प्लेटो: स्टेट्समैन (Plato: The Statesman)
प्लेटो की यह रचना 367- 361 ईसा पूर्व के मध्य लिखी गई| जब वह सेराक्यूज में डायनोसियस (द्वितीय) के सुधार में लगा हुआ था या इसके तुरंत बाद| इस समय प्लेटों को एक और तो सेराक्यूज के राजतंत्र से बड़ी-बड़ी आशाएं बंध रही थी तथा दूसरी ओर विधि (कानून) में भी उसकी अभिरुचि उत्पन्न हो गई थी, तथा वह डायनोसियस द्वितीय के साथ विधियों की प्रस्तावनाए तैयार करने में लगा हुआ था |
सिनक्लेयर के अनुसार रिपब्लिक की रचना के लगभग 12 से 15 वर्ष बाद 362 ईसा पूर्व में प्लेटो ने स्टेट्समैन की रचना की|
इस ग्रंथ में कानून पर प्लेटो ने नए दृष्टिकोण से विचार किया तथा जनतंत्र की उतनी आलोचना नहीं की, जितनी कि रिपब्लिक में की थी |
स्टेट्समैन में मिश्रित संविधानो का संकेत मिलता है तथा जिसका पूर्ण विकास लॉज में हुआ था|
स्टेट्समैन को ग्रीक भाषा में पॉलिटिक्स (Politicus) कहा जाता है|
ग्रीक भाषा के पॉलिटिक्स (Politicus) का शाब्दिक अर्थ है- ‘राजपुरुष या राजनीतिज्ञ या राजमर्मज्ञ|’
स्टेट्समैन में थियोडोरस, सुकरात तथा एक विदेशी के मध्य आदर्श राजनीतिज्ञ के स्वरूप एवं कर्तव्य के विषय में वार्तालाप या संवाद का वर्णन है |
इस संवाद या वार्तालाप में रिपब्लिक में प्रतिपादित आदर्शों पर पुन: विचार किया जाता है और विभिन्न प्रकार की शासन पद्धतियों के चक्र तथा उनके गुण-अवगुण का विवेचन किया जाता है |
स्टेट्समैन का मुख्य विषय एक राजपुरुष या राजनेता है| प्लेटो ने राजनेता को सर्वोच्च सत्ता का अधिकारी माना है और राजनीतिक नेतृत्व को सभी विज्ञानों में प्रधान बतलाया है |
संवाद की पहली कड़ी में राजनीतिज्ञता अथवा राजमर्मज्ञता का संबंध ज्ञान से बताया है तथा संवाद श्रंखला की दूसरी कड़ी में ज्ञान के दो भाग बताए गए हैं-
आलोचनात्मक ज्ञान
आदेशात्मक ज्ञान
आलोचनात्मक ज्ञान- इसमें निर्णय लिए जाते हैं तथा निर्णयो को कार्यान्वित करने के आदेश दिए जाते हैं|
आदेशात्मक ज्ञान- राजनीतिज्ञता आदेशात्मक ज्ञान के अंतर्गत आती है| प्लेटो ने आदेशात्मक ज्ञान को भी दो भागों में बांटा है -
प्रधान या सर्वोपरि भाग
गौण या अधीन भाग
प्रधान या सर्वोपरि भाग- राजनेता व प्रशासक इस श्रेणी में आते हैं| ये आदेश दे सकते हैं, ये प्रभुता संपन्न होते हैं इनके आदेश का स्रोत स्वयं ही होते हैं |
गौण या अधीनस्थ भाग- इसमें अधीनस्थ लोग होते हैं, जो उन्हीं आदेशों को जारी कर देते हैं जो उन्हें दिए जाते हैं| इसमें सेनापति, न्यायाधीश व अन्य अधीनस्थ अधिकारी होते हैं|
प्लेटो की दृष्टि में जिन विज्ञानों का संबंध कर्म से है, उनमें राजनीतिज्ञता अथवा राजमर्मज्ञता (Statesment) सबकी सिरमौर है |
प्लेटो के अनुसार राजनेता अपनी आदेश शक्ति का प्रयोग भरण-पोषण के लिए करता है, भरण पोषण का मतलब प्रजा की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति है|
ज्ञान तक कुछ ही व्यक्तियो की पहुंच होती है, अतः राजनेता कुछ ही व्यक्ति होते हैं |
प्लेटो ने राजनेता या प्रशासक की निरंकुशता अथवा निरपेक्षता का निम्नलिखित आधारों पर पोषण या संशोधन किया है-
राजनीतिक सभ्यता के तर्क के आधार पर निरंकुशता का पोषण
सामाजिक सामंजस्य के तर्क के आधार पर निरंकुशता का पोषण
विधि-शासन के विचार के आधार पर निरंकुशता का संशोधन
राजनीतिक सभ्यता के तर्क के आधार पर निरंकुशता का पोषण-
इस आधार पर निरंकुशता को न्यायोचित ठहराते हुए प्लेटो कहता है कि “राजनीतिज्ञता एक कला है तथा राजनेता कलाकार| जिस प्रकार कलाकार कला प्रदर्शन के समय पूर्ण स्वतंत्र होता है, उसी प्रकार राजनेता भी शासन संचालन में पूर्ण स्वतंत्र व निरंकुश होना चाहिए| उसकी कला के लिए विधि या कानून अनावश्यक व हानिकारक है|”
