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कार्ल मार्क्स की रचनाएं // Writings of Karl Marx || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

     कार्ल मार्क्स की रचनाएं-

    1. On the Jewish question (1843)

    2. Economic and Philosophical Manuscript (1844) या पेरिस पांडुलिपिया 

    3. Thesis on Feuerbach 1845

    4. The Holy Family (1845)

    5. The Poverty of philosophy (1847)

    6. The communist manifesto (1848) 

    7. Class Struggle in France 1850

    8. The Critique of Political Economy (1859)

    9. Inaugural Address to the international working men's Association (1864)

    10. Value, Price and Profit (1865)

    11. Das Kapital (1867)

    12. The civil War in france (1870-71)

    13. The Gotha program 1875 

    14. An introduction to the criticism Hegel's Philosophy of right (1844)


    कार्ल मार्क्स व एंजिल्स निम्न पुस्तकों के सह लेखक थे-

    1. The Holy Family (1845)

    2. The German ideology (1845)

    3. The communist manifesto (1848)


    On The Jewish Question 1843-

    • इस पुस्तक में कार्ल मार्क्स ने विचार दिया कि ‘पैसा ईश्वर से महत्वपूर्ण है, धन मनुष्य के श्रम एवं जीवन का सार है| यह सार उस पर प्रभुत्व जमाता है और मनुष्य उस धन की पूजा करता है|’


    Economic and Philosophical Manuscript 1844-

    • इसमें मार्क्स ने निम्न विचार दिया-

    • मानव का सार श्रम है|

    • व्यक्ति अपनी नैतिक क्षमता, तर्क बुद्धि व विचारों के कारण नहीं, बल्कि श्रम करने की क्षमता के कारण पशुओं से अलग है| 

    • श्रम करने की क्षमता का तात्पर्य है- प्रकृति के साथ मानव की अंतक्रिया|  

    • यह कृति 1932 तक अज्ञात थी| 1932 में इसका प्रकाशन पहली बार हुआ| 


    The German Ideology 1845-

    • इसमें द्वंदात्मक भौतिकवाद का वर्णन है|

    • इसमें विचारधारा को छदम चेतना या मिथ्या चेतना कहा है| 


    Thesis on Feuerbach (1845)-

    • इस पुस्तक में कार्ल मार्क्स ने कल्पनालोकी समाजवादियों की आलोचना की है| 

    • कार्ल मार्क्स “समस्या व्याख्या की नहीं, बल्कि दुनिया बदलने की है|”

    • कार्ल मार्क्स ने इस पुस्तक में लिखा है कि “दर्शन का अंतिम कार्य केवल वास्तविकता को समझना नहीं है, बल्कि उसे बदलना भी है| अपने कार्य द्वारा मनुष्य वर्तमान परिस्थितियों में आमूल परिवर्तन कर सकता है|” 


    Communist Manifesto (1848)-

    • यह ग्रंथ साम्यवादी दर्शन और क्रांति प्रक्रिया का मूल आधार है| जिसमें सर्वहारा वर्ग की क्रांति की भविष्यवाणी की गई है| 

    • इस ग्रंथ का यह पहला वाक्य ही यूरोप के शासकों में भय का संचार कर देता है कि “साम्यवाद का भूत यूरोप भर में व्याप्त हो रहा है| इस भूत को भगाने के लिए पॉप और जार, मेटरनिख और गीजाट, फ्रांस के क्रांतिकारी और जासूस सब मिल गए हैं, लेकिन यह बढ़ता ही जा रहा है|”

    • इसी ग्रंथ में उन्होंने लिखा है कि “दुनिया के मजदूरों संगठित हो जाओ, अपनी बेड़ियों और दासता के सिवाय तुम कुछ नहीं खोओगे तथा एक नई दुनिया प्राप्त करोगे|”

    • इस पुस्तक में कार्ल मार्क्स ने लिखा है कि “मजदूरों का कोई देश नहीं होता है|”

