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न्याय व्यवस्था पर कौटिल्य के विचार / Kautilya's views on the judicial system || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

 न्याय व्यवस्था पर कौटिल्य के विचार-

  • कौटिल्य के अनुसार राजा का प्रमुख दायित्व प्रजा पर न्यायपूर्वक शासन करना है तथा जो राजा अपनी प्रजा को न्याय दिलाने में असमर्थ होता है, वह शीघ्र ही राज्य सहित नष्ट हो जाता है|


  • न्यायपालिका के प्रकार

कौटिल्य ने कानून व मुकदमों के आधार पर दो प्रकार के न्यायालय बताए हैं-

  1. धर्मस्थीय   (2) कण्टक शोधन


  1. धर्मस्थीय न्यायालय

  • कौटिल्य ने धर्मस्थीय न्यायालयो के न्याय क्षेत्र में प्रजाजन के आपसी संबंधों में उत्पन्न विवादों को स्थान दिया है| कौटिल्य ने इन्हें व्यवहार कहा है| सामान्यतः इसमें दीवानी मुकदमो को शामिल किया गया है|

  • धर्मस्थीय न्यायालय के न्यायधीश ‘धर्मस्त’ या ‘व्यवहारिक’ कहलाते हैं|


  •  धर्मस्थीय न्यायालय में प्रस्तुत होने वाले विवाद निम्न है-

(1) संविदा (इकरारनामा) (2) विवाह-संबंध  (3) परिवार संपत्ति का विभाजन  (4) वास्तुक (मकान खेत आदि की बिक्री व निर्माण)  (6) ऋण एवं ब्याज  (7) धरोहर  (8) दास  (9) स्वामी व नौकर  (10) व्यापारिक साझेदारी  (11) दान  (12) क्रय एवं विक्रय  (13) साहस (डकैती, चोरी, हत्या)  (14) वाक्पारूष्य (गाली, गलोच या मानहानि)  (15) दंड पारूष्य (मारपीट, आघात)   (16) द्युत (जुआ)  (17) प्रकीर्णक (उपरोक्त से संबंधित विविध विवाद) 


  1. कण्टक शोधन न्यायालय

  • अर्थशास्त्र में ऐसे व्यक्ति जो अपने कार्यों से राजा, प्रजा व राज्य को हानि पहुंचाते हैं, कण्टक कहलाते हैं| इनको खत्म करना ही कंटक शोधन है| सामान्यतः इसमें फौजदारी मुकदमों को शामिल किया गया है|

  • Note- कण्टक शोधन न्यायालय के न्यायाधीश प्रदेष्टा कहलाते हैं|


  • इसमें प्रस्तुत होने वाले विवाद निम्न है-

  1. सार्वजनिक शांति व व्यवस्था   (2)  शिल्पीओं से संबंधित विवाद   (3) व्यापारियों से प्रजा की रक्षा    (4) दैवी विपदाओ के प्रतिकार में असहयोग करना  (5) सामाजिक व धार्मिक नियमों का उल्लंघन  (6) कन्या, युवती को दूषित करना (7)  रिश्वत, धन का गबन  (8) कपट, जालसाजी ठगी द्वारा धन कमाना  (9) आशुमृतक- परीक्षा संबंधी विवाद   (10) राजद्रोह| 


  • कण्टक शोधन व धर्मस्थलीय न्यायालयों की 4 शाखाओं की स्थापना का उल्लेख अर्थशास्त्र में है

  1. जनपद संधि न्यायालय- दो ग्रामों के बीच स्थापित न्यायालय

  2. संग्रहण न्यायालय- दस ग्रामों के बीच स्थापित न्यायालय

  3. द्रोणमुख न्यायालय- चार सौ ग्रामों के बीच स्थापित न्यायालय

  4. स्थानीय न्यायालय- आठ सौ ग्रामों के बीच स्थापित न्यायालय 


  • Note- प्रत्येक न्यायालय के विरुद्ध अपील सीधे राजा के पास की जा सकती है|

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