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अरस्तु के राज्य संबंधी विचार/ Arstu ke rajy sambandhi vichar/ Aristotle's views on the state || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

      अरस्तु के राज्य संबंधी विचार

    • पॉलिटिक्स की प्रथम पुस्तक में अरस्तु ने राज्य संबंधी सिद्धांतों का वर्णन किया है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य का जन्म विकास के कारण हुआ है| राज्य एक स्वाभाविक एवं प्राकृतिक संस्था है|

    • राज्य के उद्देश्य व कार्य नैतिक हैं तथा राज्य सभी संस्थाओं में श्रेष्ठ और उच्च है|

    • अपने गुरु प्लेटो के समान अरस्तु का लक्ष्य भी सोफिस्टो के इस मत का खंडन करना है कि राज्य एक परंपराजनित व कृत्रिम संस्था है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य राजनीतिक संगठन का उच्चतम स्वरूप है और सामाजिक विकास का चरम बिंदु|

    राज्य की उत्पत्ति व विकास

    • अपने गुरु प्लेटो की भांति अरस्तु भी सोफिस्टो के इस मत का खंडन करता है कि राज्य समझौते का परिणाम है|

    • अरस्तु के अनुसार व्यक्ति अपनी प्रकृति से ही एक राजनीतिक प्राणी है और राज्य व्यक्ति की इसी प्रवृत्ति का ही परिणाम है| 

    • मानव प्रकृति की व्याख्या करने के लिए अरस्तू ने ‘जून पॉलिटिकोन’ (Zoon Politikon) शब्द का प्रयोग किया है|

    • ‘जून पॉलिटिकोन’ (Zoon Politikon) का अर्थ है- राजनीतिक प्राणी

    • अरस्तु के अनुसार राज्य का जन्म विकास का परिणाम है और इस विकास का क्रम परिवार से आरंभ होता है| 

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य प्रकृति की उपज है और व्यक्ति स्वभाव से राजनीतिक प्राणी है|” 

    • अरस्तु के अनुसार राज्य की उत्पत्ति जीवन की आवश्यकताओं से होती है| अरस्तु के शब्दों में “केवल जीवन मात्र की आवश्यकता के लिए राज्य उत्पन्न होता है और अच्छे जीवन की उपलब्धि के लिए कायम रहता है|”

    • भौतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, यौन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वामी तथा दास और स्त्री एवं पुरुष एक दूसरे की तरफ आकृष्ट होते हैं तथा परिवार का जन्म होता है| अर्थात राज्य निर्माण की शुरुआत परिवार से होती है|

    • कई परिवार मिलकर ग्राम का निर्माण करते हैं फिर कई ग्राम मिलकर नगर- राज्य को जन्म देते हैं|

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य एक पूर्ण और आत्मनिर्भर परिवारों और ग्रामों का समूह है, जिसका तात्पर्य एक सुखी और सम्मान पूर्ण जीवन से है|”

    • अरस्तु “जब अनेक गांव एक ही संपूर्ण समुदाय के रूप में संयुक्त होते हैं जो इतना बड़ा होना चाहिए कि वह बिल्कुल या करीब-करीब आत्मनिर्भर हो तब राज्य अस्तित्व में आता है| इसकी उत्पत्ति मात्र जीवन की आवश्यकताओं से होती है, परंतु उसका अस्तित्व सदजीवन की सिद्धि के लिए बना रहता है|”


    • निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परिवार, ग्राम और राज्य की उत्पत्ति होती है

     

      संस्था की उत्पत्ति

                            उद्देश्य          

    1  परिवार या कुटुंब

    प्रजनन तथा अल्प भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति ( क)

    2  ग्राम

    क +  न्याय के लिए ग्राम पंचायत तथा धार्मिक उत्सव आदि (ख)

    3  नगर- राज्य

    क + ख +  न्याय,  सैनिक संरक्षण, विद्या तथा कलाओं का विकास|


    • अरस्तु के अनुसार राज्य मनुष्य की सामाजिकता का परिणाम है| सर्वप्रथम विवाह पद्धति के आधार पर अरस्तू ने सबसे पहले सामाजिक संस्था परिवार की स्थापना की, जिसमें पति- पत्नी, संतान और दास एक साथ रहते हैं|

    • राज्य के विकास का स्वरूप सावयवी (Organic), जैविक है| व्यक्ति, परिवार और ग्राम इसके अंग हैं|

    • बार्कर “राजनीतिक विकास जैविक विकास है |राज्य तो मानो पहले से ही ग्राम, परिवार और व्यक्ति के रूप में भ्रूणावस्था मे होता है| राजनीतिक विकास की प्रक्रिया ऐसी है मानो राज्य आरंभ से लेकर अंत तक विभिन्न रूपों को धारण करता है और प्रत्येक रूप इसको पूर्णता के अधिक से अधिक निकट ले जाता है|”

