अधिकार संबंधी विचार-
अरविंद अधिकारों को व्यक्ति के विकास के लिए अनिवार्य मानते थे|
उनके अनुसार स्वतंत्र राष्ट्र में व्यक्ति को तीन अधिकार मिलने चाहिए-
स्वतंत्र प्रेस और अभिव्यक्ति का अधिकार
स्वतंत्र सामाजिक सभा करने का अधिकार
संगठन बनाने का अधिकार
स्वतंत्रता संबंधी विचार-
स्वतंत्रता को अरविंद अत्यधिक महत्व देते है और राष्ट्रीय विकास के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता जरूरी मानते थे|
अरविंद ने तीन प्रकार के स्वतंत्रता बतायी है-
राष्ट्रीय स्वतंत्रता
आंतरिक स्वतंत्रता
व्यक्तिगत स्वतंत्रता
राष्ट्रीय स्वतंत्रता- विदेशी नियंत्रण से मुक्ति ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता है|
आंतरिक स्वतंत्रता- किसी वर्ग या वर्गों के सामूहिक नियंत्रण से मुक्त होकर स्वशासन प्राप्त करना है|
व्यक्तिगत स्वतंत्रता- इसके लिए स्वशासन आवश्यक है| व्यक्तिगत स्वतंत्रता से राष्ट्र का चहुमुखी विकास होता है, तथा राष्ट्रीय चेतना जागृत होती है|
अरविंद तथा टैगोर दोनों का विश्वास था कि यदि मनुष्य आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है, तो उसे सामाजिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता स्वत: प्राप्त हो जाती है|
अरविंद के अनुसार ‘अपने जीवन के नियमों का पालन करना ही स्वतंत्रता है|’ स्वतंत्रता की इस धारणा में रूसो तथा भगवतगीता के विचारों का समन्वय मिलता है| रूसो ने कहा था ‘स्वयं अपने द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना ही स्वतंत्रता है|”
अरविंद के अनुसार
स्वतंत्रता और समानता की एकता को केवल मानवीय भाईचारे अर्थात बंधुत्व के गुण द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है तथा यह अन्य किसी चीज पर आधारित नहीं हो सकती|
जब आत्मा स्वतंत्रता चाहती है, तो इसका तात्पर्य है- आत्म विकास की स्वतंत्रता, मनुष्य और उसके संपूर्ण अस्तित्व में दैवीयता का आत्मविकास|
जब आत्मा समानता चाहती है, तो इसका तात्पर्य है- यह सभी के लिए समान रूप से स्वतंत्रता तथा सभी में एक ही ईश्वर तथा एक ही आत्मा की स्वीकृति चाहती है|
जब आत्मा बंधुत्व के लिए प्रयास करती है, तो इसका अर्थ है- यह आत्म-विकास की समान स्वतंत्रता के सामान्य लक्ष्य, सामान्य जीवन तथा आंतरिक आध्यात्मिक समाज की पहचान पर आधारित विवेक और भावना के संगम के रूप में स्थापित हो रही है|
ये तीनों चीजें वास्तव में आत्मा की प्रकृति है, क्योंकि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व आत्मा के दैवीय गुण है|
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