इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या-
ऐतिहासिक भौतिकवाद, द्वंदात्मक भौतिकवाद का पूरक सिद्धांत है, जहां द्वंदात्मक भौतिकवाद मार्क्सवाद का दार्शनिक आधार है तथा ऐतिहासिक भौतिकवाद अनुभवमूलक आधार है|
इतिहास की भौतिक या आर्थिक व्याख्या कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक A Critique of Political Economy में की है|
मार्क्स ने द्वंदात्मक भौतिकवाद के द्वारा इतिहास व सामाजिक विकास की व्याख्या की है| इसी को ऐतिहासिक भौतिकवाद या इतिहास की भौतिकतावादी व्याख्या या इतिहास की आर्थिक व्याख्या या आर्थिक नियतिवाद या आर्थिक निर्धारणवाद कहते हैं|
वेपर ने कहा है कि “मार्क्स के सिद्धांत का नाम इतिहास की आर्थिक व्याख्या होना चाहिए था, क्योंकि इतिहास में सामाजिक परिवर्तन मार्क्स के अनुसार आर्थिक कारणों से होता है|”
इस सिद्धांत को आर्थिक नियतिवाद भी कहते हैं, क्योंकि मार्क्स के अनुसार मनुष्य पूर्ण रूप से आर्थिक शक्तियों का दास होता है तथा मनुष्य कार्य आर्थिक या भौतिक कारण से करता है|
इस सिद्धांत के अनुसार इतिहास के किसी भी युग में समाज के आर्थिक संबंध समाज की प्रगति का रास्ता तैयार करते हैं तथा आर्थिक संबंध राजनीतिक, कानूनी, सामाजिक, बौद्धिक और नैतिक संबंधों का स्वरूप निर्धारित करते हैं|
कार्ल मार्क्स “सभी सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक संबंध, सभी धार्मिक तथा कानूनी पद्धतियां, सभी बौद्धिक दृष्टिकोण जो इतिहास के विकास क्रम में जन्म लेते हैं, वे सब जीवन की भौतिक अवस्थाओं (आर्थिक संबंधो) से उत्पन्न होते हैं|”
मार्क्स के अनुसार जो भौतिक अवस्थाएं हैं, वे वास्तव में उत्पादन शक्तियां हैं| उत्पादन शक्तियों में तीन चीजें शामिल हैं-
प्राकृतिक साधन- भूमि, जलवायु, भूमि की उर्वरा शक्ति, खनिज पदार्थ, जल, विधुत शक्ति आदि|
मशीन, यंत्र एवं अतीत की विरासत में मिली हुई उत्पादन कला
युग विशेष में मनुष्य के मानसिक तथा नैतिक गुण|
मार्क्स के अनुसार प्रत्येक देश की राजनीतिक संस्थाएं, उद्योग, व्यापार और कला, दर्शन और रीतियां, आचरण, परंपराएं, नियम, धर्म और नैतिकता भौतिक अवस्थाओं से निर्धारित होती है|
मार्क्स के मत में भौतिक अवस्थाओं का आश्य आर्थिक वातावरण, उत्पादन, वितरण और विनिमय है|
सामाजिक और राजनीतिक क्रांतियां जीवन की भौतिक अवस्थाओं में परिवर्तन के कारण होती है|
मार्क्स अपने ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत को दो क्रांतियों पर लागू करता है-
भूतकाल की क्रांति- यह सामंतवादियों के विरुद्ध बुर्जुआ वर्ग की थी|
भविष्य की क्रांति- यह बुर्जुआ वर्ग के विरुद्ध सर्वहारा वर्ग की होगी, जो ‘समाजवादी कॉमनवेल्थ’ की स्थापना करेगी|
कार्ल मार्क्स “क्रांति सामाजिक परिवर्तन का अनिवार्य माध्यम है|”
मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत का विश्लेषण निम्न बिंदुओं के द्वारा कर सकते हैं-
मानव क्रिया-कलापों (कार्यों) की आधारशिला उत्पादन प्रणाली है-
मार्क्स अपने सिद्धांत का प्रारंभ इस तथ्य से करता है कि मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता है| अतः भोजन के उत्पादन के लिए कार्य करता है|
