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प्राकृतिक अवस्था पर रूसो के विचार / Rousseau's views on the state of nature || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

 प्राकृतिक अवस्था पर रूसो के विचार-

  • रूसो अपने लेख Discourse on the Origin of Inequality में प्राकृतिक अवस्था के मानव का वर्णन करता है|

  • रूसो की प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य प्रकृति की गोद में स्वछंदतापूर्वक जीवन यापन करता था| प्राकृतिक अवस्था भय व चिंता से मुक्त थी|

  • प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य भोला, असभ्य, संतुष्ट, स्वस्थ एवं निर्भय था तथा पशु के समान अकेला जीवन बिताता था|

  • प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य के पास न भाषा थी, न कला, न विज्ञान था, न मनुष्य सुखी था न दुखी था| 

  • गूच के शब्दों में “रूसो द्वारा चित्रित अवस्था न तो हॉब्स के सदृश्य सभी का सभी के विरुद्ध युद्ध की थी, न ही लॉक की शांति व सदिच्छा की अवस्था जैसे थी, वह एक ऐसी दशा थी जिसमें व्यक्ति पशु जैसा अकेला जीवन बिताता था|”

  • रूसो की प्राकृतिक अवस्था समाज पूर्व व राज्य पूर्व दोनों है|

  • रूसो की दृष्टि में स्पार्टा प्राकृतिक सरलता का सर्वोपरि उदाहरण है|


  • रूसो ने प्राकृतिक अवस्था के तीन चरण बताएं हैं-

  1. आदिम प्राकृतिक अवस्था

  • इस अवस्था में गुण-अवगुण, ऊंच-नीच, तेरे-मेरे का अभाव था| व्यक्तिगत संपत्ति का उदय नहीं हुआ था| ज्ञान, विज्ञान, कला, विद्या का भी विकास नहीं हुआ था| 

  • इस अवस्था के व्यक्ति को रूसो भद्र पशु या आदर्श बर्बर या उत्कृष्ट बर्बर (Noble savage) कहा है|


  1. मध्यवर्ती प्राकृतिक अवस्था (पितृसत्तात्मक चरण)- 

  • इस अवस्था में असमानता का प्रारंभ हुआ और संचयवृति बढ़ गयी, जिसका कारण जनसंख्या की वृद्धि और तर्क का उदय था| व्यक्तिगत संपत्ति व परिवार का उदय होता है| स्थायी आवास बनाए जाते हैं| निर्धन व धनी के मध्य असमानता बढ़ जाती है|

  • संपत्ति के प्रादुर्भाव से मनुष्य की स्वतंत्रता परतंत्रता में बदल गई, जिसके संबंध में रूसो कहता है कि “मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न होता है, किंतु वह सर्वत्र बेड़ियों में जकड़ा हुआ है|”

  • रूसो “जिस क्षण से एक व्यक्ति के पास दो व्यक्तियों के लायक सामान इकट्ठा होने लगा, समानता समाप्त हो गई, संपत्ति पैदा हो गई, कार्य आवश्यक हो गया, विशाल जंगल उपजाऊ खेत बन गए, जहां गुलामी व दुख, फसल के साथ पैदा हुए|”


  1. तृतीय चरण- यह दमन तथा अत्याचार की अवस्था थी, जो असहनीय अवस्था थी, जिसमें मनुष्य की गति बुरे से सर्वनाश की ओर की थी|


  • रूसो प्राकृतिक अवस्था को काल्पनिक मानता है|  

  • आगे चलकर रूसो ने अपने विचारों में संशोधन भी किया था| जिससे कई असंगतियाँ पैदा हो गई थी, इसी कारण रूसो ने कहा कि “मैं पक्षपात या पूर्वाग्रह के बजाय विरोधाभास का प्रेमी हूं|”

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