अरस्तु के अनुसार खुशी या यूडीमोनिया का स्वरूप-
अरस्तु ने अच्छाई को खुशहाली के बराबर माना है |
एथिक्स और पॉलिटिक्स में अरस्तु ने मानव खुशहाली के व्यवहारिक विज्ञान पर जोर दिया है|
मेंकेटायर के शब्दों में “सुकरात के समान प्लेटो और अरस्तू खुशी हासिल करने के लिए आत्मा की सेवा के पक्ष में थे|”
अरस्तु की दृष्टि में खुशी दो गुणों से हासिल हो सकती है- 1 नैतिक गुण 2 बौद्धिक गुण| बौद्धिक गुण अंतिम कारणों का ज्ञान था, जिसमें व्यावहारिक बुद्धि (फ्रोनेसिस) या गुणकारी नैतिक व्यवहार एवं बुद्धि (सोफिया) या शाश्वत अपरिवर्तनीय वस्तु का ज्ञान शामिल है|
युद्ध का विरोध-
अरस्तु केवल शांति की स्थापना के लिए युद्ध का समर्थन करता है|
अरस्तु के शब्दों में “युद्ध होना चाहिए शांति की खातिर व काम होना चाहिए अवकाश की खातिर|”
स्वर्णिम मध्यमान का नियम या औसत का तर्क (Rule of Golden mean)-
अरस्तु ने अपने राजनीतिक चिंतन में मध्यम मार्ग को अपनाया है|
संविधानो में भी मध्यम मार्ग को अपनाते हुए Polity को सर्वश्रेष्ठ सविधान माना है|
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