कौटिल्य के राजा (स्वामी) संबंधी विचार-
राज्य के 7 अंगों में राजा सर्वोच्च एवं प्रधान अंग है| कौटिल्य राजतंत्र को सर्वोच्च शासन व्यवस्था मानता है|
पॉल-आरसल, डी आर भंडारकर तथा PV काणे के मत में कौटिल्य राजा और राज्य में भेद नहीं करता है, अर्थात इन्होंने राजा ही राज्य है का मत दिया है|
अर्थशास्त्र में राजा के चार गुण बताए गए है-
अभिगामिक गुण-
अभिगामिक का अर्थ है- राजा प्रजा को अपनी ओर आकर्षित करने वाला हो| राजा उच्च कुलीन, दैवी गुण संपन्न, बुद्धिमान, धर्मात्मा, सत्यभाषी, कृतज्ञ, दानी, दृढ़बुद्धि, विनयशील, अनुशासनशील तथा संयमी और पड़ोसी राजाओं को नियंत्रित करने की क्षमता रखने वाला हो, ताकि प्रजा खुद-ब-खुद उसकी ओर आकृष्ट हो|
प्रज्ञा गुण-
राजा विवेक, तर्क, विवेचन, समालोचन, तत्वज्ञान आदि गुणों से संपन्न यथार्थवादी होना चाहिए|
उत्साह गुण-
शौर्य, शीघ्रता, निपुणता व तत्परता के गुण राजा को उत्साही बनाते हैं|
आत्म संपन्न गुण-
स्मृतिवान, बलवान, दूरदर्शी, त्याग, संयम, संधि में दक्ष, काम-क्रोध-लोभ- मोह-चुगलखोरी से रहित आदि गुण राजा में होने चाहिए|
राजा की शिक्षा-
कौटिल्य ने युवराज (राजा) की शिक्षा पर बल दिया है| कौटिल्य के अनुसार उपनयन संस्कार के बाद राजकुमारों को चारों विद्याओं (त्रयी, आन्वीक्षिकी, वार्ता, दंडनीति) की शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए|
कौटिल्य “जिस प्रकार घुन लगी लकड़ी शीघ्र नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार जिस राजवंश के राजपूत शिक्षित नहीं किए जाते हैं, वह राजवंश युद्ध आदि के अभाव में स्वयं ही नष्ट हो जाता है|”
कौटिल्य “सुशिक्षा से शिक्षित राजा समस्त प्राणियों के हित में लगा हुआ और प्रजा के रक्षण में तत्पर रहता हुआ चिरकाल तक पृथ्वी का निष्कंटक भोग करता है|”
कौटिल्य ने शिक्षा पाठ्यक्रम में सैद्धांतिक व व्यावहारिक शिक्षा दोनों में उचित तालमेल स्थापित किया है|
राजा की दिनचर्या-
कौटिल्य ने दिन व रात्रि को 16 भागों में बांटा है- 8 भाग दिन के तथा 8 भाग रात्रि के| प्रत्येक भाग को नालिका (नाड़ीका) कहा है, जो 1:30 मिनट के बराबर होती है| इन नालिकाओ के आधार पर राजा के कार्यों का निर्धारण किया है|
कौटिल्य ने राजा की कल्पना राजर्षि (king Philosopher) के रूप में की है|
राजा परिस्थितियों एवं अपनी क्षमता अनुसार इस दिनचर्या में व्यवहारिक परिवर्तन कर सकता है|
यद्यपि कौटिल्य ने राजा को शासन की सर्वोच्च शक्ति प्रदान की है, किंतु उन्होंने राजा को निरंकुश एवं स्वेच्छारी नहीं माना है|
कौटिल्य ने अयोग्य राजा को गद्दी से उतारने और उनकी जगह दूसरा राजा बैठाने तथा अधर्मी और प्रजा का तिरस्कार करने वाले राजा को मारे जाने का समर्थन किया|
राजा के कार्य-
कौटिल्य “प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजा के हित में राजा का हित है| राजा के लिए प्रजा के सुख से भिन्न अपना सुख नहीं है|”
राजा के प्रमुख कार्य निम्न है-
वर्णाश्रम को बनाए रखना- अर्थात जनता के द्वारा वर्ण और आश्रम के नियमों का पालन करने को सुनिश्चित करना|
दंड की व्यवस्था करना- दंड न तो आवश्यकता से अधिक होना चाहिए, न हीं कम होना चाहिए, दंड उचित मात्रा में होना चाहिए| कौटिल्य दंड में असमानता का समर्थक है|
आय-व्यय संबंधी कार्य- राजा को आय-व्यय के हिसाब का कार्य समाहर्ता द्वारा करवाना चाहिए|
नियुक्ति संबंधी कार्य- अमात्य, सेनापति, प्रमुख कर्मचारियों की नियुक्ति|
लोकहित और सामाजिक कल्याण संबंधी कार्य
युद्ध संबंधी कार्य
कौटिल्य एक नए राजा की बजाय, अस्वस्थ पुराने राजा को ज्यादा श्रेष्ठ मानते हैं, क्योंकि पुराने राजा को परंपराओं का ज्ञान होता है तथा वह परंपराओं के नियंत्रण में रहता है|
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