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कार्ल मार्क्स के विचारों की धाराएं / Currents of thought of Karl Marx || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

     मार्क्स के विचारों की धाराएं-

    • मार्क्स के विचारों की दो धाराएं हैं

    1. चिरसम्मत मार्क्सवाद या वैज्ञानिक समाजवाद

    2. मार्क्स का मानवतावादी चिंतन


    • चिरसम्मत मार्क्सवाद का संबंध प्रौढ़ मार्क्स के विचारों से है, जबकि मार्क्स के मानवतावादी चिंतन का संबंध तरुण या युवा मार्क्स के विचारों से है| 

    • युवा मार्क्स व प्रौढ़ मार्क्स के विचारों में अंतर पाया जाता है| लुई अल्थूजर तथा मैक्लेनन ने दो प्रकार के मार्क्स माना है- 1 युवा मार्क्स   2 प्रौढ़ मार्क्स|

    • मैक्लेनन के अनुसार युवा मार्क्स एवं प्रौढ़ मार्क्स दोनों समान है| 

    • अल्थ्यूसर ने अपनी रचना फॉर मार्क्स में ज्ञान मीमांसीय अंतराल (Epistemological Break) अवधारणा के तहत युवा मार्क्स और प्रौढ़ मार्क्स में अंतर स्थापित किया है| युवा मार्क्स में व्यक्ति मुख्य है एवं प्रौढ़ मार्क्स में वर्ग प्रधान है| 

    1. युवा मार्क्स (मार्क्स का मानवतावादी चिंतन)- 

    • मार्क्स का मानवतावादी चिंतन या युवामार्क्स के विचार हमें उनकी रचना ‘आर्थिक व दार्शनिक पांडुलिपिया (Economic and Philosophical Manuscript) या पेरिस पांडुलिपिया ’ (1844) में मिलते हैं|

    • मार्क्स का मानवतावादी चिंतन या युवा मार्क्स के विचार अलगाव, मानव प्रकृति, नैतिकता व स्वतंत्रता से संबंधित है, अर्थात मानवतावादी चिंतन या प्रकृतिवादी चिंतन मिलता है| 

    • युवा मार्क्स के विचार नव मार्क्सवाद के आधार है| 


    1. प्रौढ़ मार्क्स (चिरसम्मत मार्क्सवाद)- 

    • चिरसम्मत मार्क्सवाद मार्क्स के वैज्ञानिक चिंतन की देन है

    • चिरसम्मत मार्क्सवाद या प्रौढ़ मार्क्स के विचार कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो व उसकी बाद की रचनाओं में मिलते हैं|

    • चिरसम्मत मार्क्सवाद या प्रौढ़ मार्क्स के विचार वैज्ञानिक समाजवाद, सर्वहारा क्रांति, वर्ग संघर्ष, वर्ग चेतना, बुर्जुवा शोषण का अंत, आर्थिक सिद्धांतों से संबंधित है, अर्थात वैज्ञानिक चिंतन मिलता है| 

    • ये विचार वैज्ञानिक समाजवाद के आधार है| 


    • Grundrisse व Critique of Political Economy आदि रचनाएं युवा व प्रौढ़ मार्क्स के विचारों के बीच पुल का कार्य करती है| 



    युवा मार्क्स के विचार या मार्क्स का मानवतावादी चिंतन- 

    • युवा काल में मार्क्स मानवतावादी, प्रकृति प्रेमी, स्वतंत्रता प्रेमी था| 

    • युवा मार्क्स के अनुसार साम्यवाद का अर्थ है, निजी संपत्ति और मानवीय परायेपन या अलगाव का नितांत उन्मूलन और स्वयं मानव के लिए मानवीय प्रकृति का यथार्थ विनियोजन|

    • साम्यवाद पूर्ण विकसित प्रकृतिवाद के रूप में मानववाद है और पूर्ण विकसित मानववाद के रूप में प्रकृतिवाद है| 

    • प्रकृतिवाद- वह स्थिति, जब मनुष्य स्वयं प्रकृति का हिस्सा है तथा प्रकृति के निर्विकार नियमों से बंधा रहता है| 

    • मानववाद- वह स्थिति, जब मनुष्य भौतिक प्रकृति और सामाजिक जीवन के नियमों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है और मनुष्य प्रकृति का दास नहीं रह जाता है, बल्कि अपने नियति का नियंता बन जाता है|

    • पेरिस पांडुलिपि 1844 में मार्क्स ने पूंजीवाद में मानव की खोई स्वतंत्रता को वापस लाने के लिए निजी संपत्ति के उन्मूलन का समर्थन किया है| 

    • जॉन लुइस (मार्क्सिज्म एन्ड द ओपन माइंड 1976) “मार्क्सवादी वर्ग संघर्ष की वकालत नहीं करते हैं, बल्कि उसके अस्तित्व को मान्यता देते हैं, उसे जारी नहीं रखना चाहते हैं, बल्कि उनका उद्देश्य इसका अंत कर देना है |”

