अर्थशास्त्र-
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र नामक राजनीति पर एक ग्रंथ लिखा|
वी आर मेहता (भारतीय राजनीतिक चिंतन के आधार) ने लिखा है कि “राजनीति पर कौटिल्य के दो प्रसिद्ध ग्रंथ है- चाणक्य नीति व अर्थशास्त्र| चाणक्य नीति भूमिका प्रदान करती है, एवं अर्थशास्त्र चाणक्य नीति में वर्णित सिद्धांतों का राज्य में क्रियान्वयन दर्शाता है|”
19 वी सदी तक इस ग्रंथ की जानकारी नहीं थी|
सर्वप्रथम 1905 ई. में तंजौर के एक ब्राह्मण ने कौटिल्य अर्थशास्त्र की एक हस्तलिखित पांडुलिपि (ताड़ के सूखे पत्तों पर) तत्कालीन मैसूर रियासत की प्राच्य पुस्तकालय (गवर्नमेंट ओरिएंटल लाइब्रेरी) को भेंट की, उस समय इस पुस्तकालय के अध्यक्ष रूद्रपटनम शाम शास्त्री के प्रयत्नों से 1909 में इस ग्रंथ का सर्वप्रथम प्रकाशन हुआ|
अर्थशास्त्र की रचना और रचनाकाल-
अर्थशास्त्र ग्रंथ के लेखक व रचनाकाल के संबंध में दो मत हैं-
प्रथम मत-
इस मत के अनुसार रचनाकार मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु एवं महामंत्री आचार्य विष्णुगुप्त शर्मा या कौटिल्य
रचनाकाल- ई. पू. तीसरी सदी
मत के समर्थक- शाम शास्त्री, के पी जायसवाल, राधामुकुंद मुखर्जी, P V काणे, जे.एफ फ्लीट, जे.जे मेयर, स्टेन कोनॉव, स्मिथ आदि|
दूसरा मत-
इस मत के अनुसार अर्थशास्त्र अज्ञात विद्वान द्वारा लिखा गया एक अप्रमाणिक ग्रंथ है, जिसने कौटिल्य नामक कल्पित नाम से रचना की|
रचनाकाल- ईसा की प्रथम सदी से चौथी सदी के मध्य
समर्थक- विंटरनित्ज, जौली, ए.बी कीथ, ई एच जॉनसन, अरविंद नाथ बोस, हेमचंद्र राय चौधरी|
जौली “कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक धोखा देने वाली चीज है, जिसे संभवत तीसरी शताब्दी में तैयार किया गया था|”
आर जी भंडारकर इसे प्रथम शताब्दी की रचना मानते हैं|
डॉ श्याम लाल पांडे “प्रस्तुत अर्थशास्त्र चाहे मौर्य काल की रचना हो या उसके पश्चात की रचना हो, परंतु यह अवश्य मानना पड़ेगा कि इसमें राज्यशास्त्र से संबंधित जिन सिद्धांतों की स्थापना की गई है, वे मौर्यकालीन ही है|”
अर्थशास्त्र की विषय वस्तु-
अर्थशास्त्र शुक्र और बृहस्पति की वंदना से प्रारंभ होता है|
अर्थशास्त्र दंडनीति अर्थात राजनीति व शासन कला पर लिखा गया ग्रंथ है| जैसा इसका नाम अर्थशास्त्र है उस तरह यह अर्थव्यवस्था पर नहीं है| प्राचीन भारत में राजनीति शास्त्र को दंडनीति कहा जाता था, तथा इसे ही (दंडनीति को) अर्थशास्त्र भी कहा जाता था|
महाकवि दंडी ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र को दंडनीति कहा है|
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के प्रथम अध्याय में कहा है कि वे दंडनीति की विवेचना कर रहे हैं|
वी आर मेहता अर्थशास्त्र को प्रशासन पर लिखा हुआ ग्रंथ मानते हैं| वी आर मेहता “वास्तव में अर्थशास्त्र प्रशासन पर लिखा गया ग्रंथ अधिक है, ना की राजनीति अथवा शासन के लाभ पर|”
अर्थशास्त्र में कूटनीति पर विस्तार से चर्चा की गई है|
अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने आपदा प्रबंधन पर भी विस्तार से चर्चा की है तथा विपत्तियां या संकटों के आठ प्रकार बताए है- अग्नि, जल, बीमारी, दुर्भिक्ष, चूहे, व्याघ्र, राक्षस आदि|
कौटिल्य ने अपने ग्रंथ में अर्थ एवं अर्थशास्त्र की संक्षिप्त परिभाषा दी है|
कौटिल्य के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा- “मनुष्यों की जीविका को अर्थ कहा जाता है और मनुष्य से युक्त भूमि को भी अर्थ कहते हैं, जो शास्त्र इस भूमि को प्राप्त करने का तथा इस भूमि की रक्षा करने का उपाय बताता है, उसे अर्थशास्त्र कहते हैं|”
