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रूसो का सामाजिक समझौता / Rousseau's social contract || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

     रूसो का सामाजिक समझौता-

    • रूसो ने सोशल कॉन्ट्रैक्ट पुस्तक में भ्रष्टाचार से मुक्त वैकल्पिक समाज या वैकल्पिकआदर्श राज्य की संभावना खोजी है|

    • रूसों “मैं यह पता करना चाहता हूं कि क्या कोई टिकाऊ और वैध प्रशासन हो सकता है, जिसमें मनुष्य जैसे हैं वैसे ही रहे|” 

    • रूसो ने भी हॉब्स तथा लॉक की तरह राज्य की उत्पत्ति सामाजिक समझौते से मानी है|


    समझौते का कारण

    • प्राकृतिक अवस्था का तृतीय चरण असहनीय था| इस अराजकता से दुखी होकर समझौता किया गया|

    • रूसो के अनुसार “वह प्रथम व्यक्ति ही नागरिक समाज का वास्तविक संस्थापक था, जिसने भूमि के एक टुकड़े को घेर लेने के बाद यह कहा था कि यह मेरा है और उसी समय समाज का निर्माण हुआ था, जब अन्य लोगों ने उसकी देखा-देखी स्थानों और वस्तुओं को अपना समझना प्रारंभ किया|” 

    • इस समय मनुष्य ने प्रकृति की ओर वापस चलने (back to nature) का नारा दिया|

    • राइट महोदय के अनुसार इस नारे का अर्थ था- “हम दंभ का परित्याग कर सकते हैं, हम दूसरों के साथ तुलना करना छोड़कर केवल अपने ही कार्य में लगे रह सकते हैं, बहुत सी कल्पनात्मक इच्छाओं का परित्याग करके अपने स्वरूप को पुनः प्राप्त कर सकते हैं, हम विनम्र हो सकते हैं और अपनी आत्मा को प्राप्त कर सकते हैं| एक शब्द में हम प्रकृति की ओर लौट सकते हैं| इस प्रसिद्ध वाक्य का यही अर्थ है|”


    समझौते की प्रक्रिया-

    • रूसो के शब्दों में “हम में से प्रत्येक अपने शरीर को और समूची शक्ति को अन्य सब के साथ संयुक्त सामान्य इच्छा के सर्वोच्च निर्देशन में रखते हैं और सामूहिक स्वरूप में हम प्रत्येक सदस्य को समष्टि (समुदाय) के अविभाज्य अंश के रूप में स्वीकार करते हैं|”

    • अर्थात समझौता इस शर्त पर किया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपना शरीर, सारे अधिकार, शक्तियां समुदाय (राज्य) को सोपते हैं तथा प्रत्येक सदस्य इस समुदाय का अंश होगा|

    • यह समझौता दो पक्षों में किया जाता है| एक पक्ष में मनुष्य अपने व्यक्तिक रूप में होते हैं, दूसरे पक्ष में मनुष्य अपने सामूहिक रूप में होते हैं|

    • समझौते से एक नैतिक तथा सामूहिक निकाय का जन्म होता है जिसकी अपनी एकता, अपनी सामान्य सत्ता, अपना जीवन तथा अपनी इच्छा होती है|

    • रूसो के अनुसार समझौते से बने समुदाय को पहले नगर राज्य कहते थे, अब उसे गणराज्य अथवा राजनीतिक समाज कहते हैं| जब यह निष्क्रिय रहता है तो राज्य कहते हैं और जब सक्रिय होता है तो संप्रभु कहते हैं| जब ऐसे ही अन्य निकायों से इसकी तुलना करने में इसे शक्ति कहते हैं|


    रूसो के समझौते की विशेषताएं- 

    1. अराजकता को समाप्त करने तथा पुनः स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए सभी व्यक्ति एक समझौता करते हैं|

    2. समझौते के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने संपूर्ण अधिकार व शक्तियां राज्य को समर्पित कर देता है| इस  हस्तांतरण की शर्त समानता है अर्थात सभी के साथ एक सी शर्त|

    3. समझौते द्वारा निर्मित राज्य को सामान्य इच्छा कहा जाता है| 

    4. समझौते से उत्पन्न राज्य कभी भी दमनकारी एवं स्वतंत्रता विरोधी नहीं हो सकता|

    5. समझौते के बाद समाज/ राज्य की सामान्य इच्छा सभी व्यक्तियों के लिए सर्वोच्च हो जाती है|

    6. राज्य में किसी को भी विशेषाधिकार नहीं है, सब समान हैं अर्थात नागरिक स्वतंत्रता व समानता दोनों प्राप्त करते हैं|

