देता है|

    2. प्लेटो के साम्यवाद में बच्चे अनाथ की तरह होते है| अरस्तु इसी संबंध में लिखता है कि “प्लेटोवादी पुत्र होने की अपेक्षा तो निकट संबंधी होना कही अधिक उत्तम है|”

    3. अभिभावक वर्ग को पारिवारिक सुख से वंचित करना उचित नहीं है|

    4. प्लेटो की संपत्ति विषयक साम्यवाद की योजना समाज में संघर्ष और फूट की प्रवृत्ति बढ़ाने वाली है|

    5. प्लेटो का साम्यवाद ऐतिहासिक आधार पर भी सही नहीं है, क्योंकि ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते हैं|

    6. स्त्रियों के साम्यवाद से यौन अराजकता उत्पन्न हो जाएगी|

    7. यदि साम्यवाद अच्छी व्यवस्था है तो सभी वर्गों पर लागू होनी चाहिए, केवल संरक्षक वर्ग पर नहीं|

    8. प्लेटो का साम्यवाद व्यक्ति के व्यक्तित्व को समाप्त कर उसे एक स्वचालित यंत्र मात्र बना देगा|

    9. प्लेटो का साम्यवाद प्रतिक्रियागामी है|

    10. ग्रुब और टेलर ने प्लेटो के प्रस्ताव को घृणास्पद बताते हुए कहा कि, वे विवाह और परिवार संबंधी मानवीय भावनाओं का ध्यान नहीं रखते| 


    प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद की तुलना-

    • मैक्सी “प्लेटो साम्यवादी विचारों का प्रेरणा स्रोत है और रिपब्लिक में सभी साम्यवादी विचारों के मूल बीज मिलते हैं|”

    • प्रो. बार्कर तथा प्रो.नैटलशिप “प्लेटो का संपत्ति का साम्यवाद अर्द्ध साम्यवाद है| क्योंकि समाज के सभी वर्गों पर लागू नहीं होता है|”

    • प्रो जॉयली “आभासी रूप से सभी समाजवादियों और साम्यावादियों की जड़ प्लेटो है|”

    • साम्यवाद के संबंध में प्लेटो के विचारों को शुरुआती समाजवादियों से काफी समर्थन मिला जैसे- क्लॉड हेनरी, रॉबेर्ट ओवन, चार्ल्स फुरिये|


    समानताएं-

    1. दोनों में व्यक्ति को राज्य की तुलना में गोण माना है|

    2. दोनों ही व्यक्ति के कर्तव्यों पर अधिक बल देते है, अधिकारों पर नहीं|

    3. दोनों ही आर्थिक प्रतियोगिता को समाप्त करते हैं|

    4. दोनों की योजना काल्पनिक व अव्यवहारिक है|

    5. दोनों निजी संपत्ति के विरोधी है|

    6. दोनों अधिनायकवाद में विश्वास रखते है| प्लेटो का साम्यवाद दार्शनिक राजा के अधिनायकवाद में तथा आधुनिक साम्यवाद सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद में|

    7. दोनों स्त्री-पुरुष समानता के समर्थक हैं|


    असमानताएं-

    1. प्लेटो के साम्यवाद का दृष्टिकोण अध्यात्मिक निराशावादी और विरक्तिमुलक है, जबकि आधुनिक साम्यवाद का दृष्टिकोण भौतिकवादी, क्रांतिकारी, प्रगतिशील है|

    2. प्लेटो का साम्यवाद वर्ग विशेष के लिए है, जबकि आधुनिक साम्यवाद संपूर्ण समाज के लिए है|

    3. प्लेटो के साम्यवाद में राज्य निहित है, जबकि आधुनिक साम्यवाद में तानाशाही के बाद राज्य के लोप होने की परिकल्पना है| 

    4. प्लेटो का साम्यवाद वर्ग पर आधारित है, जबकि आधुनिक साम्यवाद वर्गविहीन, राज्यविहीन है|

    5. प्लेटो का साम्यवाद राजनीतिक है, जबकि आधुनिक साम्यवाद आर्थिक है|

    6. प्लेटो का साम्यवाद उच्च वर्गों को प्रधानता देता है, जबकि आधुनिक साम्यवाद निम्न व श्रमिक वर्ग को|

    7. प्लेटो का साम्यवाद यूनानी नगर राज्यों तक सीमित है, जबकि आधुनिक साम्यवाद अंतरराष्ट्रीय है|

    8. प्लेटो का साम्यवाद विभिन्न वर्गों में एकता स्थापित करता है, तो आधुनिक साम्यवाद वर्ग संघर्ष पर आधारित है|


    • टेलर “रिपब्लिक में साम्यवाद और समाजवाद के संबंध में बहुत कहा जाने के बावजूद वस्तुत: इस ग्रंथ में न तो समाजवाद पाया जाता है और न ही साम्यवाद पाया जाता है|

    • बार्कर “प्लेटो का समाजवाद वैराग्यवाद का मार्ग है| इस समाजवादी व्यवस्था द्वारा प्लेटो ने राज्य के संरक्षक वर्ग के लिए वैराग्यवाद का मार्ग खोल दिया|” 

    • नैटार्प (Netarp) “इन्होंने प्लेटों के साम्यवाद को अर्द्धसाम्यवाद कहा है|



    प्लेटो का आदर्श राज्य (Plato’s Ideal State)-


    • प्लेटो के समय यूनान में जो राजनीतिक अराजकता व्याप्त थी, उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप प्लेटो ने एक ‘आदर्श राज्य की कल्पना’ रिपब्लिक में प्रस्तुत की है|

    • आदर्श राज्य को प्लेटो ने कैलिपोलिस (kallipolis) कहा है, जिसका तात्पर्य है- सुंदर नगर या सुखी लोगों का समुदाय|

    • आदर्श राज्य एक कल्पना थी न कि ऐसा राज्य कहीं था| प्लेटो के शब्दों में “जिस राज्य की कल्पना कर रहे हैं, वह शब्दों में निहित है और उसे पृथ्वी पर कहीं भी नहीं देखा जा सकता|”

    • आदर्श राज्य बादलों का नगर है न की धरती का|

    • प्लेटो के अनुसार “राज्य एक स्वाभाविक, प्राकृतिक व नैतिक संस्था है|” 

    • प्लेटो के अनुसार राज्य व्यक्ति का वृहद रूप है तथा व्यक्ति व राज्य में जीवाणु और जीव का संबंध होता है| जो गुण या विशेषताएं अल्पमात्रा में व्यक्ति में पायी जाती है, वे ही विशेषताएं विशाल रूप में राज्य में पायी जाती है| राज्य मूलतः मनुष्य का बाह्य रूप होता है|

    • प्लेटो “राज्य मानव मस्तिष्क का ही व्यापक रूप है| राज्य बलूत के वृक्ष (Oaks/ ऑक के वृक्ष) अथवा चट्टानों से नहीं निकलते, वरन राज्य उन लोगों के मस्तिष्क व चरित्र का परिणाम होते है, जो उसमें निवास करते हैं|”

    • प्लेटो एक ऐसे आदर्श राज्य की रचना करना चाहता था, जो पूर्णरूपेण ‘आदर्श मॉडल’ हो, अर्थात उसकी रचना, सौंदर्य, आदर्शवादिता में कहीं भी किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं हो|

    • प्लेटो अपने आदर्श राज्य को व्यवहारिक बनाने के लिए उसमें किंचित मात्र भी संशोधन करने को तैयार न था|

    • नैटलशिप “रिपब्लिक में प्लेटो अपने आदर्श को किंचित मात्रा में भी न्यून नहीं करता, उसे केवल इस बात से संतोष है कि वह राज्य को एक आदर्श रूप में प्रदर्शित कर रहा है|”

    • प्लेटो के मत में राज्य की चेतना में तथा व्यक्ति की चेतना में अंतर नहीं है| जैसा कि बार्कर ने कहा कि “राज्य की चेतना ठीक उसके सदस्यों की चेतना है, जब वे राज्य के सदस्य के रूप में विचार कर रहे हो|”

    • डेनिंग “रिपब्लिक इस कारण से आदर्श राज्य की तस्वीर नहीं देता है, कि यह एक रोमांस है, बल्कि प्लेटो चाहते थे कि वह भलाई के विचार पर एक वैज्ञानिक आक्रमण की शुरुआत करें|” 


    प्लेटो के आदर्श राज्य की उत्पत्ति व विकास के चरण-

    • प्लेटो के आदर्श राज्य का निर्माण 3 चरणों में संपन्न हुआ है, जो निम्न है


    1. स्वस्थ राज्य/ आदिम राज्य/ मूल राज्य-

    • प्लेटो ने सामाजिक आवश्यकताओं को राज्य की उत्पत्ति का आधार माना है|

    • प्लेटो “राज्य मानव समाज की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है, जिसमें कोई भी आत्मनिर्भर नहीं है|”

    • राज्य की उत्पत्ति के प्रथम चरण में ‘उत्पादक वर्ग’ का विकास होता है|

    • प्लेटो राज्य निर्माण का प्रथम तत्व ‘आर्थिक तत्व’ मानता है |

    • आर्थिक तत्व/ वासना से मनुष्य की आवश्यकताओं का जन्म होता है|

    • आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य आपस में वस्तुओं का आदान प्रदान करते हैं तथा समाज में श्रम विभाजन तथा कार्य विशेषीकरण उत्पन्न होता है| और इसमें समाज में बढ़ई, सुनार, लोहार, व्यापारी, चिकित्सक वर्ग का निर्माण होता है तथा राज्य का निर्माण होता है|

