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विधि व्यवस्था पर कौटिल्य के विचार / कौटिल्य के संप्रभुता संबंधी विचार || Kautilya's views on law and order / Kautilya's views on sovereignty || By Nirban P K Yadav Sir || Hindi

विधि व्यवस्था पर कौटिल्य के विचार- 

विधि के स्रोत-

  • कौटिल्य के अनुसार राजा विधि का स्रोत या निर्माता नहीं है, बल्कि केवल विधि को लागू करता है| 

  • कौटिल्य ने विधि के चार स्रोत माने है

  1. धर्म (वेद एवं स्मृति)- सत्य पर आधारित

  2. व्यवहार- साक्ष्यों पर आधारित 

  3. चरित्र (सदाचार)- सामाजिक जीवन (रीति-रिवाज, परंपरा) पर आधारित

  4. राजाज्ञा- शासन पर आधारित 


  • Note- कानून के ये चारों स्रोत राष्ट्र के वैधानिक जीवन का आधार तथा राष्ट्र के चार पैर है|


  • चारों का स्वीकार्यताक्रम न्यून से अधिक- धर्म से अधिक व्यवहार, व्यवहार से अधिक चरित्र, चरित्र से अधिक राजाज्ञा स्वीकारणीय है|

  • कौटिल्य ने कानून के अन्य स्रोतों की तुलना में राजाज्ञा को कानून का सर्वश्रेष्ठ स्रोत माना है, तथा धार्मिक कानून पर लौकिक को श्रेष्ठ माना है|



कौटिल्य के संप्रभुता संबंधी विचार-

  • कौटिल्य राजा को संप्रभु नहीं मानते हैं, वह तो राजा को संप्रभु राज्य के आदेशों को क्रियान्वित करने का माध्यम मानते हैं| 

  • कौटिल्य का राजा, राज्य की विधियों को लागू करने का कार्य करता है, विधि का निर्माण नहीं करता| 

  • कौटिल्य के अनुसार राज्य की संप्रभुता अवधारणात्मक रूप से धर्म व दंड में निहित थी| 

  • कौटिल्य के अनुसार केवल वही बल प्रयोग वैध हो सकता है, जो धर्म के सिद्धांतों को क्रियान्वित करने के लिए किया गया है| 

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