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दंड व्यवस्था पर कौटिल्य का विचार / Kautilya's views on the penal system || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

 दंड व्यवस्था पर कौटिल्य का विचार

  • कौटिल्य के अनुसार समाज में सुव्यवस्था की रक्षा के लिए न्याय की आवश्यकता होती है, किंतु दंड के अभाव में न्याय व्यवस्था प्रभावहीन हो जाती है|

  • दंड व्यवस्था का उद्देश्य अपराधी से निर्दोष की रक्षा करना है, न कि समाज में भय की स्थापना करना है|


  • कौटिल्य ने सुधारात्मक, निवारक, प्रतिकारात्मक तीनों ही प्रकार के दंड को स्वीकारा है-

  1. सुधारात्मक दंड- अपराधी का अंत न करके, अपराध वृत्ति का अंत करना|

  2. निवारक दंड- अपराधी को दंड दिया जाए, तो उसे लोग दृष्टांत के रूप में ग्रहण करें|

  3. प्रतिकारात्मक दंड- इस दंड का उद्देश्य जिस व्यक्ति के साथ अपराध हुआ है, उसकी हानी की पूर्ति करना| 


  • कौटिल्य ने दंड के विवेकपूर्ण प्रयोग पर बल दिया है|

  • कौटिल्य ने समुचित दंड के लिए कहा है, अर्थात न अधिक तथा न कम दंड|


  • कौटिल्य ने दंडित करने के तीन तरीके बताए हैं-

  1. शारीरिक दंड   (2) आर्थिक दंड    (3) कारावास

  • शारीरिक दंड में शारीरिक सजाएं, यातनाएं तथा मृत्यु दंड शामिल है|


  • Note- दंड निर्धारण में कौटिल्य समानता का सिद्धांत नहीं मानता, बल्कि वर्ण व्यवस्था, लिंग, उम्र के आधार पर वह दंड व्यवस्था में भेद करता है|


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