रूसो की सामान्य इच्छा संबंधी धारणा-
रूसो के सामाजिक संविदा सिद्धांत में ‘सामान्य इच्छा’ की धारणा का बहुत अधिक महत्व है| सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक चिंतन के लिए रूसो की अमर देन है|
सामान्य इच्छा की अवधारणा पहले रूसो की पुस्तक इंट्रोडक्शन ऑन पॉलिटिकल इकोनॉमी में प्रस्तावित की गई बाद में इसको सोशल कॉन्ट्रैक्ट पुस्तक में विकसित किया गया|
‘सामान्य इच्छा’ को समझने के लिए व्यक्ति की इच्छा को समझना जरूरी है| रूसो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की दो इच्छाएं होती हैं-
यथार्थ इच्छा (Actual will)
आदर्श इच्छा या असली इच्छा (Real will)
यथार्थ इच्छा- यह इच्छा व्यक्ति के ‘निम्न स्व’ पर आधारित है| यह इच्छा स्वार्थगत, संकीर्ण एवं परिवर्तनशील है| यह भावना प्रधान एवं विवेकहीन इच्छा है| इसमें व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा रहता है|
डॉ. आशीर्वादम के शब्दों में “यह व्यक्ति की समाज विरोधी इच्छा है, क्षणिक एवं तुच्छ इच्छा है| यह संकुचित तथा स्वविरोधी है|”
आदर्श इच्छा या असली इच्छा- यह ‘श्रेष्ठ स्व’ पर आधारित इच्छा है| यह स्वार्थहीन, सूसंस्कृतम्, कल्याणकारी तथा सामाजिक हित, विवेक, ज्ञान पर आधारित इच्छा है| रूसो के अनुसार यह सर्वश्रेष्ठ इच्छा है एवं स्वतंत्रता की द्योतक है तथा व्यक्ति में स्थायी रूप से निवास करती है|
मनुष्य की इस इच्छा का अभिव्यक्तिकरण व्यक्ति और समाज के मध्य होता है|
डॉ. आशीर्वादम के शब्दों में “यह जीवन के समस्त पहलुओं पर व्यापक रूप से दृष्टिपात करती है| यह विवेकपूर्ण इच्छा है| यह व्यक्ति तथा समाज के सामंजस्य में प्रकट होती है|”
सामान्य इच्छा-
सामान्य इच्छा समाज के सभी व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का जोड़ है| समझौते के बाद सभी व्यक्ति अपना सर्वस्व राज्य को सौंप देते है अतः सामान्य इच्छा सर्वसाधारण की पूर्णप्रभुत्व संपन्न इच्छा ही है|
सामान्य इच्छा विवेक पर आधारित विवेकशील इच्छा है, जो गुणात्मक है, न कि मात्रात्मक अर्थात सामान्य इच्छा का तात्पर्य बहुमत की इच्छा नहीं है यह एक या कुछ व्यक्तियों की भी इच्छा हो सकती है|
डॉ. आशीर्वादम “सामान्य इच्छा की परिभाषा एक समाज के सदस्यों की आदर्श इच्छाओं के योग अथवा इससे भी अधिक उत्तम शब्दों में उनके एकीकरण के रूप में दी जा सकती है|”
ग्रीन “सामान्य आदर्शों की सामान्य चेतना ही सामान्य इच्छा है|”
बोसांके “सामान्य इच्छा संपूर्ण समाज की सामूहिक अथवा सभी व्यक्तियों की ऐसी इच्छाओं का समूह है जिसका लक्ष्य सामान्य हित की पुष्टि हो|”
जर्मीनों दांते “सामान्य इच्छा समुदाय की श्रेष्ठ भावना है|”
यह प्रत्येक व्यक्ति की सर्वश्रेष्ठ इच्छा है, अतः इस इच्छा का पालन प्रत्येक नागरिक को करना चाहिए| यदि कोई स्वार्थवश इस इच्छा का पालन नहीं करता है तो समाज की सामान्य इच्छा, पालन के लिए दबाव डाल सकती है|
रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा न तो बट सकती है न ही दूर जा सकती है| संसदीय शासन प्रणाली में सामान्य इच्छा का प्रतिनिधित्व संभव नहीं है|
