धर्म संबंधी लॉक के विचार-
लॉक ने अपने ग्रंथ ‘Letters On Toleration’ में धर्म संबंधी विचारों का उल्लेख किया है| लॉक धर्म के मामलों में ‘साहिष्गुणता’ का समर्थन करता है|
लॉक के मत में धर्म व्यैक्तिक वस्तु है, जिससे राज्य का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक धार्मिक गिरोह अव्यवस्था उत्पन्न न करें|
राज्य को धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए|
लॉक के धार्मिक विचार आधुनिक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा से साम्यता रखते हैं|
क्रांति के अधिकार संबंधी लॉक के विचार-
लॉक छीनने (Usurpation) को विजय (Conquest) जैसा ही मानता है और यही विचार उसके क्रांति सिद्धांत की कुंजी है|
लॉक “विजय विदेशियों से छीनना है और छीनना घरेलू विजय है|”
लॉक के मत में यदि राजा किसी का कुछ छीनता है, तो उसकी आज्ञा माने जाने का अधिकार स्वत: निरस्त हो जाता है|
लॉक के मत में यदि सरकार के तीनों अंग छीना-झपटी और अत्याचार का समर्थन करते हैं; तो वह सरकार ही नहीं है और राजनीतिक समाज उससे लड़ने के लिए स्वतंत्र है|
इस प्रकार जब सरकार समझौते के अनुसार अपने उद्देश्य पूरे नहीं कर पाती है, तो लॉक जनता को सरकार के विरुद्ध विद्रोह और क्रांति का अधिकार देता है|
लॉक क्रांति करने के निम्न कारण बताता है-
यदि सरकार को जन सहमति न प्राप्त हो|
वह अपने न्यास या ट्रस्ट के विरुद्ध आचरण करें|
वह वैधानिक शासन के स्थान पर निरंकुश आचरण करें|
अपनी मर्यादाओं का पालन न करें, तो जनता को क्रांति करने का अधिकार है|
क्रांति करने पर केवल सरकार भंग होती है या बदलती है नागरिक समाज या राज्य बना रहता है|
लॉक क्रांति को Appeal to Heaven (स्वर्ग से अपील) यानी विरोध का अधिकार कहता है|
राजनीतिक समाज स्थायी है, क्योंकि यह समाज केवल विदेशी आक्रमण की स्थिति को छोड़कर कभी नष्ट नहीं होता है|
लॉक क्रांति के अधिकार पर दो प्रतिबंध/ शर्तें लगाता है-
जब तक सरकार अपने कर्तव्यों को पूरा करती है, तब तक क्रांति नहीं करनी चाहिए|
केवल बहुसंख्यक लोग ही सरकार को पलट सकते हैं|
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