    • जॉन लुइस “मार्क्सवाद मानववाद का उच्चतम विकास है| यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें मानवीय उन्नति और मानवीय पराधीनता के बीच युगों पुराने अंतर्विरोध का समाधान हो जाता है| यह उत्पीड़िक वर्ग का अंतिम विद्रोह है| विद्रोह का लक्ष्य मनुष्य की खोई मानवता को ढूंढ निकालना है|” 


    • मार्क्स ने औद्योगिक युग की दो विशेषताएं बताइ है-

    1. प्रौद्योगिकी उन्नति- यह मानव मुक्ति का साधन है| अत: इसका विकास जरूरी है| 

    2. पूंजीवादी व्यवस्था- यह बंधन का स्रोत है| अत: इसका विनाश जरूरी है| 


    1. अलगाव का सिद्धांत (Entfremdung theory/ एन्टफ्रेमडंग सिद्धांत) (Concept of Alienation )- 

    • अलगाववाद से अभिप्राय व्यक्ति की उस स्थिति से है, जब वह पूंजी तथा संपत्ति के निजी स्वामित्व से पंनपी परिस्थिति में सब मानवीय प्रवृत्तियों तथा गुणों को खो देता है तथा श्रम के प्रति उदासीन हो जाता है|

    • कार्ल मार्क्स की 1844 की इकोनॉमिक्स एंड फिलोसॉफिक मेनुस्क्रिप्ट्स में उसके श्रम के प्रति उदासीनता संबंधी विचार मिलते हैं|

    • अलगाव का सिद्धांत कार्ल मार्क्स ने हेगेल से लिया है| 

    • कार्ल मार्क्स का अलगाव का सिद्धांत मुख्य रूप से इकोनॉमिक्स एंड फिलोसॉफिक मेनुस्क्रिप्ट्स 1844 में मिलता है| इसके अलावा थीसिस ऑन फायरबाख व द जर्मन आईडियोलॉजी में भी वर्णन मिलता है| 


    • मार्क्स के अनुसार पूंजीवादी व्यवस्था में अलगाव अपनी चरम सीमा पर होता है|

    • मार्क्स ने पूंजीवादी व्यवस्था में पनप रहे अलगाववाद को चार स्तरो में व्यक्त किया है-

    1. उत्पाद या रचना से अलगाव

    2. प्रकृति से अलगाव

    3. समाज से अलगाव

    4. स्वयं से अलगाव


    • अलगाव का शिकार केवल मजदूर ही नहीं बल्कि पूंजीपति भी होता है, क्योंकि वह अत्यधिक पूंजी का संचय करना चाहता है|

    • कार्ल मार्क्स (द जर्मन आईडियोलॉजी) “साम्यवाद आने पर मैं सुबह में शिकार के लिए जा सकता हूं, दोपहर को मछली पकड़ सकता हूं, शाम को पशुपालन कर सकता हूं और रात के खाने के बाद आलोचना कर सकता हूं, अर्थात में ऐसा कोई भी काम कर सकता हूं ,जिससे मुझे खुशी मिले| मनुष्य के अलगाव व शोषण से मुक्ति की यही अवस्था साम्यवाद है|”


    • हंगरी के मार्क्सवादी विचारक जार्ज ल्यूकाच ने 20 वी शताब्दी के पहले और दूसरे दशक में  पूंजीवादी समाज में परायेपन और जड़वस्तुकरण पर लेखमाला लिखी थी| 


    1. वस्तुओं की जड़ पूजा (Fetishism of Commodities)-

    • इसका वर्णन दास कैपिटल के खंड 1 (1867) में है|

    • यह विचार अलगाव की संकल्पना के साथ निकट से जुड़ा है, परंतु अलगाव का सिद्धांत मार्क्स के मानवतावादी चिंतन का अंग है, वही वस्तुओं की जड़पूजा का विचार उसके वैज्ञानिक चिंतन का अंग है| 

    • पूंजीवादी व्यवस्था में भिन्न-भिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाले लोग एक विशेष सामाजिक संबंध से बंध जाते हैं, इसमें स्वयं मनुष्य नगण्य हो जाता है, वस्तु महत्वपूर्ण होती है| 

    • पूंजीवाद में वस्तुओं का परस्पर संबंध मनुष्यों के परस्पर संबंध पर हावी हो जाता है| 

    • मार्क्स के अनुसार पूंजीवाद में व्यक्ति का महत्व नहीं होता है, बल्कि उसके द्वारा उत्पादित वस्तु का महत्व होता है अर्थात महंगी वस्तु का उत्पादन करने वाले व्यक्ति का महत्व अधिक होता है

