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प्लेटो का आदर्श राज्य/ Plato ka aadarsh Rajay/ Plato’s Ideal State || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

     प्लेटो का आदर्श राज्य (Plato’s Ideal State)-

    • प्लेटो के समय यूनान में जो राजनीतिक अराजकता व्याप्त थी, उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप प्लेटो ने एक ‘आदर्श राज्य की कल्पना’ रिपब्लिक में प्रस्तुत की है|

    • आदर्श राज्य को प्लेटो ने कैलिपोलिस (kallipolis) कहा है, जिसका तात्पर्य है- सुंदर नगर या सुखी लोगों का समुदाय|

    • आदर्श राज्य एक कल्पना थी न कि ऐसा राज्य कहीं था| प्लेटो के शब्दों में “जिस राज्य की कल्पना कर रहे हैं, वह शब्दों में निहित है और उसे पृथ्वी पर कहीं भी नहीं देखा जा सकता|”

    • आदर्श राज्य बादलों का नगर है न की धरती का|

    • प्लेटो के अनुसार “राज्य एक स्वाभाविक, प्राकृतिक व नैतिक संस्था है|” 

    • प्लेटो के अनुसार राज्य व्यक्ति का वृहद रूप है तथा व्यक्ति व राज्य में जीवाणु और जीव का संबंध होता है| जो गुण या विशेषताएं अल्पमात्रा में व्यक्ति में पायी जाती है, वे ही विशेषताएं विशाल रूप में राज्य में पायी जाती है| राज्य मूलतः मनुष्य का बाह्य रूप होता है|

    • प्लेटो “राज्य मानव मस्तिष्क का ही व्यापक रूप है| राज्य बलूत के वृक्ष (Oaks/ ऑक के वृक्ष) अथवा चट्टानों से नहीं निकलते, वरन राज्य उन लोगों के मस्तिष्क व चरित्र का परिणाम होते है, जो उसमें निवास करते हैं|”

    • प्लेटो एक ऐसे आदर्श राज्य की रचना करना चाहता था, जो पूर्णरूपेण ‘आदर्श मॉडल’ हो, अर्थात उसकी रचना, सौंदर्य, आदर्शवादिता में कहीं भी किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं हो|

    • प्लेटो अपने आदर्श राज्य को व्यवहारिक बनाने के लिए उसमें किंचित मात्र भी संशोधन करने को तैयार न था|

    • नैटलशिप “रिपब्लिक में प्लेटो अपने आदर्श को किंचित मात्रा में भी न्यून नहीं करता, उसे केवल इस बात से संतोष है कि वह राज्य को एक आदर्श रूप में प्रदर्शित कर रहा है|”

    • प्लेटो के मत में राज्य की चेतना में तथा व्यक्ति की चेतना में अंतर नहीं है| जैसा कि बार्कर ने कहा कि “राज्य की चेतना ठीक उसके सदस्यों की चेतना है, जब वे राज्य के सदस्य के रूप में विचार कर रहे हो|”

    • डेनिंग “रिपब्लिक इस कारण से आदर्श राज्य की तस्वीर नहीं देता है, कि यह एक रोमांस है, बल्कि प्लेटो चाहते थे कि वह भलाई के विचार पर एक वैज्ञानिक आक्रमण की शुरुआत करें|” 


    प्लेटो के आदर्श राज्य की उत्पत्ति व विकास के चरण-

    • प्लेटो के आदर्श राज्य का निर्माण 3 चरणों में संपन्न हुआ है, जो निम्न है


    1. स्वस्थ राज्य/ आदिम राज्य/ मूल राज्य-

    • प्लेटो ने सामाजिक आवश्यकताओं को राज्य की उत्पत्ति का आधार माना है|

    • प्लेटो “राज्य मानव समाज की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है, जिसमें कोई भी आत्मनिर्भर नहीं है|”

