बेंथम के राजनीतिक विचार-
बेंथम के राजनीतिक विचारों को दो भागों में बांटा जा सकता है-
निषेधात्मक (2) विधेयात्मक
निषेधात्मक राजनीतिक विचार- इसमें उन विचारों को शामिल करते हैं, जिसमें पूर्ववर्ती राजनीतिक धारणाओं का खंडन किया है|
विधेयात्मक राजनीतिक विचार- इसमें बेंथम द्वारा प्रतिपादित राज्य, विधि, प्रभुसत्ता संबंधी विचारों को शामिल करते हैं|
निषेधात्मक राजनीतिक विचार-
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का खंडन-
बेंथम की आदर्शवादी और काल्पनिक सिद्धांतों में कोई रुचि नहीं थी| बेंथम ने जीवन की व्यवहारिक समस्याओं को अधिक महत्व दिया है|
बेंथम ने विशेष रुप से जॉन लॉक द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक अधिकार को पूर्णत अमान्य ठहराया है|
बेंथम प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा को मूर्खतापूर्ण, कल्पित, आधारहीन अधिकार एवं आध्यात्मिक तथा अराजक विभृम, शब्दाडंबर मात्र, कुबुद्धि अर्थहीन विचार और प्रमाद का गड़बड़ घोटाला बताया है|
बेंथम के अनुसार प्राकृतिक अधिकार “बैशाखियों के सहारे खड़ा बकवास मात्र है|” , “प्राकृतिक अधिकार अलंकारिक बकवास है|” , “प्राकृतिक अधिकार व प्राकृतिक कानून आतंकवादी भाषा के समान है, जिस पर कोई सीमा नहीं होती|”
बेंथम प्राकृतिक अधिकारों का खंडन अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख के आधार पर करता है| बेंथम के अनुसार प्राकृतिक अधिकारों से व्यक्ति के सुख में कोई वृद्धि नहीं होती है|
बेंथम ने वैधानिक अधिकारों का समर्थन किया है| बेंथम के अनुसार अधिकार मानव के सुखममय जीवन के वे नियम है जिन्हें राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होती है| राज्य ही अधिकारों का स्रोत होता है| कोई भी अधिकार राज्य के ऊपर नहीं है|
बेंथम पूर्णत: समानाधिकार का भी खंडन करता है| बेंथम के अनुसार पूर्ण समानता संभव नहीं है और पूर्ण समानता सब प्रकार के शासन तंत्र की विरोधी है|
स्वतंत्रता का विरोध-
बेंथम फ्रेंच क्रांतिकारियों के नारे ‘स्वतंत्रता, समानता भातृत्व’ की आलोचना करता है तथा कहता है कि “सुख ही अंतिम उद्देश्य है और स्वतंत्रता की उपयोगिता सुख (सुख में वृद्धि) की कसौटी है|”
स्वतंत्रता के संबंध में बेंथम का कहना है कि “मनुष्य बिना एक भी अपवाद के, दासता की स्थिति में जन्म लेते हैं|”
बेंथम बेंथम “व्यक्ति सुरक्षा चाहते हैं, न कि स्वतंत्रता|”
बेंथम ने प्राकृतिक स्वतंत्रता व नागरिक स्वतंत्रता के मध्य अंतर किया है| बेंथम के अनुसार “प्राकृतिक स्वतंत्रता मेरी वह स्वतंत्रता है जिसके अनुसार मैं इच्छा अनुसार कुछ भी कर सकता हूं पर नागरिक स्वतंत्रता के अनुसार मैं वही कर सकता हूं जो मेरे समुदाय के हित में हो|”
Note- बेंथम ने प्राकृतिक कानूनों की भी आलोचना की है|
अनुबंधनवादी धारणा का खंडन-
बेंथम ने अनुबंध सिद्धांत को शुद्ध कल्पना एवं झूठ बताया है| बेंथम ने लिखा है कि “प्राकृतिक अवस्था इतनी अवास्तविक है, कि उसे नहीं माना जा सकता|”
बेंथम के अनुसार राज्य, राजनीतिक समाज, अधिकार, कर्तव्य आदि किसी समझौते के परिणाम नहीं है| व्यक्ति राजाज्ञा का पालन इसलिए नहीं करता है कि उसके पूर्वजों ने कोई समझौता किया था, बल्कि इसलिए करता है कि ऐसा करना उसके लिए उपयोगी है| इस प्रकार राजाज्ञा का पालन व्यक्ति की आदत बन जाती है| अतः आज्ञा पालन की आदत ही समाज और राज्य का आधार है, समझौता नहीं|
