रूसो की सामान्य इच्छा व गांधीजी-
गांधीजी ने रूसो की सामान्य इच्छा के उत्साह का समर्थन किया है|
दोनों ने समुदाय के हित पर बल दिया है|
किंतु रूसो ने समुदाय को राज्य के साथ मिला दिया है, जबकि गांधीजी ने दोनों को पृथक रखा है|
रूसो के लिए सद्गुणी जीवन का निर्माण करने एवं उसका पोषण करने के लिए राज्य का अस्तित्व आवश्यक है, लेकिन गांधीजी इसके विपरीत हैं, वे राज्य को नैतिकता का नाश करने वाला मानते हैं|
केंद्रीकरण का विरोध तथा विकेंद्रीकरण का समर्थन-
गांधीजी के मत में केंद्रीकरण हिंसा को बढ़ाता है, क्योंकि इसने समाज की अन्य विभिन्न इकाइयों की समानांतर इच्छाओं को नष्ट कर दिया है|
गांधीजी “यदि भारत को अहिंसक मार्ग से आगे बढ़ना है, तो उसे विकेंद्रीकरण करना ही होगा, क्योंकि समाज के अहिंसक ढांचे में एक प्रणाली के रूप में केंद्रीकरण असंगत है|”
गांधीजी राजनीतिक व आर्थिक दोनों ही प्रकार के केंद्रीकरण के विरोधी थे|
गांधीजी के मत में विकेंद्रीकरण लोगों को अपना उत्तरदायित्व समझने एवं अहिंसक बनने के लिए प्रेरित करेगा|
गांधीजी ने पंचायती राज की प्रणाली से प्रत्येक गांव को गणतंत्र में परिवर्तन करने के द्वारा समाज में शक्ति के विकेंद्रीकरण की वकालत की है|
गांधीजी पंचायतों को संपूर्ण शक्ति देने का समर्थन करते हैं|
समुद्री लहरों का सिद्धांत ((Oceanic circle theory)-
यह लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का सिद्धांत है, जो परंपरागत पिरामिड सिद्धांत से उल्टा है|
समुद्री लहरों का सिद्धांत सत्ता विभाजन की रूपरेखा बताता है|
गांधीजी ने एकात्मक राज्य के बजाय संघात्मक राज्य को बेहतर माना है, क्योंकि शक्तियों का एकत्रीकरण सत्ताधारी को भ्रष्ट कर देता है|
गांधीजी के स्वराज में सत्ता का बटवारा परंपरागत पिरामिड की तरह न होकर गोलाकार समुद्री लहरों का सा होगा|
इसमें सत्ता व्यक्ति से आरंभ होकर ग्राम, तालुका, जिला, प्रान्त, राष्ट्र, विश्व सरकार जैसे कभी न समाप्त होने वाले गोलाकार दायरे में फैलती जाएगी|
इस व्यवस्था का केंद्र बिंदु व्यक्ति होता है| गांधीजी की मान्यता थी कि जो इकाई व्यक्ति के जितने नजदीक हो उसके पास उतनी अधिक सत्ता और अधिक संसाधन होने चाहिए| ग्राम सभा व्यक्ति के सबसे नजदीक होगी, जिसमें गांव के सभी व्यस्क नागरिक प्रत्यक्ष रूप से भाग लेंगे|
सत्ता का समस्त केंद्र स्वावलंबी ग्राम होते हैं| ग्राम पंचायतों के पंचों का प्रत्यक्ष चुनाव होता है, जबकि बाकि इकाइयों का चुनाव अप्रत्यक्ष होता है|
इस सिद्धांत में लोकतांत्रिक संस्थाएं स्वायत्त भी होती हैं, साथ ही एक दूसरे पर आश्रित भी होती है|
गांधीजी ने दलीय प्रणाली की बजाय, दलविहीन लोकतंत्र का समर्थन किया है|
सात घातक पाप का सिद्धांत (Seven Deadly Sins)-
महात्मा गांधी ने 22 अक्टूबर 1925 को यंग इंडिया में प्रकाशित अपने लेख में सात सामाजिक पापों का उल्लेख किया है, जो नैतिकता व राजनीति की दृष्टि से प्रत्येक काल में प्रासंगिक हैं|
ये सात पाप निम्न है-
कार्य के बिना धन (Wealth Without Work)
अंतकरण के बिना आनंद (Pleasure Without Conscience)
चरित्र के बिना ज्ञान (Knowledge Without Character)
नैतिकता के बिना व्यवसाय (Commerce/ Business Without Morality/ Ethics)
मानवता के बिना विज्ञान (Science Without Humanity)
बलिदान/ त्याग के बिना धर्म (Religion without Sacrifice)
सिद्धांत के बिना राजनीति (Politics Without Principle)
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