अरस्तु: संविधान का अर्थ और संविधानो का वर्गीकरण-
अरस्तु ने पॉलिटिक्स की तीसरी पुस्तक के छठे से आठवें अध्याय में संविधान संबंधी अवधारणा दी है|
संविधान के लिए अरस्तु के द्वारा प्रयुक्त शब्द यूनानी भाषा का पॉलिटिया (Politeia) है|
अरस्तु ने संविधान के दो पहलू बताए हैं- 1 नैतिक पहलू 2 राजनीतिक पहलू
नैतिक पहलू के अनुसार संविधान का अर्थ जीवन पद्धति है, अर्थात जीवन व्यतीत करने का तरीका|
राजनीतिक पहलू से संविधान का अर्थ है ‘राज्य के पदों का बंटवारा’|
अरस्तु का मुख्यतया संबंध राजनीतिक पहलू से है, अरस्तु के अनुसार “संविधान राज्य के पदों की वह व्यवस्था है, जिससे यह निर्धारित किया जाता है कि राज्य का कौनसा पद विशेष कर सर्वोच्च पद, किसे मिले|
अरस्तु ने राज्य और सरकार में भेद किया है, जहां राज्य उसमें निवास करने वाले लोगों का समुदाय हैं जबकि सरकार उन नागरिकों का समूह है जिनके हाथों में राजनीतिक शक्ति और शासन संचालन का कार्य होता है| उच्च राजनीतिक पदों वाले व्यक्तियों में परिवर्तन आने पर सरकार में परिवर्तन आ जाता है परंतु जब संविधान में परिवर्तन आता है तो राज्य में भी परिवर्तन आ जाता है|
इस प्रकार अरस्तु राज्य और संविधान को पर्यायवाची मानता है|
संविधानों का वर्गीकरण-
अरस्तु के संविधानों का वर्गीकरण प्लेटो के स्टेट्समैन में दिए गए वर्गीकरण से प्रभावित था|
अरस्तु ने संविधानो का वर्गीकरण दो आधारों पर किया है-
संख्या के आधार पर- अर्थात शासन सत्ता कितने व्यक्तियों में निहित है|
लक्ष्य या उद्देश्य के आधार पर- दो प्रकार
स्वाभाविक रूप- सर्वसाधारण का हित
विकृत रूप- स्वार्थ सिद्धि
इस प्रकार अरस्तू ने संविधानो को 6 भागों में बांटा है|
अरस्तु राजतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानता है, लेकिन राजतंत्र सुलभ नहीं है, क्योंकि कोई सर्वगुण संपन्न शासक मिल भी जाए तो उसका उत्तराधिकारी भी ऐसा होगा आवश्यक नहीं है|
अतः अरस्तु मध्यम मार्ग अपनाता है और संयतप्रजातंत्र (Polity) को सर्वोत्तम संविधान बताता है|
अरस्तु पॉलिटी को बचाव राज्य कहता है, जो स्वर्णिम मध्यमान (Golden mean) पर आधारित है, इसमें मिश्रित सविधान है और मध्यम वर्ग का शासन है तथा इसमें कानून की सर्वोच्चता है|
कार्ल पॉपर के अनुसार सबसे अच्छी व्यवस्था पॉलिटी में प्लेटोवादी कुलीनतंत्र, संतुलित सामंतवाद व लोकतांत्रिक विचार सम्मिलित हैं, लेकिन जैव व्यक्तिवाद नहीं है
Note-अरस्तु के मिश्रित संविधान के विचारों को बाद में रोमन विचारको पॉलीबियस व सिसरो, मध्ययुगीन विचारक सेंट थॉमस एक्विनास और आधुनिक विचारक मैकियावेली ने भी स्वीकार किया है|
संविधानो का परिवर्तन चक्र-
अरस्तु के अनुसार कोई भी संविधान या राज्य स्थायी नहीं है, ये एक निश्चित क्रम में बदलते रहते हैं|
आरंभ में राजतंत्र स्थापित होगा, उसके बाद क्रमश निरंकुश तंत्र-- कुलीन तंत्र-- अल्प तंत्र-- संयत प्रजातंत्र-- अतिवादी प्रजातंत्र की स्थापना होती है| इसके बाद उन्हें पुन: राजतंत्र स्थापित हो जाता है और यह परिवर्तन चक्कर चलता रहता है|
अरस्तु के वर्गीकरण के अन्य आधार-
आर्थिक आधार- धनिकतंत्र में धनीको का तथा जनतंत्र में गरीबों का शासन होता है|
मौलिक गुण या तत्व- विभिन्न संविधानो में विभिन्न तत्व पाए जाते हैं| जैसे-
जनतंत्र में समानता और स्वतंत्रता
कुलीनतंत्र में गुण
धनिकतंत्र में धन
संयत प्रजातंत्र में धन व स्वतंत्रता
शासन संबंधी कार्य प्रणाली- जैसे कहीं ऊंचे पदों का निर्वाचन अधिक संपत्ति वाले कर सकते हैं तो कहीं कम संपत्ति वाले कर सकते हैं|
अरस्तु के वर्गीकरण की आलोचना-
गार्नर “अरस्तु राज्य और सरकार में भेद नहीं कर पाता है, फलस्वरुप उसके द्वारा किया गया वर्गीकरण राज्यों का वर्गीकरण न होकर सरकारों का वर्गीकरण है|”
सिनक्लेयर “अरस्तु का वर्गीकरण व्यवहारिक नहीं है|”
सिले “अरस्तु ने अपने समय के नगर-राज्यों का वर्गीकरण किया था, जो वर्तमान राज्यों पर लागू नहीं होता है|
डनिंग “इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पॉलिटिक्स में एक रूप का दूसरे रूप से स्पष्ट रूप में अंतर नहीं किया गया है|
बलंटशली “अरस्तु के वर्गीकरण में हमें केवल लौकिक राज्यों का ही वर्गीकरण मिलता है, परलौकिक का नहीं|
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