प्लेटो : लॉज Plato : The Laws
लॉज प्लेटो का अंतिम ग्रंथ था, जिसका प्रकाशन उसकी मृत्यु के 1 वर्ष बाद 346 ईसा पूर्व में हुआ|
इसका प्रकाशन प्लेटो के शिष्य कोपस के फिलिप (Philip of copas) के द्वारा करवाया गया|
आकार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा ग्रंथ है|
लॉज भी संवाद पर आधारित ग्रंथ है|
लॉज प्लेटो का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसका प्रमुख प्रवक्ता या नायक सुकरात नहीं है|
इसमें संवाद के 3 पात्र हैं--
बिना नाम का एथेंस वासी मुख्य वक्ता है, जो प्लेटो का प्रतिनिधित्व करता है|
दूसरा मेगिलस है, जो स्पार्टा निवासी है|
तीसरा कलिनियस है, जो क्रीट निवासी है |
लॉज 12 भागों में विभक्त है, जिसमें निम्न वर्णित है-
प्रथम व द्वितीय भाग- संगीत, नृत्य, शिक्षा का महत्व
तीसरा भाग- राज्य के ऐतिहासिक विकास का वर्णन
चौथा भाग- राजनीति शास्त्र के आधारभूत सिद्धांतों का वर्णन
पांचवे से आठवे तक- कानूनों, शासन-विधान, पदाधिकारियों, राज्य की जनसंख्या, शिक्षा पद्धति का वर्णन
नवे से ग्यारवे तक- फौजदारी और दीवानी नियमों की संहिता
12 वे भाग- सार्वजनिक कानून, कर्तव्यच्युत अधिकारियों के लिए दंड व्यवस्था, नैश परिषद (Nocturnal Council) का वर्णन है|
लॉज में प्लेटो ने उप आदर्श राज्य अथवा द्वितीय सर्वश्रेष्ठ राज्य का खाका खींचा है| लॉज में प्लेटो एक ऐसी शासन प्रणाली का आयोजन करता है, जिसमें कानून की प्रभुता होगी किंतु शासन का संचालन ज्ञान और दर्शन ही करेंगे|
प्लेटो ने उप आदर्श राज्य अथवा द्वितीय सर्वश्रेष्ठ को यूनानी भाषा में मैग्नीशिया (Magnesia) कहा है|
लॉज में प्लेटो कानून का विचार देता है| लॉज में प्लेटो कानून को मन की उपज कहता है एवं उसे एक सभ्यता मानता है|
लॉज में प्रतिपादित उप-आदर्श राज्य के प्रमुख सिद्धांत-
आत्म संयम का सिद्धांत-
प्लेटो लॉज में न्याय की स्थापना के लिए आत्म संयम को आवश्यक मानता है| आत्म संयम से समाज में न्याय, विवेक, उत्साह की प्रतिष्ठा होती है तथा राज्य में एकता व स्वतंत्रता प्राप्त होती है| आत्म संयम राज्य को पूर्ण व दोष रहित बनाता है| आत्म संयम से ही उत्पादक वर्ग दार्शनिकों का नियंत्रण स्वीकार करता है|
कानून विषयक सिद्धांत-
प्लेटो ने लॉज में कानून की प्रभुता स्थापित की है| लॉज में कानून की स्थिति सर्वोच्च है तथा शासक और शासित दोनों ही इसके अधीन रहते हैं|
प्लेटो लॉज के उप-आदर्श राज्य में कानून को वही स्थान देता है, जो रिपब्लिक में बुद्धि को देता है|
प्लेटो के अनुसार कानून का निर्माण एक कानून निर्माणक अथवा संहिताकार द्वारा होना चाहिए|
कानूनों को कार्यान्वित करने का भार किसी नवयुवक शासक को दिया जाना चाहिए|
प्लेटो के अनुसार राज्य को कानून के अनुसार होना चाहिए, ना कि कानून राज्य के अनुकूल हो|
सरकार को कानून के सेवक और दास की भांति राज्य का संचालन करना चाहिए| प्लेटो कानून की स्थिरता और ठोसपन में विश्वास रखता है|
प्लेटो के अनुसार कानूनों के पालनार्थ राज्य के नागरिकों की उचित शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए|
इतिहास की शिक्षाएं-
लॉज में प्लेटो बताता है कि हमें भूतकालीन अनुभवों से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए|
इतिहास के आधार पर प्लेटो ने कानून के नियम, मिश्रित संविधान, आत्म संयम जैसे तत्वों की पुष्टि की है|
इतिहास का उदाहरण देते हुए प्लेटो कहता है कि आत्म संयम नहीं रहने के कारण ही आरगोस एवं मेंसीना जैसे राज्यों का पतन हो गया|
