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गणतंत्र पर कौटिल्य के विचार/ कौटिल्य का धर्म दर्शन || Kautilya's views on republic/Kautilya's religious philosophy || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

     गणतंत्र पर कौटिल्य के विचार-

    • कौटिल्य के मत में गणतंत्र से प्राप्त होने वाली सहायता; सेना, मित्र तथा लाभ से प्राप्त होने वाली सहायता से बेहतर है|

    • कौटिल्य ने दो प्रकार के गणतंत्रो का उल्लेख किया है-

    1. जिन्हें व्यापार तथा हथियारों का विशेष अनुभव

    2. जिन्हें राजा की पदवी प्राप्त हो



    कौटिल्य का धर्म दर्शन-

    • कौटिल्य ने धर्म को 4 रूपों में वर्गीकृत किया है-

    1. धर्म एक सामाजिक कर्तव्य के रूप में|

    2. धर्म सत्य पर आधारित नैतिक कानून के रूप में|

    3. धर्म एक नागरिक कानून के रूप में|

    4. धर्म, कर्मकांडों के निर्वहन के रूप में



    राजधर्म-

    • अर्थशास्त्र में स्वयं राजा के धर्म ‘राजधर्म’ की विस्तृत चर्चा की गई है| जो निम्न है-

    1. राजा को प्रजा रक्षा तथा प्रजा पालन के अपने दोनों दायित्वों का सत्यनिष्ठा से निर्वाह करना चाहिए|

    2. राजा को प्रजा के जीवन व संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए|

    3. कानून तथा व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए| 

    4. अपराधियों को दंड देना चाहिए|

    5. निष्पक्ष न्याय व्यवस्था की स्थापना करना|



    अपादधर्म- 

    • कौटिल्य ने कुछ मामलों में राजा को धर्म के अनुसार कार्य न करने की छूट दी है अर्थात अनैतिक कार्य करने की छूट दी है, जो निम्न है-

    1. दुष्ट एवं द्रोही राजकुमार को स्त्री, शराब या शिकार के बहाने पकड़कर बंद कर दिया जाए अथवा जंगली जातियों के किसी सरदार को उसके खिलाफ भड़काकर या विद्रोही सामंतों के द्वारा उसे धोखे से मारने का प्रबंध किया जाए|

    2. भ्रष्ट अधिकारियों को मारा जा सकता है|

    3. विरोधी नगरों, कुलो तथा गांवो को समाप्त किया जा सकता है|

    4. विरोधियों को समाप्त करने के लिए उनके बीच कलह कराई जाए तथा उनको धोखे से, जहर द्वारा या अन्य साधन से मरवा दिया जाना चाहिए|

    5. अंतर्राजीय संबंधों के निर्वहन में भी अनैतिक तथा धूर्ततापूर्ण उपाय अपनाए जा सकते हैं| 



    व्यवसायिक संगठन-

    1. श्रेणी- शिल्पिओं का संगठन

    2. संघ- मजदूरों का संगठन

    3. सम्यक समुथान- व्यापारियों का संगठन

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