बेंथम “मैंने प्राथमिक संविदा छोड़ दी है और इस मिथ्या प्रलाप को आवश्यकता वाले उन व्यक्तियों के मनोरंजन के लिए छोड़ दिया है|”
ईसाई नैतिकता का विरोध-
बेंथम नैतिकता तथा धर्म का विरोधी है| बेंथम के मत में नैतिकता व धर्म तभी स्वीकारणीय है, जब व्यक्ति का सुख बढ़ाएं तथा दुख कम करें|
बेंथम का उपयोगितावाद धर्मनिरपेक्ष राज्य का समर्थक है|
विधेयात्मक राजनीतिक विचार-
राज्य संबंधी विचार-
बेंथम के राज्य संबंधी विचारों का आधार उपयोगितावाद है|
बेंथम के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का कारण आज्ञा पालन की आदत है| लोगों में आज्ञा पालन की आदत इसलिए आती है कि वह उनके लिए उपयोगी है और सामान्य सुख को बढ़ाने वाली है| राज्य की आज्ञा पालन से होने वाली हानि, अवज्ञा से होने वाली हानि से कम है|”
बेंथम के अनुसार राज्य एक कृत्रिम संस्था है| राज्य मनुष्यों का एक ऐसा समूह है, जिसे मनुष्य ने अपने सुख वृद्धि के लिए संगठित किया है|
राज्य का उद्देश्य ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ है| अधिकतम सुख राज्य के सदस्यों के व्यक्तिगत सुखों का योग मात्र है, जिसमें समाज का सामूहिक हित शामिल नहीं है|
बेंथम राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य मानता है|
वेपर के अनुसार “बेंथम का राज्य ऐसा राज्य नहीं ,है जिसमें स्वतंत्रता को स्वयं एक उद्देश्य माना जाए, बेंथम के राज्य का उद्देश्य अधिकतम सुख है, अधिकतम स्वतंत्रता नहीं|” वेपर ने बेंथम के राज्य को नकारात्मक राज्य कहा है|
बेंथम व्यक्ति के कल्याण को समाज का कल्याण मानता है, इस तरह बेंथम व्यक्तिवाद का समर्थक है|
बेंथम राज्य को एक संप्रभु संस्था मानता है| उसने राज्य को ‘वैधानिक संप्रभु’ कहा है, उसकी संप्रभुता असीमित व निरपेक्ष है|
बेंथम के अनुसार राज्य एक विधि-निर्माता निकाय है, न कि एक नैतिक समुदाय|
बेंथम के अनुसार यदि सरकार अपने कर्तव्य अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का पालन नहीं करती है तो जनता को उसकी आज्ञा की अवहेलना का अधिकार है|
कानून संबंधी विचार-
बेंथम वैधानिक कानून का समर्थक है|
बेंथम कानून को संप्रभु का आदेश मानता है| राज्य संप्रभु है तथा विधि-निर्माता निकाय है| संप्रभु के आदेशों (कानूनों) की पालना करना प्रत्येक नागरिक कर्तव्य है, क्योंकि आज्ञापालन में ही उसका और सबका कल्याण निहित है|
बेंथम मुख्यतः दो प्रकार का कानून मानता है-
दैवीय कानून
मानवीय कानून|
दैवीय कानून रहस्यमय और ज्ञानातीत होते हैं, उनका स्वरूप भी निश्चित नहीं होता है अतः मानवीय कानूनों का निश्चित रूप राज्य के लिए आवश्यक है|
मानवीय कानून भी चार प्रकार के होते हैं-
संवैधानिक कानून
नागरिक कानून
फौजदारी कानून
अंतरराष्ट्रीय कानून
बेंथम के अनुसार कानून की परिभाषा- “कानून एक राजनीतिक समाज के आदेशों के रूप संप्रभु की इच्छा की अभिव्यक्ति है, जिसका सदस्य स्वभाव से पालन करते हैं|”