    • कार्य विशेषीकरण के संबंध में प्लेटो कहता है कि “प्रत्येक व्यक्ति सदैव अपनी प्रकृति के अनुकूल एक ही कार्य करें, एक ही व्यवसाय करें, अनेक कार्य न करें, तभी नगर-राज्य एक होगा|”


    Note- ग्लॉकोन आदिम राज्य को ‘सूअरों का नगर’ कहता है|

    1. विलासिता पूर्ण राज्य-

    • राज्य उत्पत्ति के दूसरे चरण में ‘सैनिक वर्ग’ की उत्पत्ति होती है|

    • आवश्यकताओं में वृद्धि होने से अधिक भू-भाग की आवश्यकता होती है| अत: दूसरा राज्य भू-भाग में हस्तक्षेप करता है| अपने भू-भाग की रक्षा तथा वृद्धि के लिए सैनिक वर्ग की उत्पत्ति होती है|


    1. न्यायपूर्ण राज्य/ श्रेणीमूलक राज्य-

    • राज्य की उत्पत्ति के तीसरे चरण में ‘दार्शनिक वर्ग’ की उत्पत्ति होती है|

    • प्लेटो के अनुसार सैनिक वर्ग के लोगों में सामान्तया उत्साह तथा विवेक पाया जाता है, किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनमें उत्साह की अपेक्षा विवेक का अत्यधिक बाहुल्य होता है| ऐसे लोगों से दार्शनिक वर्ग का जन्म होता है|

    • इस राज्य में तीन श्रेणियां होती है- शासक, सैनिक, उत्पादक वर्ग, 

    • अतः यही वास्तविक राजनीतिज्ञ समाज है, यही पूर्ण राज्य है|


    • M B फॉस्टर- प्लेटो के इस सिद्धांत में दो परस्पर भिन्न तत्व मिलते हैं-

    1. शासन कार्य राज्य का सारभूत तत्व है|

    2. शासन कार्य राज्य के भीतर एक विशिष्ट वर्ग के पास रहना चाहिए|


    Note- आदिम राज्य में जहां सभी व्यक्ति समान है, वहीं न्यायपूर्ण/ श्रेणीमूलक राज्य में विषमता पायी जाती है|


    Note- प्लेटो के अनुसार संरक्षक वर्ग में 2 वर्ग शामिल हैं    

    (1) सहायक संरक्षक या सैनिक वर्ग  

    (2) दार्शनिक वर्ग या पूर्ण संरक्षक वर्ग


    • प्लेटो के अनुसार विवेक गुण सैनिक वर्ग में भी पाया जाता है, लेकिन विशेष रूप से यह पूर्ण संरक्षक या शासक में ही पाया जाता है|

    • उत्साह (सैनिक वर्ग), विवेक की सहायता से अन्याय का विनाशक और न्याय का रक्षक होता है|



    आदर्श राज्य में तीन वर्ग-

    • राज्य निर्माण के तीन तत्वों के आधार पर अथवा कार्य विविशेषीकरण तथा श्रम विभाजन के आधार पर प्लेटो ने आदर्श राज्य में तीन वर्ग बताए हैं-

    1. शासक/ दार्शनिक वर्ग/ संरक्षक वर्ग 

    • विवेक गुण की प्रधानता

    • कार्य- शासन करना, सहायक संरक्षक वर्ग (सैनिक वर्ग) तथा उत्पादक वर्ग के बीच संतुलन बनाना|

    • दार्शनिक शासक को प्लेटों नोएटिक मैन (Noetic Man) कहता है, जिसका अर्थ है- विवेकशील या बुद्धिमान या तर्कवान व्यक्ति|


    1. सैनिक वर्ग/ सहायक संरक्षक वर्ग-

    • साहस गुण की प्रधानता

    • कार्य- उत्पादक वर्ग व राज्य की भूमि की सुरक्षा करना|


    1. उत्पादक वर्ग-

    • वासना या क्षुधा तत्व की प्रधानता

    • कार्य- राज्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना|

    • उत्पादक वर्ग के लिए प्लेटो अपिटेटिव मैन (Appetitive Man) शब्द का प्रयोग करता है, जिसका अर्थ है- ऐसा व्यक्ति जिसका अपनी इच्छाओं, इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होता है| 


    आदर्श राज्य की विशेषताएं-

    1. यह न्याय पर आधारित है|

    2. शिक्षा व साम्यवाद इसके दो आधार स्तंभ हैं|

    3. राज्य व्यक्ति का विराट रूप है|

    4. यह कार्य विशेषीकरण व अहस्तक्षेप पर आधारित है|

    5. नागरिकों के तीन वर्ग

    6. आदर्श राज्य में दार्शनिक राजा का शासन होगा|

    7. यह मानवीय स्वभाव के अनुकूल है|

    8. आदर्श राज्य का लक्ष्य विशुद्ध आध्यात्मिक और नैतिक है|

    9. राज्य का हित प्रधान व सर्वोपरि है, व्यक्ति उसका अंग मात्र है|

    10. स्त्री-पुरुष को समान अधिकार अर्थात शासन कार्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में स्त्री को भी पुरुष के समान अधिकार प्राप्त है|


    • वेपर “उचित नेतृत्व, उचित सुरक्षा, उचित पोषण आदर्श राज्य के अपरिहार्य तत्व है|”



    प्लेटो का दार्शनिक शासक-

    • दार्शनिक शासक का विचार प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में दिया है|

    • दार्शनिक शासक का सिद्धांत प्लेटो का एक प्रमुख एवं मौलिक सिद्धांत है|

    • फॉस्टर “दार्शनिक राजा की संकल्पना प्लेटो की मौलिक संकल्पना है|”

    • प्लेटो आदर्श राज्य में शासन दार्शनिक के हाथ में देता है, जैसा कि प्लेटो के शब्दों में “जब तक दार्शनिक राजा नहीं होते अथवा इस संसार में राजाओं में दर्शनशास्त्र के प्रति भावपूर्ण भक्ति नहीं जागती तब तक नगर-राज्यों से बुराई नहीं हट सकती है|”

    • प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था तथा साम्यवादी योजना के फलस्वरुप दार्शनिक राजा का निर्माण होता है|

    • प्लेटो दार्शनिक शासक को ‘विवेक का प्रेमी’ तथा नगर का सच्चा व अच्छा संरक्षक मानता है|

    • प्लेटो के मत में इस श्रेष्ठ मल्लाह के नेतृत्व में आदर्श राज्य की नौका आंधी और तूफान के झंझावतो से बचती हुई अपनी मंजिल तक अवश्य ही पहुंच जाएगी|

    • आदर्श राज्य में सरकार का संचालन नियम व कानूनों से न होकर दार्शनिक शासक के द्वारा होगा|

    • प्लेटो कानून को आदर्श राज्य के लिए अनावश्यक व हानिकारक मानता है|

    • दार्शनिक राजा पर कानून, नियमों का बंधन नहीं होता है, वह उन सबसे ऊपर होता है| इसके आदेश ही कानून  है|

    • दार्शनिक राजा ‘सद्गुण ही ज्ञान है’ की आत्मप्रेरणा से कार्य करता है|

    • दार्शनिक राजा से समाज का अहित नहीं हो सकता|

    • प्रजा को दार्शनिक राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिए| इस प्रकार प्लेटो का दार्शनिक राजा निरंकुश हो जाता है|


    • बुद्धिमान दार्शनिक शासक को संपूर्ण सत्ता सौंपने के पीछे प्लेटों के दो उद्देश्य थे-

    1. अत्याचार और धूर्तता से बचना

    2. समुदाय की भलाई


    • मैक्सी “एक सच्चा दार्शनिक शासक ज्ञान से प्रेम रखता है, न कि किसी विशेष मत से, वह क्रोध, घृणा, संकीर्णता, द्वेष, स्वार्थपरता आदि से दूर रहता है|”

    • फॉस्टर ने आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक की प्रभुसत्ता कोतर्कबुद्धि की प्रभुसत्ता सिद्धांत’ कहा है|

    • दार्शनिक राजा में विवेक की बाहुल्यता है, अतः उसके द्वारा भूल होने की संभावना कम है|


    दार्शनिक राजा पर बंधन या मर्यादाएं-

    • बार्कर ने दार्शनिक शासक पर चार मर्यादाएं बतायी है, उनको हम दार्शनिक राजा के कर्तव्य भी कह सकते है| जो निम्न है-

    1. दार्शनिक राजा को राज्य में अधिक संपन्नता या निर्धनता को नहीं बढ़ने देना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में कलह, अपराध, भोगवृत्ति पैदा होती है|

    2. राज्य का आकार न तो ज्यादा बढ़ने दें कि जिससे व्यवस्था रखना कठिन हो जाए व न इतना छोटा हो कि आवश्यकता की पूर्ति करने में कठिनाई हो|

    3. वह ऐसी न्याय व्यवस्था की स्थापना करें, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपना व्यवसाय सही ढंग से करें|

    4. वह शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन ना करें, क्योंकि जब संगीत की ताने बदलती हैं तो उसके साथ-साथ राज्य के मौलिक नियम भी बदल जाते हैं|


    दार्शनिक शासक की आज्ञापालन क्यों?

