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कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत // Karl Marx's theory of class struggle || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

 वर्ग संघर्ष का सिद्धांत- 

  • मार्क्स अपना वर्ग संघर्ष का सिद्धांत अपनी पुस्तक communist Manifesto 1848 में प्रस्तुत करता है| 

  • कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष का सिद्धांत ऑगस्टीन थियरे से लिया है| 

  • मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धांत ऐतिहासिक भौतिकवाद का ही एक अंग या पूरक है|

  • यह मार्क्सवाद का समाजवैज्ञानिक आधार प्रस्तुत करता है| 

  • मार्क्स समाज की मुख्य इकाई वर्ग को मानता है|

  • वर्ग का तात्पर्य- कार्ल मार्क्स के मत में जिस समूह के आर्थिक हित एक समान हो उसे वर्ग कहते हैं|

  • संघर्ष का तात्पर्य- कार्ल मार्क्स के मत में संघर्ष का तात्पर्य लड़ाई नहीं है, बल्कि इसका व्यापक अर्थ है| जैसे- असंतोष, रोष, आंशिक असहयोग, हड़ताल|

  • द जर्मन आईडियोलॉजी में मार्क्स ने लिखा है कि “वर्ग अपने आप में बुर्जुआ समाज की उपज है|”

  • Manifesto का आरंभ इस कथन से होता है कि “आज तक के संपूर्ण समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है|


  • मार्क्स ने दास कैपिटल के खंड 3 (1894) में उल्लेखित किया है कि आदिम साम्यवाद के बाद जो भी व्यवस्थाएं आई, उन सब में समाज दो वर्गों में विभक्त था-

  1. शोषक वर्ग (उत्पादन का स्वामी)- जिसके पास उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व होता है|

  2. शोषित वर्ग (उत्पादन करता)- जो केवल शारीरिक श्रम से उत्पादन करता है|


समाज

शोषक वर्ग

शोषित वर्ग

दास समाज

स्वामी

दास

सामंती समाज

सामंत या जमीदार

किसान 

पूंजीवादी समाज

बुजुर्वा

सर्वहारा 

 

  • ये दोनों वर्ग आपस में संघर्षरत रहते है| 

  • वर्ग संघर्ष में शोषित वर्ग, शोषक वर्ग का विरोध करता है, जिसमें समाज में परिवर्तन होता है| 

  • वर्ग संघर्ष का कारण वर्ग चेतना है, क्योंकि जब शोषित वर्ग में वर्ग चेतना जागृत होती है, तो वह शोषक वर्ग के विरुद्ध संघर्ष करता है|

  • मार्क्स के मत में वर्ग संघर्ष का इतिहास ही मानव जाति का इतिहास है|

  • मार्क्स ने पूंजीपति वर्ग को बुर्जुवा वर्ग तथा श्रमिक वर्ग को सर्वहारा वर्ग कहा है, जिनमें वर्ग संघर्ष होता है|

  • पूंजीवादी व्यवस्था में वर्ग चेतना अत्यंत प्रखर हो जाती है, वर्ग स्पष्टत: दो भागों में बँट जाते हैं तथा वर्ग संघर्ष अत्यंत तीव्र हो जाता है| 

  • वर्ग संघर्ष के दौरान राज्य शोषित वर्ग का क्रूर दमन करता है| 

  • कार्ल मार्क्स “मुक्त व्यक्ति और दास, पेट्रिशियन और प्लेबियन, मालिक और अर्द्ध-दास, गिल्ड मालिक और जर्नीमैन, एक शब्द में कहा जाए तो उत्पीड़क व उत्पीड़ित एक दूसरे से संघर्षरत रहे हैं|”


  • आधुनिक समाज में मार्क्स दो वर्गों की कल्पना करता है, जिसमें वर्ग संघर्ष रहता है-

  1. व्यापारी वर्ग- नगरों में रहने वाले व्यापारी वर्ग, जो नागरिक और राजनीति स्वतंत्रता चाहता है|

  2. औद्योगिक सर्वहारा वर्ग- नगरों में रहने वाला औद्योगिक सर्वहारा वर्ग, जो आर्थिक स्वतंत्रता चाहता है|


  • मार्क्स का कहना है कि “विश्व के मजदूरों एक हो जाओ| तुम्हारे पास खोने के लिए बेड़ियों के अलावा और कुछ नहीं है और पाने के लिए संसार पड़ा है|”

  • मार्क्स के मत में वर्ग संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कामगार वर्ग समाज की बागडोर नहीं संभाल लेता है| कामगार वर्ग के बागडोर संभाल लेने के बाद उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सामाजिक स्वामित्व स्थापित हो जाएगा, सब लोग कामगार बन जाएंगे, तब समाज शोषण, उत्पीड़न, वर्ग भेद और वर्ग संघर्ष से मुक्त हो जाएगा| 


  • उपरोक्त वर्णन का अर्थ यह नहीं है कि समाज में इन दो वर्गों के अलावा कोई मध्यम वर्ग नहीं था| मार्क्स और एंगेल्स का मत था कि पूंजीवादी युग में इन दो वर्गों के अलावा एक मध्यम वर्ग भी रहता है 

  • एंगेल्स ने दास कैपिटल के खंड 3 के अंतिम अध्याय में लिखा कि ‘इंग्लैंड की वर्ग संरचना अत्यंत विकसित है, परंतु वहां भी मध्यवर्ती एवं संक्रांतिकालीन स्तर है| 

  • लेकिन मार्क्स और एंगेल्स का मत है कि मध्यम वर्ग पूंजीवाद के विस्तार के साथ प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था के कारण लुप्त हो जाएगा| 

