विधि व्यवस्था पर कौटिल्य के विचार-
विधि के स्रोत-
कौटिल्य के अनुसार राजा विधि का स्रोत या निर्माता नहीं है, बल्कि केवल विधि को लागू करता है|
कौटिल्य ने विधि के चार स्रोत माने है-
धर्म (वेद एवं स्मृति)- सत्य पर आधारित
व्यवहार- साक्ष्यों पर आधारित
चरित्र (सदाचार)- सामाजिक जीवन (रीति-रिवाज, परंपरा) पर आधारित
राजाज्ञा- शासन पर आधारित
Note- कानून के ये चारों स्रोत राष्ट्र के वैधानिक जीवन का आधार तथा राष्ट्र के चार पैर है|
चारों का स्वीकार्यताक्रम न्यून से अधिक- धर्म से अधिक व्यवहार, व्यवहार से अधिक चरित्र, चरित्र से अधिक राजाज्ञा स्वीकारणीय है|
कौटिल्य ने कानून के अन्य स्रोतों की तुलना में राजाज्ञा को कानून का सर्वश्रेष्ठ स्रोत माना है, तथा धार्मिक कानून पर लौकिक को श्रेष्ठ माना है|
कौटिल्य के संप्रभुता संबंधी विचार-
कौटिल्य राजा को संप्रभु नहीं मानते हैं, वह तो राजा को संप्रभु राज्य के आदेशों को क्रियान्वित करने का माध्यम मानते हैं|
कौटिल्य का राजा, राज्य की विधियों को लागू करने का कार्य करता है, विधि का निर्माण नहीं करता|
कौटिल्य के अनुसार राज्य की संप्रभुता अवधारणात्मक रूप से धर्म व दंड में निहित थी|
कौटिल्य के अनुसार केवल वही बल प्रयोग वैध हो सकता है, जो धर्म के सिद्धांतों को क्रियान्वित करने के लिए किया गया है|
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