मार्क्स का राज्य सिद्धांत-
राज्य की उत्पत्ति- मार्क्स के अनुसार राज्य की उत्पत्ति इतिहास प्रक्रिया में उस समय होती है, जब व्यक्तिगत संपत्ति की उत्पत्ति होती है तथा समाज संपत्तिवान तथा संपत्तिहीन दो परस्पर विरोधी हितों में बट जाता है| कार्ल मार्क्स समाज की इस अवस्था को दास युग कहता है|
राज्य उत्पत्ति का कारण- जब दास युग में स्वामी वर्ग अत्यधिक प्रभावशाली था, तो उसने अपनी संपत्ति की रक्षा तथा, दासो के दमन के लिए शक्ति का सहारा लिया तथा इस क्रिया द्वारा राज्य की उत्पत्ति हुई| अतः राज्य वर्ग संघर्ष से उत्पन्न संस्था है|
राज्य की प्रकृति- मार्क्स के मत में राज्य प्रकृति में एक वर्ग यंत्र या संस्था है, जिसका निर्माण शोषक वर्ग ने अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए किया, अतः राज्य एक शोषण का यंत्र है|
राज्य एक कृत्रिम संस्था है|
राज्य एक स्वायत्त संस्था नहीं है, बल्कि शोषक वर्ग के अधीन संस्था है|
प्रभुसत्ता- राज्य की प्रभुसत्ता वास्तव में शोषक वर्ग की प्रभुसत्ता है|
राज्य का उद्देश्य- राज्य का उद्देश्य शोषक वर्ग या पूंजीपति वर्ग के हितों की रक्षा करना है|
कार्ल मार्क्स के अनुसार इतिहास के किसी भी युग में पाई जाने वाली राज्य या राजव्यवस्था अपनी सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष होती है|
राज्य-विहीन समाज का उदय- मार्क्स के अनुसार राज्य स्थायी संस्था नहीं है| साम्यवाद में राज्य लुप्त हो जाएगा|
कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में कार्ल मार्क्स ने राज्य को पूंजीपतियों की कार्यसमिति कहा है|
कार्ल मार्क्स “बुजुर्वा लोकतंत्र अवसरानुकूल बुजुर्वा आतंक में बदल जाता हैं|”
Note- एंजिल्स के अनुसार राज्य “एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के दमन के लिए एक यंत्र मात्र है|”
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