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अरविंद की मानव एकता व विश्व संघ की धारणा // Arvind's concept of human unity and world federation || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

 अरविंद की मानव एकता व विश्व संघ की धारणा-

  • अरविंद ने अपनी रचना The ideal of human Unity में विश्व संघ की अवधारणा प्रस्तुत की है|

  • अरविंद मानवतावादी विचारक होने के कारण विश्व में मानव की एकता और अंतरराष्ट्रीयवाद का समर्थन करते हैं|

  • इनका विश्व संघ स्वतंत्र राष्ट्रीयताओं का विश्व संघ होगा, जिसमें पराधीनता, असमानता व दासता के लक्षण नहीं होंगे|

  • विश्व संघ की यह धारणा मानवीय स्वतंत्रता, मानवीय समानता व मानवीय बंधुता के सिद्धांत पर आधारित होगी, जिसका अंतिम आदर्श मानवीय एकता होगा तथा आधारशिला स्वतंत्रता होगी|

  • अरविंद के अनुसार मानव एकता का आदर्श विश्व संघ एक दिन अवश्य बनेगा, क्योंकि मानव प्रकृति से बड़े संगठनों का निर्माण करता है जैसे क्रम से परिवार, कबीले, ग्राम, राज्य का संगठन मनुष्य ने किया है वैसे ही अंततः वह विश्व संघ का निर्माण करेगा|

  • विश्व संघ विविधता में एकता पर आधारित होगा|

  • इस व्यवस्था में मनुष्य को स्थान, जाति, संस्कृति, आर्थिक सुविधा के अनुसार अपने-अपने समूह बनाने का अधिकार होगा, लेकिन यह समूह संपूर्ण मानव जाति के हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करेंगे| शक्ति पर आधारित व कृत्रिम समूह को इस व्यवस्था में कोई स्थान नहीं होगा|


  • उनके अनुसार विश्व संघ का निर्माण निम्न प्रकार होगा-

  1. स्वतंत्र राष्ट्रों को संगठित होने की आवश्यकता है|

  2. इसके पश्चात संगठित राष्ट्र, पारस्परिक मतभेद एवं स्वार्थ मिटाकर, अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाकर विश्व संघ का निर्माण करेंगे|


  • अरविंद “मानव मस्तिष्क उच्चतम है, लेकिन यह दैवीय चेतना से निम्न है| ईश्वर सुपर माइंड (अति मानस) के द्वारा मानव मस्तिष्क में चेतना का प्रवाह करते हैं|”

  • अरविंद ने विश्व संघ की धारणा की सबसे बड़ी बाधा राष्ट्र राज्य की अतिवादी धारणा को बताया है| उन्होंने इस धारणा को सामूहिक अहमवाद की संज्ञा दी है और कहा कि स्वतंत्र विश्व संघ की स्थापना यदि करनी है तो इस सामूहिक अहमवाद में आवश्यक संशोधन करना होगा और मानवता का आध्यात्मिक धर्म अपनाना होगा|

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