  • लेकिन बर्नस्टाइन व पोलांजे ने कहा है कि पूंजीवाद के विस्तार के साथ मध्य वर्ग लुप्त नहीं हो रहा है, बल्कि उसका आकार बढ़ रहा है| 



Note- 

  • फ्रांसिसी श्रमिक संघवादी सोरेल ने मार्क्सवादी वर्ग को ‘एक अमूर्त कल्पना’ की संज्ञा दी है|

  • जर्मन मार्क्सवादी कार्ल कॉटस्की ने अपनी कृति वर्ग, व्यवसाय और हैसियत (Class Occupation and Status) 1927 में कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में उल्लेखित वर्ग संघर्ष को हैसियत समूह का संघर्ष कहा है| 

  • हैसियत समूह- सामाजिक प्रणाली के अंदर उन लोगों का समूह जिनकी प्रजाति, परंपरा, उपभोग प्रतिमानों आदि के आधार पर एक जैसी हैसियत तथा एक जैसी जीवनशैली है|


वर्ग संघर्ष सिद्धांत की आलोचना-

  1. मानव इतिहास संघर्ष का इतिहास नहीं है|

  2. वर्ग की अस्पष्ट एवं दोषपूर्ण परिभाषा|

  3. समाज में केवल दो ही वर्ग नहीं होते हैं|

  4. मार्क्स की क्रांति संबंधित धारणा गलत सिद्ध हुई, क्योंकि श्रमजीवी क्रांति अभी तक नहीं हुई है|

  5. मार्क्स की भविष्यवाणी का वैज्ञानिक आधार नहीं है| लास्की ने लिखा है कि “हो सकता है पूंजीवाद के विनाश का परिणाम साम्यवाद न हो, बल्कि अराजकता हो जिसमें से एक ऐसे अधिनायक तंत्र का जन्म हो सकता है जिसका कि सिद्धांत में साम्यवादी आदर्शों से कोई संबंध न हो|”


वर्ग चेतना-

  • जब एक जैसे आर्थिक हित के लोग अपने सामान्य हित को पहचानते हैं और सामान्य हित की सिद्धि के लिए संगठन बनाने की प्रेरणा मिलती है, तब वे वर्ग स्थिति से वर्ग चेतना की अवस्था में पहुंचते हैं| 

  • अर्थात जब तक एक जैसी आर्थिक स्थिति रखने वाले लोगों में परस्पर समुदाय भावना या राजनीतिक संगठन बनाने का विचार नहीं आता, तब तक उन्हें सही-सही अर्थ में वर्ग की संज्ञा नहीं दी जा सकती है और ना ही उनमे वर्ग चेतना होती हैं|

  • सामंतवाद के अंतर्गत बहुत सारे किसान अलग-अलग जमींदारों के प्रभुत्व के अधीन दूर-दूर बिखरे रहते हैं, अत: उनमे सामान्य हित को पहचानने की प्रवृत्ति नहीं पनप पाती है| 

  • लेकिन वही पूंजीवाद में बहुत सारे कारखाने एक दूसरे के निकट स्थापित होते हैं और वहां बहुत सारे कामगार रहते हैं| अत: उन्हें आपसी मेलझोल के कारण सामान्य हित को पहचानने व संगठन बनाने की प्रेरणा मिलती है| तथा जिससे पूंजीवाद में कामगार वर्ग में प्रखर वर्ग चेतना जागृत होती है|

  • इस तरह वर्ग की उत्पत्ति तो आर्थिक आधार पर होती है, परंतु वह राजनीतिक संगठन बनाकर अपनी पहचान स्थापित करता है| 


  • जहां कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने माना कि वर्ग चेतना अंदर से आती है, वहीं कुछ बाद के मार्क्सवादी विचारको का मत अलग है| 

  • कार्ल कॉटस्की व लेनिन ने तर्क दिया कि कामगार वर्ग में वर्ग चेतना केवल बाहर से लाई जा सकती है| 

  • कार्ल कॉटस्की “वैज्ञानिक समाजवाद का ज्ञान केवल कुशल वैज्ञानिकों की बस की बात है|” 

  • लेनिन “कामगार में वर्ग चेतना के संचार के लिए नए संगठन की आवश्यकता होगी, जो व्यावसायिक क्रांतिकारियों का दल होगा|” 


  • रोजा लक्जमबर्ग “कामगार वर्ग को स्वयं वर्ग संघर्ष का सामाजिक अनुभव प्राप्त करके अपने अंदर वर्ग चेतना विकसित करनी चाहिए| यदि बौद्धिक विशिष्ट वर्ग सर्वहारा का संरक्षक बनने की कोशिश करेगा तो सर्वहारा स्वयं कमजोर और निष्क्रिय हो जाएगा|”

  • ल्यूकाच (History and Class Consciousness 1923) “वर्ग चेतना वर्ग विशेष के इतिहास के साथ जुड़ी रहती है, वर्ग चेतना कुछ सुलझे हुए लोगों के मन में पैदा होगी, जो संपूर्ण सामाजिक विचारों को ध्यान में रखकर उपयुक्त विचारों और कार्यवाही के बारे में निर्णय कर सकेंगे|” 

  • लेकिन वर्ग चेतना के बारे में कार्ल कॉटस्की, लेनिन, ल्यूकाच के दृष्टिकोणों के साथ यह समस्या पैदा होती है कि एक राजनीतिक विशिष्ट वर्ग स्वयं वर्ग चेतना पर एकाधिकार का दावा कर सर्वहारा का ठेकेदार बन बैठेगा और जिससे असली सर्वहारा की आवाज दब कर रह जाएगी| पोलैंड, हंगरी, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया, रोमानिया और सोवियत संघ जैसे समाजवादी देशों में में ऐसा देखने को मिला| 



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