    • इस तरह पूंजीवाद की आर्थिक प्रणाली मनुष्यों के यथार्थ सामाजिक संबंधों पर वस्तुओं की जड़ पूजा के मिथ्या संबंध की परत चढ़ा देती है|

    • मार्क्सवाद में जिस तरह विचारधारा मिथ्या चेतना को व्यक्त करती है, वैसे ही वस्तु की जड़पूजा की अवधारणा मिथ्या सामाजिक संबंधों की व्याख्या देती है| 

    • मार्क्स “पूंजीवादी व्यवस्था वस्तु (Commodities) व्यवस्था है|”


    1. स्वतंत्रता की अवधारणा (Concept of Freedom)-

    • कार्ल मार्क्स की स्वतंत्रता संबंधी अवधारणा अलगाववाद से जुड़ी हुई है|    

    • जहां अलगाववाद होगा वहां स्वतंत्रता नहीं होगी, जहां अलगाववाद जितना कम होता जाएगा वहां स्वतंत्रता उतनी ही मात्रा में बढ़ती जाएगी|

    • मार्क्स के मत में स्वतंत्रता का अर्थ जीवन को भरपूर जीना है तथा अभाव या विवशता का अंत है|

    • मार्क्स के मत में स्वतंत्रता साम्यवादी समाज में ही आ सकती है, क्योंकि साम्यवादी समाज में व्यक्ति को योग्यता अनुसार कार्य करना पड़ता है तथा आवश्यकता अनुसार मिलता है|


    • एंगेल्स ने अपनी कृति एंटी ड्यूरिंग 1878 के अंतर्गत विवशता से स्वतंत्रता की ओर सिद्धांत दिया है| इस सिद्धांत के अनुसार जब तक मनुष्य प्रकृति के नियमों से बंधा होता है, तब तक वह विवश होता है, लेकिन जब मनुष्य प्रकृति के नियमों का ज्ञान प्राप्त कर उनका प्रयोग अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए करने लगता है, तो वह स्वतंत्र हो जाता है| 

    • एंजिल्स के मत में प्रौद्योगिकी से मनुष्य प्रकृति के नियमों का ज्ञान प्राप्त कर अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकता है| अतः प्रौद्योगिकी स्वतंत्रता की शक्ति है, लेकिन पूंजीवाद मनुष्य पर बंधन लगाता है, अतः पूंजीवाद विवशता है|  

    • इस तरह मार्क्स और एंगेल्स आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था और प्रौद्योगिकी को तो मानव सभ्यता के लिए वरदान मानते है और इसको बनाए रखना चाहते हैं, परंतु पूंजीवाद को अभिशाप मानते हुए उसको समाप्त करना चाहते हैं| 

    • वही फ्रैंकफर्ट स्कूल के विचारक पूंजीवादी व्यवस्था का विश्लेषण दो रूप में करते हैं- प्रौद्योगिकी प्रभुत्व और आर्थिक शोषण| अत: ये पूंजीवाद व प्रौद्योगिकी दोनों को समाप्त करना चाहते हैं| 

    • फ्रैंकफर्ट स्कूल के विचारक- थियोडोर अडोर्नी, मैक्स हरखाइमर, हर्बट मार्क्यूजे, युर्गेन हेबरमास


            4. आत्म प्रेरित व्यवहार की संकल्पना (Concept of Praxis)-

    • मार्क्सवाद के अंतर्गत आत्मप्रेरित व्यवहार की संकल्पना स्वतंत्रता की संकल्पना के साथ निकट से जुड़ी है| 

    • मार्क्स के मत में मनुष्य अपने विकास की लंबी प्रक्रिया के दौरान प्रकृति की निर्विकार नियमों से बंधा रहता है, तब तक वह आत्म निर्णय में सक्षम नहीं होता है, क्योंकि वह विवश और पराधीन होता है| 

    • लेकिन जब वह सृष्टि के नियमों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तब वह इन बंधनों से मुक्त हो जाता है| 

    • अब वह भी विवशता लोक (Kingdom of Necessity) से निकल कर स्वतंत्रता लोक (Kingdom of Freedom) में प्रवेश करता है| जहां प्रगतिहास समाप्त होता है और इतिहास आरंभ होता है| 

    • अब मनुष्य स्वयं इतिहास का निर्माता और अपनी नियति का नियंता बन जाता है| मनुष्य स्वतंत्र रूप से आत्म चिंतन से प्रेरित सृजनात्मक गतिविधि करता है| 

    • मार्क्स ने इस नई गतिविधि को आत्म प्रेरित व्यवहार की संज्ञा दी है| यही से मानववाद आरम्भ होता है| 

    • मानववाद वह स्थिति होती है, जिसमें मानव प्रकृति का दास नहीं होता है, बल्कि आत्म प्रेरित व्यवहार के माध्यम से प्रकृति को अपनी इच्छा के अनुसार ढाल सकता है| 

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