मार्क्स के पूंजीवाद पर विचार-
पूंजीवाद में व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से उत्पादन किया जाता है, न कि सामाजिक हित की दृष्टि से|
पूंजीवाद में विशाल उत्पादन तथा एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है|
पूंजीवाद कृत्रिम आर्थिक संकटों का जन्मदाता है| जैसे-उत्पादित माल को नष्ट कर माल का कृत्रिम अभाव पैदा करता है|
पूंजीवाद में अतिरिक्त मूल्य पर पूंजीपतियों का अधिकार होता है|
पूंजीवाद में श्रमिक में वैयक्तिक चरित्र का लोप होकर उसका यंत्रीकरण हो जाता है| वह यंत्रों का दास बन जाता है|
पूंजीवाद श्रमिकों में असंतोष पैदा कर उन्हें एकता की ओर अग्रसर करता है|
पूंजीवाद अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक आंदोलन का जन्मदाता है|
पूंजीवाद का नाश निश्चित है|
कार्ल मार्क्स ने कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में जहां एक तरफ पूंजीवाद का शोषणकारी व नकारात्मक पहलू पेश किया है, वहीं तीन कारणों के आधार पर इसकी प्रशंसा भी की है, जो निम्न है-
उत्पादन के साधनों व तकनीक में क्रांतिकारी परिवर्तन-
कार्ल मार्क्स ने लिखा है कि “पूंजीवाद की शानदार उपलब्धियों के सामने मिस्र के पिरामिड, रोमन की नहरें और गोथिक भवन फीके पड़ गए हैं| इसने ऐसे अभियान चलाए हैं, जिनके सामने राष्ट्रों के सारे प्रसार और धर्म युद्ध कुछ भी नहीं है|”
बहुराष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का प्रचार-
राष्ट्रीय सीमाओं के पार कच्चे माल व बाजार की खोज से बहुराष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का प्रसार होता है|
भौगोलिक सामीप्य व शहरी सभ्यता का विकास
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