मिश्रित राज्य या मिश्रित संविधान-
लॉज के उप-आदर्श राज्य की महत्वपूर्ण विशेषता मिश्रित संविधान अथवा मिश्रित राज्य है|
इस सिद्धांत का उद्देश्य शक्तियों के संतुलन द्वारा समरसता प्राप्त करना है|
इस सिद्धांत के अनुसार उप-आदर्श राज्य के निर्माण के लिए राजा और प्रजा, धनी और निर्धन, बुद्धिमान और शक्तिशाली सभी व्यक्तियों और वर्गों का सहयोग आवश्यक है|
लॉज में वर्णित उप-आदर्श राज्य राजतंत्र, कुलीनतंत्र और जनतंत्र का समन्वय है, अर्थात प्लेटो शक्ति संतुलन के लिए मध्यम मार्ग अपनाता है|
राज्य की भौगोलिक स्थिति व जनसंख्या-
प्लेटो के अनुसार उप-आदर्श राज्य समुद्र तट से दूर होना चाहिए, क्योंकि समुद्र तट के निकट होने पर विदेशी व्यापारी भ्रष्टाचार फैला सकते हैं|
राज्य चारों तरफ से सुरक्षित सीमाओं से घिरा होना चाहिए|
राज्य में जहाज बनाने वाले लकड़ी नहीं होनी चाहिए ताकि समुद्री व्यापार न हो, क्योंकि समुद्री व्यापार लोगों को व्यापारिक वृत्ति का बना देता है| जो राज्य को बेवफा व मित्र रहित बना देता है|
प्लेटो नौसेना को स्थल सेना से खराब मानता है, जबकि अरस्तु सामुद्रिक राज्य के पक्ष में था|
राज्य कृषि प्रधान होना चाहिए|
राज्य की जनसंख्या 5040 या 5040 परिवार होने चाहिए, यह जनसंख्या युद्ध व शांति के लिए उपयोगी है|
5040 का मुख्य भाजक 12 है| प्लेटो अपने आदर्श राज्य को 12 जातियों में बांटता है| उसके राज्य में मुद्रा, नापतोल की व्यवस्था द्वादशात्मक थी|
संपत्ति एवं आर्थिक व्यवस्था-
लॉज के उप-आदर्श राज्य में मानवीय दुर्बलताओं को ध्यान में रखते हुए प्लेटो निजी संपत्ति एवं परिवार की अनुमति दे देता है|
प्लेटो संपत्ति में भूमि व मकान को शामिल करता है|
प्लेटो अत्यधिक आर्थिक विषमता को समाप्त करना चाहता है| प्लेटो स्वामित्व तो निजी कर देता है लेकिन उपभोग सामूहिक रखता है|
राज्य के पास केवल प्रतीक मुद्रा होगी| ऋणों पर ब्याज नहीं लिया जा सकता| सोना चांदी अपने पास नहीं रखा जा सकता|
उच्चतम और निम्नतम संपत्ति के बीच अनुपात 4:1 होना चाहिए|
श्रम विभाजन-
प्लेटो उप-आदर्श राज्य में आर्थिक संरचना के आधार पर कार्यों का वर्गीकरण तीन भागों में करता है-
विदेशियों और स्वतंत्र व्यक्ति (freeman) के लिए व्यापार व उद्योग
दास और गुलामों के लिए खेती
नागरिकों के लिए शासन प्रबंध अर्थात राजनीतिक कार्य
सरकार का संचालन-
सरकार का संचालन कानून के अनुसार होगा| शासन संचालन की निम्न राजनीतिक संस्थाएं होंगी-
साधारण सभा- राज्य के सभी नागरिक इसके सदस्य होंगे| इसकी बैठक वर्ष में एक बार अवश्य होनी चाहिए| इसका प्रमुख कार्य अन्य संस्थाओं के सदस्यों का चुनाव करना और कानून व न्याय में परिवर्तन करना|
सलाहकार बोर्ड- इसके 37 सदस्य होंगे| सदस्यों की आयु 50 से 70 वर्ष होनी चाहिए| सलाहकार बोर्ड का प्रमुख कार्य परामर्श देना है|
प्रशासनिक परिषद- इसके 360 सदस्य होंगे| इसका मुख्य कार्य सलाहकार बोर्ड के आदेशों को कार्यान्वित करना व वास्तविक रूप से शासन करना है| शासन की सुविधा की दृष्टि से यह 12 भागों में विभक्त होगी, प्रत्येक भाग 1 महीने के लिए कार्य करेगा| इसका कार्यकाल 20 वर्ष का होगा| इसका अध्यक्ष शिक्षा विभाग का अध्यक्ष होगा जो 5 वर्ष के लिए चुना जाएगा|
न्याय का प्रशासन- प्लेटो उप-आदर्श राज्य में 4 तरह के न्यायालयों का वर्णन करता है-
स्थायी पंचायती न्यायालय
क्षेत्रीय न्यायालय
विशेष चुने न्यायाधीशों का न्यायालय
संपूर्ण जनता का न्यायालय
संपूर्ण विभाग का संरक्षक मंत्री होगा|
