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समानता विषयक रूसो के विचार/ धर्म संबंधी विचार || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

     समानता विषयक रूसो के विचार-

    • रूसो का मत है कि समानता के अभाव में स्वतंत्रता नहीं रह सकती है|

    • प्रकृति में सर्वत्र असमानता पाई जाती है, रूसो इस प्राकृतिक असमानता के बदले सामाजिक अनुबंध जनित नैतिक समानता की स्थापना करता है|

    • कानूनी दृष्टि से रूसो सभी को समान बनाता है| रूसो आर्थिक समानता की भी स्थापना करना चाहता है|


    • रूसो ने असमानता को दो भागों में बांटा है-

    1. प्राकृतिक असमानता- प्रकृति प्रदत

    2. परंपरागत असमानता या नैतिक असमानता- समाज द्वारा उत्पन्न, इस असमानता को दूर करने की मांग ही मानव करता है| 



    धर्म संबंधी विचार-

    • रूसो धर्म को राज्याधीन मानता है| रूसो ने धर्म के तीन प्रकार बताए हैं-

    1. वैयक्तिक धर्म

    2. नागरिक धर्म

    3. पुरोहित धर्म


    1. वैयक्तिक धर्म- यह धर्म मनुष्य की अपनी संस्थाओं और अपने आंतरिक विश्वासों पर आधारित है| यह धर्म सर्वश्रेष्ठ है, किंतु सांसारिक दृष्टि से अव्यावहारिक है| वैयक्तिक धर्म ईश्वरीय नियमों पर आधारित आडंबरहीन सहज धर्म है|


    1. नागरिक धर्म- यह धर्म राष्ट्रीय तथा बाह्य है| यह धर्म संस्कारों, रूढ़ियों तथा विधियों पर आधारित है| रूसो ने इस धर्म के पांच विधेयात्मक सूत्र बताए है-

    1. ईश्वर की सत्ता में विश्वास करना और यह मानना कि वह परमज्ञानी, दूरदर्शी और दयालु है|

    2. पुनर्जन्मवाद में विश्वास

    3. पुण्यात्मा सुख पाएंगे

    4. पापात्मा दंड भोगेगे

    5. सामाजिक अनुबंध और विधियों की पवित्रता की रक्षा करना महत्वपूर्ण कर्तव्य है|

    • नागरिक धर्म का एक निषेधात्मक सूत्र है, वह है असहिष्णुता अर्थात असहिष्णु व्यक्ति का राज्य में कोई स्थान नहीं है|

    • रूसो के मत में नागरिक धर्म के विरुद्ध आचरण करने वाले व्यक्ति को मार देना चाहिए|


    1. पुरोहित धर्म- यह वह धर्म है, जो पुरोहित-पादरियों द्वारा दिया जाता है| यह धर्म सबसे निकृष्ट है| जो दो तरह की सत्ताओ को जन्म देता है| राज्य में संघर्ष का वातावरण पैदा करता है तथा राज्य की प्रगति में बाधा पहुंचाता है|

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