    • राज्य की उत्पत्ति के प्रथम चरण में ‘उत्पादक वर्ग’ का विकास होता है|

    • प्लेटो राज्य निर्माण का प्रथम तत्व ‘आर्थिक तत्व’ मानता है |

    • आर्थिक तत्व/ वासना से मनुष्य की आवश्यकताओं का जन्म होता है|

    • आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य आपस में वस्तुओं का आदान प्रदान करते हैं तथा समाज में श्रम विभाजन तथा कार्य विशेषीकरण उत्पन्न होता है| और इसमें समाज में बढ़ई, सुनार, लोहार, व्यापारी, चिकित्सक वर्ग का निर्माण होता है तथा राज्य का निर्माण होता है|

    • कार्य विशेषीकरण के संबंध में प्लेटो कहता है कि “प्रत्येक व्यक्ति सदैव अपनी प्रकृति के अनुकूल एक ही कार्य करें, एक ही व्यवसाय करें, अनेक कार्य न करें, तभी नगर-राज्य एक होगा|”


    Note- ग्लॉकोन आदिम राज्य को ‘सूअरों का नगर’ कहता है|


    1. विलासिता पूर्ण राज्य-

    • राज्य उत्पत्ति के दूसरे चरण में ‘सैनिक वर्ग’ की उत्पत्ति होती है|

    • आवश्यकताओं में वृद्धि होने से अधिक भू-भाग की आवश्यकता होती है| अत: दूसरा राज्य भू-भाग में हस्तक्षेप करता है| अपने भू-भाग की रक्षा तथा वृद्धि के लिए सैनिक वर्ग की उत्पत्ति होती है|


    1. न्यायपूर्ण राज्य/ श्रेणीमूलक राज्य-

    • राज्य की उत्पत्ति के तीसरे चरण में ‘दार्शनिक वर्ग’ की उत्पत्ति होती है|

    • प्लेटो के अनुसार सैनिक वर्ग के लोगों में सामान्तया उत्साह तथा विवेक पाया जाता है, किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनमें उत्साह की अपेक्षा विवेक का अत्यधिक बाहुल्य होता है| ऐसे लोगों से दार्शनिक वर्ग का जन्म होता है|

    • इस राज्य में तीन श्रेणियां होती है- शासक, सैनिक, उत्पादक वर्ग, 

    • अतः यही वास्तविक राजनीतिज्ञ समाज है, यही पूर्ण राज्य है|


    • M B फॉस्टर- प्लेटो के इस सिद्धांत में दो परस्पर भिन्न तत्व मिलते हैं-

    1. शासन कार्य राज्य का सारभूत तत्व है|

    2. शासन कार्य राज्य के भीतर एक विशिष्ट वर्ग के पास रहना चाहिए|


    Note- आदिम राज्य में जहां सभी व्यक्ति समान है, वहीं न्यायपूर्ण/ श्रेणीमूलक राज्य में विषमता पायी जाती है|


    Note- प्लेटो के अनुसार संरक्षक वर्ग में 2 वर्ग शामिल हैं    

    (1) सहायक संरक्षक या सैनिक वर्ग  

    (2) दार्शनिक वर्ग या पूर्ण संरक्षक वर्ग


    • प्लेटो के अनुसार विवेक गुण सैनिक वर्ग में भी पाया जाता है, लेकिन विशेष रूप से यह पूर्ण संरक्षक या शासक में ही पाया जाता है|

    • उत्साह (सैनिक वर्ग), विवेक की सहायता से अन्याय का विनाशक और न्याय का रक्षक होता है|



    आदर्श राज्य में तीन वर्ग-

    • राज्य निर्माण के तीन तत्वों के आधार पर अथवा कार्य विविशेषीकरण तथा श्रम विभाजन के आधार पर प्लेटो ने आदर्श राज्य में तीन वर्ग बताए हैं-

    1. शासक/ दार्शनिक वर्ग/ संरक्षक वर्ग 

    • विवेक गुण की प्रधानता

    • कार्य- शासन करना, सहायक संरक्षक वर्ग (सैनिक वर्ग) तथा उत्पादक वर्ग के बीच संतुलन बनाना|