उत्पादन शक्तियां-
मार्क्स के अनुसार उत्पादन शक्तियां ऐतिहासिक विकास की निर्णायक आधार है| मार्क्स का कहना है कि “जीवन के भौतिक साधनों के उत्पादन की पद्धति सामाजिक, राजनीतिक तथा बौद्धिक जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया की स्थिति निर्धारित करती है|”
कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक ‘A critique of Political Economy’ की प्रस्तावना में लिखा है कि “मनुष्य की चेतना उसके अस्तित्व को निर्धारित नहीं करती, बल्कि उसका सामाजिक अस्तित्व उसकी चेतना को निर्धारित करता है|”
मार्क्स के मत में सत्य, न्याय, प्रेम, मानवता, दानशीलता आदि अमूर्त धारणाएं सामाजिक या राजनीतिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी नहीं होती है, बल्कि भौतिक वस्तुएं उत्तरदायी होती हैं|
परिवर्तनशील उत्पादन शक्तियां या प्रणाली सामाजिक संबंधों को प्रभावित करती है-
मार्क्स के मत में यदि उत्पादन शक्तियों में परिवर्तन होता है तो सामाजिक संबंधों में भी परिवर्तन होता है जैसे- हस्तचलित यंत्रों के युग में सामंतवादी समाज था तथा वाष्पशील युग में औद्योगिक पूंजीवादी समाज की स्थापना होती है|
उत्पादन एवं उत्पादन शक्तियों के विकास की द्वंदवादी भावना-
मार्क्स के मत द्वंद्ववाद के कारण ही उत्पादन शक्तियों का विकास होता है| उत्पादन की शक्तियों में तब तक परिवर्तन चलता है, तब तक उत्पादन की सर्वश्रेष्ठ अवस्था नहीं आ जाती|
वेपर के शब्दों में “यह एक आशावादी सिद्धांत है, जो मानव की उत्तरोत्तर प्रगति में विश्वास रखता है, जिसमें अंतिम रूप से मानव की विजय होती है|”
आर्थिक व्यवस्था और धर्म-
मार्क्स के अनुसार “धर्म दोषपूर्ण आर्थिक व्यवस्था का प्रतिबिंब मात्र है| धर्म अफीम के नशे के समान है, अर्थात मनुष्य धर्म के नशे में अपना दुख-दर्द भूल जाता है|
इतिहास का काल विभाजन-
मार्क्स उत्पादन संबंधों अथवा आर्थिक दशाओं के आधार पर इतिहास को 5 युगों में बांटता है-
आदिम साम्यवाद या प्राचीन साम्यवाद का युग- इसमें मनुष्य कंदमूल-फल व शिकार से जीवन निर्वाह करता था, कृषि, पशुपालन का ज्ञान नहीं था| समाज में वर्ग चेतना व वर्ग संघर्ष का अभाव था|
दास युग- इस युग में मनुष्य कृषि, पशु पालन शुरू कर देता है| व्यक्तिगत संपत्ति का उदय होने से समाज दो वर्गों में बट जाता है-
स्वामी वर्ग- जिसके पास भूमि का स्वामित्व होता है|
दास वर्ग- जो स्वामी वर्ग के सभी कार्य करता है तथा स्वामी का गुलाम होता है|
इसी युग में वर्ग संघर्ष का आरंभ हो जाता है, धनी निर्धन का शोषण करता है| वर्ग संघर्ष का कारण वर्ग चेतना है|
सामंतवादी युग- अब शासन राजाओं के हाथ में आ गया| राजाओं ने अपने अधीन सामंतों को भूमि प्रदान की, बदले में सामंत राजा को आर्थिक व सैनिक सहायता देते थे| छोटे-छोटे किसान सामंतों से भूमि लेकर खेती करते थे तथा बदले में लगान देते थे| किसानों को ‘सर्फ’ कहा जाता था| इस युग में सामंत व कृषक में वर्ग संघर्ष का था|
पूंजीवादी युग- सामंतवाद के बाद पूंजीवाद का विकास हुआ| समाज में दो वर्ग बन गए
संपत्ति शाली पूंजीपति वर्ग
संपत्ति विहीन श्रमिक वर्ग
पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों का शोषण किया गया अतः इन दोनों वर्गों में वर्ग संघर्ष हुआ|
