प्लेटो द्वारा स्थापित शिक्षणालय (386 ई.पू)
इसको यूरोप का प्रथम विश्वविद्यालय कहा जाता है|
एकेडमी शुरू में न्यूजेज और इसके नेता अपोलो की आराधना करने वाला एक धार्मिक दल था|
पाइथागोरियन स्कूल के समान एकेडमी में भी महिलाओं के प्रवेश की इजाजत थी|
अकादमी के प्रवेश द्वार पर लिखा था कि “गणित, रेखागणित के ज्ञान के बिना यहा कोई भी प्रवेश का अधिकारी नहीं है|” (मेडिस रगजिओमेट्रोस आइसीटो)
प्लेटो ने ‘अकादमी’ में गणित और ज्यामिति के अध्ययन पर अत्याधिक जोर दिया|
प्लेटो ने एकेडमी को भावी दार्शनिक शासकों के ट्रेनिंग स्कूल के रूप में देखा|
एकेडमी में लेक्चरो, सुकरातवादी डायलेक्टिक्स और समस्या हल करने वाली परिस्थिति निर्माण के जरिए शिक्षा दी जाती थी|
प्रोफेसर फॉस्टर ने कहा है कि “प्लेटो की अकादमी केवल बौद्धिक प्रशिक्षण का केंद्र मात्र नहीं थी, बल्कि यह यूनानी जीवन को सुधारने के लिए आवश्यक राजवैज्ञानिकों तथा शासकों के निर्माण की कार्यशाला थी|”
बार्कर- बार्कर ने प्लेटो द्वारा स्थापित अकादमी के दो लक्ष्य बताये है-
प्रथम लक्ष्य- अकादमी विशुद्ध शोध का केंद्र थी|
द्वितीय लक्ष्य- यह राजनीति व कला के प्रशिक्षण की पाठशाला थी, जहां विधायक तथा राजनेता तैयार करने में सहायता मिलती थी|
प्लेटो की अकादमी में पढ़ाये जाने वाले मुख्य विषय थे- गणित जिसमें गणन भी शामिल था, विकसित रेखागणित, खगोलशास्त्र, संगीत, कानून और दर्शन|
इनके अलावा राजनीति, तर्कशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, मानवशास्त्र आदि अनेक विषयों की शिक्षा दी जाती थी|
Note- प्लेटो का विख्यात शिष्य अरस्तु इसी अकादमी की देन है|
12 वर्षों के भ्रमण काल के दौरान प्लेटो पाइथागोरस के सिद्धांतों का ज्ञान पाने तथा दार्शनिकों का शासन देखने के लिए 387 ई.पू. इटली और सिसली गया| सिसली के सिराक्यूज राज्य में प्लेटो की भेंट दियोन (Dion) नामक अत्यंत सुसंस्कृत व्यक्ति तथा वहां के राजा दियोनिसियस प्रथम से हुई|
दियोनिसियस प्रथम दियोन की प्रेरणा से दार्शनिक शासक बनने को तैयार हो गया, लेकिन बाद में प्लेटो द्वारा उसके अन्याय और निरकुंश शासन की कड़ी आलोचना करने पर वह मुकर गया|
दियोनिसियस प्रथम ने दियोन को निर्वासित कर दिया तथा पलेटो को दास के रूप में एजाइना के टापू पर बेच दिया| यहा से प्लेटो के पुराने मित्र अनीकैरिस ने प्लेटों को खरीदकर मुक्त कराया|
367 ई.पू. में एक बार फिर दियोन के निमंत्रण पर प्लेटो सिराक्यूज गया| उनका उद्देश्य था कि स्वर्गीय राजा डायनोसियस के भतीजे और उत्तराधिकारी डायनोसियस द्वितीय को दार्शनिक राजा बनाना| लेकिन डायनोसियस ने प्लेटो के इस विचार का विरोध किया कि रेखागणित राज्य चलाने के शिल्प की कुंजी है, और फलस्वरुप प्लेटो को वापस लौटना पड़ा|
361 ई.पू में दियोन के निमंत्रण तथा तारैंतम के शासक की प्रबल प्रेरणा से एक बार प्लेटो फिर से सिराक्यूज गये| लेकिन इस बार भी दार्शनिक शासक बनाने में असफल रहे|
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