    • सैनिक वर्ग व उत्पादक वर्ग, दार्शनिक वर्ग की आज्ञाओं का पालन क्यों करेंगे, जिसके पास न तो सैनिक शक्ति है और न ही आर्थिक शक्ति| प्लेटो ने इस कठिनाई के निदान व विरोधी स्वरों को दबाने के लिए दार्शनिक वर्ग को दो सुझाव दिए हैं-

    1. कला व साहित्य पर राज्य का नियंत्रण

    2. उदात्त (महान) या शाही झूठ ( Noble or Royal lie) का सहारा लेना|


    उदात्त झूठ या शाही झूठ

    • इससे संबंधित ‘धातुओं और धरती से जन्म हुए लोगों का मिथक’ है|

    • प्लेटो का मत है कि दार्शनिक शासक को आमजन में इस महान/ उदात्त/ शाही झूठ का प्रचार करना चाहिए कि सभी मानव धरती से पैदा हुए हैं और उनके शरीर का निर्माण विभिन्न प्रकार की धातुओं से हुआ है|

    • दार्शनिक वर्ग के लोग सोने से, साहस तत्व वाला सैनिक चांदी से तथा तृष्णा वाला उत्पादक पीतल या कांसा से बना है|

    • यह तर्क समानता के साथ-साथ विभिन्नता व श्रेणीकरण भी पैदा करता है, क्योंकि सभी धातुएं जमीन से मिलती हैं, लेकिन उनके गुण अलग-अलग होते हैं|

    • प्लेटो के मत राज्य की भलाई के लिए उदात्त झूठ आवश्यक है, ताकि प्रत्येक वर्ग अपने कार्य तक सीमित रहे, किसी भी प्रकार का विरोधाभास पैदा ना हो| 


    • जर्मन दार्शनिक नीत्शे इस शाही झूठ की आलोचना करते है कि झूठ से अन्यायी समाज बनाता है न कि सही समाज| 

    • नीत्शे “प्लेटो ने इस मिथक का निर्माण मात्र राजनीतिक दमन से दर्शन की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि दर्शन को राजनीतिक प्रभाव प्रदान करने के लिए किया था|”

    • रसैल “प्लेटो जो नहीं समझता कि ऐसे मिथक दर्शन के साथ मेल नहीं खाते हैं|”

    • पॉपर “मिथक का दुरुपयोग इसके उपयोग से कहीं अधिक होता है| इसके फलस्वरूप कठोर वर्ग विभेद पैदा होते हैं, जिससे शासक प्रजा से बेहतर दिखाई देता है और इसे जाति, शिक्षा और मूल्यों के आधार पर उचित ठहराया जाता है|” 


    आदर्श राज्य और दार्शनिक शासक की आलोचना- 

    • आदर्श राज्य की धारणा अतिशय, कल्पना प्रधान और अव्यवहारिक है| प्लेटो ने बाद में स्वयं अनुभव किया कि आदर्श राज्य पृथ्वी पर संभव नहीं है| 

    • प्रोफेसर डेनिंग ने प्लेटो के आदर्श राज्य को अव्यवहारिक कहा है|

    • अरस्तु ने प्लेटोवादी आदर्श राज्य की आलोचना करते हुए कहा कि “यदि राजनीतिक समुदाय को इतनी कड़ाई से संगठित किया जाता है तो वह राजनीतिक संस्था नहीं रहेगी|”

    • आदर्श राज्य में व्यक्ति की अवहेलना की गई है| हीगल के अनुसार “प्लेटो के राज्य में व्यक्ति की स्वाधीनता को कोई स्थान नहीं है|”

    • शासक वर्ग की निरंकुशता- बार्कर ने प्लेटो के आदर्श राज्य को प्रबुद्ध निरंकुशवाद या विवेकशील निरंकुशवाद (Enlightened tyranny) की संज्ञा देता है|

    • उत्पादक वर्ग की उपेक्षा

    • स्वतंत्रता का निषेध

    • कानून की उपेक्षा

    • मानवीय आत्मा के आधार पर वर्ग विभाजन सही नहीं है|

    • आदर्श राज्य में प्लेटो अधिकारियों की नियुक्ति, दंडव्यवस्था, न्यायालय के बारे में नहीं बताता है|

    • कार्ल पॉपर प्लेटो को फासीवादी व लोकतंत्र विरोधी कहते हैं|

    • आदर्श राज्य सावययी होते हुए भी प्रगतिशील नहीं है|

    • अत्यधिक दर्शन व चिंतन के अध्ययन से शासक प्राय: झक्की व सनकी हो जाता है|

    • जावेट “दार्शनिक राजा या तो दूरदर्शी होता है या अतीत की ओर देखता है वर्तमान से उसका कोई संबंध नहीं होता है|”

    • प्लेटो ने बहुमत के शासन और जनभागीदारी का इस आधार पर विरोध किया है, कि साधारण व्यक्ति में परम सत्य और भलाई का विचार समझने की क्षमता नहीं होती है, यह केवल दार्शनिक व्यक्ति में ही होती है| इसका विरोध करते हुए पॉपर कहते हैं कि “यदि परम सत्य गलत साबित हो जाए तो क्या होगा और इस बात की क्या गारंटी है कि दार्शनिक शासक के ज्ञान से सामूहिकता को फायदा होता है|”

    • कोहेन ने अपनी महत्वपूर्ण रचना ‘द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रिवॉल्यूशन 1962’ में तर्क पेश किया कि “जिसे सच्चाई समझा जाता है वह हमेशा ही विशेष काल और स्थान में प्रभुत्वकारी विचार से तय होता है| इसे उन्होंने पैराडाइन कहा और इसके बिना वैज्ञानिक खोज असंभव थी|”

    • जॉन एबरीच डालबिग एक्टन ने कहा कि “समुदाय की भलाई के लिए असीमित सत्ता पर संस्थागत अंकुश लगाना जरूरी है|” 


    Note- फॉस्टर “प्लेटो के संपूर्ण राजनीतिक विचार में दार्शनिक राजा की अवधारणा मौलिक है|”


    आदर्श राज्य का औचित्य-

    • कुछ विचारको का मानना है कि आदर्श राज्य उचित था|

    • स्ट्रास के अनुसार रिपब्लिक राजनीतिक भाववाद का व्यापकतम व गहनतम विश्लेषण प्रस्तुत करता है| जिसका उद्देश्य यह दर्शाना था कि राजनीतिक औचित्य की सीमाएं क्या थी?

    • रेंडल के अनुसार रिपब्लिक एक ऐतिहासिक व्यंग था, जिसका उद्देश्य यह दिखाना था कि स्पार्टन मॉडल  अवास्तविक और अजीबोगरीब था और यह काम नहीं कर सकता था|” 

    • ब्लूम कहते हैं कि “राजनीतिक आदर्शवाद सबसे विनाशकारी मानवीय भावना है और द रिपब्लिक आदर्शवाद की अब तक की सबसे बड़ी आलोचना है|”



    आदर्श राज्य का पतन और शासन प्रणालियों का वर्गीकरण

    • प्लेटो का आदर्श राज्य स्थायी नहीं है| प्लेटो भी आदर्श राज्य को स्थायी व व्यवहारिक नहीं मानता है|  रिपब्लिक की 8वीं व 9वी पुस्तक में वह आदर्श राज्य के पतन व अन्य शासन प्रणालियों के बारे में वर्णन करता है|

    • आदर्श राज्य का पतन दार्शनिक शासन के पतन तथा आदर्श राज्य के सिद्धांतों में कमी के कारण होता हैं|  


    • आदर्श राज्य के पतन के साथ क्रमश 5 प्रकार की शासन प्रणालियों का उदय होता है-

    1. राजतंत्र (Monarchy)

    2. कीर्तितंत्र (Timocracy)

    3. अल्पतंत्र (Oligarchy)

    4. लोकतंत्र (Democracy)

    5. निरंकुश तंत्र (Tyranny)


    1. राजतंत्र- आदर्श राज्य के बाद सबसे पहले राजतंत्र का उदय होता है| प्लेटो के अनुसार राजतंत्र में जनता को सर्वाधिक सुख प्राप्त होता है, क्योंकि इसमें न्याय भावना से अनुप्रमाणित विवेक संपन्न दार्शनिक राजा शासन करता है|


    1. कीर्तितंत्र- इसके बाद साम्यवाद के त्याग तथा व्यक्तिगत संपत्ति के उदय से राजतंत्र का पतन तथा कीर्तितंत्र का उदय होता है| इसमें संरक्षक वर्ग सारी संपत्ति को हथिया लेता है तथा सारी शक्ति जमीदार योद्धाओं के हाथ में आ जाती है| विवेक की जगह उत्साह, साहस की प्रधानता बढ़ जाती है| इसमें योद्धा अपनी कीर्ति और महत्वाकांक्षा बढ़ाने की दृष्टि से राज्य का संचालन करते है|


    1. अल्पतंत्र- कीर्तितंत्र धीरे-धीरे अल्पतंत्र में बदल जाता है| उत्साह की जगह काम की प्रधानता बढ़ जाती है| इसमें संपूर्ण शक्ति कुछ व्यक्तियों और कुलो के हाथ में आ जाती है| आर्थिक बल पर व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से शासन किया जाता है| इस शासन तंत्र में धनीको तथा निर्धनों में खाई गहरी हो जाती है|