    • इसी पुस्तक में कार्ल मार्क्स ने लिखा है कि “राज्य पूंजीपतियों की कार्य समिति है|”


    Critique of Political Economy (1859)-

    • इसमें आर्थिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है|

     

    Das Kapital 1867-

    • कार्ल मार्क्स का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ है| मार्क्स का संपूर्ण परिचय इस ग्रंथ में मिलता है| इस पुस्तक को ‘समाजवादी साहित्य पर सर्वश्रेष्ठ प्रमाणिक ग्रंथ’, ‘साम्यवादी सिद्धांतों की आधारशिला’, ‘श्रमिकों का ग्रंथ’, ‘ धनीको का दिमाग ठंडा करने वाला नुस्खा’ कहा जाता है|

    • इस ग्रंथ का मूल विचार यह है

    1. उत्पादन के साधनों के केंद्रीकरण के फलस्वरुप मजदूरों का सामाजिकरण होता है|

    2. मजदूरों का पूंजीवादी ढांचे से मेल नहीं बैठता है तथा पूंजीवादी ढांचा तोड़ दिया जाता है|

    3. जिससे व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त हो जाती है और शोषण करने वाले खत्म कर दिए जाते हैं| 

    4. पूंजीवादी युग की जगह औद्योगिक समाज का निर्माण होता है, जिसमें भूमि और संपत्ति के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व रहता है|


    • Das capital के तीन Volume है- 

    1. Volume-1 (1867)

    2. Volume-2 (1885)

    3. Volume-3 (1894)

     

    • Note- Das Kapital, प्रथम खंड (1867) मार्क्स जीवनकाल में प्रकाशित किया गया था, लेकिन मार्क्स की 1883 में मृत्यु हो गई। कैपिटल, खंड द्वितीय (1885) और कैपिटल, खंड III (1894), जिसका संपादन मार्क्स के दोस्त एवं सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स ने किया और मार्क्स के काम के रूप में प्रकाशित किया।


    • Note- अपनी मृत्यु के समय (1883), मार्क्स ने दास कैपिटल, खंड IV के लिए पांडुलिपि तैयार की थी, जो उनके समय, 19वीं सदी के अधिशेष मूल्य के सिद्धांतों का एक महत्वपूर्ण इतिहास है| दार्शनिक कार्ल कॉटस्की (1854-1938) ने मार्क्स के अधिशेष-मूल्य आलोचना का एक आंशिक संस्करण प्रकाशित किया| और बाद में Theorien uber den Mehrwert (अधिशेष मूल्य के सिद्धांत, 1905-1910) के रूप में एक पूर्ण, तीन-खंड संस्करण प्रकाशित किया|


    Critique the Gotha program 1875 

    • 1875 में जर्मनी के गोथा शहर में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने सार्वभौमिक मताधिकार, संघ की स्वतंत्रता काम के घंटो का निर्धारण, स्वास्थ्य के अधिकार आदि समाजवादी मांगों का निर्धारण किया, जिसको गोथा प्रोग्राम कहा जाता है| मार्क्स ने इसकी आलोचना की|

    • इसमें मार्क्स ने यूरो साम्यवाद, जो लोकतांत्रिक साम्यवाद के समतुल्य था, की आलोचना की है| 

    • इसमें मार्क्स ने सर्वहारा की तानाशाही का समर्थन किया है|


    समाचार पत्र-

    • कार्ल मार्क्स ने जर्मनी के ‘राइन समाचार’ पत्र में लेख लिखें| ‘जर्मन- फ्रांसीसी वार्षिकी’ का संपादन किया| पेरिस से जर्मन भाषा में निकलने वाले समाचार पत्र ‘आगे बढ़ो’ में भी इनके लेख प्रकाशित हुए| लंदन आने के बाद ‘न्यूयॉर्क डेली ट्रिब्यून’ में सप्ताह में उनके दो लेख छपने लगे थे| 

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