    • दार्शनिक शासक को प्लेटों नोएटिक मैन (Noetic Man) कहता है, जिसका अर्थ है- विवेकशील या बुद्धिमान या तर्कवान व्यक्ति|


    1. सैनिक वर्ग/ सहायक संरक्षक वर्ग-

    • साहस गुण की प्रधानता

    • कार्य- उत्पादक वर्ग व राज्य की भूमि की सुरक्षा करना|


    1. उत्पादक वर्ग-

    • वासना या क्षुधा तत्व की प्रधानता

    • कार्य- राज्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना|

    • उत्पादक वर्ग के लिए प्लेटो अपिटेटिव मैन (Appetitive Man) शब्द का प्रयोग करता है, जिसका अर्थ है- ऐसा व्यक्ति जिसका अपनी इच्छाओं, इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होता है| 


    आदर्श राज्य की विशेषताएं-

    1. यह न्याय पर आधारित है|

    2. शिक्षा व साम्यवाद इसके दो आधार स्तंभ हैं|

    3. राज्य व्यक्ति का विराट रूप है|

    4. यह कार्य विशेषीकरण व अहस्तक्षेप पर आधारित है|

    5. नागरिकों के तीन वर्ग

    6. आदर्श राज्य में दार्शनिक राजा का शासन होगा|

    7. यह मानवीय स्वभाव के अनुकूल है|

    8. आदर्श राज्य का लक्ष्य विशुद्ध आध्यात्मिक और नैतिक है|

    9. राज्य का हित प्रधान व सर्वोपरि है, व्यक्ति उसका अंग मात्र है|

    10. स्त्री-पुरुष को समान अधिकार अर्थात शासन कार्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में स्त्री को भी पुरुष के समान अधिकार प्राप्त है|


    • वेपर “उचित नेतृत्व, उचित सुरक्षा, उचित पोषण आदर्श राज्य के अपरिहार्य तत्व है|”



    प्लेटो का दार्शनिक शासक-

    • दार्शनिक शासक का विचार प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में दिया है|

    • दार्शनिक शासक का सिद्धांत प्लेटो का एक प्रमुख एवं मौलिक सिद्धांत है|

    • फॉस्टर “दार्शनिक राजा की संकल्पना प्लेटो की मौलिक संकल्पना है|”

    • प्लेटो आदर्श राज्य में शासन दार्शनिक के हाथ में देता है, जैसा कि प्लेटो के शब्दों में “जब तक दार्शनिक राजा नहीं होते अथवा इस संसार में राजाओं में दर्शनशास्त्र के प्रति भावपूर्ण भक्ति नहीं जागती तब तक नगर-राज्यों से बुराई नहीं हट सकती है|”

    • प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था तथा साम्यवादी योजना के फलस्वरुप दार्शनिक राजा का निर्माण होता है|

    • प्लेटो दार्शनिक शासक को ‘विवेक का प्रेमी’ तथा नगर का सच्चा व अच्छा संरक्षक मानता है|

    • प्लेटो के मत में इस श्रेष्ठ मल्लाह के नेतृत्व में आदर्श राज्य की नौका आंधी और तूफान के झंझावतो से बचती हुई अपनी मंजिल तक अवश्य ही पहुंच जाएगी|

    • आदर्श राज्य में सरकार का संचालन नियम व कानूनों से न होकर दार्शनिक शासक के द्वारा होगा|

    • प्लेटो कानून को आदर्श राज्य के लिए अनावश्यक व हानिकारक मानता है|

    • दार्शनिक राजा पर कानून, नियमों का बंधन नहीं होता है, वह उन सबसे ऊपर होता है| इसके आदेश ही कानून  है|

    • दार्शनिक राजा ‘सद्गुण ही ज्ञान है’ की आत्मप्रेरणा से कार्य करता है|

    • दार्शनिक राजा से समाज का अहित नहीं हो सकता|

    • प्रजा को दार्शनिक राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिए| इस प्रकार प्लेटो का दार्शनिक राजा निरंकुश हो जाता है|