    1. लोकतंत्र- अल्पतंत्र में दरिद्र जनता में तीव्र असंतोष एवं विद्रोह की भावना उत्पन्न होती है| इसलिए दरिद्र जनता शासन पर कब्जा करके लोकतंत्र की स्थापना करती है| लोकतंत्र में सभी को स्वतंत्रता व समानता प्राप्त होती है, लेकिन अनुशासन व आज्ञापालन का भाव लुप्त हो जाता है|


    1. निरंकुश तंत्र- लोकतंत्र का अंत करने के लिए जनता में एक नेता खड़ा हो जाता है, वह जनता को बड़े मोहक आश्वासन देकर निरंकुशतंत्र की स्थापना करता है| जनता उस पर विश्वास करके उसे सत्ता व सैनिक शक्ति देती है, लेकिन वह जनता का दमन करता है तथा स्वेच्छाचारी शासन की स्थापना कर लेता है| ‘काम’ तत्व का सर्वाधिक पाशविक रूप निरंकुश तंत्र या तानाशाही शासन में देखने को मिलता है| यह  सबसे निकृष्ट शासन प्रणाली है| 



    Note- प्लेटो के अनुसार

    • सबसे उत्कृष्ट शासन प्रणाली- राजतंत्र

    • सबसे निकृष्ट शासन प्रणाली- निरंकुश तंत्र





    रिपब्लिक में लोकतंत्र की आलोचना-

    • प्लेटो के दिमाग पर सुकरात को विषपान कराने वाले एथेंस के लोकतंत्र का बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा था|


    प्लेटो रिपब्लिक में लोकतंत्र के निम्न दोष बताता है

    1. लोकतंत्र में सत्ताधारी राजनीतिज्ञ व अधिकारी अज्ञानी व असक्षम होते है|

    2. शासन की शक्ति वोट बटोरने वाले स्वार्थी व असक्षम लोगों के हाथ में आ जाती है|

    3. लोकतंत्र को प्लेटो भीड़तंत्र कहता है| भीड़ अपनी इच्छा अनुसार शासकों से कानून बनवा लेती है|

    4. लोकतंत्र के स्वतंत्रता व समानता के दोनों आधार गलत हैं| प्लेटो के मत में इससे समाज में अव्यवस्था, अनुशासनहीनता और उच्छृखलता का प्रसार होता है|

    • प्लेटो- लोकतंत्र में पुत्र, पिता के तुल्य बन जाता है और वह माता-पिता के प्रति आदर और भय की भावना नहीं रखता है| अध्यापक अपने शिष्यों से डरता है| ऐसे राष्ट्र में सार्वजनिक स्वतंत्रता की पराकाष्ठा तब होती है जब दास-दासिया भी उनको मोल लेने वाले स्वामियों के बराबर स्वतंत्र हो जाते है|”


    1. लोकतंत्र प्लेटों के न्याय सिद्धांत के अनुकूल नहीं है, क्योंकि तत्कालीन एथेंस की जनतंत्रीय व्यवस्था में ‘लॉटरी’ प्रणाली द्वारा कोई व्यक्ति किसी भी पद के लिए चुना जा सकता था| लोकतंत्र में एक व्यक्ति अनेक कार्य कर सकता है| जबकि प्लेटो की न्याय व्यवस्था कार्य विशेषीकरण तथा श्रम विभाजन के सिद्धांत पर आधारित है|

    2. प्लेटो की दृष्टि में लोकतंत्र अराजकता तथा बहुतंत्र है| अर्थात यहां अनेक तत्वों और अनेक व्यक्तियों का शासन रहता है| इस शासन में अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग होता है|

    3. लोकतंत्र भ्रष्ट, अकुशल व अनाड़ियों का शासन है|


    Note- प्लेटो अपनी बाद की अवस्था में लोकतंत्र का इतना कठोर आलोचक नहीं रहा था| जहां रिपब्लिक में प्लेटो लोकतंत्र को अल्पतंत्र से नीचे स्थान देता है, वही स्टेट्समैन में वह लोकतंत्र को अल्पतंत्र से श्रेष्ठ मानता है


    Note- प्लेटो तत्कालीन यूनानी राज्यों को ‘शुकरो की नगरी’ कहता है| क्योंकि वहां दार्शनिकों का शासन न होकर अनाड़ियों का शासन था|



    प्लेटो और फासीवाद-

    • प्लेटो को फासिस्टो का ‘अग्रगामी विचारक’ प्रथम फासीवादी कहा जाता है|

    • कार्ल पॉपर, क्रोसमैन, रसेल, अल्फ्रेड हार्नले आदि ने प्लेटो को विश्व का प्रथम फासिस्ट और सर्वसत्ताधिकारवादी माना है|


    फासीवाद- 

    • फासीवाद एक सर्वाधिकारवादी विचारधारा है, जिसका जन्म प्रथम महायुद्ध के पश्चात हुआ था| फासीवाद का प्रवर्तक इटली का अधिनायक मुसोलिनी था|

    • फासीवाद की उत्पत्ति ‘फासियों’ (FASCIO) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है लकड़ी का गट्ठर| यह फासीवादियों के राष्ट्र की कल्पना का प्रतीक था|

    • फासीवादियों के अनुसार राष्ट्र अनुशासनबद्ध व्यक्तियों का एक सामूहिक संगठन है| इसमें राष्ट्र को एक सर्वोपरि साध्य और व्यक्ति को उसकी प्राप्ति का एक साधन माना जाता है|

    • फासीवादियों के अनुसार राष्ट्र एक दैविक, नैतिक एवं पवित्र संस्था है, जो व्यक्ति और समाज का सर्वोत्तम विकसित रूप है|

    • ऐसा सर्वाधिकारवादी राष्ट्र एक शक्तिशाली, सर्वज्ञ, सर्वोच्च अधिनायक द्वारा प्रशासित होता है|

    • फासीवाद की प्रमुख मान्यताएं है- उग्र राष्ट्रवाद, वैयक्तिक स्वतंत्रता का विरोधी, उदारवाद विरोधी, हिंसा व शक्ति में विश्वास, नेता का शासन| 


    प्लेटो को निम्न कारण से फासिस्ट कहा जाता है-

    1. प्लेटो और फासीवाद दोनों अपने राष्ट्र को सर्वोपरि बताते हैं|

    2. प्लेटो और फासीवाद दोनों लोकतंत्र के विरोधी हैं|

    3. दोनों ने व्यक्ति की स्वतंत्रता को कोई स्थान नहीं दिया है|

    4. दोनों का रूप अधिनायकवादी है- 

    • प्लेटो- दार्शनिक राजा का अधिनायकवाद

    • फासीवाद- एक नेता या एक दल की निरंकुशता

    1. दोनों ने शासक को सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान व सबसे अधिक बुद्धिमान माना है|

    • प्लेटो- दार्शनिक शासक

    • फासीवाद- निरंकुश नेता शासक

    1. दोनों का कुलीनतंत्र में विश्वास है|

    • प्लेटो का कुलीनतंत्र- विवेक वर्ग/ दार्शनिक वर्ग

    • फासीवाद का कुलीनतंत्र- एक दल 

    1. दोनों व्यक्ति के केवल कर्तव्यों पर बल देते हैं|

    2. दोनों राज्य द्वारा नियंत्रित, विशेष पाठ्यक्रम की शिक्षा व्यवस्था करते हैं|

    3. दोनों का मनुष्यो की असमानता में विश्वास है| दोनों शासन करने की क्षमता कुछ ही व्यक्तियों में  मानते हैं|

    4. दोनों का दृष्टिकोण संकुचित है, क्योंकि जहां प्लेटो नगर राज्य को मानव विकास का चरम बिंदु मानता है, वही फासीवाद भी राष्ट्रीय राज्य को सभ्यता का सर्वोच्च सोपान कहता है|


    प्लेटो तथा फासीवाद में अंतर- 

    • G.C फील्ड, जॉन वायल्ड, जॉन एच हेलोवल विद्वानों का विचार है कि प्लेटो को फासिस्ट मानना एक मिथ्या धारणा है|


    • प्लेटो और फासीवाद में निम्न अंतर हैं-

    1. प्लेटोवाद साक्षात विवेकवाद है, फासीवाद विवेक विरोधी दर्शन है|

    2. प्लेटोवाद आदर्शवाद है, वही फासीवाद यथार्थवाद है|

    3. प्लेटो संयम पर आधारित है, वही फासीवाद दमन पर आधारित है|

    4. प्लेटो नैतिकवाद है, फासीवाद अनैतिकवाद है|

    5. प्लेटो साम्यवाद में विश्वास करता है, फासीवाद साम्यवाद विरोधी है|

    6. प्लेटो की विचारधारा शांतिवादी है, फासीवाद युद्धवादी है

    7. प्लेटो का लक्ष्य आत्मनिर्भर नगर राज्य है, फासीवाद का लक्ष्य है साम्राज्यवाद|

    8. प्लेटो के अनुसार न्याय स्वभाव के अनुकूल कार्य करना है, जबकि फासिस्टो के अनुसार न्याय शक्तिशाली का हित है|