    • इस प्रकार अरस्तु का राज्य उत्पत्ति संबंधी विचार विकासवादी सिद्धांत के अनुरूप है|


     अरस्तु के अनुसार राज्य की विशेषताएं-

    1. राज्य की प्रकृति-   

    • अरस्तु राज्य को प्राकृतिक, स्वाभाविक, जैविक संस्था मानता है|

    • अरस्तु राज्य को एक कायोनोनिया (koinonia) अर्थात ऐसा समुदाय मानता है, जिसके बिना जीवन संभव नहीं है |

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य स्वाभाविक है और इसके बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है| जो व्यक्ति राज्य के बाहर रहता है वह या तो पशु है या देवता|

    • सेबाइन “जिस प्रकार बंजूफल (acron) के लिए बंजू (oak) वृक्ष में विकसित होना स्वाभाविक है उसी प्रकार मानव प्रकृति की उच्चतम शक्तियों का विकास राज्य में होना स्वभाविक है|”


    1. राज्य सर्वोच्च समुदाय के रूप में-

    • अरस्तु राज्य को ‘समुदायों का समुदाय’ तथा ‘सर्वोच्च समुदाय’ मानता है |

    • राज्य मनुष्य की बौद्धिक, नैतिक, आध्यात्मिक सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है| 

    • राज्य का उद्देश्य परमसुख और संपूर्ण विकास तथा पूर्ण आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना है| 


    1. राज्य व्यक्ति से पूर्व का संगठन है- 

    • अरस्तु मनोवैज्ञानिक, बौद्धिक व तर्क की दृष्टि से राज्य को व्यक्ति का पूर्ववर्ती मानता है|

    • अरस्तु का तर्क है कि राज्य समग्रता है तथा व्यक्ति उसका अंग है| अर्थात राज्य और व्यक्ति का संबंध शरीर व अंगों का है| व्यक्ति का राज्य से पृथक कोई महत्व नहीं होता है|

    • अरस्तु का कहना है कि “समय की दृष्टि से परिवार पहले हैं, परंतु प्रकृति की दृष्टि से राज्य पहले हैं|”


    1. राज्य अंतिम एवं पूर्ण संस्था है-

    • अरस्तु ने नगर- राज्यों को सामाजिक और राजनीतिक विकास की चरम सीमा माना है|

    • अरस्तु के अनुसार परिवार से बने नगर-राज्यों के बाद कोई विकास नहीं होता है|


    1. राज्य का जैविक रूप -

    • अरस्तु राज्य को एक जीव की तरह मानता है तथा उसके अंगों की तरह व्यक्ति को मानता है|

    • Note- अरस्तु हेगेल की तरह राज्य को अति प्राणी भी नहीं मानता है, वह केवल राज्य को व्यक्ति के ऊपर मानता है|


    1. राज्य आत्मनिर्भर है-

    • अरस्तू का राज्य मनुष्य की सभी आवश्यकताओं (आर्थिक, नैतिक, भौतिक, आध्यात्मिक आदि)  की पूर्ति करने में आत्मनिर्भर है|

    • अरस्तु ने आत्मनिर्भरता शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है| इसके लिए अरस्तू ने यूनानी शब्द ‘Autarkia’ का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ है- ‘पूर्ण निर्भरता

    • अरस्तु के शब्दों में “आत्मनिर्भरता वह गुण है, जिसके कारण और जिसके द्वारा जीवन वांछनीय बन जाता है और उसमें किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है|”


    1.  राज्य विभिन्नता में एकता है-

    • प्लेटो की तरह अरस्तु एकता की स्थापना की बात नहीं करता है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य नागरिकों की कुछ बातों का नियंत्रण व नियमन करें तथा कुछ बातों के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करें| 

    • अर्थात अरस्तु प्लेटो की तरह राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्वीकार नहीं करता है|

    • राज्य विभिन्न तत्वों से मिलकर बना है, यदि उनमें एकता स्थापित की जाए तो राज्य एक निम्न स्तर का समुदाय बन जाएगा राज्य नहीं रहेगा|

    • इस प्रकार सभी तत्वों का महत्व रहे इसलिए अरस्तु राज्य के विभिन्नता में एकता का सिद्धांत अपनाता है

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य तो स्वभाव से ही बहुआयामी होता है| एकता की ओर अधिकाधिक  बढ़ना तो राज्य का विनाश करना होगा|”


    1. नगर- राज्य सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीति संगठन है-

    • प्लेटो की भांति अरस्तु के लिए भी नगर-राज्य सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीतिक संगठन था|

