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अरस्तु की न्याय संबंधी धारणा / Arstu ki nyay sambandhi dharna / By Nirban P K Yadav sir || In hindi

 अरस्तु की न्याय संबंधी धारणा-

  • अरस्तु ने अपने ग्रंथ पॉलिटिक्स में न्याय शब्द का उल्लेख किया है, किंतु न्याय की समुचित व्याख्या अपने ग्रंथ एथिक्स में की है |

  • अरस्तु न्याय को ‘सद्गुणों का समूह’ मानता है|

  • बार्कर “अरस्तु के लिए न्याय कानूनी न्याय से कुछ अधिक है, इसमें कुछ नैतिक विचार सम्मिलित हैं, जो साधुता शब्द में निहित है|”

 

  • अरस्तु न्याय को दो भागों में बांटता है

  1. सामान्य न्याय (Righteousness)

  2. विशेष न्याय


  1. सामान्य न्याय या पूर्ण न्याय-

  • सामान्य न्याय संपूर्ण अच्छाई का दूसरा नाम है| इसका संबंध नैतिकता या सद्गुण से है|

  • सामान्य न्याय का आशय पड़ोसी के प्रति किए जाने वाले भलाई के सभी कार्यों से है| 

  • अरस्तु अच्छाई के सभी कार्यों, सभी सद्गुणों तथा समग्र साधुता को सामान्य न्याय कहता है|

  • पूर्ण या सामान्य न्याय केवल आदर्श राज्य में ही मिल सकता है|


  1. विशेष न्याय- 

  • यह न्याय वास्तविक राज्य में पाया जाता है|

  • यह न्याय अनुपातिक समानता है, अर्थात व्यक्ति को जो मिलना चाहिए वही उसको मिले तो यह विशिष्ट न्याय है| 


  • विशिष्ट न्याय को अरस्तु पुन: 2 भागो में बांटता है-

  1. वितरणात्मक न्याय

  2. संशोधनात्मक न्याय


  1. वितरणात्मक न्याय या अनुपातिक न्याय-  

  • इस न्याय का संबंध राज्य के पद, सम्मान, पुरस्कार, लाभ के बंटवारे से है|

  • अरस्तु इन सब का अनुपातिक समानता के आधार पर वितरण करना चाहता है, अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को पद, पुरस्कार, सम्मान, लाभ उस अनुपात में मिलना चाहिए, जिस अनुपात में उसने अपनी योग्यता और धन से राज्य को लाभ पहुंचाया है|

  • पदों का बंटवारा विधायिका (Ecclesia) के द्वारा किया जाएगा तथा बटवारा रेखागणित के आधार पर होगा| 

  • अरस्तु के अनुसार “एक सद्गुणपूर्ण राज्य न तो प्रजातंत्र और न ही धनिकतंत्र की व्यवस्था को स्वीकार करेगा, अपितु राज्य के अंदर उपाधियों व पदों का वितरण केवल कुशल तथा सद्गुणी व्यक्तियों में ही करेगा|”


  1. संशोधनात्मक न्याय या सुधारात्मक न्याय-

  • न्याय का यह रूप नागरिकों के आपसी संबंधों को नियंत्रित करता है|

  • यह न्याय व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों में उत्पन्न दोषो को दूर करता है|

  • संशोधनात्मक न्याय न्यायपालिका (Helia) के द्वारा प्रदान किया जाएगा तथा अंकगणित के आधार पर न्याय होगा| 


  • संशोधनात्मक न्याय भी दो प्रकार का होता है-  

  1. ऐच्छिक न्याय- इसके अंतर्गत व्यक्तियों में आपस में किए गए संधि समझौते आते हैं, जिसको तोड़ने पर न्यायालय ठीक करता है| ऐच्छिक संशोधनात्मक न्याय का संबंध दीवानी मुकदमो से है|

  2. अनैच्छिक संशोधनात्मक न्याय- जब एक नागरिक अन्य नागरिक के साथ धोखा, मारपीट, चोरी, डकैती, हत्या जैसे अपराध करता है, तो न्यायालय अपराधी को दंड देकर न्याय की स्थापना करता है, अर्थात इस न्याय का संबंध फौजदारी मुकदमों से है|


  • Note- अरस्तु न्याय के संबंध में यथास्थितिवादी व रूढ़िवादी है| वितरणनात्मक न्याय में वह आवश्यकता के बजाय योग्यता पर बल देता है, जबकि संशोधनात्मक न्याय में वर्तमान स्थिति में परिवर्तन आने पर न्यायपालिका वापस से यथास्थिति की स्थापना कर देती है, इसलिए अरस्तु रूढ़िवादी व यथास्थिति का समर्थक है| 

  • Note- अरस्तु के अनुसार न्याय समान के साथ समान व्यवहार तथा असमान के साथ असमान  व्यवहार है|

  • Note- प्लेटो के न्याय में कर्तव्य पर बल दिया गया है, अरस्तु के न्याय में अधिकारों पर बल दिया गया है| 

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