J S मिल के उपयोगितावादी विचार-
मिल ने अपने उपयोगितावादी संबंधी विचार अपने ग्रंथ Utilitarianism (1863) में दिए है|
मिल बेंथम के उपयोगितावाद में संशोधन करता है| संशोधन के चक्कर में वह उपयोगितावाद का स्वरूप ही बदल देता है| इस पर वेपर कहता है कि “उपयोगितावाद पर लगाए गए आरोपों से उसकी रक्षा करने की इच्छा से मिल ने संपूर्ण उपयोगितावाद को ही एक तरफ फेंक दिया|”
मिल उपयोगितावाद के स्थान पर व्यक्तिवाद पर अधिक बल देता है, इसलिए मिल को ‘अंतिम उपयोगितावादी’ तथा ‘प्रथम व्यक्तिवादी’ दार्शनिक माना जाता है|
मिल के अनुसार “वही कार्य उसी अनुपात में सही है, जिस अनुपात में सुख की वृद्धि करता है|”
मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में निम्न संशोधन किए-
सुखों में मात्रात्मक ही नहीं, गुणात्मक अंतर भी होता है-
बेंथम जहां सुखों में केवल मात्रात्मक अंतर स्वीकार करता है, वही मिल मात्रात्मक व गुणात्मक दोनों अंतर स्वीकार करता है| मिल के अनुसार शारीरिक सुखों की अपेक्षा मानसिक सुख श्रेष्ठ होता है|
मिल के अनुसार “एक संतुष्ट शुकर की अपेक्षा एक असंतुष्ट मनुष्य होना कहीं अच्छा है, एक संतुष्ट मूर्ख की अपेक्षा एक असंतुष्ट सुकरात होना कहीं अच्छा है| और यदि मूर्ख और शूकर का मत इसके विपरीत है तो इसका कारण यह है कि वे केवल अपना पक्ष ही जानते हैं, जबकि सुकरात व मानव दोनों ही पक्षों को समझता है|”
सुखों की गणना पद्धति में परिवर्तन-
मिल के द्वारा सुखों में गुणात्मक भेद मान लेने पर बेंथम के सुखवादी मापक यंत्र का कोई महत्व नहीं रहता है| मिल के अनुसार सुखवादी मापक यंत्र से सुखों को नहीं मापा जा सकता है, बल्कि विद्वानों के प्रमाण ही सुखों की जांच के सही आधार है|
बेंथम के सिद्धांत का उद्देश्य सुख या आनंद प्राप्ति है तथा मिल के सिद्धांत का उद्देश्य शालीनता और सम्मान है-
मिल के अनुसार जीवन का अंतिम उद्देश्य उपयोगितावाद ही नहीं है, बल्कि शालीनता है|
मिल के अनुसार “वह आनंद श्रेष्ठ है, जो शालीनता व सम्मान में वृद्धि करें|”
वेपर के अनुसार “मिल नैतिक उद्देश्यों को सुख या प्रसन्नता से ऊंचा मानता है|”
मिल राज्य को नैतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक नैतिक संस्थान मानता है| राज्य का उद्देश्य उपयोगिता नहीं, वरन व्यक्ति में नैतिक गुणों का विकास करना है|
मिल की नैतिकताएं बेंथम से अधिक संतोषजनक है-
बेंथम ने नैतिक बाधा का कारण केवल मनुष्य की स्वार्थपरता को माना है, जबकि मिल नैतिकता में बाधा का कारण भय, स्मृति, स्वार्थ, प्रेम, सहानुभूति तथा धार्मिक भावनाएं माना है|
स्वतंत्रता उपयोगिता से अधिक उच्च और मौलिक-
बेंथम जहां स्वतंत्रता को उपयोगितावाद से निम्न मानता है, वहीं मिल स्वतंत्रता को उपयोगितावाद से उच्च मानता है|
सामाजिक सुख अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होता है-
मिल का मत है कि व्यक्ति अपने सुख के लिए कार्य करता है, लेकिन वह सुख सामाजिक सुख का रूप धारण कर लेता है| जैसे किसी व्यक्ति को कष्ट में देखकर मनुष्य उसकी सहायता करता है तो इस कार्य से उसे स्वयं को भी सुख प्राप्त होता है| इस प्रकार मिल के अनुसार सामाजिक सुख अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होता है|
मिल का उपयोगितावाद नैतिक है, तो बेंथम का उपयोगितावाद राजनीतिक है-
मिल द्वारा अंतःकरण के तत्व पर बल-
बेंथम ने उपयोगितावाद के भौतिक पक्ष पर बल देते हुए बाह्य पक्ष पर बल दिया है, वही मिल ने आंतरिक पक्ष पर बल दिया है| मिल के मत में नैतिक व शुभ कार्यों से हमारे अंतःकरण को सुख व शांति प्राप्त होती है|
व्यक्तिगत सुखों के स्थान पर सामूहिक सुख पर बल-
मिल ने बेंथम के समान व्यक्तिक सुख पर अधिक बल न देकर सामाजिक हित पर बल देता है तथा सामाजिक सुख में ही व्यक्तिगत सुख की कल्पना करता है, मिल के अनुसार सुख साध्य है तथा नैतिकता साधन है व नैतिकता पूर्णत: सामाजिक है|
मिल के अनुसार उपयोगितावादी मानदंड व्यक्ति का अधिकतम सुख न होकर, अधिकतम सामूहिक सुख है|
बेंथम ने फ्रांसीसी उपयोगितावादियों द्वारा वर्णित मानव प्रकृति का सरल चित्रण किया है, जबकि मिल ने ह्यूम के परिष्कृत उपयोगितावाद का अनुसरण किया है|
बेंथम ने सुख (Pleasure) व आनंद (Happiness) को एक माना है, वहीं मिल ने दोनों को अलग-अलग माना है|
सुख के प्रकार-
मिल के अनुसार सुख दो प्रकार के होते हैं-
नैतिक सुख- जैसे काव्य पाठ
भौतिक सुख- जैसे पुष्पीन का खेल
मिल के अनुसार नैतिक या आध्यात्मिक सुख, भौतिक सुख से उच्च स्तर का होता है|
इस प्रकार मिल ने नैतिक व्यक्तिवाद का प्रतिपादन किया|
इस प्रकार मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में संशोधन किया, जिसके संबंध में मिल ने कहा कि “मैं वह पीटर हूं, जो अपने स्वामी को नहीं मानता|”
मिल के उपयोगितावादी विचारों का मूल्यांकन-
एबेन्स्टाइन “मिल ने अपने जीवन या चिंतन का प्रारंभ उपयोगितावादी के रूप में किया और अंत समाजवादी के रूप|”
सेबाइन “मिल ने बेंथम के सिद्धांत में अत्यधिक परिवर्तन तो किए किंतु स्वयं कोई नया सिद्धांत देने में असमर्थ रहा|”
वेपर “उसकी रचनाओं में राज्य का नकारात्मक चरित्र लोप हो जाता है|”
मैक्सी “मिल की उपयोगितावाद की पुनर्समीक्षा में बेंथम की मान्यताओं का बहुत कम अंश रह गया|”
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