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पर-राष्ट्र संबंधो पर कौटिल्य के विचार/ पर-राष्ट्र संबंधों का नीतिगत एवं सैद्धांतिक पक्ष || Kautilya's views on foreign relations/ policy and theoretical aspects of foreign relations || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

     पर-राष्ट्र संबंधो पर कौटिल्य के विचार-


    • अर्थशास्त्र में वर्णित ‘पर राष्ट्रो संबंधों’ के विवरण को दो भागों में बांटा जा सकता है-

    1. पर-राष्ट्र संबंधों का नीतिगत एवं सैद्धांतिक पक्ष

    2. पर-राष्ट्र संबंधों का संस्थागत एवं व्यवहारिक पक्ष


    पर-राष्ट्र संबंधों का नीतिगत एवं सैद्धांतिक पक्ष-

    • इसमें निम्न को शामिल किया जाता है - (1)  मंडल सिद्धांत   (2) षड्गुणनीति    (3) नीति या कूटनीति के चार उपाय 



    राज्य-मंडल (मंडलयोनि) सिद्धांत- 

    • मंडल अर्थात राज्यों का व्रत या घेरा 

    • राज्य मंडल में 12 राज्य राज्य शामिल है जो, निम्न है-


    1. विजिगिषु राज्य- जो राजा अपने राज्य का विस्तार करने की कामना एवं प्रयत्न करता है, उसे विजिगिषु राजा और राज्य को विजिगिषु राज्य कहा है| यह राष्ट्रमंडल के केंद्र में होता है|


    1. अरि राज्य (शत्रु राज्य)- जिस दिशा में विजिगिषु राजा अपना राज्य विस्तार करना चाहता है, उस दिशा का पड़ोसी राज्य|


    1. मित्र राज्य- अरि राज्य से आगे का राज्य| यह विजिगिषु का मित्र होता है, अरि राज्य के खिलाफ विजिगिषु को सहायता देने के लिए तत्पर रहता है|


    1. अरिमित्र राज्य- यह मित्र राज्य के आगे का राज्य है| यह अरि राज्य का मित्र होता है|


    1. मित्र-मित्र राज्य- अरि मित्र से आगे का राज्य| यह मित्र राज्य का मित्र होता है|


    1. अरिमित्र- मित्र राज्य- यह मित्र-मित्र राज्य से आगे का राज्य होता है| यह अरिमित्र का मित्र होता है|


    1. पाष्णिग्राह राज्य- यह पीछे की दिशा वाला पड़ोसी राज्य होता है, विजिगिषु राज्य का शत्रु होता है| अरि राज्य व पाष्णिग्राह राज्य दोनों मित्र होते हैं| हो सकता है कि जब विजिगिषु अरि राज्य पर आक्रमण करें तो पाष्णिग्राह राज्य विजिगिषु पर आक्रमण कर सकता है|


    1. आक्रन्द राज्य- पाष्णिग्राह के पीछे स्थित पड़ोसी राज्य| यह विजिगिषु का मित्र तथा पाष्णिग्राह का शत्रु होता है|


    1. पाष्णिग्राहासार राज्य- आक्रन्द राज्य के पीछे स्थित पड़ोसी राज्य है| विजिगिषु का शत्रु होता है|


    1. आक्रांदासार राज्य- पाष्णिग्राहासार राज्य के पीछे स्थित पड़ोसी राज्य है| यह विजिगिषु राज्य का मित्र होता है|


    1. मध्यम राज्य- यह विजिगिषु के बगल में होता है| इसकी सीमा विजिगिषु और अरिराज्य दोनों से लगती है| यह दोनों राज्यों से शक्तिशाली राज्य होता है| दोनों की सहायता करने में तथा मुकाबला करने में समर्थ होता है|


    1. उदासीन राज्य- यह विजिगिषु से दूर स्थित राज्य होता है| इसकी सीमा विजिगिषु, अरि एवं मध्यम तीनों से ही नहीं लगती है| यह राज्य इन तीनों राज्यों की आपसी राजनीति के प्रति सामान्यतः उदासीन होता है| तथा तीनों से शक्तिशाली भी होता है| जब इन तीनों राज्यों में सहयोगपूर्ण संबंध होते हैं, तो उदासीन राज्य इनकी सहायता करता है, किंतु जब इन तीनों राज्यों में प्रतिकूल संबंध होते हैं तो उदासीन राज्य प्रत्येक का मुकाबला करने में समर्थ होता है|


    • मुख्य तथा आधारभूत राज्य-  

    1. विजिगिषु  राज्य   

    2. अरि राज्य

    3. मध्यम राज्य   

    4. उदासीन राज्य


    • कौटिल्य ने संपूर्ण राज्य मंडल का निर्माण चार उपमंडलो के सहयोग से बताया है


    1. विजिगिषु राज्य मंडल (प्रथम मंडल)- इसमें विजिगिषु एवं उसके सभी मित्र राज्य शामिल है| जो है– विजिगिषु राज्य, मित्र राज्य, मित्र-मित्र राज्य, आक्रन्द राज्य, आक्रांदासार राज्य, (केंद्रीय भूमिका विजिगिषु राज्य)