    • क्रॉसमैन “प्लेटो का समाधान है, प्रबुद्ध निरंकुशता| प्लेटो को इतिहास में प्रथम फासिस्ट कहा गया है|”



    प्लेटो: स्टेट्समैन (Plato: The Statesman)

    • प्लेटो की यह रचना 367- 361 ईसा पूर्व के मध्य लिखी गई| जब वह सेराक्यूज में डायनोसियस (द्वितीय) के सुधार में लगा हुआ था या इसके तुरंत बाद| इस समय प्लेटों को एक और तो सेराक्यूज के राजतंत्र से बड़ी-बड़ी आशाएं बंध रही थी तथा दूसरी ओर विधि (कानून) में भी उसकी अभिरुचि उत्पन्न हो गई थी, तथा वह डायनोसियस द्वितीय के साथ विधियों की प्रस्तावनाए तैयार करने में लगा हुआ था |

    • सिनक्लेयर के अनुसार रिपब्लिक की रचना के लगभग 12 से 15 वर्ष बाद 362 ईसा पूर्व में प्लेटो ने स्टेट्समैन की रचना की|

    • इस ग्रंथ में कानून पर प्लेटो ने नए दृष्टिकोण से विचार किया तथा जनतंत्र की उतनी आलोचना नहीं की, जितनी कि रिपब्लिक में की थी |

    • स्टेट्समैन में मिश्रित संविधानो का संकेत मिलता है तथा जिसका पूर्ण विकास लॉज में हुआ था|

    • स्टेट्समैन को ग्रीक भाषा में पॉलिटिक्स (Politicus) कहा जाता है|

    • ग्रीक भाषा के पॉलिटिक्स (Politicus) का शाब्दिक अर्थ है-राजपुरुष या राजनीतिज्ञ या राजमर्मज्ञ|’

    • स्टेट्समैन में थियोडोरस, सुकरात तथा एक विदेशी के मध्य आदर्श राजनीतिज्ञ के स्वरूप एवं कर्तव्य के विषय में वार्तालाप या संवाद का वर्णन है |

    • इस संवाद या वार्तालाप में रिपब्लिक में प्रतिपादित आदर्शों पर पुन: विचार किया जाता है और विभिन्न प्रकार की शासन पद्धतियों के चक्र तथा उनके गुण-अवगुण का विवेचन किया जाता है |

    • स्टेट्समैन का मुख्य विषय एक राजपुरुष या राजनेता है| प्लेटो ने राजनेता को सर्वोच्च सत्ता का अधिकारी माना है और राजनीतिक नेतृत्व को सभी विज्ञानों में प्रधान बतलाया है |

    • संवाद की पहली कड़ी में राजनीतिज्ञता अथवा राजमर्मज्ञता का संबंध ज्ञान से बताया है तथा संवाद श्रंखला की दूसरी कड़ी में ज्ञान के दो भाग बताए गए हैं-

    1. आलोचनात्मक ज्ञान

    2. आदेशात्मक ज्ञान


    1. आलोचनात्मक ज्ञान- इसमें निर्णय लिए जाते हैं तथा निर्णयो को कार्यान्वित करने के आदेश दिए जाते हैं|

    2. आदेशात्मक ज्ञान- राजनीतिज्ञता आदेशात्मक ज्ञान के अंतर्गत आती है| प्लेटो ने आदेशात्मक ज्ञान को भी दो भागों में बांटा है -

    1. प्रधान या सर्वोपरि भाग

    2. गौण या अधीन भाग


    1. प्रधान या सर्वोपरि भाग- राजनेता व प्रशासक इस श्रेणी में आते हैं| ये आदेश दे सकते हैं, ये प्रभुता संपन्न होते हैं इनके आदेश का स्रोत स्वयं ही होते हैं |

    2. गौण या अधीनस्थ भाग- इसमें अधीनस्थ लोग होते हैं, जो उन्हीं आदेशों को जारी कर देते हैं जो उन्हें दिए जाते हैं| इसमें सेनापति, न्यायाधीश व अन्य अधीनस्थ अधिकारी होते हैं|


    • प्लेटो की दृष्टि में जिन विज्ञानों का संबंध कर्म से है, उनमें राजनीतिज्ञता अथवा राजमर्मज्ञता (Statesment) सबकी सिरमौर है | 

    • प्लेटो के अनुसार राजनेता अपनी आदेश शक्ति का प्रयोग भरण-पोषण के लिए करता है, भरण पोषण का मतलब प्रजा की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति है|

    • ज्ञान तक कुछ ही व्यक्तियो की पहुंच होती है, अतः राजनेता कुछ ही व्यक्ति होते हैं |


    • प्लेटो ने राजनेता या प्रशासक की निरंकुशता अथवा निरपेक्षता का निम्नलिखित आधारों पर पोषण या संशोधन किया है-

    1. राजनीतिक सभ्यता के तर्क के आधार पर निरंकुशता का पोषण 

    2. सामाजिक सामंजस्य के तर्क के आधार पर निरंकुशता का पोषण

    3. विधि-शासन के विचार के आधार पर निरंकुशता का संशोधन


    1. राजनीतिक सभ्यता के तर्क के आधार पर निरंकुशता का पोषण-   

    • इस आधार पर निरंकुशता को न्यायोचित ठहराते हुए प्लेटो कहता है कि “राजनीतिज्ञता एक कला है तथा राजनेता कलाकार| जिस प्रकार कलाकार कला प्रदर्शन के समय पूर्ण स्वतंत्र होता है, उसी प्रकार राजनेता भी शासन संचालन में पूर्ण स्वतंत्र व निरंकुश होना चाहिए| उसकी कला के लिए विधि या कानून अनावश्यक व हानिकारक है|”  

    • इस विरोध के बावजूद भी स्टेट्समैन में प्लेटो मानता है कि कानून होता है, लेकिन उसमें कमियां  होती है| प्लेटो का मानना है कि व्यावहारिक दृष्टि से कानून उचित होता है, लेकिन आदर्श की मांग है कि राजनीतिज्ञ पर कानून का बंधन लचीला होना चाहिए|

    • बार्कर के अनुसार “प्लेटो विधि की कठोरता से डरता है|”


    1. सामाजिक सामंजस्य के आधार पर निरंकुशता का पोषण-

    • इस तर्क के आधार पर प्लेटो कहता है कि राजनेता या शासक को विभिन्न व्यक्तियों में सामंजस्य की स्थापना करके उनमें एकता की स्थापना करनी चाहिए| इसके लिए राजनेता का निरंकुश होना आवश्यक है, तभी वह सामंजस्य की स्थापना कर सकता है|        

    • प्लेटो के अनुसार राजनेता 2 उपायों से सामंजस्य लाने का प्रयत्न करेगा-

    1. आध्यात्मिक अथवा अलौकिक

    2. भौतिक अथवा लौकिक


    1. विधि के शासन के विचार के आधार पर निरंकुशता का संशोधन--

    • प्लेटो ने व्यवहारिकता को अपनाते हुए चिंतन के अगले चरण में विधि के शासन के आधार पर निरंकुशता में संशोधन किया है|  

    • इस नए दौर में प्लेटो ने यथार्थ के साथ समझौता किया और स्वीकार किया कि राजनीतिक जीवन में सहमति, विधि, संविधानवाद का भी स्थान होता है| 

    • प्लेटो के अनुसार सच्चे राजनेता के ज्ञान के स्थान पर कानून का शासन रख दिया जाए तो भी राज्य कायम रहेगा वृद्धावस्था में प्लेटो वास्तविकता के सामने झुक जाता है|

    • स्टेट्समैन में कानून को स्थान देते हुए कहता है कि दार्शनिक शासक इस भूतल पर प्राप्त नहीं होगा, अतः समुचित शासन व्यवस्था को कानून की सार्वभौमिकता मानना आवश्यक है| इसके बाद लॉज में प्लेटो कानून को उचित स्थान पर प्रतिपादित कर देता है|

     

    स्टेट्समैन में प्लेटो का राज्य- वर्गीकरण

    • स्टेट्समैन में प्लेटो ने राज्य को 6 भागों में बांटा है, जो निम्न है-

    • प्लेटो ने दो आधारों पर 6 प्रकार के राज्यों का वर्गीकरण किया है, यह दो आधार निम्न है-

                            1 कानून

                            2 शासकों की संख्या


    राज्यों के प्रकार


    शासकों की संख्या

      शासन के रूप

    A.  कानून प्रिय या कानून से संचालित होने वाले राज्य

    1  एक व्यक्ति का शासन

    1  राजतंत्र (Monarchy)


    2  कुछ व्यक्तियों का शासन

    2 कुलीन तंत्र (aristocracy)


    3  बहुत से व्यक्तियों का शासन

    3 प्रजातंत्र (democracy)

    B.  कानून द्वारा संचालित न होने वाले राज्य

    1  एक व्यक्ति का शासन

    4 निरंकुश तंत्र (Tyranny)


    2  कुछ व्यक्तियों का शासन

    5 अल्पतंत्र (Oligarchy)


    3  बहुत से व्यक्तियों का शासन

    6 अतिवादी प्रजातंत्र (Extren democracy)

     