समाजवादी संक्रमणशील युग या श्रमिक वर्ग (सर्वहारा वर्ग) के अधिनायक तंत्र का संक्रमणशील युग-
सर्वहारा का अधिनायकवाद का प्रयोग कार्ल मार्क्स ने अपनी कृतियां ‘दास कैपिटल’ ‘सिविल वार इन फ्रांस’ व ‘क्रिटिक ऑफ गोथा प्रोग्राम’ में किया है|
पूंजीपतियों के शोषण से परेशान श्रमिक वर्ग क्रांति करेंगा, जिसमें पूंजीपतियों की हार व श्रमिकों की विजय होगी| इस संघर्ष में पूंजीपति वाद, श्रमिक प्रतिवाद तथा इनके संश्लेषण से वर्ग विहीन समाज का जन्म होगा|
किंतु इस आदर्श स्थिति से पहले एक संक्रमणशील युग आएगा, जिसमें श्रमिक वर्ग (सर्वहारा वर्ग) का अधिनायक तंत्र स्थापित होगा| यह अधिनायक तंत्र पूंजीपतियों का नाश कर देगा| अर्थात समाजवादी युग में राज्य विद्यमान रहता है|
इस संक्रमणशील युग में सर्वहारा व बुजुर्वा वर्ग विद्यमान रहता है| वर्ग विभेद व वर्ग शोषण भी रहता है| सर्वहारा वर्ग, पूंजीपतियों का शोषण करता है|
लेनिन इसको समाजवादी स्थिति कहता है|
Note- कार्ल मार्क्स ने पेरिस कम्यून को आधुनिक औद्योगिक सर्वहारा का प्रथम महत्वपूर्ण विद्रोह माना है|
जर्मन विचारक बर्नस्टाइन ने सर्वहारा अधिनायकवाद को बर्बर व आराधनावादी बताया है, जो घटिया सभ्यता व संस्कृति का हिस्सा था| उन्होंने मार्क्सवाद में संशोधन करते हुए अधिनायकवाद की जगह प्रतिनिधिक लोकतांत्रिक समाजवादी राज्य का समर्थन किया है|
बाकुनिन “सर्वहारा की तानाशाही, अंतत: सर्वहारा पर तानाशाही है|”
साम्यवादी युग-
पूंजीपतियों की समाप्ति के बाद में सर्वहारा के अधिनायक तंत्र की समाप्ति हो जाएगी और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना होगी|
इस वर्गविहीन आदर्श समाज में राज्य का लोप हो जाएगा, क्योंकि वर्ग संघर्ष समाप्ति के बाद राज्य की आवश्यकता नहीं होगी|
इस वर्गविहीन और राज्य विहीन समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता अनुसार कार्य करेगा तथा आवश्यकतानुसार प्राप्त करेगा| (क्रिटिक ऑफ गोथा प्रोग्राम में उल्लेख)
इस आदर्श समाज में केवल एक वर्ग श्रमिक वर्ग होगा|
कार्ल मार्क्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र में लिखा है कि “साम्यवादी समाज, वर्ग एवं वर्ग संघर्ष से मुक्त एक ऐसा संघ होगा, जिसमें हरेक के मुक्त विकास की शर्त सभी के मुक्त विकास पर लागू होगी|”
Note- एंगेल्स (एंजिल्स) कहते हैं कि “राज्य खत्म नहीं किया जाएगा, वरन विलुप्त हो जाएगा| हासिये, हथोड़े की भांति राज्य अजायबघर में चला जाएगा|”
साम्यवाद के उदय से पहले सामाजिक विकास की सब अवस्थाओं में मनुष्य प्रकृति के निर्विकार नियमों से बंधा रहता है अतः वह विवश होता है, परंतु साम्यवाद की स्थापना हो जाने पर वह इन बंधनों से मुक्त होकर अपने जीवन और समाज को मनचाहा रूप देने के लिए स्वतंत्र हो जाता है|
साम्यवादी समाज की स्थापना ऐसे परिवर्तन का संकेत देगी, जिसमें मनुष्य विवशता लोक (Kingdom of Necessity) से निकलकर स्वतंत्रता लोक (Kingdom of Freedom) में प्रवेश करेगा|
जहां समाजवाद में प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करेगा और कार्य के अनुसार प्राप्त करेगा, परंतु साम्यवाद के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करेगा और अपनी आवश्यकता के अनुसार प्राप्त करेगा|