इस विरोध के बावजूद भी स्टेट्समैन में प्लेटो मानता है कि कानून होता है, लेकिन उसमें कमियां होती है| प्लेटो का मानना है कि व्यावहारिक दृष्टि से कानून उचित होता है, लेकिन आदर्श की मांग है कि राजनीतिज्ञ पर कानून का बंधन लचीला होना चाहिए|
बार्कर के अनुसार “प्लेटो विधि की कठोरता से डरता है|”
सामाजिक सामंजस्य के आधार पर निरंकुशता का पोषण-
इस तर्क के आधार पर प्लेटो कहता है कि राजनेता या शासक को विभिन्न व्यक्तियों में सामंजस्य की स्थापना करके उनमें एकता की स्थापना करनी चाहिए| इसके लिए राजनेता का निरंकुश होना आवश्यक है, तभी वह सामंजस्य की स्थापना कर सकता है|
प्लेटो के अनुसार राजनेता 2 उपायों से सामंजस्य लाने का प्रयत्न करेगा-
आध्यात्मिक अथवा अलौकिक
भौतिक अथवा लौकिक
विधि के शासन के विचार के आधार पर निरंकुशता का संशोधन--
प्लेटो ने व्यवहारिकता को अपनाते हुए चिंतन के अगले चरण में विधि के शासन के आधार पर निरंकुशता में संशोधन किया है|
इस नए दौर में प्लेटो ने यथार्थ के साथ समझौता किया और स्वीकार किया कि राजनीतिक जीवन में सहमति, विधि, संविधानवाद का भी स्थान होता है|
प्लेटो के अनुसार सच्चे राजनेता के ज्ञान के स्थान पर कानून का शासन रख दिया जाए तो भी राज्य कायम रहेगा वृद्धावस्था में प्लेटो वास्तविकता के सामने झुक जाता है|
स्टेट्समैन में कानून को स्थान देते हुए कहता है कि दार्शनिक शासक इस भूतल पर प्राप्त नहीं होगा, अतः समुचित शासन व्यवस्था को कानून की सार्वभौमिकता मानना आवश्यक है| इसके बाद लॉज में प्लेटो कानून को उचित स्थान पर प्रतिपादित कर देता है|
स्टेट्समैन में प्लेटो का राज्य- वर्गीकरण
स्टेट्समैन में प्लेटो ने राज्य को 6 भागों में बांटा है, जो निम्न है-
प्लेटो ने दो आधारों पर 6 प्रकार के राज्यों का वर्गीकरण किया है, यह दो आधार निम्न है-
1 कानून
2 शासकों की संख्या
Note- प्लेटो रिपब्लिक में राज्यों का वर्गीकरण आदर्श राज्य की विकृति तथा एक दूसरे राज्य की विकृति के रूप में करता है, जबकि स्टेट्समैन में राज्यों का वर्गीकरण विस्तृत रूप में किया है|
स्टेट्समैन के अनुसार-
सर्वश्रेष्ठ शासन पद्धति- राजतंत्र
सबसे निकृष्ट शासन पद्धति- निरंकुश तंत्र
प्रजातंत्र प्लेटो के अनुसार कानून आधारित शासनो में सबसे बुरा तथा कानून रहित शासनो में सबसे अच्छा है |
अतः स्टेट्समैन में प्लेटो यह मान लेता है कि वास्तविक राज्य में जनता की स्वीकृति और सहयोग की उपेक्षा नहीं की जा सकती |
रिपब्लिक व स्टेट्समैन के राजनीतिक विचारों में अंतर-
रिपब्लिक आदर्शवादी है, जबकि स्टेट्समैन यथार्थवादी है |
स्टेट्समैन में प्लेटो प्रजातंत्र को हेय नहीं समझता है, जबकि रिपब्लिक में इसकी कटु आलोचना की है |
रिपब्लिक में उत्पादक वर्ग को उपेक्षित रखा है, जबकि स्टेट्समैन में उन्हें ग्रीक नगर राज्य का नागरिक स्वीकार किया है|
स्टेट्समैन में राजनेता का कार्य शासकों को प्रशिक्षित करना है, जबकि रिपब्लिक में ऐसी व्यवस्था नहीं है|
रिपब्लिक में दार्शनिक शासकों को संप्रभुता दी गई है जबकि स्टेट्समैन में सर्वज्ञ राजपुरुष या राजनेता का महत्व प्रतिपादित है|
रिपब्लिक में कानून को महत्व नहीं दिया गया है, जबकि स्टेट्समैन में कानून को महत्व दिया जाता है|
दोनों में शासन का वर्गीकरण भी भिन्न है|
इस प्रकार स्टेट्समैन में प्लेटो के प्रौढ़ता के दर्शन होते हैं|
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