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मानव स्वभाव पर रूसो का विचार / Rousseau's view on human nature || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

 मानव स्वभाव पर रूसो का विचार-

  • रूसो मनुष्य को स्वभाव से भोला, अच्छा, सुखी, सीधा, चिंतारहित, शांतिप्रेमी, निष्पाप, निर्दोष और एकांत प्रिय मानता है|

  • मनुष्य नैतिकता के विचारों से रहित और सहज भावना से काम करने वाला बुद्धिहीन प्राणी है|

  • W T जोन्स “मानव स्वभाव के संबंध में रूसो की धारणा प्लेटो और अरस्तु की धारणा से मेल खाती है|”


  • Note- रूसो के शब्दों में मनुष्य एक आदर्श बर्बर (Noble savage) था| अर्थात रूसो ने प्राकृतिक अवस्था के मनुष्य के लिए आदर्श बर्बर (Noble savage) शब्द का प्रयोग किया है|


  • मनुष्य स्वभाव से बुरा नहीं होता है, बल्कि भ्रष्ट कला के कारण बुरा बन जाता है| संसार में पाए जाने वाले पाप, भ्रष्टाचार, दुष्टता आदि भ्रष्ट सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति है|

  • भ्रष्ट सामाजिक संस्थाओं की वजह से मानव का पतन होता है|


  • रूसो मानव स्वभाव की दो प्रमुख नियामक प्रवृतियां बताता है-

  1. आत्मप्रेम अथवा आत्मरक्षा की भावना

  2. सहानुभूति या परस्पर सहायता की भावना


  • यह दोनों भावनाएं शुभ हैं, इसलिए मनुष्य भी स्वभाव से अच्छा है| 

  • रूसो का कहना है कि इन दोनों भावनाओं में कभी-कभी संघर्ष होना स्वभाविक है, अतः इन दोनों भावनाओं में सामंजस्य स्थापित करने का कार्य एक नई भावना अंतःकरण करती है, जो दोनों भावनाओं में समझौते या सामंजस्य के कारण उत्पन्न होती है| अंतःकरण एक नैतिक शक्ति है, जिसका मार्गदर्शन विवेक नामक शक्ति करती है| 

  • इस तरह रूसो बतलाता है कि आत्मरक्षा एवं सहानुभूति इन दो भावनाओं में सामंजस्य और अन्य भावनाओं का विकास करने में अंतःकरण एवं विवेक दोनों का योगदान होता है|

  • रूसो ने विवेक की अपेक्षा अंतःकरण पर अधिक बल दिया है| अंतःकरण पर अधिक बल देने के कारण रूसो को विवेक विरोधी या रोमांचकारी भी कह दिया जाता है|

  • रूसो के अनुसार “बुद्धि भयानक है, क्योंकि श्रद्धा को कम करती है, विज्ञान विनाशक है क्योंकि विश्वास को नष्ट करता है और विवेक बुरा है, क्योंकि वह नैतिक सहज ज्ञान के विरोध में तर्क-वितर्क को प्रधानता देता है|”

  • वैसे रूसो पूर्ण रूप से विवेक का विरोध नहीं करता है, वह मानव व्यक्तित्व के विकास में विवेक को उचित स्थान तो प्रदान करता है, लेकिन उसे असीम अधिकार नहीं देता है|

  • रूसो के अनुसार जब आत्मप्रेम, दंभ (vanity) में बदल जाता है तो व्यक्ति पथभ्रष्ट हो जाता है|

  • रूसो ने तर्क का भी विरोध किया है| रूसो ने लिखा है कि “चिंतनशील या तर्कशील मानव एक पतित दुराचारी पशु के समान है|”

  • रूसो “तर्क आत्मकेंद्रीयता पैदा करता है और चिंतन इसे मजबूत करता है| तर्क मनुष्य को खुद के खिलाफ खड़ा कर देता है|”

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