मानव इतिहास की कुंजी वर्ग संघर्ष है- मार्क्स के इतिहास के काल विभाजन से स्पष्ट है कि समाज का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास है|
आधार व अधिसंरचना का रूपक-
मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या के लिए आधार व अधिसंरचना भवन निर्माण से मिलता-जुलता रूपक है|
यहां उत्पादन प्रणाली या समाज की आर्थिक संरचना समाज का आधार या नींव है तथा समाज के कानूनी और राजनीतिक ढांचे तथा सामाजिक चेतना की विभिन्न अभिव्यक्तियां अधिसंरचना है| जैसे- धर्म, नैतिक आदर्श, सामाजिक प्रथाएं, साहित्य, कला, संस्कृति आदि|
समाज का आधार-
उत्पादन प्रणाली (Mode of Production) या समाज की आर्थिक संरचना आधार है|
इसमें दो चीज शामिल है-
उत्पादन शक्तियां (Force of Production)- इसमें दो बातें शामिल है, 1 उत्पादन के साधन (यंत्र और उपकरण) 2 श्रम शक्ति (मानवीय ज्ञान और निपुणताएं)
उत्पादन संबंध- उत्पादन प्रक्रिया में मनुष्यो के संबंध जैसे- स्वामी और दास, जमींदार और किसान, पूंजीपति और श्रमिक
समाज की अधिसंरचना (Superstructure)-
समाज के कानूनी और राजनीतिक ढांचे तथा सामाजिक चेतना की विभिन्न अभिव्यक्तियां अधिसंरचना है|
जैसे- धर्म, नैतिक आदर्श, सामाजिक प्रथाएं, साहित्य, कला, संस्कृति आदि|
इस तर्क के अनुसार सामाजिक विकास के दौरान उत्पादन प्रणाली में जो परिवर्तन होते हैं, उसके परिणामस्वरुप अधिसंरचना में अपने आप परिवर्तन हो जाते हैं| अर्थात आर्थिक संबंध ही अन्य संबंधों को निर्धारित करते हैं|
अर्थात जब उत्पादन प्रणाली या आर्थिक संरचना में परिवर्तन आता है तो समाज के कानूनी, राजनीतिक, सामाजिक ढांचे अर्थात धर्म, नैतिक आदर्श, सामाजिक प्रथाएं, साहित्य, कला, संस्कृति आदि में अपने आप परिवर्तन आ जाता है|
ऐतिहासिक भौतिकवाद की मान्यता है कि उत्पादन की शक्तियों का विकास धीमे-धीमे होता है परंतु जब उनका स्वरूप पूरी तरह से बदल जाता है तब प्रचलित उत्पादन संबंध उन शक्तियो को संभालने में असमर्थ सिद्ध होते हैं तो ऐसी स्थिति में उत्पादन की शक्ति और उत्पादन संबंध में संघर्ष पैदा हो जाता है|
इस संघर्ष में उत्पादन शक्तियां पुराने उत्पादन संबंधो को समाप्त कर नए संबंधों को जन्म देती है|
इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या के निष्कर्ष-
इतिहास का अध्ययन मानव समाज के विकास के नियम जानने के लिए किया जाता है|
प्रकृति के विकास के नियमों की तरह समाज के विकास के भी कुछ नियम है|
सामाजिक जीवन में परिवर्तन आर्थिक कारणों से होता है|
किसी राष्ट्रीय समाज के विकास की प्रक्रिया में आर्थिक तत्व अर्थात वस्तुओं के उत्पादन, विनिमय और वितरण प्रणाली की भूमिका सबसे प्रधान होती है|
प्रत्येक युग की समस्त सामाजिक व्यवस्था पर उसी वर्ग का आधिपत्य होता है, जिसे उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व प्राप्त होता है|
जब उत्पादन की शक्ति में परिवर्तन होता है, तो सामाजिक संबंधों में परिवर्तन होता है|
वर्ग संघर्ष विकास की कुंजी है|
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