धर्म संबंधी मार्क्स के विचार-
धर्म अफीम के समान है, जिसके नशे से व्यक्ति अपने दुख दर्द भूल जाता है|
धर्म पूंजीपतियों के द्वारा सर्वहारा के शोषण का आधार है|
धर्म वर्ग चेतना को खत्म करता है|
मार्क्स “धर्म पीड़ित लोगों की आह, बेदर्द दुनिया का दर्द तथा आत्मविहीन स्थितियों की आत्मा है| यह जनसाधारण के लिए अफीम है|”
Note- रेमंड आरा ने अपनी पुस्तक The Opinion of intellectuals में लिखा है कि “मार्क्सवाद बुद्धिजीवियों के लिए अफीम है|”
विचारधारा के संबंध में मार्क्स के विचार-
मार्क्स ने विचारधारा को मिथ्या चेतना कहा है|
मार्क्स “यह सर्वहारा के शोषण का आधार है| इसकी आवश्यकता पूंजीवादी समाज को है| सर्वहारा वर्ग को वर्ग चेतना की आवश्यकता है, न कि विचारधारा या मिथ्या चेतना की|”
Note- विचारधारा शब्द का सबसे पहले प्रयोग 1776 में विचारों के समूह के रूप में देसु द ट्रेसी ने किया था|
मार्क्स “विचारधारा उन विचारों का समुच्चय है, जिन्हें प्रभावशाली वर्ग अपने शासन की वैधता स्थापित करने के उद्देश्य से सारे समाज के लिए मान्य बना देता है|”
मार्क्स के अनुसार विचारधारा उन विचारों, विश्वासों व मूल्यों का समूह है, जो एक विशेष वर्ग के हितों को दर्शाते हैं| किसी भी समाज में प्रमुख मूल्य, विचार, विश्वास हमेशा शासक वर्ग के होते हैं, बाकि समाज के सदस्यों के लिए मिथ्या चेतना होते हैं|
विचारधारा विश्वास का विषय है, जो तर्क-वितर्क को समाप्त कर देती है|
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