    • बुद्धिमान दार्शनिक शासक को संपूर्ण सत्ता सौंपने के पीछे प्लेटों के दो उद्देश्य थे-

    1. अत्याचार और धूर्तता से बचना

    2. समुदाय की भलाई


    • मैक्सी “एक सच्चा दार्शनिक शासक ज्ञान से प्रेम रखता है, न कि किसी विशेष मत से, वह क्रोध, घृणा, संकीर्णता, द्वेष, स्वार्थपरता आदि से दूर रहता है|”

    • फॉस्टर ने आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक की प्रभुसत्ता कोतर्कबुद्धि की प्रभुसत्ता सिद्धांत’ कहा है|

    • दार्शनिक राजा में विवेक की बाहुल्यता है, अतः उसके द्वारा भूल होने की संभावना कम है|


    दार्शनिक राजा पर बंधन या मर्यादाएं-

    • बार्कर ने दार्शनिक शासक पर चार मर्यादाएं बतायी है, उनको हम दार्शनिक राजा के कर्तव्य भी कह सकते है| जो निम्न है-

    1. दार्शनिक राजा को राज्य में अधिक संपन्नता या निर्धनता को नहीं बढ़ने देना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में कलह, अपराध, भोगवृत्ति पैदा होती है|

    2. राज्य का आकार न तो ज्यादा बढ़ने दें कि जिससे व्यवस्था रखना कठिन हो जाए व न इतना छोटा हो कि आवश्यकता की पूर्ति करने में कठिनाई हो|

    3. वह ऐसी न्याय व्यवस्था की स्थापना करें, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपना व्यवसाय सही ढंग से करें|

    4. वह शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन ना करें, क्योंकि जब संगीत की ताने बदलती हैं तो उसके साथ-साथ राज्य के मौलिक नियम भी बदल जाते हैं|


    दार्शनिक शासक की आज्ञापालन क्यों?

    • सैनिक वर्ग व उत्पादक वर्ग, दार्शनिक वर्ग की आज्ञाओं का पालन क्यों करेंगे, जिसके पास न तो सैनिक शक्ति है और न ही आर्थिक शक्ति| प्लेटो ने इस कठिनाई के निदान व विरोधी स्वरों को दबाने के लिए दार्शनिक वर्ग को दो सुझाव दिए हैं-

    1. कला व साहित्य पर राज्य का नियंत्रण

    2. उदात्त (महान) या शाही झूठ ( Noble or Royal lie) का सहारा लेना|


    उदात्त झूठ या शाही झूठ

    • इससे संबंधित ‘धातुओं और धरती से जन्म हुए लोगों का मिथक’ है|

    • प्लेटो का मत है कि दार्शनिक शासक को आमजन में इस महान/ उदात्त/ शाही झूठ का प्रचार करना चाहिए कि सभी मानव धरती से पैदा हुए हैं और उनके शरीर का निर्माण विभिन्न प्रकार की धातुओं से हुआ है|

    • दार्शनिक वर्ग के लोग सोने से, साहस तत्व वाला सैनिक चांदी से तथा तृष्णा वाला उत्पादक पीतल या कांसा से बना है|

    • यह तर्क समानता के साथ-साथ विभिन्नता व श्रेणीकरण भी पैदा करता है, क्योंकि सभी धातुएं जमीन से मिलती हैं, लेकिन उनके गुण अलग-अलग होते हैं|

    • प्लेटो के मत राज्य की भलाई के लिए उदात्त झूठ आवश्यक है, ताकि प्रत्येक वर्ग अपने कार्य तक सीमित रहे, किसी भी प्रकार का विरोधाभास पैदा ना हो| 


    • जर्मन दार्शनिक नीत्शे इस शाही झूठ की आलोचना करते है कि झूठ से अन्यायी समाज बनाता है न कि सही समाज| 