सामान्य इच्छा व्यक्ति का भी विशिष्ट रूप है, साथ में राज्य का भी विशिष्ट रूप है|
इस प्रकार सामान्य इच्छा संपूर्ण समाज (राज्य) की इच्छा है, जिसका मुख्य लक्षण- सार्वजनिक हित, लोक कल्याण, रक्षा आदि|
सामान्य इच्छा, जनमत की इच्छा और समस्त की इच्छा में अंतर-
रूसो सामान्य इच्छा, जनमत की इच्छा और समस्त की इच्छा में अंतर करता है|
सामान्य इच्छा से केवल सामान्य हित पर बल दिया जाता है लेकिन जनमत में बहुसंख्या के हित पर|
सामान्य इच्छा का मतलब समाज के समस्त व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का योग है, लेकिन समस्त इच्छा का मतलब सभी व्यक्तियों की सभी इच्छाएं|
सामान्य इच्छा की विशेषताएं-
एकता- रूसो “सामान्य इच्छा राष्ट्रीय चरित्र में एकता पैदा करती है|” सामान्य इच्छा विभिन्नता में एकता स्थापित करती है|
अदेयता- सामान्य इच्छा को किन्ही व्यक्तियों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है| रूसो प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का समर्थक था, जिसमें व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं| रूसो के अनुसार प्रतिनिधियों के माध्यम से इसे व्यक्त करना व्यक्तियों के बहुमूल्य अधिकारों का हनन तथा लोकतंत्र की हत्या है|
स्थायित्व- सामान्य इच्छा स्थायी एवं शाश्वत है| रूसो के शब्दों में “इसका कभी अंत नहीं होता, यह कभी भ्रष्ट नहीं होती| यह अनित्य, अपरिवर्तनशील तथा पवित्र होती है|”
औचित्य- सामान्य इच्छा हमेशा शुभ, उचित तथा कल्याणकारी होती है| रूसो के शब्दों में “सामान्य इच्छा सदैव ही विवेकपूर्ण एवं न्यायसंगत होती हैं क्योंकि जनता की वाणी वास्तव में ईश्वर की वाणी है|”
संप्रभुताधारी- सामान्य इच्छा संप्रभुताधारी है| यह अविभाज्य व अदेय है| इसे सरकार के विभिन्न अंगों- कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका में विभक्त नहीं किया जा सकता है|
अप्रतिनिधित्वकारी- इसका प्रतिनिधित्व भी इसके अलावा कोई नहीं कर सकता है|
सामान्य इच्छा राज्य का अधिकार है अतः राज्य शक्ति से नहीं, सहमति से संचालित होता है|
कानून का स्रोत- विधि-निर्माण एकमात्र सामान्य इच्छा का कार्य है| विधि सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है| प्रत्येक मनुष्य के लिए विधि का पालन करना जरूरी है| विधि न्यायपूर्ण होती है| विधि निर्माण के लिए रूसो विधि निर्माता या विधायक की भी व्यवस्था करता है| विधायक को अद्वितीय प्रतिभा-संपन्न और उचित विधियों एवं संस्थाओं की व्यवस्था करने में समर्थ होना चाहिए|
लोक कल्याणकारी- सामान्य इच्छा व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का योग होती है और व्यक्तियों की ये आदर्श इच्छाएं जनकल्याण से प्रेरित होती हैं|
सामान्य इच्छा सिद्धांत की आलोचना-
अस्पष्ट-
मैक्सी “रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धांत बड़ा अस्पष्ट और जटिल है|”
यह बताना कठिन है कि सामान्य इच्छा का निवास कहां है|
वेपर “जब सामान्य इच्छा का पता ही हमको रूसो नहीं दे सकता तो इस सिद्धांत के प्रतिपादन का लाभ ही क्या हुआ?”
