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जॉन लॉक का श्रम सिद्धांत / Labor theory of John Locke || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

 लॉक का श्रम सिद्धांत-

  • इसको स्वामित्व का श्रम सिद्धांत भी कहा जाता है|

  • लॉक का यह विचार है, कि प्रकृति के साथ अपना श्रम मिलाने से संपत्ति जन्म लेती है| 

  • लॉक ने संपत्ति को दो भागों में बांटा है-

  1. व्यक्तिगत संपत्ति- वह संपत्ति जिसको मनुष्य अपने शारीरिक श्रम द्वारा प्राप्त करता है| इस पर मनुष्य का पूरा व्यक्तिगत नियंत्रण होता है|

  2. सामान्य संपत्ति- वह संपत्ति जो प्रकृति द्वारा स्वतः उपजती है, जैसे- पशु| इस संपत्ति पर  व्यक्तिगत अधिकार न होकर सभी का अधिकार होता है|


  • डेविड रिकार्डो ने अपने मूल्य का श्रम सिद्धांतकार्ल मार्क्स ने अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत की प्रेरणा लॉक के श्रम सिद्धांत से ली थी| 


  • लॉक का संपत्ति का अधिकार असीमित नहीं है, बल्कि लॉक इस पर तीन सीमाएं लगता है-

  1. श्रम सीमा- जितना श्रम, उतनी ही संपत्ति

  2. पर्याप्तता सीमा- संपत्ति की जितनी आवश्यकता उतनी ही रखना, बाकि की संपत्ति दूसरों के लिए छोड़ देना 

  3. विनाश सीमा- जितनी संपत्ति का सदुपयोग हो सके उतनी ही रखना, ताकि अधिक संपत्ति नष्ट ना हो|


  • लॉक ने संपत्ति पर जो सीमाएं लगाई है, उसको लॉकियन शर्त (Lockean Proviso) भी कहा जाता है|

  • लॉकियन शर्त (Lockean Proviso) शब्द रॉबर्ट नॉजिक (पुस्तक- Anarchy, State and Utopia 1974) ने गढ़ा है| नॉजिक के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता व परिश्रम से कितनी भी संपत्ति बना सकता है, पर लॉकियन शर्त यह है कि इससे बाकि लोगों की स्थिति पहले से खराब ना हो|


  • आलोचको के अनुसार मुद्रा के आविष्कार के बाद ये सीमाएं व्यर्थ हो गई है| मैक्फर्सन “लॉक मध्ययुगीन विचारों से तो हटता है पर यह हॉब्स द्वारा स्वीकृत बुर्जुआ विचार को स्वीकृति देता है|” 

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