    • नीत्शे “प्लेटो ने इस मिथक का निर्माण मात्र राजनीतिक दमन से दर्शन की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि दर्शन को राजनीतिक प्रभाव प्रदान करने के लिए किया था|”

    • रसैल “प्लेटो जो नहीं समझता कि ऐसे मिथक दर्शन के साथ मेल नहीं खाते हैं|”

    • पॉपर “मिथक का दुरुपयोग इसके उपयोग से कहीं अधिक होता है| इसके फलस्वरूप कठोर वर्ग विभेद पैदा होते हैं, जिससे शासक प्रजा से बेहतर दिखाई देता है और इसे जाति, शिक्षा और मूल्यों के आधार पर उचित ठहराया जाता है|” 


    आदर्श राज्य और दार्शनिक शासक की आलोचना- 

    • आदर्श राज्य की धारणा अतिशय, कल्पना प्रधान और अव्यवहारिक है| प्लेटो ने बाद में स्वयं अनुभव किया कि आदर्श राज्य पृथ्वी पर संभव नहीं है| 

    • प्रोफेसर डेनिंग ने प्लेटो के आदर्श राज्य को अव्यवहारिक कहा है|

    • अरस्तु ने प्लेटोवादी आदर्श राज्य की आलोचना करते हुए कहा कि “यदि राजनीतिक समुदाय को इतनी कड़ाई से संगठित किया जाता है तो वह राजनीतिक संस्था नहीं रहेगी|”

    • आदर्श राज्य में व्यक्ति की अवहेलना की गई है| हीगल के अनुसार “प्लेटो के राज्य में व्यक्ति की स्वाधीनता को कोई स्थान नहीं है|”

    • शासक वर्ग की निरंकुशता- बार्कर ने प्लेटो के आदर्श राज्य को प्रबुद्ध निरंकुशवाद या विवेकशील निरंकुशवाद (Enlightened tyranny) की संज्ञा देता है|

    • उत्पादक वर्ग की उपेक्षा

    • स्वतंत्रता का निषेध

    • कानून की उपेक्षा

    • मानवीय आत्मा के आधार पर वर्ग विभाजन सही नहीं है|

    • आदर्श राज्य में प्लेटो अधिकारियों की नियुक्ति, दंडव्यवस्था, न्यायालय के बारे में नहीं बताता है|

    • कार्ल पॉपर प्लेटो को फासीवादी व लोकतंत्र विरोधी कहते हैं|

    • आदर्श राज्य सावययी होते हुए भी प्रगतिशील नहीं है|

    • अत्यधिक दर्शन व चिंतन के अध्ययन से शासक प्राय: झक्की व सनकी हो जाता है|

    • जावेट “दार्शनिक राजा या तो दूरदर्शी होता है या अतीत की ओर देखता है वर्तमान से उसका कोई संबंध नहीं होता है|”

    • प्लेटो ने बहुमत के शासन और जनभागीदारी का इस आधार पर विरोध किया है, कि साधारण व्यक्ति में परम सत्य और भलाई का विचार समझने की क्षमता नहीं होती है, यह केवल दार्शनिक व्यक्ति में ही होती है| इसका विरोध करते हुए पॉपर कहते हैं कि “यदि परम सत्य गलत साबित हो जाए तो क्या होगा और इस बात की क्या गारंटी है कि दार्शनिक शासक के ज्ञान से सामूहिकता को फायदा होता है|”

    • कोहेन ने अपनी महत्वपूर्ण रचना ‘द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रिवॉल्यूशन 1962’ में तर्क पेश किया कि “जिसे सच्चाई समझा जाता है वह हमेशा ही विशेष काल और स्थान में प्रभुत्वकारी विचार से तय होता है| इसे उन्होंने पैराडाइन कहा और इसके बिना वैज्ञानिक खोज असंभव थी|”

    • जॉन एबरीच डालबिग एक्टन ने कहा कि “समुदाय की भलाई के लिए असीमित सत्ता पर संस्थागत अंकुश लगाना जरूरी है|” 