सामान्य हित को जानना कठिन- सामान्य इच्छा जिस सार्वजनिक हित पर कार्य करती है उसे जानना कठिन है| सामान्य हित की व्याख्या संभव न हो पाने के कारण ही सामान इच्छा के संबंध में मार्ले ने कहा है कि तो “रूसो ने कोरी बहस में अपना समय नष्ट कर दिया है|”
इच्छा का विभाजन संभव नहीं- मानवीय इच्छा को यथार्थ और आदर्श इच्छा में बांटना संभव नहीं है|
भयावह- इसमें निरकुंश व अत्याचारी राज्य की स्थापना का भय है|
जॉन्स “सामान्य इच्छा की धारणा के प्रयोग में मनुष्य को भय यह है कि राज्य में तानाशाही प्रवृत्ति का उदय हो जाता है|”
आधुनिक विशाल राज्यों में यह सिद्धांत असफल- सामान्य इच्छा का सिद्धांत छोटे राज्यों में ही सफल हो सकता है, आधुनिक बड़े राज्यों में नहीं, क्योंकि बड़े राज्य में सामान्य हित का निर्धारण करना कठिन है|
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के लिए अनुपयुक्त- रूसो सामान्य इच्छा के निर्धारण के लिए राजनीतिक दलों व प्रतिनिधि शासन का विरोध करता है, जबकि राजनीतिक दल व प्रतिनिधि शासन आधुनिक लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है|
निरंकुश तथा अत्याचारी राज्य का पोषक- A डाइड के अनुसार “रूसो सामान्य इच्छा की आड़ में बहुमत की निरंकुशता का प्रतिपादन तथा समर्थन करता है| वाहन, बट्रेंड रसैल, आइवर ब्राउन तथा मरे ने भी रूसो की विचारधारा पर निरंकुशवाद तथा अधिनायकवाद के पोषण का आरोप लगाया है|
वाहन “रूसो ने अपनी समग्रतावादी अवधारणा के द्वारा व्यक्ति की हैसियत को शून्य में बदल दिया है|”
हर्नशा “लेवियाथन का कटा सिर ही रूसो की सामान्य इच्छा है|”
वेपर “यदि सामान्य इच्छा सर्वोच्च है तो सामाजिक समझौता अनावश्यक है और यदि सामाजिक समझौता महत्वपूर्ण है तो सामान्य इच्छा सर्वोच्च नहीं हो सकती है|”
सामान्य इच्छा सिद्धांत का महत्व-
T.H ग्रीन ने इसी के आधार पर राज्य का मुख्य आधार बल (शक्ति) न मानकर इच्छा को माना है|
सेबाइन और ओसबर्न ने रूसो की सामान्य इच्छा की धारणा को राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में ‘एक महत्वपूर्ण योगदान’ माना है|
ओसबर्न “रूसो द्वारा प्रतिपादित सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक दर्शन के लिए उसका सबसे मौलिक ही नहीं, वरन सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान है|”
W.T जोन्स “रूसो की सामान्य इच्छा की अवधारणा केवल उसके राजनीतिक सिद्धांत का ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग नहीं है, अपितु यह रूसो की राजनीतिक विज्ञान को एक अत्यंत रुचिकर भेंट है और राजनीतिक विज्ञान के इतिहास में इसका अनुपम स्थान है|”
मैकाइवर “सामान्य इच्छा का प्रयोग मात्र, शासन को सुशासन में परिणत कर देता है|”
रूसो का सामान्य इच्छा का विचार प्रजातंत्र का प्रतिष्ठापक है|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य एक स्वभाविक और अनिवार्य संस्था है| जी डी एच कॉल के शब्दों में “यह हमें सिखाता है कि राज्य मनुष्य की प्राकृतिक आवश्यकताओं और इच्छाओं पर आधारित है| राज्य के प्रति हमें इसलिए आज्ञाकारी होना चाहिए, क्योंकि यह हमारे व्यक्तित्व का ही प्राकृतिक विस्तृत रूप है|”
इसने यह प्रतिपादित किया है कि राज्य का उद्देश्य किसी वर्ग विशेष का हित नहीं, अपितु समूचे समाज का कल्याण और जनता का हित है|
इसने यह प्रतिपादित किया है कि शक्ति नहीं वरन इच्छा राज्य का आधार है|
सामान्य इच्छा के प्रतिपादन के कारण ही रूसो को प्रत्यक्ष लोकतंत्र व लोकप्रिय प्रभुसत्ता का प्रणेता माना जाता है|
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