    • Note- प्लेटो रिपब्लिक में राज्यों का वर्गीकरण आदर्श राज्य की विकृति तथा एक दूसरे राज्य की विकृति के रूप में करता है, जबकि स्टेट्समैन में राज्यों का वर्गीकरण विस्तृत रूप में किया है|


    • स्टेट्समैन के अनुसार-

    1. सर्वश्रेष्ठ शासन पद्धति- राजतंत्र

    2. सबसे निकृष्ट शासन पद्धति- निरंकुश तंत्र


    • प्रजातंत्र प्लेटो के अनुसार कानून आधारित शासनो में सबसे बुरा तथा कानून रहित शासनो में सबसे अच्छा है |

    • अतः स्टेट्समैन में प्लेटो यह मान लेता है कि वास्तविक राज्य में जनता की स्वीकृति और सहयोग की उपेक्षा नहीं की जा सकती |


                    

    रिपब्लिक व स्टेट्समैन के राजनीतिक विचारों में अंतर-

    1. रिपब्लिक आदर्शवादी है, जबकि स्टेट्समैन यथार्थवादी है |

    2. स्टेट्समैन में प्लेटो प्रजातंत्र को हेय नहीं समझता है, जबकि रिपब्लिक में इसकी कटु आलोचना की है |

    3. रिपब्लिक में उत्पादक वर्ग को उपेक्षित रखा है, जबकि स्टेट्समैन में उन्हें ग्रीक नगर राज्य का नागरिक स्वीकार किया है|

    4. स्टेट्समैन में राजनेता का कार्य शासकों को प्रशिक्षित करना है, जबकि रिपब्लिक में ऐसी व्यवस्था नहीं है|

    5. रिपब्लिक में दार्शनिक शासकों को संप्रभुता दी गई है जबकि स्टेट्समैन में सर्वज्ञ राजपुरुष या राजनेता का महत्व प्रतिपादित है|

    6. रिपब्लिक में कानून को महत्व नहीं दिया गया है, जबकि स्टेट्समैन में कानून को महत्व दिया जाता है|

    7. दोनों में शासन का वर्गीकरण भी भिन्न है|


    • इस प्रकार स्टेट्समैन में प्लेटो के प्रौढ़ता के दर्शन होते हैं|



    प्लेटो : लॉज  (Plato : The Laws)

    • लॉज प्लेटो का अंतिम ग्रंथ था, जिसका प्रकाशन उसकी मृत्यु के 1 वर्ष बाद 346 ईसा पूर्व में हुआ| 

    • इसका प्रकाशन प्लेटो के शिष्य कोपस के फिलिप (Philip of copas) के द्वारा करवाया गया| 

    • आकार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा ग्रंथ है| 

    • लॉज भी संवाद पर आधारित ग्रंथ है|

    • लॉज प्लेटो का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसका प्रमुख प्रवक्ता या नायक सुकरात नहीं है|


    • इसमें संवाद के 3 पात्र हैं--

    1. बिना नाम का एथेंस वासी मुख्य वक्ता है, जो प्लेटो का प्रतिनिधित्व करता है|

    2. दूसरा मेगिलस है, जो स्पार्टा निवासी है|

    3. तीसरा कलिनियस है, जो क्रीट निवासी है |


    • लॉज 12 भागों में विभक्त है, जिसमें निम्न वर्णित है-

    • प्रथम व द्वितीय भाग- संगीत, नृत्य, शिक्षा का महत्व

    • तीसरा भाग- राज्य के ऐतिहासिक विकास का वर्णन

    • चौथा भाग- राजनीति शास्त्र के आधारभूत सिद्धांतों का वर्णन

    • पांचवे से आठवे तक- कानूनों, शासन-विधान, पदाधिकारियों, राज्य की जनसंख्या, शिक्षा पद्धति का वर्णन

    • नवे से ग्यारवे तक- फौजदारी और दीवानी नियमों की संहिता

    • 12 वे भाग- सार्वजनिक कानून, कर्तव्यच्युत अधिकारियों के लिए दंड व्यवस्था, नैश परिषद (Nocturnal Council) का वर्णन है|


    • लॉज में प्लेटो ने उप आदर्श राज्य अथवा द्वितीय सर्वश्रेष्ठ राज्य का खाका खींचा है| लॉज में प्लेटो एक ऐसी शासन प्रणाली का आयोजन करता है, जिसमें कानून की प्रभुता होगी किंतु शासन का संचालन ज्ञान और दर्शन ही करेंगे|

    • प्लेटो ने उप आदर्श राज्य अथवा द्वितीय सर्वश्रेष्ठ को यूनानी भाषा में मैग्नीशिया (Magnesia) कहा है|

    • लॉज में प्लेटो कानून का विचार देता है| लॉज में प्लेटो कानून को मन की उपज कहता है एवं उसे एक सभ्यता मानता है|


    लॉज में प्रतिपादित उप-आदर्श राज्य के प्रमुख सिद्धांत-

    1. आत्म संयम का सिद्धांत-

    • प्लेटो लॉज में न्याय की स्थापना के लिए आत्म संयम को आवश्यक मानता है| आत्म संयम से समाज में न्याय, विवेक, उत्साह की प्रतिष्ठा होती है तथा राज्य में एकता व स्वतंत्रता प्राप्त होती है| आत्म संयम राज्य को पूर्ण व दोष रहित बनाता है| आत्म संयम से ही उत्पादक वर्ग दार्शनिकों का नियंत्रण स्वीकार करता है|


    1. कानून विषयक सिद्धांत-

    • प्लेटो ने लॉज में कानून की प्रभुता स्थापित की है| लॉज में कानून की स्थिति सर्वोच्च है तथा शासक और शासित दोनों ही इसके अधीन रहते हैं|  

    • प्लेटो लॉज के उप-आदर्श राज्य में कानून को वही स्थान देता है, जो रिपब्लिक में बुद्धि को देता है|  

    • प्लेटो के अनुसार कानून का निर्माण एक कानून निर्माणक अथवा संहिताकार द्वारा होना चाहिए| 

    • कानूनों को कार्यान्वित करने का भार किसी नवयुवक शासक को दिया जाना चाहिए|  

    • प्लेटो के अनुसार राज्य को कानून के अनुसार होना चाहिए, ना कि कानून राज्य के अनुकूल हो| 

    • सरकार को कानून के सेवक और दास की भांति राज्य का संचालन करना चाहिए| प्लेटो कानून की स्थिरता और ठोसपन में विश्वास रखता है| 

    • प्लेटो के अनुसार कानूनों के पालनार्थ राज्य के नागरिकों की उचित शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए|


    1. इतिहास की शिक्षाएं-

    • लॉज में प्लेटो बताता है कि हमें भूतकालीन अनुभवों से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए|  

    • इतिहास के आधार पर प्लेटो ने कानून के नियम, मिश्रित संविधान, आत्म संयम जैसे तत्वों की पुष्टि की है| 

    • इतिहास का उदाहरण देते हुए प्लेटो कहता है कि आत्म संयम नहीं रहने के कारण ही आरगोस एवं मेंसीना जैसे राज्यों का पतन हो गया|


    1. मिश्रित राज्य या मिश्रित संविधान-

    • लॉज के उप-आदर्श राज्य की महत्वपूर्ण विशेषता मिश्रित संविधान अथवा मिश्रित राज्य है| 

    • इस सिद्धांत का उद्देश्य शक्तियों के संतुलन द्वारा समरसता प्राप्त करना है|  

    • इस सिद्धांत के अनुसार उप-आदर्श राज्य के निर्माण के लिए राजा और प्रजा, धनी और निर्धन, बुद्धिमान और शक्तिशाली सभी व्यक्तियों और वर्गों का सहयोग आवश्यक है| 

    • लॉज में वर्णित उप-आदर्श राज्य राजतंत्र, कुलीनतंत्र और जनतंत्र का समन्वय है, अर्थात प्लेटो शक्ति संतुलन के लिए मध्यम मार्ग अपनाता है|


    1. राज्य की भौगोलिक स्थिति व जनसंख्या-

    • प्लेटो के अनुसार उप-आदर्श राज्य समुद्र तट से दूर होना चाहिए, क्योंकि समुद्र तट के निकट होने पर विदेशी व्यापारी भ्रष्टाचार फैला सकते हैं|  

    • राज्य चारों तरफ से सुरक्षित सीमाओं से घिरा होना चाहिए| 

    • राज्य में जहाज बनाने वाले लकड़ी नहीं होनी चाहिए ताकि समुद्री व्यापार न हो, क्योंकि समुद्री व्यापार लोगों को व्यापारिक वृत्ति का बना देता है| जो राज्य को बेवफा व मित्र रहित बना देता है| 

    • प्लेटो नौसेना को स्थल सेना से खराब मानता है, जबकि अरस्तु सामुद्रिक राज्य के पक्ष में था|

    • राज्य कृषि प्रधान होना चाहिए|  

    • राज्य की जनसंख्या 5040 या 5040 परिवार होने चाहिए, यह जनसंख्या युद्ध व शांति के लिए उपयोगी है| 

    • 5040 का मुख्य भाजक 12 है| प्लेटो अपने आदर्श राज्य को 12 जातियों में बांटता है| उसके राज्य में मुद्रा, नापतोल की व्यवस्था द्वादशात्मक थी|


    1. संपत्ति एवं आर्थिक व्यवस्था- 

    • लॉज के उप-आदर्श राज्य में मानवीय दुर्बलताओं को ध्यान में रखते हुए प्लेटो निजी संपत्ति एवं परिवार की अनुमति दे देता है| 

