अरस्तु के क्रांति संबंधी विचार-
अरस्तु ने अपनी रचना पॉलिटिक्स की पांचवी पुस्तक में क्रांति संबंधी विचारों का प्रतिपादन किया है|
प्रोफ़ेसर मैक्सी “अरस्तु ने जितने विवेकपूर्ण ढंग से क्रांति के कारणों का विश्लेषण किया है, उतने ही विवेकपूर्ण ढंग से उसने इसके निराकरण के उपायों पर भी प्रकाश डाला है|”
क्रांति के प्रति अरस्तु का दृष्टिकोण यथार्थवादी था, इसी कारण से पोलॉक मानता है कि “अरस्तु ही वह प्रथम दार्शनिक है, जिसने राजनीति को नीतिशास्त्र (आचारशास्त्र) से पृथक किया है|“
क्रांति का अर्थ-
क्रांति संबंधित अरस्तु की धारणा वर्तमान क्रांति संबंधी धारणा से भिन्न है|
अरस्तु के अनुसार क्रांति का अर्थ “संविधान में प्रत्येक प्रकार छोटा-बड़ा परिवर्तन है|”
Note- प्लेटो परिवर्तन को पतन और भ्रष्टाचार से जोड़ते हैं, दूसरी और अरस्तू परिवर्तन को अनिवार्य और आदर्शों की शिक्षा में गति मानते हैं|
क्रांति का उद्देश्य-
अरस्तु निम्न उद्देश्य बताता है-
संविधान या राज्य का परिवर्तन करना, जैसे राजतंत्र को निरंकुश तंत्र|
संविधान में परिवर्तन ना करके केवल शासक वर्ग को बदल देना|
तत्कालीन संविधान को और व्यवहारिक व वास्तविक बनाना|
संविधान में छोटे-मोटे परिवर्तन लाना
क्रांति के प्रकार-
अरस्तु ने क्रांति के निम्न प्रकार बताए हैं-
आंशिक और पूर्ण क्रांति- संविधान पूर्ण बदल दिया जाए तो पूर्ण क्रांति तथा संविधान का महत्वपूर्ण भाग बदल दिया जाए तो आंशिक क्रांति|
रक्तपूर्ण क्रांति और रक्तहीन क्रांति-
रक्तपूर्ण क्रांति- सशस्त्र विद्रोह एवं रक्तपात द्वारा संविधान में परिवर्तन|
रक्तहीन क्रांति- बिना रक्तपात के शांतिपूर्वक परिवर्तन
व्यक्तिगत और अव्यक्तिगत क्रांति-
व्यक्तिगत क्रांति- जब किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को हटाकर संविधान बदला जाए|
अव्यक्तिगत क्रांति- बिना शासक बदले सविधान में किए जाने वाला परिवर्तन|
वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रांति- इसमें संविधान में परिवर्तन वर्ग विशेष को हटाने के लिए किया जाता है| जैसे धनिकतंत्र को हटाकर प्रजातंत्र की स्थापना करना|
वैचारिक या वाग्वीरो की क्रांति- जब कुछ करिश्माती नेता अपने भाषणों से लोगों को प्रभावित कर परिवर्तन करें तो उसे वैचारिक/ वाग्वीरो की क्रांति कहते हैं|
क्रांति के कारण-
अरस्तु ने क्रांति के कारणों को तीन भागों मे विभाजित किया है-
क्रांति के मूल कारण
क्रांति के सामान्य कारण
विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रांति के विशिष्ट कारण
क्रांति के मूल कारण-
अरस्तु के अनुसार क्रांति का मूल कारण समानता की भावना या विषमता है|
समानता दो प्रकार की होती है
संख्यात्मक समानता
आनुपातिक/ योग्यता संबंधी समानता
संख्यात्मक समानता- इसमें सभी व्यक्तियों को समान माना जाता है तथा अधिकार, धन संपत्ति आदि में समानता होनी चाहिए|
अनुपातिक समानता- इसमें सभी व्यक्तियों को अधिकार, धन, संपदा आदि योग्यता के अनुपात में मिलने चाहिए, न कि सभी को समान| अरस्तु आनुपातिक समानता पर बल देता है|
जब एक वर्ग को यह लगता है कि उसके साथ असमानता हो रही है, तो वह समानता की स्थापना के लिए विद्रोह कर देता है|
क्रांति के सामान्य कारण-
अरस्तु ने क्रांति के सामान्य कारण निम्न बताए हैं-
शासको में भ्रष्टाचार व लाभ की लालसा
सम्मान की लालसा
श्रेष्ठता की भावना
घृणा और परस्पर विरोधी विचारधाराएं
भय- अपराधी को दंड का भय तथा कुछ व्यक्तियों को अन्याय होने का भय
द्वेष भावना
जातियों की विभिन्नता
राज्य के किसी अंग की अनुपात से अधिक वृद्धि
निर्वाचन संबंधी षड्यंत्र
अल्पपरिवर्तनों की उपेक्षा
