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अरस्तु के शिक्षा संबंधी विचार/ Arstu ke shiksha sambandhi vichar/Aristotle's views on education || By Nirban P K Yadav Sir || in Hindi

     अरस्तु के शिक्षा संबंधी विचार

    • पॉलिटिक्स की पांचवी पुस्तक में अरस्तु ने शिक्षा संबंधी विचारों का उल्लेख किया है|

    • अरस्तु के अनुसार शिक्षा सर्वोत्तम या आदर्श राज्य के लिए एक अनिवार्य तत्व है तथा नागरिकों के चरित्र के निर्माण के लिए आवश्यक है|

     

    अरस्तु के अनुसार शिक्षा का मूल सिद्धांत-

    1. शिक्षा की व्यवस्था ऐसी हो, जिससे राज्य के निवासी स्वयं को राज्य का योग्यतम सदस्य बनाकर स्वयं का और राज्य का विकास कर सकें तथा सभी नागरिकों के लिए एक जैसी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए|

    2. शिक्षा का राजनीतिक उद्देश्य नागरिकों को नैतिक व चरित्रवान बनाना है|

    3. शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को संविधान या सरकार के अनुकूल बनाना है|

     

    शिक्षा के उद्देश्य-

    • अरस्तु के अनुसार शिक्षा के निम्न उद्देश्य हैं-

    1. व्यक्ति का सर्वांगीण विकास तथा आत्म विकास|

    2. लोगों को उत्तम नागरिक बनाना|

    3. नागरिकों को आज्ञा पालन और शासन करने की शिक्षा देना|

    4. शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो कि प्रत्येक व्यक्ति को विवेक को विकसित करने का अवसर मिले|

    5. व्यक्ति में उदारता, सहनशीलता, न्याय प्रियता, विनम्रता आदि गुणों का विकास करना|

    6. शिक्षा: व्यायाम, संगीत, कला के विकास में सहायक है|


    अरस्तु की शिक्षा योजना-

    • अरस्तु ने राज्य नियंत्रित शिक्षा का समर्थन किया है तथा निशुल्क- अनिवार्य, सार्वभौमिक शिक्षा पर बल दिया है|

    • अरस्तु की शिक्षा बच्चे के जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है|

    • अरस्तु की शिक्षा सप्तवर्षीय परिवर्तन के साथ हैं |

    • अरस्तु की शिक्षा योजना को तीन भागों में बांटा गया है-

    1. जन्म से 7 वर्ष तक की शिक्षा

    2. 8 से 14 वर्ष तक की शिक्षा

    3. 15 से 21 वर्ष तक की शिक्षा


    1. जन्म से 7 वर्ष की शिक्षा-

    • 7 वर्ष की शिक्षा परिवार में माता-पिता के पास होनी चाहिए|

    • इसमें बच्चे को भोजन, अंग संचालन, ठंड का अभ्यास कराना चाहिए| 

    • बच्चे को खेल, कहानियों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए|

    • Note- इसी काल में बौद्धिक शिक्षा आरंभ कर देनी चाहिए|


    1. 8 से 14 वर्ष तक की शिक्षा-

    • इस काल में शरीर गठन पर अरस्तु ने बल दिया है|

    • तथा किशोरों के नैतिक विकास की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, साथ ही पढ़ाई, लिखाई चित्रकला, संगीत की शिक्षा भी दी जानी चाहिए|

    • Note- अरस्तु नैतिक जीवन की उन्नति के लिए संगीत को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है|


    1. 15 से 21 वर्ष तक की शिक्षा-

    • इस अवस्था में छात्रों को उस सरकार के अनुरूप शिक्षा दी जाए, जिसकी अधीनता में उन्हें रहना है|

    • तथा छात्रों के शारीरिक व मानसिक विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाए|

    • इस समय पढ़ना, लिखना, चित्रकला, संगीत, अंकगणित, रेखागणित की शिक्षा दी जाए|

    • अरस्तु की शिक्षा का कार्यक्रम 21 वर्ष तक समाप्त हो जाता है, लेकिन अरस्तु के अनुसार शिक्षा जन्म से लेकर अंत तक चलती रहती है|


     अरस्तु की शिक्षा योजना की आलोचना-

    1. अरस्तु ने संगीत पर अत्यधिक और अनावश्यक बल दिया है| जैसे बार्कर ने कहा है कि “संगीत शिक्षा पर महत्व देते हुए अरस्तु अपने गुरु प्लेटो से चार कदम आगे बढ़ गया है|”

    2. साहित्य की उपेक्षा

    3. बौद्धिक शिक्षा की अवधि कम है|

    4. सीमित शिक्षा है, अर्थात केवल नागरिकों के लिए शिक्षा है|

    5. शिक्षा का पूर्ण राज्यकरण अलोकतांत्रिक है|

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