मैक्यावली के धर्म और नैतिकता संबंधी विचार-
मैक्यावली ने राजनीति को धर्म एवं नैतिकता से पृथक किया तथा राजनीति को धर्म व नैतिकता से पृथक करने वाले सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले मैक्यावली प्रथम विचारक है| इसलिए मैक्यावली को प्रथम यथार्थवादी भी कहा जाता है|
गेटेल “राजनीतिक क्षेत्र में मैक्यावली यथार्थवादी था| उसका विश्वास था कि राज्य का अस्तित्व स्वयं अपने लिए होना चाहिए|”
मैक्यावली ने पूर्ण सत्तावाद का समर्थन किया|
इस मामले में वह अरस्तु के निकट है|
मैक्यावली “हम इटालियन, रोम के चर्च और उसके पादरियों के प्रति इसलिए अनुग्रहित है कि उन्होंने हमें अधार्मिक और बुरा बनाया है, लेकिन हम पर उनका इससे भी बड़ा एक कर्जा है और जो हमारी बर्बादी का कारण बनेगा और वह यह है कि चर्च ने हमारे देश को आज भी विभाजित रखा है|“
मैक्यावली के मत में राजनीति अपने अंतर्निहित नियमों से संचालित होती है| उसे समझने के लिए मानव प्रकृति का विश्लेषण जरूरी है|
मैक्यावली को राजनीतिक विश्लेषण में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग का प्रवर्तक माना जाता|
विलियम टी ब्लूम ने अपनी कृति ‘Theories of Political System : Classics of Political Thought and Modern Political Analysis’ में मैक्यावली को आधुनिक व्यवहारवाद का अग्रदूत माना है|
मैक्यावली ने नैतिकता को दो भागों में बांटा है-
व्यक्तिगत नैतिकता
जन नैतिकता
व्यक्तिगत नैतिकता-
इसमें शासक के दृष्टिकोण और मापदंड को रखा गया है| मैक्यावली के अनुसार शासक नैतिकता के किसी बंधन में नहीं बंधा है| राजा को तो राज्य की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए साधन तो हमेशा आदरणीय माने जाएंगे| अर्थात शासक साध्य की प्राप्ति के लिए नैतिक व अनैतिक साधनों का प्रयोग कर सकता है| राजसत्ता को बनाए रखने के लिए शासक साम, दाम, दंड, भेद, बेईमानी, हत्या, प्रवचना आडंबर आदि किसी भी उपाय का प्रयोग कर सकता है|
जननैतिकता या सार्वजनिक नैतिकता-
जनता की नैतिकता यह है कि वह राज्य की अज्ञाओ का पालन करें| आज्ञा पालन में ही संपूर्ण जनता का कल्याण है|
मैक्यावली के अनुसार पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, लोक-परलोक, अच्छा-बुरा, शत्रु-मित्र आदि के विचार डरपोक मनुष्य के लिए है, राजा को इनका दास नहीं होना चाहिए|
मैक्यावली के अनुसार राजा का प्रमुख कार्य राज्य की सुरक्षा, जीवन की सुरक्षा व कल्याण है|
मैक्यावली डिसकोर्सेज में लिखता है कि “मैं विश्वास करता हूं कि जब जीवन संकट में हो तो राजाओं और गणराज्यों को सुरक्षा के लिए विश्वासघात तथा कृतघ्नता का प्रदर्शन करना चाहिए|”
मैक्यावली के अनुसार राजा को नैतिकता का दिखावा करना चाहिए, लेकिन नैतिक होना जरूरी नहीं है| राजा इस तरह का आचरण करें कि जनता को लगे कि राजा तो विश्वास, अनुकंपा, सच्चरित्रता, दयालुता और धार्मिकता की साकार प्रतिमा है|
मैक्यावली लिखता है कि “न तो कोई प्राकृतिक कानून है और न ही सार्वभौम रूप में स्वीकृत कोई अधिकार| राजनीति को नैतिकता से पूर्णतया पृथक करना चाहिए| साध्य ही साधनों का औचित्य है|”
उपरोक्त वर्णन का यह अर्थ नहीं है कि मैक्यावली नैतिकता का विरोधी था वह तो केवल राजनीति से नैतिकता को अलग करता है| जैसे डिसकोर्सेज में कहा है कि “जो राजा और गणराज्य अपने को भ्रष्टाचार से मुक्त रखना चाहते हैं, उन्हें सर्वप्रथम समस्त धार्मिक संस्कारों की विशुद्धता को सुरक्षित रखना चाहिए और उनके प्रति उचित श्रद्धाभाव दर्शाना चाहिए, क्योंकि धर्म की हानी होते हुए देखने से बढ़कर किसी देश के विनाश का और कोई लक्षण नहीं है|”
इस संबंध में सेबाइन का कहना है कि “वह अनैतिक नहीं नैतिकता का विरोधी था, और अधार्मिक नहीं धर्मनिरपेक्ष था|”
डेनिंग के शब्दों में “मैक्यावली राजनीति में अनैतिक नहीं है, वरन वह धर्म और नैतिकता से उदासीन है|”
फ्रेडरिक पोलक ने मैक्यावली के विचारों को वैज्ञानिक तटस्थता की संज्ञा दी है|
मैक्सी ने लिखा है कि “राजनीति का नैतिकता से विच्छेद और सामयिकता के नियम को राजनीति की कला का निर्देशक तत्व बनाना मैक्यावली का अनगढपन था, लेकिन यह राजनीति के प्रति एक अत्यंत मूल्यवान सेवा थी|”
मैक्यावली चर्च व पॉप का विरोधी था, धर्म का विरोधी नहीं था| वह धर्म को राजसत्ता के सफल संचालन का एक आवश्यक साधन मानता है| राज्य साध्य है, धर्म उसका साधन है|
धर्म के प्रति मैक्यावली का रुख उपयोगितावादी था| उनका मानना था कि लोग धर्म के कारण नियंत्रण में रहते हैं| लोग राजा के बजाय देवताओं से ज्यादा डरते हैं|
मैक्यावली “जिस देश के लोग ईश्वर से नहीं डरते, वह विनाश के पथ पर अग्रसर होता है|”
मैक्यावली “जहां धर्म होता है, वहां सेना को अनुशासन में रखना बहुत आसान होता है, इसके विपरीत जहां सेना तो होती है, पर धर्म नहीं होता वहां अनुशासन लागू करना कठिन हो जाता है|”
मैक्यावली द्वारा राजनीति से नैतिकता के पृथक्करण के निम्न कारण थे-
राज्य के हित को सब मनुष्यों के हित से ऊपर समझता था|
मैक्यावली का दृष्टिकोण यथार्थवादी था|
शक्ति को असाधारण महत्व दिया था|
आलोचना में डॉ. मुर्रे ने लिखा है कि “मैक्यावली स्पष्टदर्शी थे पर दूरदर्शी नहीं थे| उन्होंने चालाकी को राजनीति की कला मान लेने की भूल की है|”
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