अरस्तु के परिवार संबंधी विचार
अरस्तु ने संपत्ति व परिवार को व्यक्तिगत विशेषता माना है|
अरस्तु के अनुसार स्त्री-पुरुष एवं स्वामी-दास के योग जो संस्था बनती है, वह परिवार है|
परिवार सामाजिक जीवन या राजनीतिक जीवन का प्रथम सोपान है|
परिवार प्राकृतिक संस्था है|
परिवार नागरिकों की प्रथम पाठशाला है अर्थात व्यक्ति नागरिकता की प्रथम शिक्षा परिवार से ही ग्रहण करता है|
अरस्तु “पुरुष एवं स्त्री के बीच में नैसर्गिक मित्रता दिखाई पड़ती है|”
Note- जहां प्लेटो परिवार को प्रगति में बाधक मानता है तथा परिवार साम्यवाद की बात करता है, वही अरस्तु परिवार को उचित, आवश्यक, प्रेरणा स्रोत समझता है|
अरस्तु के अनुसार परिवार एक त्रिकोणात्मक संबंधों का स्वरूप है-
1. पति और पत्नी|
2. स्वामी और दास|
3. माता-पिता और संतान
परिवार असमानता वाला समूह है जहां लिंग, आयु व क्षमता की वजह से अंतर पाया जाता है| अरस्तु के अनुसार “परिवार असमानता का क्षेत्र था, जिससे अधिक महत्वपूर्ण समानता का क्षेत्र राज्य (पोलीस) विकसित होता है|”
परिवार की सदस्यता नैसर्गिक है, अर्थात जन्म से व्यक्ति परिवार का सदस्य बन जाता है|
अरस्तु के अनुसार परिवार पितृसत्तात्मक है तथा परिवार का वयोवृद्ध पुरुष परिवार का मुखिया होता है| क्योंकि पुरुष, स्त्री की अपेक्षा अधिक गुणवान और समर्थ होता है, दास बुद्धिहीन होता है, बच्चे अनुभवहीन होते हैं|
अरस्तु के अनुसार परिवार के सदस्यों में पूर्णतया मित्रता का वातावरण होना चाहिए तथा मुखिया का पूर्ण अनुशासन और नियंत्रण होना चाहिए|
मुखिया की भूमिका अलग-अलग होती है जैसे डेनिंग के अनुसार “जब पति, पत्नी को निर्देशित करता है तो उसकी भूमिका संवैधानिक सलाहकार की होती है, जब पुत्र को निर्देशित करता है तो उसकी भूमिका अधिनायकवादी की होती है, जब दास को निर्देशित करता है तो उसकी भूमिका निरंकुश की होती है|”
अरस्तु स्त्री-पुरुष समानता का पक्षधर नहीं है, वह स्त्री को पुरुष से कम आकता है| शासन के अयोग्य बताता है तथा घर की चारदीवारी तक सीमित करता है और पुरुष का स्त्री पर नियंत्रण स्थापित करता है| इस संबंध में अरस्तू के विचार हेगेल से मिलते हैं|
अरस्तु ने स्त्री को अनुत्पादक पुरुष कहा है| उसके अनुसार पुरुष सक्रिय होता है तथा स्त्री निष्क्रिय होती है स्त्री का प्रमुख कार्य लैंगिक प्रजनन है|
स्त्रियों के नैतिक गुण पुरुषों के बराबर नहीं होते हैं| अरस्तु ने सोफॉकल्स का यह वक्तव्य दोहराया है कि “नम्र-चुप्पी स्त्री का आभूषण है|”
अरस्तु के अनुसार परिवार नैसर्गिक कुलीनतंत्र था, जहां पुरुषों को महत्वपूर्ण बातें बोलने का अधिकार था और बाकि काम स्त्रियों का था|
अरस्तु राज्य नियंत्रित परिवार की बात करता है, परिवार की सदस्य संख्या तथा विवाह की आयु के संबंध में राज्य को नियम बनाना चाहिए| विवाह के लिए पुरुष व स्त्री में 20 वर्ष का अंतर होना चाहिए| विवाह के समय स्त्री की आयु 17 वर्ष तथा पुरुष की आयु 37 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए|
प्लेटो के समान अरस्तु ने भी विवाह को राज्य के लिए श्रेष्ठ संतान पैदा करने का स्रोत माना है|
अरस्तु के अनुसार स्त्री-पुरुष में वही संबंध होता है, जो स्वामी और दास में, शारीरिक श्रम करने वाले और मानसिक कार्य करने वाले में| स्त्री की संकल्प शक्ति क्षीण होती है अतः वह स्वतंत्र रहने के योग्य नहीं है|
अरस्तु बौद्धिक कार्य को, शारीरिक कार्य से श्रेष्ठ मानता है|
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