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अरस्तु के कानून संबंधी विचार / Arstu ke kanun sambandhi vichar/ Aristotle's views on law || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

अरस्तु के कानून संबंधी विचार 

  • अरस्तु के कानून संबंधी विचार उनकी पुस्तक पॉलिटिक्स, एथिक्स और रिटोरिक (अलंकारशास्त्र) में मिलते हैं| 

  • अरस्तु अपने गुरु प्लेटों के विपरीत कानून के महत्व पर अत्यधिक बल देता है| जहां प्लेटो की रिपब्लिक में कानून का कोई स्थान नहीं है तथा लॉज में कानून की महत्ता नजर आती है, वहीं अरस्तु ने पॉलिटिक्स में कानून की संप्रभुता स्थापित की है|

  • अरस्तु कानून संबंधी विचारों में प्लेटो की लॉज से अत्यधिक प्रभावित था| अरस्तु ने लॉज में प्लेटो के इस सुझाव से शिक्षा ली, कि नैतिक और सभ्य जीवन के लिए कानून आवश्यक है| 

  • अरस्तु ने कानून की सर्वोच्चता को श्रेष्ठ शासन का चिन्ह माना है|

  • अरस्तु के अनुसार शासन एक व्यक्ति के हाथ में हो या कुछ व्यक्ति के हाथ में या बहुत लोगों के हाथ में, शासन कानून के अनुसार होना चाहिए|

  • अरस्तु कानून को आवश्यक बुराई नहीं समझता है, बल्कि श्रेष्ठ जीवन के लिए अनिवार्य अच्छाई समझता है|

  • संवैधानिक शासन प्रजाजन का गौरव बढ़ाता है| 

  • संवैधानिक शासन इच्छुक प्रजाजनों के ऊपर शासन करता है, अर्थात सहमति के द्वारा शासन करता है|

  • अरस्तु के अनुसार “कानून का शासन एक नागरिक के शासन से बेहतर होता है, वे कानून के संरक्षक या देखरेख करने वाले होते हैं|” 

  • अरस्तु के मत में प्रजा के ऊपर संवैधानिक शासन दासों पर मालिक के शासन से अलग होता है, क्योंकि दासों के पास स्वयं शासन करने का तर्क नहीं होता, यह पति के शासन से भी अलग होता है| 

  • सेबाइन “प्लेटो के विपरीत अरस्तु का कहना था कि जनता की सामूहिक बुद्धि सबसे बुद्धिमान शासक से भी बेहतर होती है, क्योंकि एक अच्छे राज्य में राजनयिक उस समुदाय के कानून और परंपरा से अलग नहीं हो सकता है, जिस पर वह शासन करता है|”

  • अरस्तु के मत में “जो कानून को शासन करने देता है, वह ईश्वर और तर्क बुद्धि को शासन करने देता है, परंतु जो मनुष्य को शासन करने देता है वह एक तरह से पशुओं को शासन करने देता है, क्योंकि लालसा एक हिंसक पशु है और राग-द्वेष मनुष्य के मन को भ्रष्ट कर देते हैं| कानून तर्क बुद्धि का द्योतक है जो किसी लालसा से विचलित नहीं होता|”

 

Note- विधि के शासन की आधुनिक संकल्पना का निरूपण 19वीं शताब्दी के दौरान ब्रिटिश न्यायवेता ए वी

डायसी ने इंग्लैंड की शासन प्रणाली के संदर्भ में किया था|


अरस्तु के अनुसार संवैधानिक शासन के तीन मुख्य तत्व हैं-

  1. यह संपूर्ण जनता की भलाई के लिए होता है, वर्ग विशेष के लिए नहीं|

  2. यह एक विधि सम्मत शासन होता है|

  3. प्रजा दबाव से नहीं, बल्कि इच्छा से शासित होगी|


  • अरस्तु ने कानून उन बंधनों का सामूहिक नाम दिया है, जिसके अनुसार व्यक्तियों के कार्य का नियमन होता है| 

  • अरस्तु कानून और विवेक-बुद्धि को समान तथा पर्यायवाची मानता है| जिस तरह कानून व्यक्तियों के कार्य के नियमन का भौतिक बंधन है, उसी तरह विवेक बुद्धि मानव कार्यों का अध्यात्मिक बंधन है|


        कानून का मूल स्रोत- 

  • अरस्तु ने कानून का मूल स्रोत संहिताकार (Law Maker) को माना है, न कि शासक को| अरस्तु स्थायी तथा अपरिवर्तनशील कानून के पक्ष में है|


     कानून की प्रकृति

  • अरस्तु के अनुसार राज्य एक नैतिक समुदाय है अतः आदर्श कानून भी प्राकृतिक, स्थायी तथा अपरिवर्तनशील होना चाहिए|

  • जबकि वास्तविक राज्यों में कानून प्राकृतिक न होकर, संविदा तथा लोकाचार पर आधारित होते हैं| अर्थात यथार्थ जगत में केवल साधारण लोगों का ही शासन पाया जाता है, अतः व्यवहारिक दृष्टि से विधि का शासन ही उत्तम है| 

  • वही सर्वोत्तम राज्य के लिए अरस्तु प्राकृतिक तथा लोकाचार पर आधारित कानूनों को महत्वपूर्ण स्थान देता है|

  • अरस्तु सविधान तथा राज्य को एक ही मानता है| वह संविधान या राज्य के लिए कानून आवश्यक मानता है| अरस्तु राज्य या संविधान पर कानून की संप्रभुता स्थापित करता है|

  • इस प्रकार अरस्तु कानून की संप्रभुता स्थापित करता है तथा राज्य की सर्वोच्चता को कानून की मर्यादा रेखा में बांधता है|


Note- विधि के शासन का सर्वप्रथम वर्णन अरस्तु ने किया था| विधि के शासन के कारण ही अरस्तु को संविधानवाद का पिता कहा जाता है|


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