जीवन परिचय-
जन्म-
384 ईसा पूर्व
मेसिडोनिया/ मकदूनिया की सीमा पर स्थित स्टेगिरा नामक यूनानी शहर में|
पिता-
निकोमैक्स
निकोमैक मकदूनिया के राजा एमंट्स तृतीय या फिलिप के राजदरबार में वैद्य थे|
अरस्तु प्लेटो का शिष्य था| अरस्तु 367 ईसा पूर्व में 17 वर्ष की अवस्था में एथेंस चला गया तथा प्लेटो की अकादमी में सम्मिलित हो गया|
अरस्तु ने जीवन के अगले 20 वर्ष तक (प्लेटो की मृत्यु 347 ईसा पूर्व तक) अकादमी में अध्ययन, अध्यापन किया|
प्लेटो अपने शिष्य अरस्तु की योग्यता से प्रभावित था, इसलिए प्लेटो ने अरस्तु को अकादमी का मस्तिष्क या शरीरधारी बुद्धिमता या अकादमी का नोस (Naus) या बुद्धि का साक्षात अवतार कहा|
अरस्तु ने पुस्तकों का संग्रह कर पुस्तकालय बनाया था, इस कारण प्लेटो अरस्तु के निवास स्थान को विद्यार्थी का घर/ पाठक का घर कहता है|
अरस्तु को राजनीति विज्ञान का जनक कहा जाता है|
अरस्तु ने कई विषयों पर लिखा है, इस कारण अरस्तु को सभी जानकारियों या ज्ञानो का गुरु (Master of them know) कहा जाता है|
मैक्सी ने अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक कहा है|
कैटलिन ने अरस्तु को मध्यम वर्ग का दार्शनिक कहा है|
अरस्तु को अपने पिता से चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा मिली थी, इसलिए अरस्तु का विज्ञान के प्रति झुकाव था| यही कारण है कि उसने नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र के विवेचन में जीवविज्ञान और आयुर्विज्ञान के दृष्टांतो का प्रयोग किया है|
अरस्तु को तुलनात्मक राजनीति का पिता कहा जाता है, क्योंकि अरस्तु ने 158 संविधानो का तुलनात्मक अध्ययन किया था|
अरस्तु को संविधानवाद का पिता भी कहा जाता है|
अरस्तु ने राजनीति विज्ञान को सर्वोच्च विज्ञान (Master of science) या परम विद्या (Master Art) या Architectonic science (वास्तुकारी विज्ञान) कहा है|
अरस्तु “मनुष्य का शुभ राजनीति शास्त्र का ध्येय होना चाहिए|”
प्लेटो की मृत्यु के बाद (347 ईसा पूर्व) अकादमी में उचित स्थान नहीं मिलने के कारण अरस्तु ने अकादमी छोड़ दी थी तथा एशिया माइनर चले गए, क्योंकि अकादमी का निर्देशन प्लेटो के भतीजे स्यूसिप्पस के हाथ में आ गया था|
एशिया माइनर के नगर एटारनोस (Atarneus) के निरंकुश शासक हर्मियस के पास अरस्तु रहने लगा, हर्मियस अरस्तु का पहले शिष्य रहा था|
एटारनोस (Atarneus) के शासक हर्मियस के साथ अरस्तु के घनिष्ठ संबंध थे| हर्मियस ने ही अरस्तु का परिचय सिकंदर से कराया था|
अकादमी या एथेंस छोड़ देने के बाद 346 ईसा पूर्व में अरस्तु मकदूनिया/ मेसिडोनिया के राजकुमार अलेक्जेंडर या सिकंदर का शिक्षक बना तथा सिकंदर के परामर्शदाता तथा चिकित्सक के रूप में कार्य करता रहा|
सिकंदर मेसिडोनिया के राजा फिलिप का पुत्र था तथा 13 वर्ष की आयु में अरस्तु का शिष्य बना था|
हर्मियस ने अरस्तु से सीखा था कि ‘एक व्यक्ति में शासक के क्या गुण होते है, नगर राज्य में अर्थव्यवस्था का क्या महत्व होता है, अन्य देशों के साथ संबंध कैसे बनाए जाते हैं आदि|
342 ईसा पूर्व अरस्तु के मित्र हर्मियस को एक ईरानी ने धोखे से पकड़ लिया और सुसा ले जा कर हत्या कर दी| इस घटना से अरस्तु दुखी हुए तथा हर्मियस पर एक गीत का काव्य लिखा| इस घटना से अरस्तु की यह धारणा बनी कि ‘विदेशी बर्बर जातियां यूनानीयों के शासन में ही रहनी चाहिए’ तथा इस सिद्धांत का प्रतिपादन अरस्तु ने अपने ग्रंथ पॉलिटिक्स में किया|
अरस्तु ने सिकंदर को यूनानीयों का नेता और बर्बर जातियों का स्वामी बनने की शिक्षा दी|
सिकंदर अरस्तू को पिता तुल्य आदर देता था| जैसा कि प्लूटार्क ने लिखा है कि “सिकंदर का अरस्तु के प्रति उतना ही प्रेम और उतनी ही श्रद्धा थी, जितनी की अपने पिता के प्रति थी| सिकंदर का कहना था कि यदि उसने अपने पिता से जीवन पाया है तो गुरु ने उसे जीवन की कला दी है|”
विश्व विजय के लिए निकले सिकंदर के साथ अरस्तु भी घूमता रहा और इस बीच अरस्तु ने भारत के भी दर्शन किए थे|
12 वर्षों तक विभिन्न स्थानों के भ्रमण के बाद 335 ईसा पूर्व में अरस्तु वापस एथेंस आ गया और वहां मेसीडोनियन दल में सम्मिलित हुआ तथा एथेंस में अपनी शिक्षण संस्थान लिसियम/ लाइसियम की स्थापना की|
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