    Note- फॉस्टर “प्लेटो के संपूर्ण राजनीतिक विचार में दार्शनिक राजा की अवधारणा मौलिक है|”


    आदर्श राज्य का औचित्य-

    • कुछ विचारको का मानना है कि आदर्श राज्य उचित था|

    • स्ट्रास के अनुसार रिपब्लिक राजनीतिक भाववाद का व्यापकतम व गहनतम विश्लेषण प्रस्तुत करता है| जिसका उद्देश्य यह दर्शाना था कि राजनीतिक औचित्य की सीमाएं क्या थी?

    • रेंडल के अनुसार रिपब्लिक एक ऐतिहासिक व्यंग था, जिसका उद्देश्य यह दिखाना था कि स्पार्टन मॉडल  अवास्तविक और अजीबोगरीब था और यह काम नहीं कर सकता था|” 

    • ब्लूम कहते हैं कि “राजनीतिक आदर्शवाद सबसे विनाशकारी मानवीय भावना है और द रिपब्लिक आदर्शवाद की अब तक की सबसे बड़ी आलोचना है|”



    आदर्श राज्य का पतन और शासन प्रणालियों का वर्गीकरण- 

    • प्लेटो का आदर्श राज्य स्थायी नहीं है| प्लेटो भी आदर्श राज्य को स्थायी व व्यवहारिक नहीं मानता है|  रिपब्लिक की 8वीं व 9वी पुस्तक में वह आदर्श राज्य के पतन व अन्य शासन प्रणालियों के बारे में वर्णन करता है|

    • आदर्श राज्य का पतन दार्शनिक शासन के पतन तथा आदर्श राज्य के सिद्धांतों में कमी के कारण होता हैं|  


    • आदर्श राज्य के पतन के साथ क्रमश 5 प्रकार की शासन प्रणालियों का उदय होता है-

    1. राजतंत्र (Monarchy)

    2. कीर्तितंत्र (Timocracy)

    3. अल्पतंत्र (Oligarchy)

    4. लोकतंत्र (Democracy)

    5. निरंकुश तंत्र (Tyranny)


    1. राजतंत्र- आदर्श राज्य के बाद सबसे पहले राजतंत्र का उदय होता है| प्लेटो के अनुसार राजतंत्र में जनता को सर्वाधिक सुख प्राप्त होता है, क्योंकि इसमें न्याय भावना से अनुप्रमाणित विवेक संपन्न दार्शनिक राजा शासन करता है|


    1. कीर्तितंत्र- इसके बाद साम्यवाद के त्याग तथा व्यक्तिगत संपत्ति के उदय से राजतंत्र का पतन तथा कीर्तितंत्र का उदय होता है| इसमें संरक्षक वर्ग सारी संपत्ति को हथिया लेता है तथा सारी शक्ति जमीदार योद्धाओं के हाथ में आ जाती है| विवेक की जगह उत्साह, साहस की प्रधानता बढ़ जाती है| इसमें योद्धा अपनी कीर्ति और महत्वाकांक्षा बढ़ाने की दृष्टि से राज्य का संचालन करते है|


    1. अल्पतंत्र- कीर्तितंत्र धीरे-धीरे अल्पतंत्र में बदल जाता है| उत्साह की जगह काम की प्रधानता बढ़ जाती है| इसमें संपूर्ण शक्ति कुछ व्यक्तियों और कुलो के हाथ में आ जाती है| आर्थिक बल पर व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से शासन किया जाता है| इस शासन तंत्र में धनीको तथा निर्धनों में खाई गहरी हो जाती है|


    1. लोकतंत्र- अल्पतंत्र में दरिद्र जनता में तीव्र असंतोष एवं विद्रोह की भावना उत्पन्न होती है| इसलिए दरिद्र जनता शासन पर कब्जा करके लोकतंत्र की स्थापना करती है| लोकतंत्र में सभी को स्वतंत्रता व समानता प्राप्त होती है, लेकिन अनुशासन व आज्ञापालन का भाव लुप्त हो जाता है|


