Ad Code

रूसो का मूल्यांकन / Evaluation of Rousseau || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

    महत्व व राजनीति विज्ञान को देन-

    • G.D.H कोल ने रूसो को राजदर्शन का पिता कहा है और उसके सोशियल कॉन्ट्रैक्ट को राजदर्शन के ऊपर महानतम ग्रंथ बताया है|

    • वेपर “तर्क का उत्साही धर्मदूत, जिसने अविवेक के काल में राह प्रशस्त करने हेतु औरो से अधिक किया|”

    • स्ट्रास “रूसो राजनीतिक दर्शन में आधुनिकता की दूसरी लहर के प्रवर्तक हैं|”

    • रूसो के विचार का प्रभाव फ्रांस की क्रांति, अमेरिका की क्रांति, मानव अधिकारों की घोषणा में दिखता है| नेपोलियन ने कहा है कि “यदि रूसो न हुआ होता तो फ्रांस में क्रांति भी नहीं होती|”

    • रूसो प्रथम विचारक है, जिसने प्रभुसत्ता का निवास मात्र जनता में बताया है| रूसो की प्रभुसत्ता की धारणा को ‘लोकप्रिय प्रभुसत्ता’ कहा जाता है|

    • रूसो को ‘प्रत्यक्ष लोकतंत्र’ का प्रणेता माना जाता है|

    • रूसो स्वतंत्रता पर बल देता है| हीगल के अनुसार “रूसो के ग्रंथों में स्वतंत्रता की बुद्धिपूर्वक अभिव्यक्ति हुई है|”

    • रूसो के विचार का जर्मन विज्ञानवाद पर भी प्रभाव पड़ा है|

    • कांट के अनुसार “सरल मानव की नैतिक वृतियों का महत्व उसे रूसो के ग्रंथ से विदित हुआ|”

    • कोल के अनुसार “रूसो वास्तव में जर्मन व ब्रिटिश आदर्शवाद का अग्रदूत है|”


    समुदायवाद’ के प्रणेता के रूप में-

    • सामान्य इच्छा सिद्धांत के कारण रूसो को ‘समुदायवाद’ का प्रणेता माना जाता है| 

    • जहां हॉब्स व लॉक व्यक्तिवादी है, वहीं रूसो समुदायवादी है|

    • वाहन ने रूसो को सामूहिकतावादी कहा है तथा कार्ल पॉपर ने रूसो को रोमांटिक सामूहिकतावादी कहा है|

    • वाहन “रूसों के साहित्य के पहले चरण में विद्रोही व्यक्तिवाद दिखाई देता है तो बाद के चरण में विद्रोही समष्टिवाद या समूहवाद|”


    आधुनिक समाजवाद के आध्यात्मिक प्रणेता के रूप में-

    • रूसो व्यक्तिगत संपत्ति को गरीबी, शोषण व असमानता का मूल कारण मानते थे| इस अर्थ में वे आधुनिक समाजवाद के आध्यात्मिक प्रणेता थे| 

    • पर रूसो ने संपत्ति का विरोध प्लेटो की तरह नैतिक आधार पर किया है, न कि मार्क्स की तरह आर्थिक शोषण के आधार पर| 

    • रूसो समाजवादियों की तरह सामूहिक संपत्ति के भी समर्थक नहीं थे, उन्होंने संपत्ति के अधिकार को पवित्र अधिकार माना है|


    आधुनिक राष्ट्रवाद के बौद्धिक पितामह के रूप में-

    • सामान्य इच्छा सिद्धांत व समुदायवाद पर बल देने के कारण रूसो को आधुनिक राष्ट्रवाद का बौद्धिक पितामह भी कहा जाता है| 

    • रूसो के अनुसार शिक्षा राष्ट्रीय भावना पैदा करती है| 

    • राष्ट्रवाद के विकास पर रूसो का प्रभाव पड़ा है| रूसो प्राचीन स्पार्टा व रोमन गणराज्य की तरह देशभक्ति व नागरिक गुणों’ से प्रेरित एकीकृत नागरिकता चाहता था, जहां नागरिक बिना बहस के स्वत: ही कानून पर मतदान करेंगे| इस विचार का राष्ट्रवाद के विकास पर प्रभाव पड़ा है| 

    • सेबाइन के अनुसार “स्वयं एक राष्ट्रवादी न होते हुए भी रूसो ने नागरिकता के ऐसे प्राचीन आदर्श को स्वीकारा है, जिसने राष्ट्रीय भावना के विकास में मदद की है|”

    रूडोल्फ रोकर के अनुसार रूसो संयुक्तकारी चरम राष्ट्रवाद का बौद्धिक पूर्वज है|
    Close Menu