अर्थात अर्थशास्त्र से कौटिल्य का आश्य दंडनीति (राज्यशास्त्र) से है|
कौटिल्य अर्थशास्त्र में सभी शास्त्रों को सम्मिलित करके उसका व्यापक अर्थ बताते हैं| जैसे कौटिल्य के शब्दों में “संपूर्ण शास्त्रों का क्रमबद्ध अध्ययन करके और उनके प्रयोगों को भली-भांति समझ कर ही राजा के लिए इस शासन विधि की रचना की है|”
अर्थशास्त्र में कुल 15 अधिकरण है-
पहला अधिकरण : राजवृत्ति निरूपण या विनियाधिकरण- इसमें राजा के जीवन व उससे संबंधित समस्याओं के बारे में बताया है| इसके अलावा अमात्यो की नियुक्ति, गुप्तचर व्यवस्था, राजा की स्वजनों से रक्षा, राजभवन निर्माण, विभिन्न विधाओं पर विचार, विष प्रतिकार उपाय आदि का वर्णन है|
दूसरा अधिकरण: अध्यक्ष प्रचार- इसमें विभिन्न विभागों के अध्यक्षों की नियुक्ति तथा उनके कार्यों का वर्णन है| इसके अलावा जनपदों तथा दुर्गों के निर्माण का भी विवरण है|
तीसरा अधिकरण: न्याय का निरूपण या धर्मस्थीय- इसमें धर्मशास्त्र के अनुसार न्याय विभाग का संगठन, विभिन्न प्रकार के विवादों, न्यायिक प्रक्रिया का वर्णन है|
चौथा अधिकरण: कण्टक शोधन- इसमें विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए दंड विधान का उल्लेख है|
पांचवा अधिकरण: योगवृत्त निरूपण- इसमें राज्यभृत्यो के कर्तव्यों का तथा उनमें से जो अराजभक्त हो उसके लिए दंड नियमों का वर्णन है| जैसे कोश का संग्रह, राज्यभृत्यो का भरणपोषण, व्यवहार आदि का|
छठवां अधिकरण: प्रकृतियों का निरूपण या मंडलयोनि- इसमें सप्तांग सिद्धांत व राज्य मंडल के विभिन्न राज्यों की प्रकृति व गुण तथा शत्रु राज्य को वश में करने के उपायों का वर्णन है|
सातवां अधिकरण: षडगुणों का निरूपण- इसमें षडगुण नीति की उद्देश्य, प्रकार, उनकी उपयोगिता, तथा व्यवहारिक प्रयोगों पर विचार किया गया है, जिसके आधार पर शत्रु, मध्यम, उदासीन राज्य को वश में किया जा सके|
आठवां अधिकरण: व्यसनों का निरूपण या व्यसनादिकारिक- इसमें कौटिल्य ने राज्यों की विपत्तियों का कारण व्यसन बताया है, तथा इन्हें दूर करने के उपाय बताए हैं|
नवां अधिकरण: आक्रमण का निरूपण या अभियास्यत्कर्म- इसमें आक्रमण से पहले की जाने वाली तैयारियों का विवरण है| सैन्य शक्ति व देश के बल पर विचार, आक्रमण का समय आदि|
दसवां अधिकरण: युद्ध का निरूपण या संग्रामिक- इसमें युद्ध में शत्रु पर विजय प्राप्ति के लिए युद्ध नियमों का वर्णन है| जैसे सैन्य छावनी का निर्माण, युद्ध के दौरान अपनी सेना की रक्षा, सैन्य व्यूह आदि|
ग्यारहवां अधिकरण: संघवृत्त निरूपण या संघवृत्त- इसमें संघ राज्यो (दो या दो से अधिक राज्यों का संगठन) का विनाश करने के लिए उनमें भेद डालने के उपायों की विवेचना है| जैसे- भेदक प्रयोग, उपाशुदंड|
बारहवां अधिकरण: अबलीयस का निरूपण- इसमें निर्बल राजा द्वारा बलवान राजाओं के प्रतिकार के उपायों का वर्णन है| जैसे- इतकर्म, राजमंडल की मदद, सेनापतियों का वध|
तेहरवां अधिकरण: दुर्ग प्राप्ति के उपायों का निरूपण या दुर्गलंभोपाय- इसमें शत्रु के दुर्ग पर अधिकार करने के उपायों का वर्णन है|
चौदहवां अधिकरण: औपनिषदिक निरूपण- इसमें शत्रु पर विष, जादू, टोना आदि के प्रयोग की विधि बताई गई है|
पन्द्रहवां अधिकरण: तंत्रयुक्ति का निरूपण- इसमें निर्णय सम्बन्धी युक्तियों व अर्थशास्त्र की सामान्य विवेचना की गई है|
अर्थशास्त्र की रचना गद्य व पद्य दोनों में की है, किंतु अधिकांश भाग गद्य का है|
गद्य भाग: यह सूत्रों के रूप में है, जिनकी व्याख्या भाष्य भी कौटिल्य ने प्रस्तुत की थी|
पद्य भाग: इस भाग में कुल 375 श्लोक हैं| अधिकांश श्लोक प्रत्येक अध्याय के अंत में निष्कर्ष के रूप में लिखे हैं|
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