    1. निरंकुश तंत्र- लोकतंत्र का अंत करने के लिए जनता में एक नेता खड़ा हो जाता है, वह जनता को बड़े मोहक आश्वासन देकर निरंकुशतंत्र की स्थापना करता है| जनता उस पर विश्वास करके उसे सत्ता व सैनिक शक्ति देती है, लेकिन वह जनता का दमन करता है तथा स्वेच्छाचारी शासन की स्थापना कर लेता है| ‘काम’ तत्व का सर्वाधिक पाशविक रूप निरंकुश तंत्र या तानाशाही शासन में देखने को मिलता है| यह  सबसे निकृष्ट शासन प्रणाली है| 



    Note- प्लेटो के अनुसार

    • सबसे उत्कृष्ट शासन प्रणाली- राजतंत्र

    • सबसे निकृष्ट शासन प्रणाली- निरंकुश तंत्र




    रिपब्लिक में लोकतंत्र की आलोचना-

    • प्लेटो के दिमाग पर सुकरात को विषपान कराने वाले एथेंस के लोकतंत्र का बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा था|


    प्लेटो रिपब्लिक में लोकतंत्र के निम्न दोष बताता है

    1. लोकतंत्र में सत्ताधारी राजनीतिज्ञ व अधिकारी अज्ञानी व असक्षम होते है|

    2. शासन की शक्ति वोट बटोरने वाले स्वार्थी व असक्षम लोगों के हाथ में आ जाती है|

    3. लोकतंत्र को प्लेटो भीड़तंत्र कहता है| भीड़ अपनी इच्छा अनुसार शासकों से कानून बनवा लेती है|

    4. लोकतंत्र के स्वतंत्रता व समानता के दोनों आधार गलत हैं| प्लेटो के मत में इससे समाज में अव्यवस्था, अनुशासनहीनता और उच्छृखलता का प्रसार होता है|

    • प्लेटो- लोकतंत्र में पुत्र, पिता के तुल्य बन जाता है और वह माता-पिता के प्रति आदर और भय की भावना नहीं रखता है| अध्यापक अपने शिष्यों से डरता है| ऐसे राष्ट्र में सार्वजनिक स्वतंत्रता की पराकाष्ठा तब होती है जब दास-दासिया भी उनको मोल लेने वाले स्वामियों के बराबर स्वतंत्र हो जाते है|”


    1. लोकतंत्र प्लेटों के न्याय सिद्धांत के अनुकूल नहीं है, क्योंकि तत्कालीन एथेंस की जनतंत्रीय व्यवस्था में ‘लॉटरी’ प्रणाली द्वारा कोई व्यक्ति किसी भी पद के लिए चुना जा सकता था| लोकतंत्र में एक व्यक्ति अनेक कार्य कर सकता है| जबकि प्लेटो की न्याय व्यवस्था कार्य विशेषीकरण तथा श्रम विभाजन के सिद्धांत पर आधारित है|

    2. प्लेटो की दृष्टि में लोकतंत्र अराजकता तथा बहुतंत्र है| अर्थात यहां अनेक तत्वों और अनेक व्यक्तियों का शासन रहता है| इस शासन में अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग होता है|

    3. लोकतंत्र भ्रष्ट, अकुशल व अनाड़ियों का शासन है|


    Note- प्लेटो अपनी बाद की अवस्था में लोकतंत्र का इतना कठोर आलोचक नहीं रहा था| जहां रिपब्लिक में प्लेटो लोकतंत्र को अल्पतंत्र से नीचे स्थान देता है, वही स्टेट्समैन में वह लोकतंत्र को अल्पतंत्र से श्रेष्ठ मानता है


    Note- प्लेटो तत्कालीन यूनानी राज्यों को ‘शुकरो की नगरी’ कहता है| क्योंकि वहां दार्शनिकों का शासन न होकर अनाड़ियों का शासन था|

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