    • अरस्तु का यह नगर-राज्य समस्त विज्ञान, कला, गुणों और पूर्णता में एक साझेदारी है|


    1. राज्य एक क्रमिक विकास है-

    • राज्य का विकास क्रमिक रूप से होता है| परिवार, परिवार से ग्राम, ग्राम से नगर-राज्य का निर्माण होता है| 


    1. राज्य एक आध्यात्मिक संगठन है- 

    • अरस्तु के अनुसार राज्य मानव समुदाय हैं, अतः इसका उद्देश्य मानव सद्गुणों या अच्छी शक्तियों का विकास करना है|

    • अरस्तु “राज्य नैतिक जीवन व आध्यात्मिक समुदाय है|”


    1. संविधान राज्य की पहचान है-

    • अरस्तु के मत में संविधान राज्य की पहचान है और संविधान में परिवर्तन राज्य में परिवर्तन करने के समान है| 


    1. राज्य और शासन में भेद-

    • अरस्तु ने राज्य और शासन में स्पष्ट भेद किया है| जहां राज्य समस्त नागरिकों और गैर नागरिकों का समूह है वहां शासन उन नागरिकों का समूह है जिनके हाथ में सर्वोच्च राजनीतिक सत्ता है|

     

    राज्य के उद्देश्य एवं कार्य-

    • अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्देश्य मानव के श्रेष्ठ जीवन या सद्गुणी जीवन की प्राप्ति है|

    • राज्य सद्गुणी जीवन की प्राप्ति के लिए मनुष्यों का नैतिक संगठन है|

    • राज्य का लक्ष्य सदस्यों की अधिकतम भलाई करना है|

    • अरस्तु के अनुसार “राज्य की सत्ता उत्तम जीवन के लिए है ना कि केवल जीवन व्यतीत करने के लिए|”

    • न्याय व्यवस्था स्थापित करना, व्यक्ति के दोषों को दूर करना तथा उच्च जीवन की सुविधाएं प्रदान करना, मनुष्य को सच्चरित्र बनाना राज्य का कर्तव्य है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य एक सकारात्मक अच्छाई है, अतः इसका कार्य केवल बुरे कामों अथवा अपराधों को रोकना ही नहीं है, वरन मानव को नैतिकता और सद्गुणों के मार्ग पर आगे बढ़ाना है|

    • अपने सदस्यों के लिए पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन की व्यवस्था करना राज्य का कर्तव्य है|

    • उत्तम एवं आनंद पूर्ण जीवन का निर्माण करना राज्य का कर्तव्य है|

    • अरस्तु ने राज्य का एक प्रमुख कार्य नागरिकों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना माना है|

    • फॉस्टर के शब्दों में “लॉक (व्यक्तिवादी) के विचार से शिक्षा राज्य का कार्य नहीं है, लेकिन अरस्तू के विचार से यह उसका प्रमुख कार्य है|”

    • अरस्तु ने राज्य का यह कार्य भी माना है कि वह नागरिक के लिए अवकाश जुटाने का प्रयत्न करें| ए के रोगर्स के अनुसार “अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्देश्य श्रेष्ठ जीवन का निर्माण है और यह अवकाश से ही संभव है|”

    राज्य और व्यक्ति का संबंध

    • अरस्तु ने राज्य और व्यक्ति में गहरा संबंध बताया है|

    • एक व्यक्ति की तरह राज्य में भी साहस, आत्म नियंत्रण तथा न्याय के गुण होने चाहिए|

    • राजा को भी व्यक्ति के समान आत्मनिर्भर और नैतिक जीवन व्यतीत करना चाहिए|

    • राजा भी व्यक्ति के समान नैतिक नियमों की पालना करता है|


    • रस्तु ने मानव मस्तिष्क या आत्मा को तीन भागों में बांटा है-

    1. जड़ अवस्था (Vegetative Soul)    

    2. पशु अवस्था (Animal Soul)

    3. बौद्धिक अवस्था (Intellectual Soul)       


    • अरस्तु राज्य के विकास की तुलना मानव मस्तिष्क या आत्मा की तीनों अवस्था से करता है|


    1. जड़ अवस्था- जिस तरह जड़ अवस्था में मानव जाति को आगे बढ़ाता है, उसी तरह परिवार भी जाति को आगे बढ़ाता है

    2. पशु अवस्था- जिस तरह पशु अवस्था में गतिशीलता होती है, उसी तरह ग्राम में भी गतिशीलता पाई जाती है|

    3. बौद्धिक अवस्था- इस अवस्था में बुद्धि का विकास होता है, उसी तरह नगर- राज्य में भी बुद्धि का विकास होता है|


    • Note- Politics के तीसरे खंड में अरस्तू ने राज्य को ‘स्वतंत्र लोगों का समुदाय’ (Association of freeman) कहा है|


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