बेंथम के मत में कानून एक प्रतिबंध है, जो स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है क्योंकि राज्य का उद्देश्य अधिकतम सुख है, अधिकतम स्वतंत्रता नहीं| यहां बेंथम जॉन लॉक, रूसो, मांटेस्क्यू की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का खंडन करता है|
बेंथम के मत में विधि का औचित्य उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर करना चाहिए| विधियों की उपयोगिता तीन प्रकार से सिद्ध होती हैं-
वह राज्य के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान करें|
उससे लोगों की आवश्यकता की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो|
प्रत्येक नागरिक एक दूसरे के साथ समानता का अनुभव करें|
बेंथम आर्थिक क्षेत्र में अस्हस्तक्षेप की नीति को अपनाकर मुक्त व्यापार एवं स्वच्छंद प्रतियोगिता का समर्थन करता है|
बेंथम ने कानून के दो कार्य बतलाए हैं-
स्वहित
परहित
बेंथम के अनुसार विधि निर्माता को विधि निर्माण में चार बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
आजीविका या जीवन सामग्री
सुरक्षा
प्रचुरता या संपन्नता
समानता| इनकी प्रधानता का क्रम आजीविका, सुरक्षा, प्रचुरता, समानता होना चाहिए|
बेंथम ने इंग्लैंड की तत्कालीन कानून व्यवस्था की आलोचना की है|
बेंथम ने श्रेष्ठ कानून के 6 लक्षण बताए हैं-
कानून जनता की आशा-आकांक्षा या विवेक बुद्धि के विपरीत नहीं होना चाहिए|
कानूनों की जनता को जानकारी होनी चाहिए, इसके लिए कानून का प्रचार-प्रसार करना चाहिए|
कानूनों में विरोधाभास नहीं होना चाहिए|
कानून सरल, स्पष्ट भाषा में होना चाहिए|
कानूनों को व्यावहारिक होना चाहिए|
कानूनों का पालन होना चाहिए तथा उल्लंघन पर आवश्यक दंड व्यवस्था होनी चाहिए|
न्याय संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम के न्याय संबंधी विचार सुधारात्मक थे| बेंथम ब्रिटिश न्याय पद्धति की आलोचना करके न्याय व्यवस्था में सुधार करना चाहता है|
ब्रिटिश न्याय पद्धति के बारे में बेंथम ने कहा कि “इस देश में न्याय बेचा जाता है और बड़े महंगे दामों पर बेचा जाता है, जो व्यक्ति मूल्य नहीं चुका सकता, वह न्याय भी प्राप्त नहीं कर सकता है|”
बेंथम की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना वकील खुद बनना चाहिए|
वह न्यायिक औपचारिकता को समाप्त करना चाहता है, तथा औपचारिक वकालत के स्थान पर अनौपचारिक कार्यवाही का समर्थक है| वह वादी- प्रतिवादी में समझौता कराने के पक्ष में है|
बेंथम के अनुसार न्यायाधीशों और अदालत के अन्य अधिकारियों को वेतन के स्थान पर फीसे दी जाय|
बेंथम जूरी प्रथा के विरुद्ध था| वह एक ही न्यायाधीश द्वारा किसी मुकदमे का निर्णय किए जाने का समर्थक था| न्यायाधीशों की पीठ के बजाय एक न्यायधीश अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करेगा|
वह न्यायाधीशों को बुद्धि शून्य, अल्पदृष्टि, दुराग्रही, आलसी कहता है| जिनकी बुद्धि न्याय-अन्याय में भेद करने में असमर्थ है अर्थात न्यायाधीशों के प्रति बेंथम में सम्मान भाव नहीं था|
बेंथम जजों को व्यवसायियों के तौर पर जज एंड कंपनी कहता था|