    1. अरि राज्य मंडल (द्वितीय मंडल)- इसमें अरि राज्य एवं अरि राज्य के मित्र राज्य शामिल है| जो है- अरि राज्य, अरिमित्र राज्य, अरिमित्र- मित्र राज्य, पाष्णिग्राह राज्य, पाष्णिग्राहासार राज्य| (केंद्रीय भूमिका अरि राज्य)


    1. मध्यम राज्य मंडल (तृतीय मंडल)- इसमें मध्यम राज्य, विजिगिषु राज्य, अरि राज्य होते हैं| केंद्रीय भूमिका मध्यम राज्य की होती है|


    1. उदासीन राज्य मंडल (चतुर्थ मंडल)- इसमें उदासीन, मध्यम, विजिगिषु, अरि राज्य शामिल है|


    • कौटिल्य के अनुसार युद्ध में लिप्त होना राज्य के लिए स्वाभाविक भी है और अनिवार्य भी है|

    • कौटिल्य के अनुसार इन 12 राज्यों में प्रत्येक की छ: प्रकृतिया होती है| जिसमें एक मुख्य (राज्य) प्रकृति तथा शेष पांच द्रव्य प्रकृतिया होती है| क्योंकि एक राज्य में 6 प्रकृति तो कुल 12 राज्यों में 72 प्रकृतिया होती है|

    • मुख्य या राज्य प्रकृति- राजा (राज्य)

    • द्रव्य प्रकृति- (1) अमात्य  (2) जनपद  (3) दुर्ग   (4) कोष   (5) दंड|


    • कौटिल्य ने विजिगिषु की तीन शक्तियां एवं उनसे जुड़ी हुई सिद्धियां बतायी है|

    1. मंत्र शक्ति- यह विजिगिषु के ज्ञान तथा सूझ-बुझ पर आधारित है|

    2. प्रभु शक्ति- यह कोष तथा सैन्य बल पर आधारित है|

    3. उत्प्ताह शक्ति- पराक्रम, साहस, मनोबल पर आधारित है|


    • ए.एस अल्टेकर के अनुसार कौटिल्य का मंडल सिद्धांत शक्ति संतुलन पर आधारित सिद्धांत है|



    षड्गुण मंत्र या षड्गुण नीति- 

    • कौटिल्य ने विदेश संबंधों के संचालन के लिए छ: नीतियां बतायी है-


    1. संधि- शांति बनाए रखने के लिए, शत्रु अथवा मित्र से संधि करना|


    1. विग्रह- जब राजा पर्याप्त शक्तिशाली हो, तो उसे विग्रह की नीति अपनाई जानी चाहिए, अर्थात युद्ध करने का निर्णय करना|


    1. अभियान- अभियान का सामान्य अर्थ है ‘सेना का गमन’ अर्थात शत्रु पर आक्रमण करने की नीति| जब विग्रह (युद्ध करने का निर्णय) कर लिया जाता है, तब अभियान नीति (आक्रमण करना) की जाती है|


    1. आसन- कौटिल्य ने इसके लिए ‘उपेक्षा’ शब्द का भी प्रयोग किया है| आसन नीति उदासीनता या तटस्थता की नीति है|


    1. संश्रय- अन्य राजा के पास शरण लेने की नीति|


    1. द्वैधीभाव- एक राजा से संधि तथा दूसरे राजा से विग्रह (युद्ध करना) की नीति एक साथ अपनाना|


    • कौटिल्य की षड्गुण नीति व्यवहारिक एवं यथार्थवादी है|

    • अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विश्लेषण में कौटिल्य यथार्थवाद तथा शक्ति सिद्धांत का समर्थक है| 

    • एक बुद्धिमान राजा को परिस्थितियों के अनुसार इसमें एक नीति की पालना करनी चाहिए|



    कूटनीति या नीति के चार उपाय-

    • कौटिल्य ने कूटनीति के चार उपायों का उल्लेख किया है| ये चार उपाय राज्य की रक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है-

    1. साम- साम का अर्थ है- अपने सद या शिष्ट व्यवहार से अन्य को संतुष्ट करना| यह शक्तिशाली राजा के प्रति उपयुक्त नीति है|


    1. दाम/ दान नीति- इसमें धन देकर शक्तिशाली राजा को संतुष्ट किया जाता है, ताकि आक्रमण ना करें तथा निर्बल राजा को वश में किया जाता है|


    1. भेद नीति- भेद का अर्थ है फूट डालना| इसके द्वारा शत्रु राजा और उसके सहायकों में फूट डाली जाती है|


    1. दंड नीति- दंड नीति का अर्थ है- बल प्रयोग| जब साम, दाम, भेद नीति काम न करें, तब सबसे अंत में इस नीति का प्रयोग करना चाहिए| इसमें बल प्रयोग के द्वारा शत्रु राज्य पर अधिपत्य स्थापित किया जाता है|

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