राज्य और चर्च संबंधी हॉब्स के विचार-
थॉमस हॉब्स मध्ययुगीन के पांडित्यवाद या स्केलोस्टिसिज्म का विरोधी था|
थॉमस हॉब्स धर्म की उत्पत्ति के संबंध में कहता है कि “धर्म की उत्पत्ति अंतरात्मा या किसी अन्य कारण से नहीं हुई है, बल्कि भय और स्वार्थ के कारण से हुई है|”
हॉब्स राज्य को सर्वोच्च संस्था मानता है, अन्य सभी संस्थाओं को राज्य का एक विभाग मानता है|
हुड के शब्दों में “हॉब्स ने ऐसे राज्य का निर्माण किया है जो केवल सर्वोच्च सामाजिक शक्ति के रूप में नहीं, वह सर्वोच्च आर्थिक शक्ति के रूप में भी निरपेक्ष था|”
हॉब्स चर्च को भी राज्य के अधीन करता है, जिस पर संप्रभु का पूर्ण अधिकार है|
हॉब्स ने कहा है कि “पोपशाही रोमन साम्राज्य का प्रेत है और उसकी कब्र पर बैठा है|”
हॉब्स ने रोमन कैथोलिक चर्च को ‘अंधकार का राज्य’ (The Kingdom Of Darkness) कहा है|
थॉमस हॉब्स का मानना था कि चर्च या किसी धार्मिक संस्था को छूट दे दी जाए तो, वह राज्य में अव्यवस्था व अराजकता फैला सकती है, शासक को पदच्युत कर सकती है|
चर्च और राज्य के संबंध में हॉब्स के निम्न विचार हैं-
धर्म के संबंध में सर्वोच्च अधिकारी संप्रभु है|
आध्यात्मिक शासन जैसी कोई वस्तु नहीं है|
चर्च का दर्जा अन्य निगमों की भांति है, उसके सारे अधिकार राज्याधीन हैं|
धर्माधिकारी उपदेशक माने जा सकते हैं, शासक नहीं|
चर्च जैसे धार्मिक समुदाय को राज्य के साथ सत्ता के लिए संघर्ष कभी नहीं करना चाहिए|
धार्मिक बहिष्कार या चर्च की ओर से दिया जाने वाला दंड भी तभी दिया जा सकता है जब संप्रभु चर्च को इस हेतु अधिकृत करें|
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