कौटिल्य की अध्ययन पद्धति-
कौटिल्य की लेखन शैली तर्कपूर्ण व बुद्धिप्रधान है| यह एक यथार्थवादी राजशास्त्री थे, जिसने आगमनात्मक पद्धति को अपनाया है| इसी के साथ मनोवैज्ञानिक पद्धति को भी अपनाया है|
आगमनात्मक पद्धति की उपपद्धति- ऐतिहासिक, पर्यवेक्षणात्मक, प्रयोगात्मक
अर्थशास्त्र का महत्व-
प्राचीन भारतीय राजनीति शास्त्र में कौटिल्य का अर्थशास्त्र एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी तुलना अरस्तु की पुस्तक राजनीति (Politics) से की जा सकती है|
यह व्यवस्थित सिद्धांत देने वाला प्रथम भारतीय ग्रंथ है|
अर्थशास्त्र से प्राचीन भारतीय राजनीति, समाज, उस समय की राजनीतिक समस्याओं की जानकारी मिलती है|
कौटिल्य ने राजनीति के प्रति यथार्थवादी (जो है, उसी का वर्णन, ना की कल्पनालोक) दृष्टिकोण को अपनाया है|
इसमें राज्यशास्त्र को एक स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता दी है, उसे धर्मशास्त्र के बंधन से मुक्त किया है| ऐसा करने वाला प्रथम भारतीय विचारक हैं|
अर्थशास्त्र ने भारत को एक सुदृढ़ और केंद्रीयकृत शासन दिया है, जिसके संबंध में पहले के विचारक अनभिज्ञ थे|
प्राचीन भारतीय राजनीति शास्त्र के इतिहास में कौटिल्य प्रथम प्रमुख विचारक है, जिसने धर्म व राजनीति के पृथक्करण पर बल दिया है व धर्म को राजनीति का अनुचर बताया है|
कौटिल्य ने समस्त राजनीतिक चिंतन का आधार अर्थ को बताया है
कौटिल्य के अनुसार इहिलोक के धर्म, अर्थ, काम इन तीनों पुरुषार्थो में अर्थ का सम्मान प्रमुख है|
कौटिल्य की रचना का प्रभाव अनेक भारतीय विद्वानों पर देखा जाता है| जैसे- महाकवि कालिदास का कुमार संभव, रघुवंश, शाकुंन्तलम, दंडी का दशकुमार चरित, विशाखदत्त की मुद्राराक्षस, वात्सायन का कामसूत्र, याज्ञवल्क्य स्मृति, अग्निपुराण तथा मत्स्यपुराण पर अर्थशास्त्र का प्रभाव दिखता है|
कामन्दक की नीतिसार, सोमदेव सूरी की नीतिवाक्यम पर भी अर्थशास्त्र का अत्यधिक प्रभाव है, जिनको अर्थशास्त्र का संक्षिप्त सार भी कहा जाता है|
विशाखदत्त की मुद्राराक्षस में कौटिल्य का नकारात्मक चित्रण है|
रामास्वामी “कौटिल्य अर्थशास्त्र पूर्व की रचनाओं में इधर-उधर फैली राजनीतिक बुद्धिमता और शासन कला के सिद्धांतों का एक संग्रह है| कौटिल्य ने शासन कला को एक पृथक तथा विशिष्ट विज्ञान का रूप देने के प्रयत्न में उनको नए रूप में विवेचित किया है|”
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार व भारतीय कूटनीतिज्ञ शिवशंकर मेनन ने अर्थशास्त्र के बारे में कहा है कि “अर्थशास्त्र का सामने आना चाहे सही हो या गलत, लेकिन राष्ट्रवादियों के लिए चेतना का निर्माण करने, भारत के अपने अतीत और वह क्या कर सकता है, उसे लेकर एक नवीन बोध तैयार करने में सहायक रहा है|”
शिवशंकर मेनन “कौटिल्य उन्हीं समस्याओं के बारे में सोच रहा था, जिनके बारे में हम सोचते हैं| वह ऐसी स्थिति में था, जब कई राज्य थे, यह वैसी ही बहुध्रुवीय दुनिया थी, जैसी आज है|”
कवी भारवि (पुस्तक- किरातार्जुनीयम) ने कौटिल्य के सिद्धांत को स्वीकार करते हुए कहा कि “आत्म नियंत्रण द्वारा राजा नहीं, बल्कि सन्यासी ही सफलता प्राप्त करते हैं|”