विदेशियों को आने की खुली छूट
पारिवारिक विवाद
शासक वर्ग की असावधानी
मध्यम वर्ग का अभाव
शक्ति संतुलन- विरोधी वर्ग में शक्ति संतुलन होना भी क्रांति का कारण बन जाता है|
विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रांति के विशिष्ट कारण-
राजतंत्र में क्रांति के कारण- राजपरिवार के आंतरिक झगड़े, पारिवारिक कलह|
निरकुशतंत्र में क्रांति के कारण- शासक द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग करना, जनता पर अत्याचार करना|
कुलीनतंत्र में क्रांति के कारण- विभिन्न वर्गों में सामंजस्य का अभाव, योग्य पुरुषों का अपमान|
अल्पतंत्र में क्रांति का कारण- योग्यता की जगह, जन्म या वंश को अधिक महत्व, निर्धनो का शोषण|
संयत प्रजातंत्र में क्रांति का कारण- शासक जब अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए शासन करता है, सर्वजन हित के लिए नहीं करता है|
अतिवादी प्रजातंत्र में क्रांति का कारण- जनसाधारण के हितों की अनदेखी करना, नारेबाजी को महत्व देना|
क्रांतियों को रोकने के उपाय-
मैक्सी “आधुनिक राजनीतिक विचारक शायद ही क्रांति रोकने का अरस्तु के उपायो के अतिरिक्त कोई अन्य ठोस उपाय बता सके|”
प्रोफेसर डनिंग “अरस्तु क्रांतियों को उत्पन्न करने वाले कारणों की विस्तृत सूची देने के पश्चात उसके समान ही प्रभावोत्पादक उसको रोकने वाले उपायों की सूची भी देता है|”
अरस्तु ने क्रांति रोकने के निम्न उपाय बताए हैं-
शक्ति पर नियंत्रण- शक्तियों का विभाजन होना चाहिए, एक वर्ग के पास अधिक शक्तियां नहीं होनी चाहिए|
जनता में संविधान के प्रति आस्था बनाये रखना- शिक्षा के द्वारा ऐसा किया जा सकता है|
लाभ, सम्मान, पदों का न्यायपूर्ण वितरण|
राज्यों को परिवर्तनों के प्रारंभ से बचाना चाहिए, क्योंकि परिवर्तनों के प्रारंभ से ही क्रांति होती है|
आर्थिक असमानता को कम करना|
समाज में मध्यम वर्ग को बढ़ावा देना|
दो विरोधात्मक प्रवृत्ति के लोगों के हाथों में सत्ता देना, जैसे- अमीर व गरीब, प्रतिभाशाली व धनिक|
धनोपार्जन की भावना का दमन करना|
राज्य अधिकारियों का कार्यकाल कम अवधि का रखना| अरस्तु के अनुसार अधिकारी वर्ग को 6 माह से अधिक शासन करने के लिए न दिया जावे|
क्रांति रोकने के मनोवैज्ञानिक उपाय अपनाये जाये|
क्रांति रोकने के उपायों में अरस्तु राज्य की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करता है| राज्य की सुरक्षा के लिए अरस्तु व्यक्तिगत हस्तक्षेप का भी समर्थन करता है|
अरस्तु राजतंत्र में क्रांति रोकने के दो साधन बताता-
अत्याचार के द्वारा, विदेशी सेना के प्रदर्शन के द्वारा
सद्भावना व प्रेम के द्वारा|
विधि के शासन की स्थापना
विदेशी समस्याओं की तरफ जनता का ध्यान केंद्रित करना| अरस्तु के शब्दों में “शासक जो राज्य की चिंता करते हैं, उन्हें चाहिए कि वे नए खतरो का अन्वेषण करें, दूर के भय को समीप लाए ताकि जनता पहरेदार की तरह अपनी रक्षा के लिए सदा सचेत और तत्पर रहें|"
राजतंत्र में क्रांति रोकने के लिए अरस्तू ने राजा के संयत व्यवहार पर बल दिया है|
निरंकुश तंत्र में क्रांति रोकने के लिए निरंकुश शासक को शासन की समस्त बागडोर अपने हाथ में रखते हुए भी इस तरह का अभिनय करना चाहिए कि वह राजा है, निरंकुश नहीं|
प्रजातंत्र में क्रांति रोकने के लिए अरस्तु ने सुझाया है कि संपन्न लोगों के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाए तथा उनकी संपत्ति को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जाए|
धनिकतंत्र में क्रांति को रोकने के लिए गरीबों का पूरा ध्यान रखना उचित होगा|
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