    7. समझौता निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, व्यक्ति सामान्य इच्छा में निरंतर भाग लेता रहता है|

    8. संविदा के कारण मनुष्य अपने शरीर को और अपने अधिकारों और शक्तियों को जिस सार्वजनिक सत्ता को समर्पित करता है, वह सब व्यक्तियों से मिलकर ही निर्मित होती है इसी को प्राचीन काल में नगर राज्य कहते थे और अब गणराज्य या राज्य संस्था या राजनीतिक समाज कहते हैं| इसका निर्माण जिन व्यक्तियों से मिलकर होता है उन्हीं को सामूहिक रूप से जनता कहते हैं| जब उन्हें राज्यशक्ति की अभिव्यक्ति में भाग लेते हुए देखते हैं तब हम उन्हें नागरिक कहते हैं और जब कानून पालको के रूप में देखते हैं तो उन्हें हम प्रजा कहते हैं| इस प्रकार रूसो के अनुसार सामूहिक एकता; राज्य, संप्रभु, शक्ति, जनता, नागरिक, प्रजा सब कुछ है| 

    9. समझौते में व्यक्ति निष्क्रिय रूप में प्रजाजन व क्रियाशील रूप में संप्रभु है|

    10. समझौते के फलस्वरुप समाज अथवा राज्य का रूप जैविक या सावयिक (organic) होता है| प्रत्येक व्यक्ति राज्य का अविभाज्य अंग होता है वह ना तो राज्य से अलग हो सकता है और न ही राज्य के विरुद्ध आचरण कर सकता है|

    11. समझौते से एक नैतिक व सामूहिक प्राणी का जन्म होता है, जिसे रूसो ‘सार्वजनिक व्यक्ति’ कहता है|

    12. राज्य का सावयिक स्वरूप बताते हुए रूसो लिखता है कि “विधि-निर्माण शक्ति सिर के समान, कार्यकारणी बाहु के समान, न्यायपालिका मस्तिष्क के समान, कृषि, उद्योग तथा वाणिज्य पेट के समान और राजस्व रक्त संचार के समान है|”

    13. समझौते के बाद व्यक्ति के स्थान पर समष्टि और व्यक्ति इच्छा के स्थान पर सामान्य इच्छा आ जाती है|

    14. समझौते से उत्पन्न होने वाला समाज/ राज्य प्रभुता संपन्न होता है, जो सामान्य इच्छा पर आधारित होता है|

    15. समझौते से किसी सरकार की स्थापना नहीं होती है और सरकार इस ‘प्रभुत्व या राज्य शक्ति’ द्वारा नियुक्त यंत्रमात्र होती है|

    16. समझौते से पूर्ण एकता की स्थापना होती है|


    Note- हर्नशा ने रूसो के सिद्धांत प्राकृतिक मानव से राज्य निर्माण को स्वर्ग का लोप और स्वर्ग की पुनप्राप्ति के ईसाई सिद्धांत का एक सेकुलर संस्करण बताया है| 



    प्राकृतिक अवस्था और सामाजिक समझौते की आलोचना-

    1. रूसो की प्राकृतिक अवस्था निराधार एवं काल्पनिक है, क्योंकि मनुष्य ने कभी शांतिमय, सुखमय, आदर्श जीवन यापन किया हो, ऐसे प्रमाण इतिहास में नहीं मिलते हैं|

    2. रूसो विज्ञान व सभ्यता को मानव का पतन बताता है, यह गलत है|

    3. रूसो के अनुसार समझौता व्यक्ति एवं समाज में होता है, किंतु दूसरी ओर समाज समझौते का परिणाम है, यह असंगत है|

    4. रूसो कभी समझौते को ऐतिहासिक घटना तो, कभी निरंतर चलने वाला क्रम बताता है, यह भी असंगत है| 

    5. रूसो सामान्य इच्छा की आड़ में राज्य को निरकुंश बना देता है| इसलिए आलोचक रूसो के राज्य को ‘शिशकटा लेवियाथन’ कहते हैं|

    6. वॉल्टियर रूसो को ‘असभ्यता का विचारक’ कहता है|

    7. S. R. लॉर्ड “रूसो एक ही क्षण में हॉब्स के समान निरकुंशवादी है और लॉक से भी अधिक प्रजातंत्रवादी है|”

    8. सर हेनरी मैन “समाज तथा सरकार की उत्पत्ति के इस वर्णन से बढ़कर व्यर्थ की वस्तु ओर क्या हो सकती है|”

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