कालिदास, विशाखदत्त और सोमदेव ने कौटिल्य को शासन कला का महानतम प्रणेता माना है|
डॉ. अलतेकर “राजनीति शास्त्र में अर्थशास्त्र का वही स्थान है, जो व्याकरण में पाणिनि की अष्टाध्यायी का है|
अर्थशास्त्र की आलोचना-धर्म के बजाय अर्थ को महत्वपूर्ण मानने के कारण बाण (पुस्तक- कादंबरी) तथा माघ (पुस्तक- शिशुपाल वध) ने कौटिल्य के सांसारिक सफलता के सिद्धांतों को छल के भौतिकवादी सिद्धांत कहा तथा उनकी आलोचना की|
कौटिल्य का सामाजिक दर्शन-
अर्थशास्त्र मूलत:राजनीति पर ग्रंथ है, लेकिन इसमें समाज के संगठन व नियमों का भी विचार मिलता है|
तत्कालीन भारत राजनीतिक अव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक अव्यवस्था के दौर से भी गुजर रहा था|
कौटिल्य ने सामाजिक समझौते के रूप में विचार प्रस्तुत किया कि “शक्तिशाली एवं प्रजा कल्याण के लिए प्रतिबंध राज्य के बिना एक व्यवस्थित समाज की स्थापना नहीं हो सकती है, अर्थात सुव्यवस्थित समाज की स्थापना के लिए शक्तिशाली एवं प्रजा कल्याणकारी राज्य की आवश्यकता है|”
कौटिल्य ने सामाजिक जीवन को धर्म आधारित माना है|
वर्ण व्यवस्था-
कौटिल्य ने प्राचीन भारतीय परंपरा की तरह समाज के संगठन का आधार वर्णव्यवस्था को माना है|
कौटिल्य का वर्ण व्यवस्था से संबंधित दृष्टिकोण मनु से उदार था| कौटिल्य शुद्र को भी आर्य समुदाय का सदस्य मानता है तथा शूद्र को संपत्ति का अधिकार भी देता है|
आश्रम व्यवस्था-
कौटिल्य ने प्राचीन वैदिक परंपरा की चार आश्रम की व्यवस्था को स्वीकार किया है-
(1) ब्रह्मचार्य (2) गृहस्थ (3) वानप्रस्थ (4) सन्यास
कौटिल्य ने युवावस्था के पुरुषों द्वारा सन्यासी या भिक्षुक बनने का विरोध किया है और उसे दंडनीय माना है|
विवाह व तलाक-
कौटिल्य ने 12 वर्ष की लड़की एवं 16 वर्ष के लड़के को विवाह योग्य माना है|
आठ प्रकार के विवाह को वैध माना है- ब्रह्म, प्रजापत्य, आर्ष, देव, गंधर्व, असुर, राक्षस, पैशाच| प्रथम चार में तलाक की अनुमति नहीं थी, अन्य चार में थी| विधवा विवाह कर सकती है|
दास प्रथा-
कौटिल्य के अनुसार केवल मलेच्छ जाति के स्त्री- पुरुषों को दास बनाया जा सकता है, आर्य जाति को नहीं| मलेच्छ जाति के लोग अपनी संतान बेच या गिरवी रख सकते हैं|
कौटिल्य के अनुसार दास दो प्रकार के- (1) उदार दास (2) अहितक दास
उदार दास- आजीवन दास रहते थे, मुक्ति नहीं हो सकती थी|
अहितक दास- ऋण के बदले गिरवी के रूप में होते थे, मुक्ति संभव है|
कौटिल्य ने दासता को वंशानुगत नहीं माना है, अर्थात दास की संतान स्वतंत्र हो सकती है|
दास-दासी के प्रति क्रूर व्यवहार दंडनीय है तथा दासी के सतीत्व को भंग करना भी दंडनीय है|
वेश्यावृत्ति-
कौटिल्य ने वेश्यावृत्ति को वैध माना है|
मदिरापान-
कौटिल्य के अनुसार सूराध्यक्ष की देख-रेख में दुर्ग एवं जनपद के विभिन्न स्थानों पर सुराग्रहों के ठेके दिए जाते थे|
द्युत (जुआ)-
कौटिल्य के अनुसार राजा द्युताध्यक्ष की देखरेख में नियत स्थानों पर द्युतगृह (जुआ घर) चलाने की आज्ञा देता है|
स्त्री अधिकार-
कौटिल्य ने स्त्री के अधिकारों को स्वीकारा है| उन्हें संपत्ति का अधिकार दिया है|
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