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हॉब्स के राज्य संबंधी विचार/ Hobbes's views on the state || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

 हॉब्स के राज्य संबंधी विचार-

  • हॉब्स राज्य की उत्पत्ति सामाजिक समझौते के परिणामस्वरुप बताता है, अतः राज्य कृत्रिम संस्था है|

  • राज्य की स्थापना का वर्णन हॉब्स लेवियाथन के 18वे अध्याय में करता है|


   समझौते का कारण-

  • समझौते का कारण प्राकृतिक अवस्था का भयपूर्ण माहौल था, जिसमें हमेशा मृत्यु का भय था| ऐसी अवस्था में मनुष्य अपने विवेक व तर्क बुद्धि से एक सामाजिक समझौता करता है|

  • यह समझौता व्यक्तियों के बीच में आपस में हुआ, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति ने प्रत्येक व्यक्ति से यह कहा कि “मैं इस व्यक्ति को या व्यक्तियों के समूह को अपना शासन स्वयं कर सकने का अधिकार और शक्ति इस शर्त पर समर्पित करता हूं कि तुम भी अपने इस अधिकार को इसी तरह इस व्यक्ति या व्यक्ति समूह को समर्पित कर दो|”

  • इबेन्सटीन ने कहा है कि “हॉब्स का सामाजिक समझौता प्रजाजनों के बीच हुआ है, संप्रभु समझौते का भागीदार नहीं है, वह तो उसकी उत्पत्ति है|


   समझौते का परिणाम-

  • समझौते के परिणाम स्वरूप संपूर्ण मानव समुदाय एक कृत्रिम व्यक्ति में संयुक्त हो जाता है, जिसे हॉब्स कॉमनवेल्थ (राज्य) कहता है| लेटिन भाषा में इसको सिविटास कहते हैं|

  • समझौते के द्वारा व्यक्तियों ने सभी अधिकार एक व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा को सौंप दिए, उस व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा को हॉब्स लेवियाथन (महान मानव देव) कहता है| लेवियाथन एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, निरंकुश है तथा उसके पास असीमित अधिकार है|


    हॉब्स के समझौते सिद्धांत की विशेषताएं–

  1. समझौता एक साथ सामाजिक व राजनीतिक दोनों है| अर्थात समझौते से समाज व राज्य दोनों का निर्माण होता है| 

  2. समझौता केवल एक पक्षीय था, जो केवल व्यक्तियों के मध्य आपस में हुआ था| संप्रभु और व्यक्तियों के मध्य में नहीं हुआ था|

  3. समझौते में संप्रभु के शामिल न होने पर उसको असीमित शक्ति व अधिकार प्राप्त हो जाते हैं| वह निरंकुश व बंधन रहित होता है| संप्रभु का केवल एक कर्तव्य होता है, वह है- नागरिकों के जीवन की रक्षा करना, इसके अलावा उसका कोई कर्तव्य नहीं है| 

  4. समझौते में शामिल न होने वाले व्यक्ति पर भी यह लागू होता है| 

  5. समझौते के बाद व्यक्ति के पास कोई भी प्राकृतिक अधिकार नहीं रहता है| केवल एक प्राकृतिक अधिकार जीवन की सुरक्षा का अधिकार शेष रहता है|

  6. समझौते के बाद उससे कोई अलग नहीं हो सकता है अर्थात समझौता स्थायी है| समझौते से अलग होने का अर्थ है- वापस प्राकृतिक अवस्था में जाना|

  7. समझौते से अविभाज्य संप्रभुता की स्थापना होती है, अर्थात संप्रभु एक है, चाहे वह एक व्यक्ति है या व्यक्तियों की सभा|

  8. विधियों का स्रोत प्रभुसत्ता है, उसके आदेश ही विधि या नियम है|

  9. न्याय करने का, युद्ध व संधि करने का, अधिकारियों को चुनने का अधिकार प्रभुसत्ता के पास है|

  10. संप्रभु समझौते का कोई पक्ष न होकर स्वयं उसका परिणाम है|

  11. समझौते के बाद लोगों की इच्छाएं, संप्रभु की इच्छा होती है|

  12. हॉब्स का सामाजिक समझौता दार्शनिक सत्य है अर्थात यह सैद्धांतिक व तार्किक तो है, परंतु ऐतिहासिक व वास्तविक नहीं है| इतिहास के किसी भी भाग में ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था, ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता है| 

  13. हॉब्स के सामाजिक समझौते के विचार में सहमति का सिद्धांत निहित है, क्योंकि मनुष्यों ने राज्य को आपसी समझौते से बनाया है| हॉब्स के शब्दों में “राज्य शक्ति सहमति पर आधारित है|” हैकर “हॉब्स के सामाजिक समझौते के विचार में सहमति का सिद्धांत निहित है|” 


  • Note- थॉमस हॉब्स निरंकुश संप्रभुता की स्थापना के बाद भी कुछ परिस्थितियों में लोगों को राजा की आज्ञा की अवहेलना करने का अधिकार देता है, यदि राजा व्यक्ति को अपने-आपको मारने, घायल करने, आक्रमणकर्ता का विरोध न करने, वायु, औषधि, जीवन दाता किसी वस्तु का प्रयोग न करने की आज्ञा देता है, तो प्रजा ऐसी आज्ञा की अवहेलना कर सकती है, क्योंकि लोगों ने राज्य की स्थापना ही ‘जीवन की सुरक्षा’ के लिए की थी| अर्थात थॉमस हॉब्स जीवन रक्षा के प्राकृतिक अधिकार को राजा के विरुद्ध सुरक्षित रखता है| थॉमस हॉब्स कहता है किजब मेरे ऊपर बल का प्रयोग हो तब मैं अपनी रक्षा के लिए बल प्रयोग न करूं ऐसा प्रतिज्ञापत्र सदैव निरर्थक होगा|”


  • थॉमस हॉब्स के अनुसार “राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तिगत हितों का योग मात्र है, इसके अतिरिक्त उसका कोई सामूहिक लक्ष्य नहीं है|” अर्थात राज्य एक साधन है|

  • थॉमस हॉब्स “संप्रभु के प्रति नागरिकों की भक्ति तब तक है और केवल उस सीमा तक है जब तक कि संप्रभु उन्हें शक्ति द्वारा सुरक्षा प्रदान करने में समर्थ है|”

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