परराष्ट्र संबंधों का संस्थागत एवं व्यावहारिक पक्ष-
इसमें निम्न को शामिल किया जा सकता है-
दूत व्यवस्था (2) गुप्तचर व्यवस्था (3) युद्ध
दूत व्यवस्था-
कौटिल्य ने दूत को राजा का मुख कहा जाता है|
कौटिल्य ने तीन प्रकार के दूतो का उल्लेख किया है-
(1) निसृष्टार्थ (2) परिमितार्थ (3) शासनहर
निसृष्टार्थ- वे राजदूत है, जो अपनी विवेक-बुद्धि से राजा की ओर से निर्णय करने की शक्ति रखते हैं|
परिमितार्थ- वे राजदूत, जिनकी शक्ति बहुत सीमित होती है, जिन्हें किसी विशेष उद्देश्य के लिए भेजा जाता है| इसे केवल निश्चित मामलों में ही समझौते का अधिकार होता है|
शासनहर- वे राजदूत, जिन्हें केवल अपने राजा का संदेश दूसरे राजा को पहुंचाने के लिए भेजा जाता है|
दूतों के कार्य-
प्रेषण- अपने राजा के संदेश को दूसरे राजा तक पहुंचाना
संधिपालत्व- संधिया करना एवं उनका पालन कराना
मित्र संग्रह- अन्य राजाओं के साथ मैत्री करना
प्रताप- अवसर के अनुसार विदेशी राजा को चुनौती देना
सुहृद भेद- जिन दो राजाओं में मैत्रीपूर्ण संबंध हो उनमें परस्पर विग्रह करवाना
चार ज्ञान- विदेशी राज्यों के गुप्तचरो की गतिविधियों का पता लगाना
पराक्रम- आवश्यकता पड़ने पर पराक्रम प्रदर्शित करना
समाधि मोक्ष- विदेशी राज्य के साथ संबंध भंग कर, नए संबंध स्थापित करना
उपजाप- विदेशी राज्य में षड्यंत्र कराना
दूत राजाओं के बीच संदेशों का आदान प्रदान करते हैं|
दूत गुप्तचर का भी कार्य करते हैं|
ये दूसरे राज्य की आंतरिक स्थिति (सैन्य शक्ति, जनमत स्थिति आदि) की जानकारी अपने राजा को देते है|
राजदूत का प्रमुख कार्य शत्रु राज्य में रहते हुए अपने राज्य के हितों की रक्षा एवं वृद्धि करना है|
राजदूत शत्रु राज्य में फूट के बीज बोकर भी अपने राज्य के हितों की वृद्धि करता है|
गुप्तचर व्यवस्था-
कौटिल्य ने गुप्तचर को राजा का नेत्र कहा है|
गुप्तचर राज्य के अंदर एवं बाहर दोनों जगह होने चाहिए|
राज्य के अंदर नियुक्त गुप्तचरो का राज्य के अंदर सभी अमात्य व अधिकारियों के बारे में, राजा के बारे में प्रजा के विचार, भ्रष्टाचार आदि का पता लगाना तथा राजा का यश फैलाना प्रमुख कार्य है|
राज्य के बाहर नियुक्त गुप्तचरो का कार्य शत्रु राज्य की आंतरिक स्थिति, सैनिक शक्ति की जानकारी प्राप्त करना, शत्रु का वध करना, शत्रु राज्य में फूट डालना, शत्रु राज्य के अमात्य व प्रजा को राजा के विरुद्ध करना आदि है|
कौटिल्य ने 9 प्रकार के गूढ़ पुरुष (गुप्तचर) बताए हैं- कापाटिक, उदास्थित, गृहपतिक, वैदेहक, तापस, सत्री, तीक्ष्ण, रसद व भिक्षुकी
कौटिल्य ने आंतरिक एवं बाह्य प्रशासन की दृष्टि से गुप्तचारों के दो प्रमुख वर्ग बताए हैं-
संस्था-
एक जगह रहकर कार्य करने वाले गुप्तचर
ये निम्न है-
कापाटिक- दूसरे के रहस्यों को जानने वाला, दबंग और विद्यार्थी की वेशभूषा में रहने वाले गुप्तचर
उदास्थित- सन्यासी के वेश में अपने शिष्यों सहित कृषि, पशुपालन तथा व्यापार के नियत स्थानों में रहकर अपना कार्य करने वाले गुप्तचर
ग्रहपतिक- बुद्धिमान पवित्र हृदय और गरीब किसान के वेश में रहने वाले गुप्तचर
वैदेहक- व्यापारी के वेश में रहने वाले गुप्तचर
तापस- जीविका के लिए सर मुंडाए या जटा धारण किए राजा का कार्य करने वाले गुप्तचर
संचार-
ये भ्रमणशील गुप्तचर होते है|
ये निम्न है-
सत्री- ये एक विशेष प्रकार के गुप्तचर हैं, जिन्हें बाल्यकाल से ऐसा प्रशिक्षण दिया जाता था, कि वे साधु या ज्योतिषी के वेश में प्रजा के बीच पहुंचकर सूचनाएं प्राप्त कर सकें|
तीक्ष्ण- देश में रहने वाले ऐसे व्यक्ति जो धन के लिए अपने प्राणों की परवाह न करके हाथी, बाघ और सांप से भी भिड़ जाते हैं, कौटिल्य ने उन्हें तीक्ष्ण कहा है|
रसद- अपने सगे-संबंधियों से स्नेह न रखने वाले क्रूर, आलसी स्वभाव वाले व्यक्ति को कौटिल्य ने रसद (जहर देने वाला) कहा है|
परिव्राजिका या भिक्षुकी- आजीविका के लिए दरिद्र, प्रौढ़, विधवा, सन्यासिनी के वेश में रहने वाली महिला
युद्ध-
कौटिल्य ने विजिगिषु राजा के सामने चक्रवर्ती सम्राट का आदर्श रखा है, किंतु चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए युद्ध को अंतिम विकल्प माना है|
चक्रवर्ती राजा के 3 गुण कौटिल्य ने बताएं है-
बुद्धिमता
सैनिक शक्ति
वित्तीय सावधानी
कौटिल्य ने तीन प्रकार के युद्ध बताएं हैं-
प्रकाश युद्ध या धर्म युद्ध- युद्ध के नियम व आचार संहिता का पालन करके युद्ध करना|
कूट युद्ध- छल-कपट से युद्ध करना|
तूष्णीं युद्ध- शत्रु को विष-ओषधि, धोखा देकर उसका वध करना|
कौटिल्य ने तीन प्रकार के विजेता (विजिगिषु) राजाओं का उल्लेख किया है-
धर्म विजयी- जो गौरव व प्रतिष्ठा के लिए युद्ध करता है तथा शत्रु के आत्म-समर्पण से संतुष्ट हो जाता है|
लोभ विजयी- जो धन, भूमि आदि की प्राप्ति के लिए युद्ध करता है|
असुर विजयी- जो भूमि, द्रव्य, कोष, स्त्री आदि का पूर्ण हरण करता है तथा पराजित राजा और उनके पुत्र के वध से ही संतुष्ट होता है|
कौटिल्य ने धर्म विजयी राजा को सर्वश्रेष्ठ तथा असुर विजयी राजा को सर्वाधिक निकृष्ट माना है|
कौटिल्य ने पराजित राजा के प्रति उदार एवं मानवीय व्यवहार का निर्देश दिया है|
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