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थॉमस हॉब्स के मानव संबंधी विचार/ Human views of Thomas Hobbes || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

 हॉब्स के मानव संबंधी विचार-   

राज्य निर्माण के चरण- मानव स्वभाव- प्राकृतिक अवस्था- प्राकृतिक अधिकार- प्राकृतिक नियम- सामाजिक समझौता- कॉमनवेल्थ (राज्य)


  • व्यक्ति हॉब्स के दर्शन का केंद्र बिंदु है| उसके राजदर्शन की शुरुआत व्यक्ति से होती है| अपने ग्रंथ लेवियाथन के प्रथम 11 अध्यायो में हॉब्स ने मनुष्य के सभी पक्षों का विस्तृत वर्णन किया है|  

  • हॉब्स ने मनुष्य का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है|

  • हॉब्स ने मानव स्वभाव के संबंध में उग्र व्यक्तिवाद मनोवैज्ञानिक अहमवाद की अवधारणा दी है| 

  • हॉब्स मनुष्य को असामाजिक, स्वार्थी, अहमवादी प्राणी मानता है तथा मनुष्य की समस्त भावनाओं का केंद्र उसका ‘अहम’ बताता है|

  • मनुष्य के समस्त कार्यकलाप स्वार्थ-भावना से प्रेरित तथा संचालित होते है|

  • मनुष्य शक्ति की इच्छा रखता है| हॉब्स के शब्दों में “शक्ति की इच्छा ऐसी अदम्य इच्छा है, जिसका अंत व्यक्ति की मृत्यु के साथ होता है|” 

  • स्वार्थ भावना की वजह से मनुष्य में 2 मूल प्रवृतियां पाई जाती हैं-

  1. आकर्षण

  2. विकर्षण 


  • आकर्षण को ‘इच्छा की भूख’( Appetite Of Disease) तथा विकर्षण को ‘घृणा’ कहा जाता है| मनुष्य को जो वस्तुएं आकर्षित करती हैं, उन्हें अच्छी तथा जो वस्तुएं विकर्षित करती हैं उन्हें बुरी कहता है| अर्थात अच्छाई-बुराई वस्तु में न होकर मनुष्य की भावनाओं में होती है|

  • मनुष्य सामाजिक व लौकिक व्यवहार इस आधार पर करता है, कि उसका जीवन व संपत्ति सुरक्षित रहे| मनुष्य अपने जीवन की सुरक्षा व इच्छा पूर्ति के लिए दूसरे मनुष्य से लड़ता-झगड़ता है| यहां तक उसको मार भी सकता है|


              मानव जीवन में संघर्ष के तीन कारण हॉब्स बताता है-


  1. प्रतिस्पर्धा- एक ही लाभ प्राप्त करने के लिए जब दो व्यक्तियों में प्रतिस्पर्धा होती है तो दोनों में संघर्ष होता है| हॉब्स के अनुसार प्रकृति ने सभी मनुष्यो को समान बनाया है, एक व्यक्ति शारीरिक रूप से शक्तिशाली होता है तो दूसरा उसको मानसिक बुद्धि के द्वारा छल-कपट या गुटबंधी से हरा सकता है अतः मनुष्यों के बीच प्रतिस्पर्धा विद्यमान रहती है| 


  1. भय/ अविश्वास- प्रतिस्पर्धा के कारण मनुष्य को हमेशा अपने जीवन की समाप्ति का भय रहता है तथा अपनी सुरक्षा के लिए संघर्षरत रहता है| मिनोग “हॉब्स एक ऐसे दार्शनिक थे, जिनका मृत्यु की ओर अदार्शनिक रुख था, मृत्यु के प्रति भय को हॉब्स ने मानव प्रकृति का मूल स्वभाव बताया है|” 


  1. वैभव या कीर्ति- अहंकार की वजह से मनुष्य अपना वैभव/ यश बढ़ाना चाहता है, इसके लिए संघर्षरत रहता है|


  • इस संघर्षपूर्ण वातावरण में मनुष्य ‘आत्मरक्षा के सिद्धांत’ पर कार्य करता है अर्थात प्रत्येक मनुष्य, दूसरे मनुष्य से सुरक्षा चाहता है| आत्म सुरक्षा के लिए व्यक्ति शक्ति को प्राप्त करना चाहता है, यह शक्ति शारीरिक, धन, पद, मान-सम्मान की शक्ति हो सकती है|

  • उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि थॉमस हॉब्स के अनुसार मनुष्य स्वार्थी, अहंकारी, डरपोक, झगड़ालू,  एकाकी, पाशविक व असामाजिक प्राणी है, जो आत्मरक्षा के आधार पर शक्ति प्राप्ति की लालसा रखता है|


  • हॉब्स मनुष्य के ऐसे स्वभाव का कारण गतियो को मानता है| मानव शरीर में दो प्रकार की गतियां होती हैं- 

  1. जैव गति- इसमें ह्रदय गति, पाचन क्रिया, श्वास क्रिया, मल मूत्र त्याग आदि शामिल है| यह गति महत्वपूर्ण नहीं है|

  2. मनोवैज्ञानिक गति- यह महत्वपूर्ण है, जो मानव स्वभाव का कारण है| यह गति बाहरी उद्दीपको से पैदा होती है| जैसे- कीर्ति, वैभव/यश, शक्ति, सुरक्षा आदि को प्राप्त करने के लिए मनुष्य आपस में झगड़ते हैं|


Note- हॉब्स ने सामान्यतः मानव स्वभाव के नकारात्मक लक्षण पर अधिक बल दिया है, लेकिन इसके साथ मनुष्य के सकारात्मक लक्षण की भी कल्पना की है| हॉब्स के शब्दों में “मनुष्य में कुछ एसी इच्छाएं होती हैं, जो युद्ध के बजाए शांति और मैत्री के लिए प्रेरित करती हैं|” मनुष्य में विवेक पाया जाता है विवेक की वजह से वह राज्य की स्थापना करता है|

  • ब्रमहिल व क्लेरेंडन ने वर्णित इस मानव छवि की आलोचना करते हुए कहा कि हॉब्स व्यक्ति को पशुओं से भी गया- गुजरा अहम् वादी समझते हैं| 

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