स्थानीय शासन- प्लेटो स्थानीय शासन की भी व्यवस्था करता है| नगरों में दो प्रकार के अधिकारी होंगे-
नगर निरीक्षक
बाजार निरीक्षक|
ग्रामों में अधिकारी ग्रामीण निरीक्षक होंगे|
विवाह तथा परिवार विषयक विचार-
लॉज में प्लेटो स्त्रियों के साम्यवाद को समाप्त कर देता है| स्त्री शिक्षा, स्त्री- पुरुष समानता पर बल देता है|
विवाह विरोधी चरित्र के मध्य होना चाहिए| प्रति मास धार्मिक सभाओं का आयोजन हो, जिसमें युवक अपनी भावी पत्नी प्राप्त करें| विवाह का उद्देश्य व्यक्तिगत आनंद न होकर राज्य का हित होना चाहिए|
शैक्षणिक व धार्मिक संस्थाएं-
प्लेटो राज्य नियंत्रित शिक्षा का पक्षधर है|
प्लेटो धर्म को भी संस्थागत रूप देना चाहता है| धर्म को भी राज्य के नियंत्रण में रखना चाहते हैं|
प्लेटो ने किसी भी प्रकार की निजी धार्मिक शिक्षा पर पाबंदी लगाई एवं पूजा-पाठ राज्य द्वारा अधिकृत पादरी ही कर सकते थे|
प्लेटो नास्तिकता का विरोध करता है| धर्म के प्रति श्रद्धा हीन व्यक्तियों के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था करता है|
नैश परिषद या निशाचर परिषद-
इसमें 37 सदस्य होंगे, जिसमें 10 वरिष्ठ होंगे|
शिक्षा संचालक, पुरोहित (पादरी) इसके सदस्य होंगे|
यह काउंसिल कानून से ऊपर थी|
यह कानून की संरक्षक होगी|
इसे राज्य की वैधानिक संस्थाओं का नियमन और नियंत्रण की शक्ति भी प्राप्त होगी|
स्वर्णिम सूत्र का नियम या कानून का स्वर्ण सूत्र या कठपुतली का रूपक-
कठपुतली का रूपक व स्वर्णिम सूत्र के नियम का वर्णन प्लेटो की अंतिम पुस्तक द लॉज में है|
स्वर्णिम सूत्र के नियम में निम्न मुद्दे है-
कठपुतली का रूपक (The Puppet metaphor)
बुद्धि या तर्क का महत्व
इच्छा शक्ति की ताकत (Enkrateia- एनक्रेटिया)
इच्छा शक्ति की कमजोरी (Akrasia- अक्रासिया)
लॉज प्लेटो का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसका प्रमुख प्रवक्ता या नायक सुकरात नहीं है|
इसमें संवाद के 3 पात्र हैं--
बिना नाम का एथेंस वासी (एथेनियन) मुख्य वक्ता है, जो प्लेटो का प्रतिनिधित्व करता है|
दूसरा मेगिलस है, जो स्पार्टा निवासी है|
तीसरा कलिनियस है, जो क्रीट निवासी है|
मेगिलस शराब सेवन को श्रेष्ठ सुख बताता है तथा शारीरिक व भौतिक सुखों को महत्वपूर्ण मानता हुआ प्रश्न पूछता है|
जवाब में एथेनियन कठपुतली के उदाहरण द्वारा नैतिक व बौद्धिक सुखों का महत्व बताता है|
एथेनियन कहता है कि जिस तरह एक कठपुतली के खेल में कठपुतली को नचाने के लिए बहुत सारे सूत्र (डोरिया या धागे) होते हैं| ये सभी डोरिया कठपुतली को विभिन्न दिशाओं में खींचती है| इन डोरियों में एक डोरी पवित्र व सुनहरी होती है| यह डोरी कठपुतली को गलत दिशा में नहीं जाने देती है|
उसी प्रकार मानव को भांति भांति के भौतिक व शारीरिक सुख, भाव, लोभ, लालच अपनी ओर खींचते हैं पर तर्क व बुद्धि रूपी स्वर्णिम डोरी उसे भौतिक व शारीरिक सुखों का दास नहीं बनने देता है, बल्कि उसे नैतिकता व सद्गुण के मार्ग पर रखती है|
मजबूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति अपने तर्क व बुद्धि के माध्यम से शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित कर नैतिक व आध्यात्मिक सुखों को श्रेष्ठत्तर मानता है, वही कमजोर इच्छा शक्ति वाले मनुष्य को शारीरिक व भौतिक सुखों के सूत्र अपनी ओर खींच लेते हैं, जिसके कारण वह अंतत दुख की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि भौतिक जगत नाशवान होता है|
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