    • प्लेटो संपत्ति में भूमि व मकान को शामिल करता है|  

    • प्लेटो अत्यधिक आर्थिक विषमता को समाप्त करना चाहता है| प्लेटो स्वामित्व तो निजी कर देता है लेकिन उपभोग सामूहिक रखता है|

    • राज्य के पास केवल प्रतीक मुद्रा होगी| ऋणों पर ब्याज नहीं लिया जा सकता| सोना चांदी अपने पास नहीं रखा जा सकता| 

    • उच्चतम और निम्नतम संपत्ति के बीच अनुपात 4:1 होना चाहिए|


    1. श्रम विभाजन-

    • प्लेटो उप-आदर्श राज्य में आर्थिक संरचना के आधार पर कार्यों का वर्गीकरण तीन भागों में करता है-

    1. विदेशियों और स्वतंत्र व्यक्ति (freeman) के लिए व्यापार व उद्योग

    2. दास और गुलामों के लिए खेती

    3. नागरिकों के लिए शासन प्रबंध अर्थात राजनीतिक कार्य 


    1. सरकार का संचालन-

    • सरकार का संचालन कानून के अनुसार होगा| शासन संचालन की निम्न राजनीतिक संस्थाएं होंगी-

    1. साधारण सभा- राज्य के सभी नागरिक इसके सदस्य होंगे| इसकी बैठक वर्ष में एक बार अवश्य होनी चाहिए| इसका प्रमुख कार्य अन्य संस्थाओं के सदस्यों का चुनाव करना और कानून व न्याय में परिवर्तन करना|


    1. सलाहकार बोर्ड- इसके 37 सदस्य होंगे| सदस्यों की आयु 50 से 70 वर्ष होनी चाहिए| सलाहकार बोर्ड का प्रमुख कार्य परामर्श देना है|


    1. प्रशासनिक परिषद- इसके 360 सदस्य होंगे| इसका मुख्य कार्य सलाहकार बोर्ड के आदेशों को कार्यान्वित करना व वास्तविक रूप से शासन करना है| शासन की सुविधा की दृष्टि से यह 12 भागों में विभक्त होगी, प्रत्येक भाग 1 महीने के लिए कार्य करेगा| इसका कार्यकाल 20 वर्ष का होगा| इसका अध्यक्ष शिक्षा विभाग का अध्यक्ष होगा जो 5 वर्ष के लिए चुना जाएगा|


    1. न्याय का प्रशासन- प्लेटो उप-आदर्श राज्य में 4 तरह के न्यायालयों का वर्णन करता है-

    1. स्थायी पंचायती न्यायालय

    2. क्षेत्रीय न्यायालय

    3. विशेष चुने न्यायाधीशों का न्यायालय

    4. संपूर्ण जनता का न्यायालय


    • संपूर्ण विभाग का संरक्षक मंत्री होगा|


    1. स्थानीय शासन- प्लेटो स्थानीय शासन की भी व्यवस्था करता है| नगरों में दो प्रकार के अधिकारी होंगे-

    1. नगर निरीक्षक

    2. बाजार निरीक्षक| 


    • ग्रामों में अधिकारी ग्रामीण निरीक्षक होंगे|


    1. विवाह तथा परिवार विषयक विचार- 

    • लॉज में प्लेटो स्त्रियों के साम्यवाद को समाप्त कर देता है| स्त्री शिक्षा, स्त्री- पुरुष समानता पर बल देता है|

    • विवाह विरोधी चरित्र के मध्य होना चाहिए| प्रति मास धार्मिक सभाओं का आयोजन हो, जिसमें युवक अपनी भावी पत्नी प्राप्त करें| विवाह का उद्देश्य व्यक्तिगत आनंद न होकर राज्य का हित होना चाहिए|


    1. शैक्षणिक व धार्मिक संस्थाएं-

    • प्लेटो राज्य नियंत्रित शिक्षा का पक्षधर है| 

    • प्लेटो धर्म को भी संस्थागत रूप देना चाहता है| धर्म को भी राज्य के नियंत्रण में रखना चाहते हैं| 

    • प्लेटो ने किसी भी प्रकार की निजी धार्मिक शिक्षा पर पाबंदी लगाई एवं पूजा-पाठ राज्य द्वारा अधिकृत पादरी ही कर सकते थे|

    • प्लेटो नास्तिकता का विरोध करता है| धर्म के प्रति श्रद्धा हीन व्यक्तियों के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था करता है|


    1. नैश परिषद या निशाचर परिषद

    • इसमें 37 सदस्य होंगे, जिसमें 10 वरिष्ठ होंगे| 

    • शिक्षा संचालक, पुरोहित (पादरी) इसके सदस्य होंगे| 

    • यह काउंसिल कानून से ऊपर थी|

    • यह कानून की संरक्षक होगी|

    • इसे राज्य की वैधानिक संस्थाओं का नियमन और नियंत्रण की शक्ति भी प्राप्त होगी|



    स्वर्णिम सूत्र का नियम या कानून का स्वर्ण सूत्र या कठपुतली का रूपक-

    • कठपुतली का रूपक व स्वर्णिम सूत्र के नियम का वर्णन प्लेटो की अंतिम पुस्तक द लॉज में है| 

    • स्वर्णिम सूत्र के नियम में निम्न मुद्दे है-

    1. कठपुतली का रूपक (The Puppet metaphor)

    2. बुद्धि या तर्क का महत्व

    3. इच्छा शक्ति की ताकत (Enkrateia- एनक्रेटिया)

    4. इच्छा शक्ति की कमजोरी (Akrasia- अक्रासिया)


    • लॉज प्लेटो का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसका प्रमुख प्रवक्ता या नायक सुकरात नहीं है|

    • इसमें संवाद के 3 पात्र हैं--

    1. बिना नाम का एथेंस वासी (एथेनियन) मुख्य वक्ता है, जो प्लेटो का प्रतिनिधित्व करता है|

    2. दूसरा मेगिलस है, जो स्पार्टा निवासी है|

    3. तीसरा कलिनियस है, जो क्रीट निवासी है|


    • मेगिलस शराब सेवन को श्रेष्ठ सुख बताता है तथा शारीरिक व भौतिक सुखों को महत्वपूर्ण मानता हुआ प्रश्न पूछता है| 

    • जवाब में एथेनियन कठपुतली के उदाहरण द्वारा नैतिक व बौद्धिक सुखों का महत्व बताता है| 

    • एथेनियन कहता है कि जिस तरह एक कठपुतली के खेल में कठपुतली को नचाने के लिए बहुत सारे सूत्र (डोरिया या धागे) होते हैं| ये सभी डोरिया कठपुतली को विभिन्न दिशाओं में खींचती है| इन डोरियों में एक डोरी पवित्र व सुनहरी होती है| यह डोरी कठपुतली को गलत दिशा में नहीं जाने देती है|

    • उसी प्रकार मानव को भांति भांति के भौतिक व शारीरिक सुख, भाव, लोभ, लालच अपनी ओर खींचते हैं पर तर्क व बुद्धि रूपी स्वर्णिम डोरी उसे भौतिक व शारीरिक सुखों का दास नहीं बनने देता है, बल्कि उसे नैतिकता व सद्गुण के मार्ग पर रखती है| 

    • मजबूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति अपने तर्क व बुद्धि के माध्यम से शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित कर नैतिक व आध्यात्मिक सुखों को श्रेष्ठत्तर मानता है, वही कमजोर इच्छा शक्ति वाले मनुष्य को शारीरिक व भौतिक सुखों के सूत्र अपनी ओर खींच लेते हैं, जिसके कारण वह अंतत दुख की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि भौतिक जगत नाशवान होता है| 



    प्लेटो के दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन-

    • प्लेटो साम्राज्य विस्तार का विरोधी, प्रजातंत्र का आलोचक, दास प्रथा की उपेक्षा करने वाला, व्यापारवाद का शत्रु तथा स्पार्टा के सैनिकवाद का समर्थक था|

    • नेटलशिप “राजनीतिक चिंतन के संपूर्ण इतिहास में और किसी विचारक की इतनी प्रशंसा, पूजा और आलोचना नहीं हुई जितनी की प्लेटों की|”

    • नेटलशिप “रिपब्लिक को न सिर्फ एक दार्शनिक रचना, बल्कि सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों संबंधी रचना भी माना जा सकता है|”

    • थॉर्सन “जहां प्लेटो के भारी संख्या में प्रशंसक थे, वही उनके आलोचक भी बहुत थे| उनके सबसे हाल के आलोचक बीसवीं सदी के उदारपंथी परंपरा में पाए जाते हैं|”


    • रिपब्लिक में सामाजिक न्याय के संदर्भ में जीवन के स्वरूप, मानवीय स्वभाव, राजनीतिक संगठन, संविधान, उचित किस्म के शासकों और ज्ञान के अर्थ जैसी समस्याओं पर विचार किया गया है|

    • प्लेटो के अनुसार राजनीतिक समुदाय को अपने नागरिकों की भलाई पर विचार करना चाहिए|

    • प्लेटो के मत में राजनीतिक नेताओं को औसत आदमी को अच्छाई के विचार में प्रशिक्षित करना था|

