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बेंथम के अधिकार संबंधी विचार/ स्त्री संबंधी बेंथम के विचार || Bentham's views on rights/ Bentham's views on women || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

    बेंथम के अधिकार संबंधी विचार-

    • बेंथम वैधानिक अधिकारों का समर्थन करता है तथा अधिकारों का निर्धारण उपयोगिता के आधार पर होना चाहिए| बेंथम के अनुसार “अधिकार मनुष्य के सुखमय जीवन के वे नियम है, जिन्हें राज्य के कानूनों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है|” 

    • बेंथम संपत्ति के अधिकार का उपयोगिता के आधार पर समर्थन करता है| निजी संपत्ति का समर्थन करता है, क्योंकि निजी संपत्ति अधिकतम सुख प्राप्ति का एक साधन है|


    • बेंथम ने अधिकारों के दो प्रकार बताए हैं-

    1. वैधानिक अधिकार- ऐसे अधिकार जो संप्रभु द्वारा निर्मित होते हैं| वैधानिक अधिकार का विषय बाह्य आचरण होता है|

    2. नैतिक अधिकार- इनका विषय आंतरिक आचरण है| 


    • पूर्ण स्वतंत्रता तथा पूर्ण समानता देना असंभव है, क्योंकि बेंथम के अनुसार एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वतंत्र पैदा हुआ हो|

    • बेंथम अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी समावेश करता है तथा अधिकारों और कर्तव्यों को अन्योन्याश्रित मानता है|



    स्त्री संबंधी बेंथम के विचार-

    • बेंथम ने स्त्रियों के उद्धार पर बल दिया है|

    • बेंथम के मत में स्त्री- पुरुष के बीच प्राकृतिक भेद स्त्रियों के दमन का आधार नहीं हो सकता है|

    • बेंथम ने शासन में महिलाओं की समान हिस्सेदारी का समर्थन किया है| 

    • बेंथम ने अपनी पुस्तक पार्लियामेंट रिफॉर्म्स में स्त्री मताधिकार का समर्थन किया है, किंतु अपनी कृति कांस्टीट्यूशनल कोड में बेंथम कहता है कि स्त्री मताधिकार के लिए अभी सही समय नहीं आया है, अतः स्त्री मताधिकार नहीं दिया जा सकता है| इस तरह बेंथम स्त्रियों के मताधिकार का समर्थक नहीं था| 

    • बेंथम ने स्त्रियों के लिए शिक्षा का समर्थन किया है तथा इसके लिए 1816 में क्रिस्टोमैथिया नामक नया पाठ्यक्रम तैयार किया 

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