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कौटिल्य के अनुसार स्थानीय प्रशासन-व्यवस्था/ Local administration system according to Kautilya || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

 कौटिल्य के अनुसार स्थानीय प्रशासन-व्यवस्था-

  1. पुर या नगर का प्रशासन

  • पुर (नगर) का सर्वोच्च अधिकारी नागरिक या नगराध्यक्ष होता था, जिसका कार्य नगर में शांति व्यवस्था बनाए रखना तथा समस्त राजकीय एवं प्रशासनिक कार्यों का प्रबंध करना था|

  • इसके अधीन प्रदेष्टा का नामक अधिकारी होता था, इसका प्रमुख कार्य नगर के सभी राज्य कर्मचारियों के आचरण पर नजर रखना और भ्रष्ट कर्मचारियों को दंडित करना था|

  • कौटिल्य ने प्रशासनिक दृष्टि से नगर को भागों (वार्डो) में बांटा, और प्रत्येक वार्ड के प्रमुख अधिकारी को स्थानिक कहा|

  • स्थानिक के अधीन गोप नामक छोटे कर्मचारी होते थे, गोप का प्रमुख कार्य 20 कुटुंबो से संबंधित प्रशासनिक दृष्टि से आवश्यक समस्त जानकारी एकत्र करना था|


  1. ग्राम प्रशासन

  • ग्रामीण प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी|

  • ग्राम- जिसमें किसान एवं शुद्रो की संख्या अधिक हो, ऐसे कम से कम 100 तथा अधिक से अधिक 500 घरों का एक ग्राम होगा|

  • संग्रहण-100 ग्रामों के समूह के बीच स्थापना|

  • खार्वटिक/ सार्वत्रिक- 200 ग्रामों के समूह के बीच स्थापना|

  • द्रोणमुख- 400 ग्रामों के समूह के बीच स्थापना|

  • स्थानीय- 800 ग्रामों के समूह के बीच स्थापना|


Note- ग्राम प्रशासन के संबंध में कौटिल्य ने इकाई तो बताई है, लेकिन इसके कार्यों एवं पदाधिकारियों के बारे में नहीं बताया है|

Note- केंद्रीय व स्थानीय शासन के बीच संपर्क कड़ी युक्त थे| 

  • कुछ अन्य पदाधिकारी-

  1. रक्षिण- अपराधों पर नियंत्रण हेतु पुलिस

  2. पंचग्रामिक- सीमा विवाद के समाधान हेतु अधिकारी

  3. रूपदर्शक- सिक्को के निरीक्षक

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