    • प्लेटो के मत में शिक्षा या यूजेनिम्स व्यक्ति की क्षमता को प्रदर्शित करती है और अच्छे व्यक्तियों के गुणों को बाद की पीढ़ी में पहुंचाती है| लेकिन कार्ल पॉपर आलोचना करते हुए कहते हैं कि “यूजेनिम्स का उद्देश्य यह दर्शाना था कि कम लोग ज्यादा लोगों से बेहतर है| इस प्रकार इसमें जातीयता की झलक मिलती है|”

    • प्लेटो प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने स्त्रियों को शासक बनने की इजाजत दी थी तथा प्लेटो ने पहली बार स्त्रियों की शक्ति को समाज के विकास में लगाकर यौन भेदभाव का विरोध किया|



    • प्लेटो के दर्शन की आलोचनाएं-

    1. अरस्तु- प्लेटो का शिष्य अरस्तु प्लेटो के दर्शन का सबसे पहला और महत्वपूर्ण आलोचक था| अरस्तु ने प्लेटो के राज्य की अत्यधिक एकता, संपत्ति व परिवार के साम्यवाद की, प्लेटों के राज्य सिद्धांत की आलोचना की है|

    2. कार्ल पॉपर- कार्ल पॉपर ने अपनी पुस्तक ‘Open society and its enemies’ में प्लेटों को खुले समाज का शत्रु और बंद समाज का समर्थक कहा है| तथा प्लेटों को सर्वाधिकारवाद का दार्शनिक प्रणेता कहा है|

    3. क्रॉसमैन भी प्लेटो का आलोचक रहा है, इनकी पुस्तक प्लेटो टुडे (Plato today) है| क्रॉसमैंन ने कहा है कि “प्लेटो हमारे व अपने दोनों ही समय के लिए गलत था|”  

    4. क्रॉसमैन “प्लेटो का आदर्श राज्य तर्कपूर्ण रूप से सामान्य व्यक्तियों का लोकतंत्र नहीं है, बल्कि सुसंस्कृत लोगों के अनुवांशिक वर्ग का कुलीनतंत्र है, जो पितृसम्मत उदारता से मेहनतकश लोगों के प्रति चिंता प्रकट करते हैं|”

    5. जे जे  चैपमैन “प्लेटो एंद्रजालिको का राजकुमार है|”

    6. मैक्सी “प्लेटो पहला काल्पनिक (Utopian) विचारक था|”

    7. बार्कर “प्लेटो का दार्शनिक शासक प्रबुद्ध निरंकुशतावादी या विवेकशील अधिनायकवादी है|”

    8. फ्रांसीसी विचारक वाल्टेयर और जर्मन विचारक फ्रेडरिक विल्हेम नीत्शे ने प्लेटोवाद को ईसाईवाद का बौद्धिक पहलू बताया है|

    9. टॉयनबी ने प्लेटो को प्रतिक्रियावादी, अमानवीय व संकुचित दृष्टि वाला बताया है|

    10. इसाह बर्लिन ने अपनी रचना Historical Inevitability(1954) मे प्लेटो के इतिहासवाद की आलोचना की है तथा प्लेटो को इच्छा की स्वतंत्रता, बहुलवाद व व्यक्तिवाद का विरोधी बताया है| इनके अनुसार प्लेटो व्यक्ति के अखंड मुक्ति का अधिकार स्वीकार नहीं करता है|

    11. विंस्पायर प्लेटो की योजना को प्रतिक्रियावादी, तानाशाह द्वारा बल प्रयोग की योजना बताता है|

    12. सिनक्लेयर “मानव जाति का प्लेटो द्वारा मूल्यांकन अविश्वसनीय रूप से निम्न और उतने ही अविश्वसनीय रूप से उच्च है| निम्न की बुद्धिमता और अन्य की मूर्खता के बीच मानव जाति कभी भी इतनी पूज्य या इतनी तिरस्कृत न थी|”

    13. कार्ल पॉपर “मेरा विश्वास है कि प्लेटो का राजनीतिक कार्यक्रम निरंकुशता की तुलना में नैतिक रूप से बेहतर होने के बजाय मूल रूप से उससे मिलता-जुलता है| मेरा विश्वास है कि इस विचार के प्रति आपत्तियां प्लेटो को पूज्य बनाने के गहन और पुरातन पूर्वाग्रहों पर आधारित है|”

    14. फिटे “प्लेटो नागरिकों की खुशी और आत्मविकास के लिए अनुसंधान कर रहे थे, लेकिन वास्तव में वे एक छोटे से दल की रक्षा में लगे हुए थे, जो विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का मात्र 1 फ़ीसदी था|” 

    15. हन्ना आरेण्ट “प्लेटो फासीवाद का दार्शनिक प्रेरक है|”


                                  कार्ल पॉपर

    • कार्ल पॉपर प्रसिद्ध ऑस्ट्रीयाई-ब्रिटिश दार्शनिक व प्रोफेसर हैं| कार्ल पॉपर ने अपनी पुस्तक ‘Open society and its enemies’ 1945 में प्लेटो, हेगेल, कार्ल मार्क्स को खुले समाज का शत्रु बताया है|

    • कार्ल पॉपर ने संपूर्ण क्रांतिकारी परिवर्तनों (Radical changes) की बजाय धीमे खंडश: विकासवादी परिवर्तनों (Piecemeal social engineering) की सलाह दी है|

    • कार्ल पॉपरपश्चिमी चिंतन या तो प्लेटोवादी रहा है या प्लेटो विरोधी लेकिन शायद ही कभी गैर प्लेटोवादी रहा हो|”


    • प्लेटो के दर्शन का महत्व-

    1. बेंजामिन जावेट प्लेटो को दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और आदर्शवाद का जनक कहते हैं|

    2. मैक्सी “लगभग 24 शताब्दियों बीत जाने के बाद भी प्लेटो की रचनाएं वर्तमान समय में भी पूर्ण सम्मान व आदर्श के साथ पढ़ी जाती हैं, किसी विचारक की महता का इससे अधिक प्रबल प्रमाण नहीं मिल सकता है|”

    3. रसैल “प्लेटो का आदर्श राज्य वर्तमान कल्पना प्रधान राज्यों के समान काल्पनिक नहीं था, उसका उद्देश्य उसे वास्तविक रूप में स्थापित करना था|”

    4. इमरसन “प्लेटो दर्शन है व दर्शन प्लेटो है, क्योंकि विचारशील लोगों द्वारा जो कुछ लिखा जा रहा है और चर्चा में है वह सब प्लेटो से ही आ रहा है| हमारी पुस्तकों को छोड़ बाकि सभी पुस्तकें जला दीजिए कोई हर्ज नहीं है|”

    5. निस्बेट “प्लेटो के चिंतन का झुकाव समुदाय के कल्याण और विकास की ओर था| व्यक्ति विरोधी होने के बावजूद भी उन्होंने न्याय, संरक्षण, आजादी, अनिश्चितता और अज्ञान के संदर्भ में व्यक्ति का जोरदार समर्थन किया|”

    6. व्हाइट हेड “संपूर्ण यूरोपीय दार्शनिक परंपरा और कुछ नहीं है, प्लेटो और अरस्तू की रचनाओं के फुटनोट मात्र है|” 



    प्लेटो से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य/ कथन-

    • उच्च शिक्षा (20-35 वर्ष की शिक्षा) के प्रथम भाग को ‘Quadrivium’ कहा गया व द्वितीय भाग को ‘Trivium’ कहा गया है|

    • एलेनचोस (Elenchos)- द्वंद्वात्मक पद्धति में प्रश्नोत्तरी के माध्यम से अवधारणाओं का जो स्पष्टीकरण किया जाता था, उसे एलेनचोस कहा जाता था|

    • Ideal Typology State (नैतिक दृष्टि से उत्कृष्ट राज्य)- प्लेटो आदर्श राज्य के लिए इस शब्द का प्रयोग करता है| 


    • प्रोफेसर डनिंग ने प्लेटो के आदर्श राज्य को कोरी कल्पना कहा है तथा आदर्श राज्य को ‘Romance’ नाम दिया है|

    • सेबाइन “आदर्श राज्य प्लेटो की सर्वाधिक मूल्यवान खोज है|” 

    • बार्कर “रिपब्लिक का आदर्श राज्य ऐसा राज्य है जिसका कहीं अस्तित्व ही नहीं है|”

    • मेकलवेन “प्लेटो ने लोकतंत्र की अतिवादी प्रवृत्ति से घृणा की है ना कि सामान्य लोकतंत्र से|”

    • कैटलिन के अनुसार प्लेटो, मार्क्सवादी साम्यवादी नहीं है|

    • सेबाइन के अनुसार “प्लेटो ने अक्षमता को लोकतांत्रिक राज्यों का विशेष गुण माना है|”

    • बार्कर के अनुसार “न्याय प्लेटो के विचार का मूल आधार रहा है|”

    • मैक्सी “यदि प्लेटो आज जीवित होता तो लालो (साम्यवादी विचारधारा) से भी अधिक लाल (साम्यवादी) होता|

    • लियो स्ट्रास “आदर्शवाद रिपब्लिक की सबसे बड़ी आलोचना है|”

    डब्लू फिट्स “प्लेटो की किसी किशोर जैसी अनिश्चय की स्थिति थी|”

    Close Menu