वैसे न्याय व्यवस्था संबंधी विचार बेंथम के जीवन काल में उचित सम्मान नहीं पा सके, लेकिन न्याय-प्रणाली और विधि सुधार के इतिहास में बेंथम का स्थान सबसे ऊंचा है| सर हेनरीमैन के शब्दों में “बेंथम के समय से आधुनिक काल तक विधि व्यवस्था में जितने भी सुधार हुए हैं उसमें से मुझे एक भी ऐसा नहीं लगता, जिसमें प्रेरणा बेंथम से प्राप्त न हुई हो|”
सेबाइन “बेंथम का न्यायशास्त्र विषयक कार्य उसका सबसे महान कार्य है|“
संप्रभुता संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम ने अपनी पुस्तक Fragment on Government के चतुर्थ अध्याय में राज्य की संप्रभुता को सर्वोच्च सत्ता कहा है|
बेंथम संप्रभुता को निरपेक्ष एवं असीमित मानता है| संप्रभुता का प्रत्येक कार्य वैध है| संप्रभुता के संबंध में बेंथम सर्वोत्तम सत्ता का उल्लेख नहीं करता है|
बेंथम राज्य की विधि निर्माण क्षमता को संप्रभुता मानता है, किंतु उसे भी उपयोगिता की कसौटी पर कसता है|
बेंथम राज्य की संप्रभुता पर केवल जनहित के आधार पर ही प्रतिबंध लगाता है|
बेंथम की संप्रभुता निरंकुश नहीं है, बेंथम के शब्दों में “यदि विशाल जनमत किसी विधि का विरोध करता है तो संप्रभुता का कर्तव्य है कि उसे कानून का रूप कदापि न दे|”
इस तरह बेंथम ने संप्रभुता को हॉब्स की तरह असीमित, अदेय, निरपेक्ष एवं अभिभाज्य बताया है तथा शक्ति विभाजन को अस्वीकार किया है, लेकिन संप्रभुता को निरंकुश नहीं माना है|
बेंथम की दंड संबंधी धारणा-
बेंथम इंग्लैंड की तत्कालीन दंड व्यवस्था का आलोचक था| बेंथम की दंड व्यवस्था निवारक सिद्धांत तथा सुधारात्मक सिद्धांत का मिश्रण थी|
बेंथम उपयोगिता के आधार पर दंड और अपराध की विवेचना करता है| उसके अनुसार सभी प्रकार के दंड स्वयं में एक बुराई है, लेकिन वह उससे भी बड़ी बुराई का निराकरण करते हैं, इसलिए दंड उचित है|
बेंथम की दंड व्यवस्था की निम्न विशेषताएं हैं-
दंड की मात्रा अपराध के अनुपात में हो तथा दंड समान भाव से दिया जाए|
दंड अनावश्यक व निर्दयतापूर्ण नहीं होना चाहिए|
दंड आदर्श होना चाहिए, जिससे अपराधी व अन्य लोगों को शिक्षा मिले|
दंड में सुधार की भावना निहित हो|
अपराध से पीड़ित पक्ष की क्षतिपूर्ति कराई जानी चाहिए|
दंड जनमत के अनुकूल होना चाहिए|
दंड ऐसा हो कि भूल का पता लगने पर दंड को निरस्त या कम किया जा सके|
मृत्युदंड तभी दिया जाना चाहिए जब वह सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से पूर्णत:आवश्यक हो|
राजनीतिक समाज व प्राकृतिक समाज-
बेंथम राजनीतिक समाज व प्राकृतिक समाज में अंतर करता है|
राजनीतिक समाज-
बेंथम “जब कुछ लोग किसी ज्ञात व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा, जिसका एक निश्चित स्वरूप है (शासक या सरकार) की आज्ञा पालन के अभ्यस्त हैं ,तब ऐसी प्रजा व शासक को राजनीतिक समाज कहा जाएगा|”
प्राकृतिक समाज-
जब व्यक्ति वार्तालाप के तो अभ्यस्त होते हैं, पर किसी निश्चित शासक के आज्ञा पालन के अभ्यस्त न हो तो, उसे प्राकृतिक समाज कहा जाएगा|”
बेंथम के मत में नागरिक राज्य के आदेशों का पालन दो आधारों पर करते हैं-
आज्ञाकारिता (Imperation)- राज्य नागरिकों की इच्छा की पूर्ति करता है तथा उनके सुखों को बढ़ाता है|
शारीरिक दंड (Contrectatin)- भय की वजह से व दुखों से बचने के लिए
आज्ञाकारिता पर आधारित राजनीतिक समाज ज्यादा अच्छा होता है|
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